नवकार मंत्र की महिमा Dr. Bhairavsinh Raol द्वारा आध्यात्मिक कथा में हिंदी पीडीएफ

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नवकार मंत्र की महिमा



उदयगिरी की पहाड़ी पर 162 ईसापूर्व में हाथीगुम्फा अभिलेख में णमोकार मंत्र एवं जैन राजा खारबेळा का उल्लेख है।

नवकार मंत्र
णमो अरहंताणं - अरिहंतों को नमस्कार हो।

णमो सिद्धाणं - सिद्धों को नमस्कार हो।

णमो आइरियाणं - आचार्यों को नमस्कार हो।

णमो उवज्झायाणं - उपाध्यायों को नमस्कार हो।

णमो लोए सव्व साहूणं - इस लोक के सभी साधुओं को नमस्कार हो।

नमो अरिहंताणम
मैं उस प्रभु को नमन करता हूं, जिसने सभी दुश्मनों का नाश कर दिया है, क्रोध-मान-माया-लोभ, राग-द्वेष, रूपी दुश्मनों का नाश कर दिया है ।
हम पहले अरिहंतों को श्रद्धांजलि क्यों देते हैं चूँकि सिद्धों ने परम मुक्ति प्राप्त कर ली है, इसलिए हमारी उन तक पहुँच नहीं है। हालाँकि, अरिहंत हमें अपने जीवनकाल में आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। उनकी शिक्षाओं के प्रति विशेष श्रद्धा प्रकट करने के लिए , हम पहले उन्हें नमन करते हैं, इसलिए नवकार मंत्र का पहला श्लोक है।

नमो सिद्धाणं
मैं उन सभी भगवान को नमन करता हूं जिन्होंने अंतिम मुक्ति प्राप्त की है।

नमो आयरियाणं
मैं उन आचार्य भगवान को नमस्कार करता हूँ जिन्होंने ख़ुद आत्मा प्राप्त कर लिया है और मोक्ष का मार्ग दिखाते हैं ।

नमो उवज्जायाणम
मैं मोक्ष के मार्ग के आत्माज्ञानी शिक्षकों को नमन करता हूं ।

नमो लोए सव्व साहूणम
मैं उन सभी को नमन करता हूं जिन्होंने आत्मा को प्राप्त किया है और ब्रह्मांड में इस मार्ग पर आगे बढ़ रहे हैं।

एसो पंच नमुक्कारो
ऊपर जो पाँच नमस्कार किए वे
सव्व पावप्पणासणों
सब पापों का नाश करो।
मंगलाणम च सव्वेसिं
सभी शुभ मंत्रों में से
पढमं हवई मंगलं
यह उच्चतम है।

णमोकार मन्त्र जैन धर्म का सर्वाधिक महत्वपूर्ण मन्त्र है। इसे 'नवकार मन्त्र', 'नमस्कार मन्त्र' या 'पंच परमेष्ठि नमस्कार' भी कहा जाता है। इस मन्त्र में अरिहन्तों, सिद्धों, आचार्यों, उपाध्यायों और साधुओं का नमस्कार किया गया है। णमोकार महामंत्र' एक लोकोत्तर मंत्र है। यह मंत्र शाश्वत है। अनादिकाल से प्रचलित है।
इसमें कुल 68 अक्षर हैं।णमोकार मंत्र में कुल 58 मात्राएं, 35 अक्षर, 34 स्वर, 30 व्यंजन और 5 पद हैं। आठ करोड़ आठ लाख आठ हजार आठ सौ आठ बार लगातार णमोकार मंत्र का जाप करने से शाश्वत सुख की प्राप्ति होती है और लगातार सात लाख जाप से कष्टों का नाश होता है । लगातार एक लाख जाप धूप के साथ करने से मन की मनोकामना पूर्ण होती है।
नवकार मंत्र में 9 पद (५ ४)होते हैं, इसलिए इसे नवकार कहा जाता है । नमस्कार मंत्र के 5 मुख्य पदों के कारण इसे पंच परमेष्ठी भी कहते हैं । नवकार मंत्र जैन धर्म का आदि मूल है इसे नमस्कार महामंत्र भी कहते हैं।
एक पद के उच्चारण से यानी केवल णमो अरिहंताणं में अरिहंताणं बोल दो, सिद्धाणं बोल दो, णमो आयरियाणं बोल दो, कोई भी एक पद बोलो, तो उससे ५० सागर का पाप कटता है और पूरा णमोकार महामंत्र को एक बार पढ़ लेने मात्र से ७०० सागर का पाप कटता है।
इस महामंत्र को जैन धर्म में सबसे प्रभावशाली माना जाता है। ये पाँच परमेष्ठी हैं। इन पवित्र आत्माओं को शुद्ध भावपूर्वक किया गया यह पंच नमस्कार सब पापों का नाश करने वाला है। संसार में सबसे उत्तम मंगल है। यह महामंत्र समस्त कार्यों को सिद्ध करने वाला व कल्याणकारी अनादि सिद्ध मंत्र है। इसकी आराधना करने वाला स्वर्ग और मुक्ति को प्राप्त कर लेता है।

णमोकार-स्मरण से अनेक लोगों के रोग, दरिद्रता, भय, विपत्तियाँ दूर होने की अनुभव सिद्ध घटनाएँ सुनी जाती हैं। मन चाहे काम आसानी से बन जाने के अनुभव भी सुने हैं।
सभीजीवों की रक्षा करना जैन धर्म का मूल मंत्र है। यही कारण है कि पानी को भी छान कर पीने की बात कही जाती है। यह केवल जैन धर्मावलंबियों के लिए ही आदर्ष मात्र नहीं है। मानव जीव को मोक्ष की प्राप्ति तभी संभव है।
जैन धर्म के अनुयायियों के लिए महावीर स्वामी ने बनाए थे ये पांच महाव्रत: पांच अपरिग्रह
1 सत्य: दुनिया में सबसे शक्तिशाली.
2 अहिंसा: अहिंसा परमो धर्म.
3 अस्तेय: लालच करना महापाप .
4 ब्रह्मचर्य: मोक्ष की होती है प्राप्ति .
5 अपरिग्रह: धन का संग्रह न करना
जैन धर्म की पवित्र पुस्तकों को सामूहिक रूप से आगम या आगम सूत्र के रूप में जाना जाता है। इसमें भगवान महावीर की शिक्षाओं के उपदेश शामिल हैं जिन्हें उनके शिष्यों द्वारा व्यवस्थित रूप से संकलित किया गया था।

माहिती संकलन :डॉ. भैरवसिंह राओल