एक रूह की आत्मकथा - 35 Ranjana Jaiswal द्वारा मानवीय विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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एक रूह की आत्मकथा - 35

मीता की माँ परेशान थी।बेटी के मुसलमान के साथ भागने की खबर पर उसने माथा पीट लिया था ।उसने किसी और को यह बात नहीं बताई थी।किस मुँह से बताती,बेटी ने मुँह दिखाने लायक छोड़ा ही कहाँ था ।
अब तो किसी तरह बात संभालनी थी।
कुछ दिन बाद मीता की माँ अपने नैहर गई और एक माह के बाद वहां से लौटी।आते ही उसने यह हवा फैला दी कि उसने मीता की शादी कर दी है और वह अपने ससुराल में बहुत खुश है।
पास -पड़ोस के लोगों और दूसरे रिश्तेदारों को आश्चर्य हुआ,पर किसी ने कुछ नहीं पूछा।मीता के पिता और भाई का ख़ून खौल गया था।मीता ने उनके खानदान की नाक कटा दी थी।वह सामने होती तो वे उसे मार ही डालते।
पर अब तो उन्हें भी इस बात को छिपाना होगा।उन्होंने मीता की माँ से साफ़ दिया -"अगर वह इस घर में वापस आई तो फिर उसकी हत्या निश्चित है।कमीनी ने जाति बाहर विवाह किया होता,तो फिर भी एक बात थी पर सीधे एक मुसलमान से....छि:!देख लेना बहुत पछताएगी वो।किसी दिन कटुआ उसे भी काट- कूटकर फेक देगा या छोड़ देगा।"
मीता की माँ चुपचाप उनकी बात सुनती रही और सोचती रही कि शायद औरत होना ही गुनाह है।
माँ अपनी संतान के कुकर्मों पर पर्दा डालने के लिए क्या कुछ नहीं करती,पर सच सारे परदे को भेदकर प्रकट हो ही जाता है।
मीता का सच भी एक दिन सबके सामने आ गया।
मीता पास के ही शहर में है-यह खबर पाकर उसकी माँ उसको देखने के लिए छटपटाने लगी थी।वह किसी को भी मीता की असलियत नहीं बता सकती थी ,न ही मीता को अपने घर बुला सकती थी क्योंकि वह जानती थी कि उसके घर के पुरूष नहीं चाहते कि वह इस घर में आए ।दूसरी बात यह कि समाज में अपने धर्म से बाहर विवाह आज भी अक्षम्य अपराध है।कानूनी रूप से भले ही इसे मान्यता मिल चुकी है,पर सामाजिक रूप से नहीं।वह खुद भी तो इसी मानसिकता की शिकार है।मुसलमान के घर का पानी तक नहीं पीती।उसकी माँ ने उसे, उसकी माँ को उसकी माँ ने और जाने कितनी पीढ़ी की माताओं ने अपनी बेटियों को घुट्टी में यही पिलाया है कि अपनी जाति -धर्म से बाहर के लोगों से दोस्ती तक तो ठीक है पर उनसे प्रेम या विवाह सबसे बड़ा गुनाह है।जरूरत हो तो उनसे सामान्य औपचारिक सम्बंध रख सकते हैं,पर खान- पान की शुद्धता के साथ रक्त- शुद्धता का ध्यान रखना ज्यादा जरूरी है।रक्त शुद्धता के लिए जरूरी है कि उनसे शारीरिक सम्बन्ध न बनाया जाए।यानी विवाह सम्बन्ध बिल्कुल स्थापित न हो।
जहां तक बेटों का सवाल था।वे माताएं बेटों को भी यह घुट्टी पिलाती थीं,पर वे उस घुट्टी को उलट देते थे।इसी कारण घुट्टी का प्रभाव उन पर उतना और उस तरह नहीं हो पाता था, जैसे बेटियों पर होता था।बेटे विवाह न करें पर उनके प्रेम -सम्बन्ध रखने पर उतनी कड़ाई नहीं थी।वेश्याओं के यहां वे जाते ही थे और वेश्याओं का कोई धर्म नहीं होता।वे सिर्फ और सिर्फ औरत मानी जाती है।एक मादा शरीर ,जिस पर पैसे का ज़ोर दिखाकर कोई भी नर- शरीर काबिज़ हो सकता है।
पर बेटियां दूसरे धर्म, विशेष रूप से मुसलमान लड़के से सिर्फ दोस्ती या प्रेम ही कर बैठे तो ऑनर किलिंग तय था।
इसके बावजूद जवानी के जोश और जज़्बात के बहकावे में युवक युवतियाँ ये भूल पहले भी करते रहते थे और आज कर रहे हैं। उन्हें इस भूल के लिए सज़ा पहले भी दी जाती थी, आज भी दी जा रही है।सज़ा का रूप जरूर बदला है पर वह मानसिकता नहीं बदली है।पहले तो ऐसे युगल की हत्या कर दी जाती थी या फिर उन्हें आत्महत्या के लिए विवश कर दिया जाता था।आज उनका परिवार और समाज उन्हें छोड़ देता है।उन्हें अकेला कर दिया जाता है।अपने लोगों से कटते ही युगल के प्रेम का खुमार उतर जाता है।फिर वे आपस में ही उलझ जाते हैं। फिर अलगाव..आत्महत्याएँ और कभी -कभार हत्याएं तक की नौबत आ जाती है।अगर वे परिवार और समाज से काटे नहीं जाते तो ऐसी स्थिति नहीं आने पाती,पर समाज चाहता है कि धर्म-बागियों का ऐसा हश्र हो कि दूसरे युवा ऐसा कदम उठाते डरें।
कितनी अजीब बात है कि ऐसे लोग फिल्मों में ऐसे प्रेम -प्रसंगों को चाव से देखते हैं,उसे सराहते हैं । प्रेमी युगल के प्रेम में बाधा बनने वाले को खलनायक समझते हैं ,पर अपने घर -परिवार में ऐसा होने पर खुद खलनायक बन जाते हैं ।
मीता की माँ आखिकार माँ थी।उन्हें मीता की चिंता खाए जा रही थी-'करमजली ने चुना भी तो एक मुसलमान को।ये गद्दार किसी के नहीं होते ,ऊपर से कसाई टाइप के होते हैं।मनमाफ़िक न करने पर गला रेतते देर नहीं करते।'
वह एक बार मीता से मिल लेती तो संतोष हो जाता।
किसी तरह वह उस शहर पहुंची और फिर उस कालोनी में,जहाँ मीता रहती थी। घर ढूंढने में उसे विशेष परेशानी नहीं हुई, पर मीता वहां नहीं थी।घर के बाहर ताला लगा हुआ था।वह निराश होकर चारों तरफ़ देखने लगी। दूर-दूर तक कोई नहीं दिखा ।ये शहरों की कालोनियां अजीब होती हैं।कोई किसी से कोई मतलब नहीं रखता।एक उसका मुहल्ला है।एक घर में कोई खांसे तो दूसरे घर वालों को पता चल जाता है। यहाँ तो किसी का क़त्ल भी हो जाए तो फ़र्क नहीं पड़ता। वह निराश होकर लौट रही थी कि उसे एक महिला दिखी।उसने उस महिला को नमस्कार किया।महिला ने उससे परिचय पूछा तो उसने बताया कि हाउस नम्बर 210 में जो रहते है,उनकी रिलेटिव हूँ।यानी मदर इन ला।
"अच्छा!आप हीरो जी की सासू माँ हैं।" महिला ने उत्सुकता दिखाई।
"जी, पर वहाँ ताला बंद है।वे लोग कहीं गए हैं क्या?"
मीता की माँ ने जानकारी चाही।
"हीरो जी तो रोज दस बजे काम पर जाते हैं फिर देर रात को कब आते हैं पता नहीं चलता।जाते हुए इसलिए दिख जाते हैं क्योंकि उसी समय मेरे शौहर भी निकलते हैं।हीरो जी की बीबी तो घर से बाहर जैसे निकलती ही नहीं।इधर तो बिल्कुल ही नहीं दिख रही।वैसे भी उनके घर किसी का आना -जाना नहीं।"
महिला ने मीता की माँ को पूरी जानकारी दी।
"पर अगर बेटी घर के भीतर होती तो बाहर ताला नहीं होता।"
मीता की माँ ने चिंतित स्वर में कहा।
"मुझे इसके बारे में पता नहीं।आप फोन करके जानकारी कर ले।"
इतना कहकर महिला तो चली गई,पर मीता की माँ चिंतित कर गई। 'क्या वह यहीं हीरो का इंतज़ार करे?अगर वह नहीं आया तो...।'