Tadap Ishq ki - 32 books and stories free download online pdf in Hindi

तड़प इश्क की - 32

अब आगे...............

आद्रिक और किरन आपस में बातें करते हुए अंदर की तरफ बढ़ रहे थे और विक्रम फोन पर बात करते हुए अपने ही एटिट्यूड में बाहर की तरफ जा रहा था , , जिससे वो आद्रिक से टकरा जाता है , ,

किरन का उसे देखकर पारा हाई हो जाता है , , ..." what are you doing here...??....."

विक्रम उसे घूरते हुए कहता है....." ये तेरा घर नहीं है जो तुझसे परमिशन लेनी पड़ेगी...." किरन गुस्से में तिलमिला जाती है , विक्रम वहां से जाने लगता है , , लेकिन एक कदम आगे बढ़ाकर वापस पीछे आकर आद्रिक के पास आकर कहता है..." stay away from him, that will be good for you..." विक्रम वहां से चला जाता है और आद्रिक उसे घूरते हुए अपने आप से कहता है...." पहले का सबक भूल चुका है ये , अब आद्रिक ही इसे इसकी औकात दिखाएगा..."

किरन आद्रिक के ध्यान को हटाते हुए कहती हैं......" क्या हुआ आद्रिक कहां खो गए.....?....ये तो ऐसे ही बोलता रहता है....."

आद्रिक किरन की बात पर मुस्कुराते हुए उसके साथ एकांक्षी से मिलने चला जाता है......

इधर विक्रम अपनी कार में जाकर बैठते हुए बीते पलों को याद करने लगता है......

" वैदेही , हम अपने आप पर अफसोस था , हम आपको नहीं बचा पाए...."

फ्लैशबेक.........

वैदेही माणिक के हाथ में पट्टी बांधती हैं और माणिक बस उसके चांद से चमकते हुए चेहरे पर आ रही अलकावली को देखकर मदहोश हो रहा था , , , वैदेही पट्टी बांधकर कहती हैं......" आप कुछ बोल नहीं रहे .... माणिक जी कहां खो गए आप चले हमें वृषपूर पहुंचना है...."

माणिक का उससे ध्यान टूटता है..." हां..." वो वापस से अपने हाथ को वैदेही की तरफ बढ़ाते हुए कहता है..." आप हमारा हाथ थाम ले , ताकि आपको चलने में दिक्कत न हो...."

वैदेही मुस्कुराते हुए कहती हैं...." हमें चलने में कोई दिक्कत नहीं होगी , आप निश्चित रहिए, ,."

माणिक हां में सिर हिलाते हुए आगे चलने लगता है तो वैदेही भी एक हाथ से अपने घाघरे को और एक हाथ में अपनी औषधि की डलिया थामे संभलते हुए चल रही थी , , आसमान में लुक्का छिप्पी करता हुआ चांद कभी अपनी रोशनी बिखेर देते कभी बादलों के पीछे जाकर छुप जाते , मौसम का रूख भी काफी सुहावना हो रहा था , इसमें भी वैदेही की पायल की झनकार गूंजने से वो मौसम को और भी लुभावना बना रही थी , , , माणिक बार बार वैदेही को ही देख देख मुस्कुराते हुए खुद से कहता है...." काश ! आप सदा के लिए हमारी हो जाए , ,.."

वैदेही अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहती हैं...." आप पंचमढ़ी के युवराज है , और आप यहां वन में क्या कर रहे थे.....?..."

माणिक मुस्कुराते हुए कहता है....." हम वन में आखेट(शिकार)के लिए आए थे , और आपके लिए तो अच्छा ही हुआ , जो हम आपकी सहायता के लिए आ गए...."

वैदेही मुंह बनाते हुए कहती हैं....." वैसे हम किसी से डरते नहीं है , वो तो अचानक हमारे सामने आ गया नहीं तो हम उसे एक अच्छा सबक सिखाते...."

माणिक शरारत भरी आवाज में है...." अच्छा , तो वीरांगना है , किसी से नहीं डरती..."

वैदेही इठलाती हुई कहती हैं...." बिल्कुल हम किसी से नहीं डरते...."

माणिक मुस्कुराते हुए थोड़ी दूर आगे चलने के बाद अचानक चिल्लाते हुए कहता है...." सावधान , यहां अत्यंत भयानक सर्प है...."

वैदेही घबराई सी बीना सोचे माणिक से लिपट जाती है , , उसके अचानक लिपटने से एक पल के लिए माणिक हैरान था लेकिन उसे वो पल बहुत सुकून दे रहा था , इसलिए वो बस इस पर को जीने के लिए चुपचाप वैदेही की गर्म सांसें अपने सीने पर महसूस कर रहा था , ,

वैदेही घबराई सी आवाज में कहती हैं....." आप शीघ्रता से उस सर्प को यहां से हटा दीजिए...."

माणिक हंसते हुए कहता है..." यहां कोई सर्प नहीं है , वो जा चुका है और आप चाहें तो आप भी हमसे दूर हो सकती है...."

वैदेही को जब एहसास हुआ कि वो माणिक से लिपटी हुई है तो वो तुरंत उससे दूर होकर आगे चलते हुए कहती हैं....." हमें क्षमा करना , हम डर गए थे..."

माणिक जल्दी से वैदेही के पास जाकर कहता है...." आप इस तरह क्यूं घबरा गई , , हमें किसी बात का बुरा नहीं लगा , आप यही सोच रही थी न...."

वैदेही मासुमियत से सिर हिलाते हुए कहती हैं...." आपको लगा होगा , ..?..."

."..आप कितनी भोली है , ,हम औरों के जैसे घंमडी राजकुमार नहीं है , इसलिए हमें अकेले अपनी प्रजा को देखने और आखेटक के लिए जाते हैं , हमें किसी शाही सवारी की आवश्यकता नहीं होती इसलिए हर कोई हमसे अपनी परेशानी कह सकता है....."

वैदेही उसकी बात से प्रभावित होने लगती है , और अपने आप से कहती हैं....." हमारे अधिराज भी तो सबकी परेशानियां दूर करते हैं...."

" कहां खो गई आप...?..."

वैदेही अपने ख्यालों से बाहर आते हुए कहती हैं...." कहीं नहीं , हम सोच रहे थे आप जैसा राजा अपनी प्रजा का सदा हितेशी होता है , आपके विचार बहुत अच्छे हैं माणिक जी...."

माणिक वैदेही की बात पर मुस्कुराते हुए कहता है...." आप चाहें तो आप भी पंचमढ़ी आ सकती है , जब भी आपको किसी चीज की आवश्यकता हो आप हमसे कह सकती है...."

वैदेही सहमति जताते हुए कहती हैं..." आपका धन्यवाद , , वैसे आपने हमें पंचमढ़ी राज्य की विशेषता नहीं बताई...."

माणिक वैदेही से कहता है....." हमारा राज्य पांच मणि के लिए विख्यात है , , उन पांचों मणियों की शक्तियों की विशेषता अलग अलग है , ..."

" कैसी विशेषता है..?.."

" पहली है , रूप मणि जिसको लेने वाला किसी भी रूप में बदल सकता है , फिर चाहे वो मनुष्य हो या पशु पक्षी....

दूसरी है , विस्मृत मणि उस मणि से किसी भी व्यक्ति की याद्दाश्त को खत्म किया जा सकता है और उसपर नियंत्रण किया जा सकता है .....

तीसरी है , स्थानांतरण मणि , इसकी शक्तियां अत्यधिक तीव्र है जिससे इसे धारण करने वाला कुछ ही पलों में अपने गंतव्य स्थान तक पहुंच सकता है और किसी की भी आत्मा को उसकी देह से विस्थापित कर सकता है...

चौथी है , शक्ति मणि इससे किसी भी व्यक्ति को इतनी ऊर्जा शक्ति मिलती है जिससे कोई भी उसे हरा नहीं सकता , इस शक्ति मणि की शक्तियां बहुत तीव्र है...

किंतु इन चारों मणियों की शक्तियों को एक खास मणि नियंत्रित करती है , वो है जीवंतमणि , उसकी शक्तियां अत्यंत खतरनाक है..."

वैदेही डरते हुए पूछतीं है..." तो आप इसकी सुरक्षा अत्यंत सावधानी पूर्वक करनी पड़ती होगी....?...."

माणिक मुस्कुराते हुए कहता है...." नहीं वैदेही हम इन मणियों की सुरक्षा नहीं करते...."

वैदेही हैरानी से पूछती है ......" आपको भय नहीं है , कोई भी दुष्ट राजा इस मणि न लें जाए..."

" नहीं , ..."

" फिर , , .."

तभी आसामान में उड़ती हुई एक विशालकाय चील को देखकर माणिक घबराते हुए कहता है..." हमें जाना होगा... किसी को हमारी सहायता चाहिए....."




............to be continued.........

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