यादों के कारवां में - भाग 2 Dr Yogendra Kumar Pandey द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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यादों के कारवां में - भाग 2

यादों के कारवां में :अध्याय 2

(3) प्रेम की तरंगें

प्रेम की तरंगें होती हैं विशिष्ट

रेडियो प्रसारण सी

पर उससे थोड़ी भिन्न,

एक एकदम अलग फ्रीक्वेंसी की,

इसीलिए इसे

आम रेडियो प्रसारण की तरह

सब डीकोड नहीं कर सकते,

और यह पहुँचती है

इसे डीकोड कर पाने वाले

दुनिया के शायद

किसी एक के पास ही,

और शायद केवल वही

महसूस कर पाता है

इन अदृश्य तरंगों को,

और भेज पाता है

फीडबैक इसी तरह।

सचमुच

ये दो लोगों से बनी

एक अलग ही दुनिया होती है

और मीलों दूर से भी

वे दोनों एक हो जाते हैं

और पहुँच जाते हैं,

अनुभूति के एक ही स्तर पर,

राधा और कृष्ण जैसे।

ये तरंगें समय के परे भी

यात्रा करती हैं

और पहुँच जाती हैं

मीरा तक।

(4)कविता:प्रेम के किसी पल में

प्रेम के

किसी एक पल में

सहसा उदित होते हैं करोड़ों सूर्य

सहस्रार चक्र की भांति,

इसीलिए

बाद इसके

होता है आलोकित जीवन पथ

स्वयं का और

मस्ती का प्याला पिए

मानव करता आलोकित

औरों का जीवन भी।

महाविस्फोट के बाद

सूर्य से बने ग्रहों,उपग्रहों के परिभ्रमण

में भी है यही प्रेम तत्व

इसलिए रहते हैं सुरक्षित दूरी पर

संतुलित,प्रेमपूर्ण और मर्यादित।

न्याय व धर्म के मूल में प्रेम ही है

कि मर्यादा पुरुषोत्तम

राम चल पड़ते हैं,

सौ योजन समुद्र पार कर

सीता की खोज में,

करने विनाश रावण का।

प्रेम ही जीवन है

का संदेश देते

कर्तव्यबद्ध कृष्ण

छोड़ते हैं प्रेममय वृंदावन,

ले राधा से चिर विदा

पहुँचते मथुरा,

करने अंत कंस का।

सिद्धार्थ त्यागते हैं महल

सत्य की खोज में,

और पाकर उसे

बनते हैं अत्यधिक प्रेमपूर्ण,

कर प्राणियों से प्रेम

बिखेरते हैं

दुनिया में सत्य व धर्म की रौशनी।

प्रेम के ऐसे क्षण

होते हैं घटित अब भी,

ब्रिटिश राज की नींव हिलाते

बापू के अनशनों के

सत्य के आग्रह में भी है परिणाम,

प्रेम के उसी पल के,

जब मानवता से प्रेम की

फूट पड़ती है चिंगारी।

प्रेम पसरा है सारे ब्रह्मांड में,

उसके कण-कण में,प्राणियों में,

प्रेम है तो है इक चिंगारी,

इसीलिए,अभी भी

चकोर निहारता है चंद्र को रातभर,

पक्षी चहचहाते हैं,भोर होते ही

और अदृश्य हो जाते हैं

रात के सफर से थककर

अंबर में चंद्र और तारे,

दिन निकलते ही,

जा छिपते हैं

सूरज की गोद में,

और इसी वजह से

दिन ढलते

किसी कॉलेज की लाइब्रेरी में

बांचकर पुस्तकों के हज़ारों पन्ने ,

कोई कहता है किसी से -

"चलो कैंटीन चलें?

पीने एक-एक कप चाय!"

और इसी वजह से ही,

थकेहारे शाम घर लौटने पर,

दौड़कर दरवाजे पर पहुंचे

खिलखिलाते बच्चे को

अपनी बंद मुठ्ठी दिखाकर,

पूछता है कोई पिता-

"बता मैं तेरे लिए क्या लाया हूँ?"

(5) गणतंत्र दिवस पर मुक्तक-माला

तीन रंग का नहीं तिरंगा,

ये देश का सम्मान है।

झुकने न देंगे इसे कभी,

भारत का स्वाभिमान है।1।

आज की सुबह फिर से खुशियां आई हैं।

गणतंत्र दिवस का नया संदेसा लाई हैं।2।

शहीदों,सेनानियों की साधना हुई सफल है।

संविधान उनकी तपस्या का ही प्रतिफल है।3।

देश से बढ़कर नहीं है यहाँ और कोई विधान।

धर्म भारत,जाति भी भारत,है मेरा देश महान।

हम भारतीय,भारत के,भारत हित रहना होगा।

एक अखंड राष्ट्र के हित ही जीना-मरना होगा।4।

होंगे पूरे सपने सभी के

भारत विजयी सफल होगा।

गणतंत्र की डगर पर

देश आगे बढ़ता रहेगा।5।

(6) गणतंत्र दिवस उत्सव सबका

कोटि-कोटि जन के सपनों व उम्मीदों

का हार,

संविधान भारत का ये अपने पूर्वजों

का उपहार।

गणतंत्र समाहित रग-रग में भारत की पुरानी रीत,

जन है सम्मानित भारतवर्ष में जन भावना की जीत।

चुनते प्रतिनिधि पाँच वर्ष में जन की ही हो उक्ति,

ये लोकतंत्र की महाकसौटी जन के शासन की शक्ति।

स्वतंत्रता के बाद संविधान सभा की इसमें मेहनत,

नव-स्वतंत्र भारत के भविष्य में आगे बढ़ने की चाहत।

न रह जाए कोई दुखी,वंचित, न कोई पीछे छूटे

करेंगे हम मिलजुल के करोड़ों जन के सपने पूरे।

संविधान है मार्गदर्शिका अपने भावी गौरव पथ की,

गणतंत्र दिवस उत्सव सबका,खुशियां साझे सपनों की।

( मातृभारती के सभी पाठकों, रचनाकारों एवं टीम मातृभारती को 74 वें गणतंत्र दिवस की बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनायें। जय हिंद 🇮🇳 )

डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय

(कॉपीराइट रचनाएं)