एक रूह की आत्मकथा - 34 Ranjana Jaiswal द्वारा मानवीय विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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एक रूह की आत्मकथा - 34

स्वतंत्र की पत्नी उमा अपने पति स्वतंत्र से परेशान थी।फिर भी उसे छोड़ना नहीं चाहती थी क्योंकि वह जानती थी कि पुरुष के संरक्षण से आज़ाद स्त्री को ग़ुमराह करने वाले इस समाज में बहुत हैं।
उसे अपनी बचपन की दोस्त मीता याद है। मीता को किशोरावस्था से ही एक युवक से प्यार हो गया था पर वह युवक लम्पट निकल गया ।उसने मीता को धोखा दे दिया।मीता डिप्रेशन में चली गई।काफी इलाज के बाद वह ठीक हुई तो उसकी माँ ने उसे उसके ननिहाल भेज दिया।बिहार के एक गांव में मीता का ननिहाल था।
मीता को अपने ननिहाल के गांव में आकर बहुत सुकून मिला था।खेतों में लहलहाती फसलें,बाग- बगीचों की फलदार हरियाली ,शुद्ध हवा ने उसका मन मोह लिया। यहां के ग्रामीण लोगों से उसे भरपूर प्यार मिल रहा था।वह पिछले दिनों के तनाव को भूल चुकी थी।उसका चेहरा निखर आया था।तेजी से शहर में तब्दील होते अपने कस्बे की संक्रमण कालीन मानसिकता से वह ऊब गयी थी।दोहरे लोग,दोहरा चरित्र, छि:!
वह गाँव की लड़कियों के साथ खेतों की पगडंडियों पर फिसलती,मटर की फलियां तोड़कर घर लाती और उनकी घुघनी बनवाती।बाग में पेड़ों पर चढ़कर आम- अमरूद तोड़ती और बड़े चाव से खाती।गाय और बकरी का दूध दूहती।उसे इन सब कामों में बहुत मजा आता।उसका बचपन फिर से लौट आया था।गांव -भर में वह अकेले घूम आती। यहां कोई ख़तरा नहीं था और न ही कोई रोक -टोक थी।उसकी मामी और नानी उससे कोई काम भी नहीं कराती थीं।उनके लिए वह चार दिन की पाहुन थी।
एक दिन वह आम तोड़ने आम के पेड़ पर चढ़ी तो वहीं अटक गई ।चढ़ने को तो चढ़ गई थी,पर उतर नहीं पा रही थी।ऊपर से कूदने पर चोट लगने का खतरा था।तभी उसने देखा कि दो जोड़ी खूबसूरत आंखें उसे निहार रही हैं।'हीरो ' --उसके दिल से आवाज़ उठी।ऊंची कद -काठी ,इकहरे बदन,सुंदर चेहरे वाला मनमोहक हीरो....इस पिछड़े गांव में!पहरावे से शहरी लग रहा है।बाल करीने से सेट, होंठों पर मुस्कुराहट!
उसका दिल जैसे उसमें ही अटक गया।
दोनों एक -दूसरे को निहारे जा रहे थे।
"मैं मदद करूं उतरने में..!."हीरो ने अपना हाथ बढ़ाया।मीता का सिर अपने आप 'हाँ 'में हिल गया।नीचे उतरने के बाद वे दोनों देर तक पेड़ की छाया में बैठकर बातें करते रहे।परिचय का आदान- प्रदान हुआ ।हीरो ने बताया कि वह बगल के मुस्लिम गांव के दर्जी मुमताज खान का बेटा है और बारहवीं पास कर करीब के ही शहर में एक कारखाने में काम करता है।ईद मनाने आज ही घर आया है।अभी कुछ दिन यहीं रहेगा।उसे इस गाँव में किसी से ज़रूरी काम था।लौटते वक्त उसे पेड़ में अटके देखा तो रूक गया था।
दोनों खुलकर हँस पड़े।मीता को याद नहीं कि कितने अरसे बाद वह हँसी है।मीता ने भी उसे अपने बारे में सब कुछ बता दिया पर अपने पुराने अफेयर के बारे में नहीं बताया।
"फिर मिलोगी न !दोनों गांवों के बीच जो नदी है उसी के किनारे कल सुबह मिलें।"
मीता हीरो की कोई बात नहीं टाल सकती थी।रात-भर वह करवट बदलती रही और सुबह होते ही नदी की तरफ चल दी।वहाँ हीरो पहले से ही मौजूद था। फिर वे रोज मिलने लगे।एक दिन मीता की नानी के पड़ोसी ने दोनों को एक साथ देख लिया।नानी को ये बात पता चली तो उन्होंने मीता को बहुत डांटा--''मुसलमान के साथ घूमती हो।धर्म -कर्म का भी विचार नहीं ।हम हिन्दू लोग उनका छुआ खाते -पीते तक नहीं।वैसे भी गद्दार जाति होती है और तुम उन्हीं से दोस्ती करी हो।आज के बाद उससे नहीं मिलना।''
मीता ने सिर झुका लिया।
मीता मोहब्बत में जाति- धर्म,ऊँच -नीच का विचार नहीं करती थी।उसके लिए प्रेम ही एकमात्र सच था,जो पहली ही नजर में हीरो से हो चुका था।वह उसके साथ जीवन बिताने के सपने देखने लगी थी। उसे यह भी पता था कि परिवार,समाज और धर्म से इसकी इज़ाजत नहीं मिलेगी।
इसलिए जब हीरो ने उसे अपने साथ शहर चलने को कहा तो वह तुरत मान गई।
हीरो ने अपने किराए के घर में उसे बड़े प्रेम से रखा।उसकी जरूरत की हर वस्तु लाकर दी।वह उससे निकाह करना चाहता था पर मीता ने कह दिया कि वह अपना धर्म नहीं बदलेगी,पर धर्म उनके प्रेम के बीच में भी नहीं आएगा।वे बिना विवाह के ही साथ रहेंगे।कुछ महीने बड़े ही प्रेम से गुजरे ।मीता गर्भवती हो गई।अब उसे चिंता होने लगी कि उसकी सन्तान का धर्म क्या होगा?उसे निकाह करके मुसलमान हो जाना चाहिए पर अब हीरो निकाह से कतरा रहा था।इधर उसमें एक तब्दीली और नजर आ रही थी कि वह बार -बार अपने गांव जा रहा था।
एक दिन मीता को पता चला कि गांव में उसकी बीबी- बच्चे हैं।उस दिन दोनों ने पहली बार लड़ाई हुई।
--"तुमने मुझे धोखा दिया।पहले क्यों नहीं बताया कि तुम शादीशुदा हो?"मीता हीरो पर चिल्लाई।
''मौका ही कहाँ मिला?''हीरो ने शांति से जवाब दिया।
--"तुम एक साथ दो औरत कैसे रख सकते हो?"मीता का गुस्सा बढ़ता जा रहा था।
''रखने को तो चार भी रख सकता हूँ।हमारा धर्म इसकी इजाज़त देता है।'' हीरो ने मुस्कुराकर मीता का गुस्सा कम करना चाहा।
--"तुमने प्रेम के नाम पर छल किया।" मीता मानने को राजी नहीं थी।
''नहीं ,यह सरासर इल्ज़ाम है।तुम मुझे अच्छी लगी थी,इसलिए तुम्हें अपनाया।छल करना होता तो एक बार हासिल करने के बाद ही छोड़ देता। तुम गुस्सा न करो।बच्चे पर बुरा असर होगा।'' हीरो ने उसे अपनी ओर खींचा और उस पर चुम्बनों की बौछार कर दी।वह मीता की कमजोरी जानता था।उस दिन तो बात टल गई पर मीता हीरो की इस झूठ से आहत थी।
फिर तो अक्सर दोनों के बीच लड़ाई होने लगी।मीता अपने को बुरी तरह फंसा पा रही थी।अब वह कहीं भी लौटकर नहीं जा सकती थी।हीरो भी उसे छोड़कर जा सकता था ,फिर वह बच्चे को लेकर कहाँ भटकेगी?उफ,उसने अपनी जिंदगी के साथ क्या -क्या कर लिया! वह जाने किस मृगतृष्णा में भटकती रही है।वह कहाँ जाए ?क्या करे?किसी को मुंह दिखाने के काबिल भी तो नहीं बची है।
उधर मीता की माँ परेशान थी।बेटी के मुसलमान के साथ भागने की खबर पर उसने माथा पीट लिया था पर किसी को यह बात नहीं पता थी।मीता की माँ अपने नैहर गई और एक माह के बाद वहां से लौटी।आते ही उसने यह हवा फैला दी कि उसने मीता की शादी कर दी है और वह अपने ससुराल में बहुत खुश है।
माँ अपनी संतान के कुकर्मों पर पर्दा डालने के लिए क्या कुछ नहीं करती,पर सच सारे परदे को भेदकर प्रकट हो ही जाता है।