उस रात के बाद.… Swati द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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उस रात के बाद.…

 

 मुझे सारे आर्डर रात वाले  ही मिलते  थे। मैं  मना  भी  नहीं करता  था क्योंकि  रात  के आर्डर  में  कमीशन ज़्यादा  मिलती । दरसअल  मैं  एक अमेरिकन इलेक्ट्रॉनिक  कंपनी  में रिपेयरिंग  का काम  करता था । लोग उन  कंपनियों  के स्टोर्स  से इलेक्ट्रॉनिक  सामान  खरीदते  और  ख़राबी  हो जाने  पर कम्पनी  के कस्टमर  केयर  पर कॉल  करते। कंपनी  के   कस्टमर  केयर  एग्जीक्यूटिव  पूछ लेते कि  वो किस  समय  घर  पर है । कुछ  लोगों  के पास  दिन में  टाइम नहीं  होता  इसलिए  वह  रात  वाली  ही  सर्विसेज   मांगते । हर कोई रातवाली  शिफ्ट  के लिए  'हाँ' नहीं कहता । मगर  मैं 'हाँ'  कह देता था क्योंकि मैं  इस  शहर  में  अकेला  रहता  और मेरा  परिवार  गॉंव  में बसा  हुआ  था। भैया-भाभी  शहर  में  रहते, पर मेरे  साथ   नहीं रहते थें। घर का  किराया  देना होता और  माँ-बाप  को पैसे  भी  भेजने  होते, ऐसे में  मुझे  लगता कि  मैं  जितना  कमाओ, उतना  कम। मेरा  तो  मन  था  कि  मैं  अपनी खुद  की इलक्ट्रोनिक  दुकान  खोलो और  मुझे  यकीन भी  था  कि  अगर  मुझे  मौका  मिलेगा  तो  मैं  कामयाब   हो  जाऊँगा । फ़िर  अपनी  पसंद  की गॉंव  की गौरी  से शादी  करूँगा  और  परिवार  बसाऊँगा। बस,  इसी चक्कर  में  रात-दिन पैसा कमाकर जोड़ने  में  लगा रहता।

 पहली  बार  किसी ने  रात  10  बजे  की सर्विस   मांगी  तो कंपनी  वालों  ने मुझे  जल्दी  से फ़ोन  कर दिया । मैंने अड्रेस पूछा और  अपना बैग  उठाकर  अपनी  बाइक  पर  निकल  पड़ा । बिल्डिंग  के नीचे  आने  पर मैंने  गार्ड  को अपने  बारे  में   बताया  और  उसने  मुझे  लिफ्ट से  10वे फ्लोर  पर जाने  के लिए  कहा। थोड़ी देर  में  मैं  उस फ्लैट के सामने  था। घंटी  बजाने  पर दरवाज़ा  नहीं खुला  तो मैंने  उस नंबर  पर कॉल  किया, जो  मुझे  कंपनी वालों  ने दिया  था । मेरे फ़ोन   की  बेल  बजाते  ही दरवाज़ा  खुल गया  और  मैंने  झटके से फ़ोन  काट  दिया । मैंने  देखा  एक  आदमी  45 -47 साल   का है । उसने  मुझे  अंदर  बुलाकर कहा, "ठीक  से सर्विस  करना, वरना  कल तुम्हारे   स्टोर  पर इस  कबाड़  को फ़ेंक आऊंगा । उससे शराब  की गंध आ रही  थी ।  मैं  समझ  गया   कि उसने शराब पी रखी है, मैंने  उसे  कुछ  कहना ठीक  नहीं  समझा और  उसका  होम  थिएटर  ठीक  करने  लग गया  । घर में  उसके  अलावा  एक लड़की  भी थी  जो मुश्किल  से 22 -23 साल की होगी। उसने मुझसे पानी पूछा और मैंने  मना  नहीं किया । वह  पानी रखकर  जाने  को हुई तो  तभी  उस आदमी  ने उसे  आवाज़  लगाई  और वह  कमरे  में  चली  गई। कुछ  देर बाद  दोनों  की लड़ने  की  आवाजें  आने  लगी । मैंने  अपने  काम  करने  की स्पीड  बढ़ा दी । मगर  एक चीख  और रोने  की आवाज़  के  साथ  मेरा  ध्यान  उधर  चला  गया ।  कुछ  मिनट  बाद  लड़की  बाहर  रोती  हुई निकली  उसके  हाथ  में  बैग  था।   वह  तेज कदमों  से फ्लैट से  निकल  गई । मुझे  कुछ समझ नहीं  आया ।  मैंने  अंदर  जाकर  देखा  तो  वो आदमी  लहूलुहान  ज़मीन  पर गिरा पड़ा  था । मेरी  सांस  अटक गई । मैंने भी अपना बैग  उठाया  और वहाँ  से  भागा । जब तक घर  नहीं पहुँच  गया, तब  तक सांस  नहीं  ली । 

 घर  पहुँचकर मैंने  कंपनी  को सर्विस  कैंसिल  होने  का  मैसेज  कर दिया ।  सारी  रात  नींद  नहीं आई ।  मैं भगवान  से  यहीं प्रार्थना  करता  रहा कि  वो आदमी  ठीक  हो । मगर  होनी  तो हो चुकी  थी । अखबार में  उसके  क़त्ल  की खबर   पढ़कर  मेरे  होश   उड़  गए । अब मुझे  पता  चल  गया  कि  मैं   किसी  बड़ी  मुसीबत  में  फँस  सकता  हूँ । मैंने कंपनी छोड़  दी । किराए   का मकान  खाली  किया और  वापिस  अपने गॉंव  आ गया । दो  महीने  तक  गॉंव  रहा । फ़िर  एक  दिन हिम्मत करके  शहर  वापिस  आ गया । किसी  दुकान  में काम  मिला  ही था कि एक  दिन  पुलिस  मुझे  पकड़कर  ले गई।  मुझे बहुत  मारा गया। मैंने  उन्हें  सबकुछ  सच-सच  बता  दिया । पर  जब तक  वो  लड़की  नहीं  मिल जाती  । पुलिस  मुझे  छोड़ने  को तैयार नहीं  थीं । मेरे  घरवालों  को पता चला   तो उन्होंने  मुझे  छुड़ाने  की बहुत  कोशिश  की । आख़िरकार एक  साल  जेल  में  रहने  के बाद  मैं  बाहर निकल ही  आया । बाहर  आकर  सबकुछ  बदल चुका था। अब  कोई दोस्त  नहीं था, कोई  नौकरी  नहीं थी  और  तो और  सब  सपने   हवा  हो गए थें । बाबा की  जमा-पूंजी के  पैसे  मुझे  छुड़ाने  में  लग  गए । वापिस  गाँव  जाकर  भी  मुझे  लोगों  की तल्खियाँ  झेलनी  पड़ी । कभी लगा कि आत्महत्या  कर लो पर अपने बूढ़े माँ-बाप का  मुँह देखा तो मैं उसमे  भी  कामयाब  नहीं हो पाया ।

दिन बीतते  गए। मुझे  जबरदस्त  डिप्रेशन  हो गया  था । एक दिन  मुझे  एक  फ़ोन  आया  और  उसने मुझे  नौकरी  देने  के लिए  शहर  बुलाया । स्टेशन  पर पहुँचा  ही था  कि  मुझे  वही  से उठा  लिया  गया । मेरा अपहरण  हो  चुका  था ।  मुझे  शहर  से दूर  एक  बंद  मकान  में  लाया गया । कुछ  लोगों  ने पहले मुझे बहुत मारा  और  फ़िर  एक आदमी मेरे  सामने  आया जो शायद  उनका  बॉस  था और  उसके  साथ  वो  फ्लैट  वाली लड़की  भी थी । मैं  समझ गया कि  कहानी  क्या  है । मैंने  उससे  कहा  कि  "मुझे  छोड़  दो"  पर  उन्होंने  मेरी  बात  नहीं मानी । कुछ  महीने  मैं  उनके  साथ  रहा । वे  लोग  मुझे  बहुत  मारते  थे और  मुझसे  अपना  काम  भी करवाते  थे। एक  रात  तो मेरा  जबरदस्ती  शोषण  भी किया  गया । मैंने सोच  लिया कि  अब  इनकी  बन्दूक  से  ही  मैं  अपना  जीवन  ख़त्म  कर लूँगा। ऐसी  ज़िन्दगी  से तो  मर जाना  अच्छा । जिस  दिन मैंने  खुद  को ख़त्म  करने  की  सोची,  उस  दिन उन लोगों  की आपस  में  मुठभेड़  हो गई । मैंने  मौका  देखकर  पुलिस को  फ़ोन कर दिया । पुलिस  की गाड़ी  की  आवाज़ सुनते  ही वो लोग  भागने  को हुए । अगर मैंने मरने का नाटक न किया होता  तो वे  मुझे  भी अपने साथ  ले  जाते या मार डालते । पुलिस  पहुंची  और उन्होंने  सबको  पकड़ लिया । वो लड़की  भी पकड़ी  गई । पुलिस  मुझे भी  अपने  साथ ले  गई ।

 पूछताझ  करने  पर  पता लगा  कि  वे  लोग  ड्रग्स  का धंधा  करते थें। वो  आदमी  उनका  डीलर  था। वह  लड़की को कोलकाता  से खरीदकर  लाया था । वे  उससे  बहुत  दुःखी  थीं । पैसे  की बात  पर लड़ाई  हई  और उसने उसको  मार  दिया । ये  मुझे  भी कभी  न कभी  मार  डालते । पुलिस  ने मुझे  एक -दो महीने  रखा और  फ़िर  सरकारी  गवाह  बनने  का कहकर  छोड़  दिया । मेरे  भाई-भाभी  ने मुझसे  कोई नाता  नहीं रखा। मेरी  माँ  मेर गायब  होने के सदमे से गुज़र  गई  । पिता ने जमीन  बेचकर  मुझे  पैसे  दिए  ताकि  मैं कुछ नया  शुरू कर सको । मैंने शहर  से दूर  हाईवे  के किनारे  पर  अपनी रिपेयरिंग  की शॉप खोल ली ।  यहाँ  मैं कितने  अपराध  होते  देखता। मुझे  अपने  इसी  क़त्ल  वाले  केस  के लिए  हर तारीख  को कोर्ट  पहुँचना  होता था।  मैं कई  बार  हाईवे पर होने  वाले  अपराधों  के बारे  में  पुलिस को बताया करता।  धीरे-धीरे  मैं पुलिस  का स्ट्रिंगर  बन  गया । जिसे  आम भाषा  में खबरी  कहते  हैं ।

 मेरी  ज़िन्दगी  इसी  तरह  बीत  रही थीं और मुझे  कदम -कदम पर आजमा भी रही थीं। अपराधियों   को पकड़वाने  के कारण कई  धमकी  भरे फ़ोन  मुझे  आते और मैं पुलिस  का सहारा  लेकर उन लोगों  को  उनके अंजाम पर पहुँचाता  रहता । मुझे  पुलिस  विभाग  से ट्रेनिंग मिले  और  फ़िर  ट्रैनिग  के बाद  स्पेशल   सेल  में  डालने  की सिफारिश एक ईमानदार  और कर्तव्यनिष्ठ ऑफिसर  द्वारा  की  गई  ।  पूरे  दो साल बाद  मैं  पुलिस  की स्पेशल स्क्वॉड  टीम  का हिस्सा  बन गया  । अब  मैं ड्रग  माफिया  से जुड़े  अपराधियो  को पकड़वाने   में  एक मह्त्वपूर्ण  भूमिका  निभाता  हूँ  ।  मुझे  आज  भी यह बात  समझ  में  नहीं आती  कि  मैं  उस  रात  को अपनी  ज़िन्दगी  की सबसे  काली  रात  मानो  या फ़िर एक  ऐसी रात  जिसके  बाद  सुबह  होती है तो  रात  का  अँधेरा  याद  नहीं  रहता है  ।  ज़िन्दगी  कब किसको  किस  मोड़  पर क्या दे  दे या  फ़िर  उससे  क्या छीन  ले  । यह  राज़  वक़्त  की गिरह  में  ही छिपा  हुआ  है  और हमेशा  छिपा  रहेगा और पर  अब मुझमें  एक तबदीली  और  आ गई  है  कि  अब  मैं  कुछ  नहीं सोचता  बस  वर्तमान  में  जीने  की जद्दोजेहद ही मेरा  मकसद है।

 

समाप्त

स्वाति ग्रोवर