नफरत का चाबुक प्रेम की पोशाक - 11 Sunita Bishnolia द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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नफरत का चाबुक प्रेम की पोशाक - 11

घर की स्थिति देखकर कई बार सोचती थी कि राशिद के घर जाकर अपने सारे जेवर ले आऊँ ताकि आपा की कुछ मदद कर सकूं पर ऐसा करने से आपा ने साफ मना कर दिया। उन्होंने कहा कि चाहे भूखों मर जाएंगे पर अब हम उस घर की तरफ थूकेंगे भी नहीं।
एक दिन बहुत तेज बरसात हो रही थी और मैं कमरे की खिड़की से बाहर देख रही थी मैंने देखा कि भंवर बाबो -सा छाता लेकर जल्दी-जल्दी कहीं जा रहे थे। पर इतनी तेज़ बरसात में आगे नहीं जा पा रहे थे और वो हमारी दुकान के बाहर खड़े होकर बरसात के रूकने का इंतजार करने लगें। मैं छाता लेकर बाहर आई तो उन्होंने बताया कि आज ही बेटी के ससुराल से तार आया है कि उनकी बेटी की तबियत ज्यादा खराब है। इसलिए वो बेटी के ससुराल जा रहे है। ट्रेन से उसके ससुराल पहुँचने में तकरीबन तीन घंटे लगेंगे।
इसलिए वो रेलवे स्ट्रेशन जा रहे थे वो बहुत परेशान थे कि अब तो ट्रेन छूटने वाली होगी और वो टाइम पर स्टेशन नहीं पहुँच पाएंगे।
मेरे अब्बू समान भँवर बाबोसा की परेशानी मुझसे देखी ना गई मैंने सोचा ‘ काश मैं कुछ कर पाती।’’ अचानक मेरे दिमाग में कुछ ऐसा आया। जिसे शायद ही किसी ने सोचा हो। मैं फटाफट घर के अंदर भागी आपा और छोटी बहनों को बच्चों का ध्यान रखने के लिए कहा और फटाफट अपने घोड़े को गाड़ी में जोत कर बाहर आ गई। और बाबा को गाड़ी में बैठने के लिए कहा। बाबा ये देखकर आश्चर्यचकित तो हुए पर मेरी जिद और अपनी मजबूरी के कारण वो मेरी घोड़े गाड़ी में बैठ गए और मैने चाबुक लहरा कर अपने घोड़े बादशाह को रेलवे स्टेशन की तरहफ दौड़ाया। हम गाड़ी छूटने से पहले ही वहाँ पहुँच गए और बाबा ने झटपट टिकट ली और ट्रेन में बैठ गए। पर जाने से पहले बाबा ने मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए मुझे ‘‘दो आने दिए’’ हालांकि मैंने बाबा को बहुत मना किया पर बाबा नहीं माने और उन्होंने कहा - ‘‘बेटी ये किराया नहीं मेरा आशीर्वाद है, तू इस घोड़े गाड़ी से अपने परिवार की गरीबी दूर कर सकती है और अपनी बहनों को पढ़ा सकती है।
बाबा की बात को मैं अच्छी तरह समझ भी गई थी और मान भी गई थी। इसीलिए बाबा को छोड़ कर आते समय मैने अपने तांगे में दो मुसाफिर बिठाए और उन्हें उनके घर तक पहुँचाया। उन दोनों ने किराया पूछा पर मुझे नहीं पता था कि रेलवे स्टेशन से उनके घर तक का क्या किराया होता है इसलिए मैंने कहा- "आपकी जो मरजी हो वो दे दीजिए।"
वो दोनों अलग-अलग जगह उतरे और दोनों ने मुझे दो-दो आने दिए। मुझे घर आने में देर हो गई थी इसलिए आपा को भी चिंता हो? ने लगी। उन्हें ड़र था कि मुझे घोडा गाड़ी चलानी ही नहीं आती है, कहीं गिर ना जाए, कहीं घोड़ा गाड़ी को भगा ना ले जाए और अब तो बाबू भी रोने लगा था। तभी मैं घर आ गई। मुझे देखकर आपा की जान में जान आई।
क्रमशः....

सुनीता बिश्नोलिया