कार में बैठे दोनों ही लोग एक - दूसरे से बिल्कल अनजान थे उन्हें नहीं पता था आज किस्मत उन्हें एक बंधन में हमेशा के लिए बांधने वाली है । थोड़ी ही देर में दोनो पाखी के घर पहुंच जाते है , पाखी कार से उतरती है वो जेसे ही उसे थैंक्स कहने के लिए झुकने ही वाली थी तभी उसे रघु की चीख सुनाई देती है ,
ये सुनते ही पाखी कुछ कहे बिना ही अंदर चली जाती है । अरुण उसे ऐसे करते देख कर अपने मन में ही कहता है , "अजीब लड़की है , थैंक्स बोले बिना ही चली गई"। ये कहते हुए अरुण अपनी कार स्टार्ट करने लगता है , तभी उसकी नज़र वही कार की सीट पर रखे पैकेट पर जाती है जिसे खोलते हुए अरुण मन में ही कहता है" "अब ये किसका है "?जैसे ही उसकी नजर दवाइयों पर जाती है । वो समझ जाता है ये उसी लड़की का है वो पैकेट उसे देने के लिए अपनी कार से बाहर आ जाता है , और अंदर की तरफ चल देता है ।अंदर जाते ही पाखी देखती है उसके बाबा की सांसे सामान्य से तेज चल रही थी । पाखी उनके हाथ को पकड़कर बैठ जाती है । और उनके हाथ को सहलाने लगती है मोहन दास अपनी बेटी को देख कर थोड़ा नॉर्मल होते हुए कहते है, "बेटा तुमने उसे बुलाया । पाखी कहती है , "किसे बाबा "?मेरे होने वाले दामाद को बेटा । ये सुनते ही पाखी के एक बार फिर से होश उड़ जाते है और वो अपने मन में ही कहती है, " कहां से लाऊं आपका दामाद जब मैं किसी को जानती ही नहीं । कैसे कहुं आपसे हमने झूठ कहा था आपसे " ये सब सोचते हुए पाखी कुछ कहने ही वाली होती है की पीछे से आवाज आती है।"मिस ये आपका पैकेट गाड़ी में ही रह गया था", ये सुनते ही सब उस आवाज की तरफ देखते है। लंबा कद परफैक्ट शेप बॉडी लुक्स ऐसे की सामने वाला अपनी नज़रे ही न हटा पाए। उस शक्स को देख कर मोहन दास के चेहरे पर खुशी आ जाती है ।
वहीं रघु भी खुश होते हुए कहता है, " मोहन तेरा दामाद तो बिल्कुल हीरो जैसा दिखता है" ये सुनते ही जहां मोहन दास के चेहरे पर खुशी थी तो वहीं पाखी का चेहरा पीला पड़ गया था ।अरुण तो अपने पीछे देखने लगा । उसे लगा शायद वो शक्स उसके पीछे खड़ा है जिसकी वो लोग बात कर रहे है , जब अरुण ने देखा उसके पीछे कोई नहीं है तो उसे समझने में देर नहीं लगी । वो उसकी बात कर रहे हैं। पाखी और अरुण एक-दूसरे को शॉक में देख रहे थे।तभी मोहन की बात से दोनों का ध्यान टुटता है, " हमारी बेटी की पसंद है अच्छी कैसे नही होगी रघु "। अरुण कुछ बोलने ही वाला होता है की इतने में पाखी झट से कहती है, " हां बाबा ये वहीं है"।
ये सुनते ही अरुण पाखी को अजीब नजरो से देखता है और मन में कहता है, " ये हो क्या रहा है? ये लोग सब पागल हो गए है क्या? पता नही सुबह किसका चेहरा देख कर उठा था। जो ये सब मेरे साथ हो रहा है । अभी मुझे यहां आए 5 मिनट भी सही से नही हुए और इन सबने मुझे इस घर का दामाद बना दिया "। अरुण यही सब सोंच ही रहा था की तभी पाखी कहती है , "अरे आप वहा क्यों खड़े है ,? यहां आईए बाबा से मिलिए",,,,,, ये सुनते ही अरूण जैसे सदमे में चला गया । 😐और मन ही मन खुद से कहता है, " ये तो पागलों का पागल खाना लगता है । मुझे यहां से चले जाना चाहिए । वरना ये सब मुझे भी पागल कर देंगे "।
ये सोचते हुए अरूण बाहर की तरफ जाने को पलट ही रहा था कि तभी उसे लगा किसी ने उसका हाथ पकड़ा हो वो जैसे ही अपने हाथ को देखता और फिर उस हाथ को देखता है , जिसने अपने दोनों हाथो के बीच में उसके हाथ को थामा हुआ था । उस हाथ को देखते हुए उसकी नजर जैसे ही ऊपर उठती है दो बड़ी बड़ी काली गहरी आंखो से टकरा जाती है। जिनमे काजल लगा था जो देखने में बेहद खुबसूरत लग रही थी उन आंखों में देखते ही उसे मेहसूस हुआ की वो आंखे उससे कुछ कह रही है। पर उसे तो कुछ समझ ही नही आ रहा था। तभी उसे अपने हाथ पर पाखी के हाथो की पकड़ कसती हुई मेहसूस हुई ।............... "कितने बेवकूफ है ये इसे इसारे भी समझ नही आते । है भगवान किसी और को ही भेज देते मेरी मदद के लिए आपको भी इसी बेवकूफ को भेजना था" , पाखी मन में ही खुदसे ये सब कहे जा रही थीं। दोनों को ऐसे खड़े देख कर रघु कहता है, "पाखी बिटिया अब क्या दामाद जी को वहीं खड़ा रखोगी । यहां लेकर आओ हमे भी मिलवाओ दामाद जी से"रघु की बातो पर पाखी ने कहा, "जी काका आ रहे हम" .....….....,
ये सब सुनकर तो अरूण और ज्यादा कंफ्यूज हो गया उसे तो समझ ही नही आ रहा था वो क्या बोले वो कभी पाखी तो कभी रघु और मोहन दास की तरफ देखता । तभी फुसफुसाती हुई आवाज में उसे कुछ सुनाई देता है ," मैं बाद में आपको सब समझा दूंगी । अभी प्लीज वैसा ही करिए जैसा हम आपको कह रहे है " पाखी ने कहा तो, अरूण उसे हैरान और परेशान नजरो से बस उसे देखे ही जा रहा था । पाखी उनके पास आते हुए कहती है, "ये हमारे रघु काका है। और ये हमारे बाबा अरूण दोनों को देखते हुए नमस्ते करता है , बाबा और काका ये है कहते हुए पाखी मन में ही कहती है जल्दबाजी में तो हमने इस लंगूर का नाम ही नहीं पुछा ।अरूण जैसे ही अपना नाम बताने ही वाला था पाखी तपाक से कहती है, " राम नाम है इनका ये कहते हुए पाखी एक लंबी सांस लेती है , तो वही अरूण ये सुनकर पाखी की तरफ देखते हुए मन ही मन खुद से कहता है. " ये लड़की नहीं लड़की नही राजधानी एक्सप्रेस है किस ऐंगल से इसे मेरा नाम राम लग रहा है कम से कम मेरी पर्सनेलिटी को देख कर कोई अच्छा सा नाम बता देती" । मोहन दास अपनी बेटी के। लिए बहुत खुश थे और मुस्कुराते हुए दोनों को देख रहे थे की तभी फिर से उनकी सांसे उखड़ने लगती है, पाखी जिसके आंखों के आंसु अभी सही से रुके भी नहीं थें की फिर से बहने लगते हैं। अरूण उनकी हालत को देखते हुए कहता है, " हमे अभी इन्हें हॉस्पिटल लेकर जाना होगा",,,,,अभी अरुण ये कह ही रहा था की मोहन दास उसका हाथ पकड़ते हुए कहते है, " बेटा जितनी जिंदगी हमे जीनी थी हमने जी ली है अब तो बस यही आखरी इच्छा है हम अपनी पाखी बिटिया की शादी अपनी आंखों से देख ले" ।ये सुनते ही अरूण तो जैसे सदमे में चला गया उसके पास कुछ नही था बोलने के लिए ।
पाखी -" बाबा आप जैसा चाहते है वैसा ही होगा । पहले आप ठीक हो जाइए "।
मोहन दास - "नहीं बेटा तुम्हारी शादी आज ही होगी । बोलो बेटा क्या तुम हमारी इच्छा पूरी करोगी । हमारी आखरी इच्छा ",,,,पाखी बेबस नजरो से अपने बाबा को बस देखे ही जा रही थी वो रोते हुए कहती है. " बाबा आप जैसा चाहते है वैसा ही होगा" ।
ये सब सुनकर अरूण को समझ नही आ रहा था वो क्या कहे वो बस उन दोनों बाप बेटी को देखे ही जा रहा था । इन सबके बीच रघु ने डॉक्टर को फोन कर दिया था। डॉक्टर अंदर आते हुए कहता है , "आप लोगों से कहा था इन्हें टेंशन मत लेने देना वरना इनकी सिचुएशन और भी ज्यादा क्रिटिकल हो जायेगी ऑल रेडी इनके पास टाइम कम है । ये बात वो पाखी की तरफ देखते हुए धीरे से कहते है "। तो आगे क्या होगा दोस्तो क्या पाखी और अरूण की शादी होगी ?
क्या अरूण शादी के लिए हा करेगा ?
जानने के जरूर पीढ़िएगा अगला चैप्टर।