Ek Ruh ki Aatmkatha - 29 books and stories free download online pdf in Hindi

एक रूह की आत्मकथा - 29

दिलावर सिंह ने प्रथम के गाल पर जोर का एक तमाचा जड़ दिया और उसे एक तरफ़ ढकेलते हुए बाशरूम का दरवाजा खोल दिया।बाशरूम के एक कोने में उकडू बैठे नग्न युवक को देखकर उनकी हँसी छूट गई।वे देर तक हँसते रहे।उनके साथी भी हँस रहे थे।प्रथम शर्म से पानी -पानी हुआ जा रहा था।
दिलावर सिंह ने मुश्किल से हँसी रोकी और प्रथम की ओर मुखातिब हुए।
"तो यह है तुम्हारी गर्ल या फिर ब्वॉयफ्रेंड...।"
"जी, तो इसमें गलत क्या है?ये मेरी अपनी आजादी है।मैं कोई गलत काम नहीं कर रहा।हमारा कानून भी दो युवाओं को स्वेच्छा से सम्बन्ध बनाने की इजाज़त देता है।मैं किसी के साथ कोई ज़बरदस्ती नहीं कर रहा।आप इसके लिए मुझे सज़ा नहीं दे सकते।"
प्रथम ने अपनी ओर से सफाई दे डाली।
"हम इसके लिए आए भी नहीं है।हम तुम्हारी भाभी कामिनी की हत्या की जांच के सिलसिले में आए हैं।"
दिलावर सिंह ने अपनी मंशा बताकर उसे आश्वस्त करना चाहा।
"उसके लिए मेरे पास क्यों आए हैं? मैं तो उस औरत को अपनी भाभी भी नहीं मानता।वह एक अय्याश औरत थी।उसके आशिक समर ने ही उसकी हत्या की है।मैं उस औरत के लिए दुःख क्यों मनाऊँ?" प्रथम ने अपनी अकड़ दिखाई।
"अच्छा बच्चू,इतनी अकड़! मुझे तो लगता है कि तुम्हीं ने उसकी हत्या की है।उसने तुम्हें प्राइवेट सेक्रेटरी नहीं बनाया तो तुमने उसका मामला ही खत्म कर दिया।रेप तो खैर तुमने न किया होगा,पर अंगूठा तो तुमने ही लगावाया है न!"
दिलावर सिंह ने अंधेरे में तीर छोड़ा।
"ये क्या कह रहे हैं सर?मुझमें इतनी हिम्मत नहीं और न ही मैं इतना गिरा हुआ इंसान हूँ।मुझमें बस एक यही दोष है कि मैं एक लड़के से प्यार करता हूँ। ट्रांसजेंडर हूँ।पर सर ऐसा कुदरत ने मुझे बनाया है और यह कोई क्राइम नहीं है।"
प्रथम घिघियाता हुआ दिलावर सिंह के पैरों तक झुक आया था।
दिलावर सिंह को प्रथम पर दया आ गई।उन्होंने उसे उठाकर सीधा किया।
"देखो,मुझे इस बात से कुछ भी लेना -देना नहीं है कि तुम एक ट्रांसजेंडर हो।ट्रांसजेंडर होना न होना कुदरती है और यह कोई अपराध नहीं है।यह सच है कि हमारे समाज में आज भी इसे हेय दृष्टि से देखा जाता है। इसी कारण ऐसे रिश्ते चोरी -छिपे ही चलाए जाते हैं।हालांकि विदेशों में इसे मान्यता मिल चुकी है और अब अपने देश में भी इसके सम्बन्ध में कुछ उदारता बरती जा रही है इसलिए इस बात के लिए खुद को मत दोषी ठहराओ।
हाँ,अपनी भाभी कामिनी के प्रति तुम्हारी धारणा गलत है।तुम्हें उसका केस सुलझाने में मेरी मदद करनी होगी।
तुम्हें कल मेरे ऑफिस में ठीक दस बजे उपस्थित होना है।फिर गायब न हो जाना ,वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।मैं तुम्हें पाताल से भी निकाल लाऊंगा।
दिलावर सिंह ने प्रथम से कड़े स्वर में कहा।
"जी सर ,बिल्कुल....।मैं समय से आ जाऊँगा। सर एक रिक्वेस्ट है आपसे,कृपया मेरे मित्र वाली बात किसी और को पता न चले।" प्रथम एक बार फिर घिघियाया।
"नहीं बताएंगे,पर सोचो जब तुम ही इस बात को गलत मानकर छिपा रहे हो तो समाज में इसे मान्यता कैसे दिला पाओगे?ठीक है चलता हूँ।अपने दोस्त को वाशरूम से बाहर निकालो,बेचारा मोहब्बत की सज़ा पा रहा है।"
दिलावर सिंह ने ठहाका मारते हुए प्रथम की ओर आँख मारी और कमरे से बाहर निकल गए।उनके साथी पहले ही बाहर जा चुके थे।उनके जाने के बाद प्रथम ने अपने दोस्त को बाशरूम से बाहर आने को कहा।उसका दोस्त फूट -फूटकर रोने लगा।प्रथम उसे चुप कराने की कोशिश में खुद भी रो पड़ा।
"ये भी कोई जिंदगी है।ऐसा लगता है जैसे हम धंधे वाले हैं,जिसे इस तरफ़ छिपकर मिलना पड़ता है।हमारे प्यार की कोई मंजिल नहीं...इसका कोई भविष्य नहीं।हमें अलग हो जाना चाहिए....।"प्रथम के साथी परम ने बिलखते हुए कहा।
"ऐसा क्यों कह रहे हो?इसमें मेरी क्या गलती है?अचानक क्राइम ब्रांच वाले आ गए।इस तरह की परिस्थिति में हम पहली बार ही तो फंसे हैं।"
"फिर भी यह सब बहुत अपमानजनक है।जैसे हम इंसान ही नहीं हो।अगर कुदरत ने हमें थोड़ा अलग- सा बनाया है। हमारी रूचियाँ आम लोगों से अलग हैं तो हमारा क्या दोष!"
परम के आँसू रूक ही नहीं रहे थे।
"परम ...परम मेरी जान,इस तरह मत रोओ।तुम जानते हो न कि मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ।हम शादी करेंगे और एक साथ रहेंगे।तब कोई हमें इस तरह अपमानित न कर सकेगा।हमें इस तरह छुप -छुप कर नहीं मिलना पड़ेगा।"
प्रथम ने परम को अपनी बाहों में समेटते हुए कहा।
"क्या कभी ऐसा हो सकेगा प्रथम?बोलो न ,हो सकेगा क्या?"परम की आँखों में एक चमक उभर आई।
"जरूर होगा?अगर नहीं हुआ तो हम ऐसे देश में जाकर रहेंगे,जहाँ ऐसे विवाह को मान्यता मिल चुकी है।इसी लिए तो मैं चाहता था कि भाभी की सम्पत्ति मुझे मिल जाए ताकि हम विदेश जा सकें....।"आगे कुछ कहते हुए प्रथम रूक गया।
"तो क्या तुमने ही.....।"
परम उसकी बाहों से दूर छिटक गया।
"अरे नहीं ...नहीं...मैंने कुछ नहीं किया।करना चाहता था पर नहीं कर पाया।"
प्रथम ने अपनी सफाई दी।
"फिर तुम तो हमेशा मेरे साथ ही रहते हो।हम इस बीच गोवा गए थे क्या!नहीं न,फिर तुमने ऐसा कैसे सोच लिया?"
प्रथम ने रूठे हुए स्वर में कहा।
"नहीं यार,तुम पर डाउट नहीं कर रहा,पर तुम पर संदेह किया जाएगा क्योंकि तुम्हारे पास कामिनी भाभी की हत्या की वज़ह है।"
परम ने चिंतित स्वर में कहा।
"सो तो है,पता नहीं आगे क्या -क्या झेलना पड़ेगा?यह तो वही कहावत हो गई कि 'माया मिली न राम' हम तो कहीं के न रहे।एक तो हमारा रहस्य खुल गया।दूसरे दौलत भी हाथ से गई।अब हम कैसे विदेश जाएंगे?कैसे विवाह करेंगे?कैसे पूरे अधिकार और सम्मान से एक साथ रहेंगे?"
"चिंता न करो।मैं तुम्हारे साथ ही रहूंगा।जो ईश्वर को मंजूर होगा,वो तो होकर रहेगा।आओ,अब सो जाते हैं।कल क्राइम ब्रांच के दफ्तर में भी तो जाना है।वहाँ न जाने क्या -क्या सुनना और झेलना पड़ेगा"
परम ने प्रथम के माथे पर किस किया और उसकी देह को कम्बल से ढंक दिया।दोनों मित्र एक -दूसरे की बाहों में कभी जागते कभी सोते समय बिताते रहे।वातानुकूलित कमरा खामोशी से उन्हें देखता रहा।
उधर दिलावर सिंह भी अपने बेडरूम में जाग रहे थे।वे परम और प्रथम के रिश्ते के बारे में ही सोच रहे थे।वे जानते थे कि समलैंगिकता को लेकर बहस हमेशा चलती रहती है |कुछ इसके पक्ष में हैं तो अधिकांश विपक्ष में ,पर इसके अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता |यह हमेशा से समाज का हिस्सा रही है |कुछ वैज्ञानिक खोज यह बताते हैं कि कुछ लोगों में एक खास किस्म की यौनवृत्ति होती है। समलैंगिकता दो तरह की होती है। नंबर एक-यह किसी का निजी चुनाव हो सकती है। यह तादाद समाज में कम ही है। लेकिन ज्यादातर तो विषमलिंगी साथी के अभाव में ही यह रास्ता अख्तियार करते हैं । इसे उनका चुनाव नहीं कह सकते। यह उनकी अपनी यौनाकांक्षा को मिटाने की मजबूरी होती है , पर प्रथम और परम का रिश्ता तो उनका निजी चुनाव है और इसे वे गलत नहीं ठहरा सकते।


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