‘‘ मेरी जुबैदा तुम से बेइतहां मुहब्बत करता हूं, मै फिर भी आज तुम से एक बहुत बड़ा धोखा करने जा रहा हूं । माफ करना मेरी जान। आज बानो से निकाह कर रहा हूं, अगर मैंने ऐसा नहीं किया तो मेरी दोनों छोटी बहनों का घर उजड़ जाएगा । बेघर करवा देगी ये मेरी बहनों को अपनी बहनों की खुशी के लिए ही मैंने ये कदम उठाया है मुझे माफ करना।
जब तक तुम इस खत को पढ़ोगी तब तक मैं इस दुनिया से दूर जा चुका हूंगा।
अगर तुमने मुझसे सच्चा प्यार किया है तो अम्मी और भाईजान को उस मक्कार औरत के हाथों मजबूर होकर जीने से बचा लेना। रुखसार को बहुत प्यार, मेरे होने वाले बच्चे को नहीं देख पाऊँगा पर तुम पर यकीन है कि तुम मेरे बच्चों की परवरिश बहुत अच्छी तरह करोगी।
अगर तुम्हारे दिल में मेरे लिए ज़रा सा भी प्यार है तो एक बार रानी-साहिब की दी हुई लाल पोशाक पहन कर मीरा बनकर अपने राशिद के लिए प्यार का एक नगमा गुनगुना लेना।
सिर्फ तुम्हारा
राशिद
खत के बारे में बताते-बताते माली काकी विचारों के सागर में गोते लगाने लगती है पर आगे की बात जानने की हमारी उत्कंठा के कारण हम पूछ बैठते है- ‘‘बहनों की खुशी के लिए.... । क्या ये सच था काकी..!
हमारी बात का जवाब देते हुए. काकी बताती है - पहले तो मुझे भी इस ख़त पर ज़रा भी भरोसा नहीं हुआ क्योंकि ये खत लगभग ड़ेढ़ साल पहले का लिखा हुआ था और इस बीच राशिद ने कभी मुझसे मिलने की कोशिश नहीं की ना ही राशिद की अम्मी या भाईजान ही। कभी मुझसे या रुखसार से मिलने आए। यहाँ तक कि अब्बू के इंतकाल पर भी वहाँ से कोई नहीं आया।
एक बार तो मुझे थोड़ी घबराहाट हुई क्योंकि उस खत में लिखा था कि जब तुम इस ख़त को पढोगी तो मैं दुनिया में दुनिया में नहीं हूँगा।
पर राशिद की भाभी और बानो को मैंने कई बार बाजार में देखा। एक बार तो वो बानो के साथ किसी दूसरे शहर गई थी वापसी मे मेरी घोड़ागाड़ी के पास ही खड़ी दूसरी घोड़ागाड़ी में सवार हो गई और मुझे सुना कर कह रही थी- '‘देख बानो ‘लियाकत’ बिल्कुल राशिद मियां पर गया है कितना प्यार करता है राशिद अपने बेटे से। अगली बार पक्का तुम दोनों को राशिद के पास ही छोड़ आऊँगी। इस बार मेरा मन नहीं माना, माफ करना बानों लियाकत के बिना मेरा भी मन नहीं लगता।’’
फिर मेरी जेठानी ने तांगे वाले को कहा - "अरे! भाईजान हमारे शहर में जनानियां भी तांगा चलाने लगी हैं क्या? ’’
उन लोगों की बातों से यह पक्का पता हो गया कि राशिद नौकरी के सिलसिले में दूसरे शहर रहने लगा। इसलिए मुझे उस ख़त में जरा भी सच्चाई नहीं लगी।
यों तो राशिद के ख़त के बिना ही मैं सब समझ चुकी थी। मैं भी तो उसी दिन बानो को सौंप चुकी थी जिस दिन बानो और राशिद के बच्चे को देखा।
मीरा को तो उसके जेठ ने धोखे से जहर पिलाया गया था, मैं तो ख़ुद राशिद के धोखे के ज़हर का घूंट भरकर मार आई थी ठोकर उसके झूंठे प्यार को...
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क्रमशः...
सुनीता बिश्नोलिया