एक रूह की आत्मकथा - 38 Ranjana Jaiswal द्वारा मानवीय विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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एक रूह की आत्मकथा - 38

दिलावर सिंह की योजनानुसार समर ने मयंक को फोन किया और उसे बताया कि वह बाईज्जत वरी हो गया है।हत्यारे का कोई सूत्र न मिलने से कामिनी हत्या -कांड की फाइल को ही बंद कर दिया गया है।
वह आजाद तो हो गया है पर कामिनी की यादों से आज़ाद नहीं हो पा रहा।वह अवसाद का शिकार है।उसे अपने मित्र की जरूरत है। क्या वह इंडिया आ सकता है?न आ पाए तो वही अमेरिका आ जाए।कुछ दिन का बदलाव जरूरी है।उसके बाद ही वह अपने जीवन में आगे बढ़ पाएगा।
समर की बातें सुनकर मयंक ने राहत की सांस ली।वह अमेरिका में भी चैन से नहीं था।उसे हर पल यह डर सताता रहता था कि कहीं उस पर ही कामिनी की हत्या का आरोप न लग जाए।समर उसका बचपन का मित्र था।उस पर विश्वास भी बहुत करता था।वह भी उसपर भरोसा करता है। कामिनी के बीच में आ जाने से समर उससे थोड़ा दूर हो गया था वरना दो अलग देशों में रहते हुए भी दोनों एक -दूसरे के बहुत करीब थे।मयंक इंडिया आता रहता था।उसके माता -पिता दिवंगत हो चुके थे पर दूसरे भाई बन्धु,रिश्तेदार यहीं थे।पुश्तैनी जमीन -जायजात,हवेली,खेती- बारी ,फार्म -हाउस यहीं थे।जिनकी व्यवस्था देखने उसे आना पड़ता था।उसकी अमेरिकन पत्नी इंडिया में नहीं रहना चाहती,इसलिए मजबूर होकर उसे अमेरिका में ही रहना पड़ रहा था। वह चाहता था कि दिल्ली में ही वह एक बड़ा हॉस्पिटल खोले और यहीं रहे।वह अपनी पत्नी को इस बात के लिए राजी करने में लगा हुआ था।हॉस्पिटल के लिए ज़मीन देखने के सिलसिले में ही वह पिछली बार इंडिया आया था।वापसी से पहले वह समर के बर्थडे की पार्टी को एंज्वॉय करने गोवा पहुंचा था।

-'उसे इंडिया समर के पास जाना चाहिए।इस समय समर को उसकी जरूरत है।फिर एक नए सिरे से वे दोनों अपनी दोस्ती को आगे बढ़ाएंगे।'
मयंक ज्यों ही दिल्ली के एयरपोर्ट पर उतरा,पुलिस ने उसे गिरफ़्तार कर लिया।पुलिस के साथ समर को देखकर वह हतप्रभ रह गया।वह समझ गया कि उसके साथ धोखा हुआ है।कामिनी हत्या कांड की फाइल अभी बंद नहीं हुई है और वह शक के दायरे में है।उसने समर की ओर शिकायती नजरों से देखा तो समर ने अपनी नजरें दूसरी तरफ घूमा लीं।
दिलावर सिंह ने अपने पूछताछ के कक्ष में मयंक से सवाल दागना शुरू किया तो मयंक के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी।
वह समझ गया कि अब उसका बचना नामुमकिन है।उसने पुलिस की थर्ड डिग्री टार्चर के बारे में बहुत पढ़ा-सुना था।
वैसे तो अपराधियों या विचाराधीन कैदियों के साथ किसी तरह की ज्यादती या शारीरिक प्रताड़ना पूरी तरह गैरकानूनी है लेकिन फिर भी पुलिस अपराधियों से सच उगलवाने के लिए चोरी छिपे हल्की मारपीट से लेकर थर्ड डिग्री तक का इस्तेमाल करती है।
बदमाश चाहे कितना शातिर क्यों न हो, वारदात का राज उगलवाने के लिए पुलिस ऐसे-ऐसे हथकंडे अपनाती है कि अच्छे से अच्छों के पसीने छूट जाते हैं। कुछ पुलिसिया हथकंडे ऐसे होते हैं जिन्हें देखकर बदमाश तोते की तरह बोलना शुरू कर देते हैं।इन तरीकों को लोग थर्ड डिग्री का नाम देते हैं, लेकिन पुलिस ने इन्हें स्पेशल नाम दिए हैं। जैसे "आन मिलो सजना", "पैट्रोल मार", "गुल्ली-डंडा" और "हेलिकॉप्टर मार" इनमें से प्रमुख हैं। पुलिस इनका इस्तेमाल अपराधियों पर अनोखे तरीके से करती है।
"आन मिलो सजना" में कमर के नीचे का हिस्सा अकड़ जाता है। यह स्पेशल हथियार लैदर का एक पट्टा होता है, जिसके एक ओर लिखा होता है "आन मिलो सजना" और दूसरी ओर अंकित होता है "समाज सुधारक"।इस स्पेशल हथियार को पुलिस ऐसे शातिर अपराधियों पर इस्तेमाल करती है जो आसानी से मुंह नहीं खोलते। इसे इस्तेमाल करने का भी पुलिस का अपना तरीका है।सबसे पहले बदमाश को नग्न कर हाथ-पैर बांध दिए जाते है। फिर उसे पीठ के बल लिटाकर उसके ऊपर एक पुलिसवाला बैठ जाता है। फिर लैदर के पट्टे को भिगोकर धीरे-धीरे उसकी पीठ पर मारा जाता है। पुलिस अपनी ओर समाज सुधारक नाम रखती है और आन मिलो सजना का निशान बदमाश की पीठ पर पड़ता है। दो-चार पट्टे पड़ते ही बदमाश तोते की तरह बोलना शुरू कर देता है।
यह बिना डंडे का पुलिस का एक स्पेशल टॉर्चर है। इसमें सबसे पहले तो बदमाश को रस्सियों से उलटा लटका दिया जाता है। हाथ-पैर बांधने के बाद उसे घंटों ऐसे ही रखा जाता है। इस दौरान उसे हाथ तक नहीं लगाया जाता।दो-चार घंटे के बाद बदमाश के हाथ और सिर का ब्लड सर्कुलेशन नीचे आने लगता है और शरीर सुन्न हो जाता है। इस स्थिति में बदमाश ज्यादा देर सहन नहीं कर पाता और सब-कुछ उगल देता है।
' गुल्ली-डंडा' टॉर्चर बेहद दर्दनाक होता है। इसमें पुलिस बदमाश को गुल्ली-डंडे का आकार देती है। हाथ और पैर बांधकर बदमाश को लंबे और मोटे डंडे के बीच फंसा देते है। इसे ही गुल्ली-डंडा कहते है।डंडे में पूरी तरह से फिट करने के बाद पुलिस उसकी आंखों पर तेज लाइट का फोकस करती है। तेज लाइट आंखों पर पड़ने के बाद अच्छे से अच्छा शातिर भी बिना सवालों का जवाब ‌दिए नहीं रह पाता।
' पेट्रोल मार' पुलिस का सबसे खतरनाक हथियार होता है। इसमें पुलिस पहले तो बदमाश को पूरा नग्न कर देती है। फिर उसके नाजुक अंगो में पेट्रोल डाल देती है। इसे कभी-कभी खूंखार अपराधियों पर इस्तेमाल किया जाता है।एक टार्चर ऐसा भी होता है जिसमें बदमाश को रस्सियों से बांधकर एक डंडे के सहारे लटका दिया जाता है। कुछ ही घंटों में बदमाश के लिए खड़ा रहना मुश्किल हो जाता है।आधिकारिक रुप से पुलिस अब इन हथकंडों को इस्तेमाल नहीं करती लेकिन कई बार खूंखार अपराधियों पर इन्हें छिपते-छिपाते प्रयोग में लाया जाता है। हालांकि पुलिस के ये स्पेशल हथकंडे अब भी उत्तर भारत के कई थानों में आम बात है।
मयंक की रूह काँप रही थी। उसने दिलावर सिंह के सामने सारा सच उगल दिया।दिलावर सिंह ने उसकी आत्मस्वीकृति को बाकायदा रिकार्ड कर लिया था।
कमरे से बाहर निकलने से पहले दिलावर सिंह मयंक के करीब आए और उसे एक ज़ोरदार चांटा रसीद कर दिया।
मयंक समझ गया कि अब उसका जीवन अधूरा रह जाएगा।एक मानवीय कमजोरी ने उसे हत्यारा बना दिया है।अब सब कुछ खत्म हो गया।उसके सपने ...मंसूबे सब।लोग सच ही कहते हैं कि 'पाप सिर चढ़कर बोलता है।'
उससे अनचाहे ही बड़ा पाप हो गया था।