गुर्जरी पल्लव Pranava Bharti द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

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गुर्जरी पल्लव

गुर्जरी पल्लव ---एक नई फिज़ा का स्वागत

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जैसे कोई महके -सबा, जैसे फूलों में बहार आ जाए,

वैसे ही 'गुर्जरी पल्लव' को देख क्यों न करार आ जाए !!

चिर-प्रतीक्षित, गुजरात की सुगंध से सराबोर 'आज़ादी के अमृत महोत्सव ' पर आखिर अवगुंठन खुल ही गए | यह सुश्री मंजु महिमा का अथक प्रयास था, न जाने कितने दिनों से जूझती हुई वे सबसे मिलने का, सबको जोड़ने का, इस गुलशन को खिलाने का प्रयास कर रहीं थीं | उनके साथ पैंतीस महिला-हाइकुकार प्रतीक्षा के झरोखे से बार-बार कुछ ऐसे झाँकतीं जैसे 'चौहदवीं का चाँद' कहीं खो गया हो | स्वाभाविक भी है, अपनी कलम से नि:सृत माँ शारदा के आशीष को अपने भीतर महसूसने की शुभ-कल्पना के दिन की प्रतीक्षा एक नए जन्मजात शिशु जैसी आह्लादकारी होती ही है |

अनेकानेक झंझावातों से जूझते हुए मंजु जी की चिंता अपनी उन सहयात्रियों के लिए अधिक थी जो उनके साथ इस हाइकु के जहाज़ की यात्रा में सवार थीं | यह ठीक वैसे ही था जैसे एक जहाज़ का कैप्टन अपनी सुरक्षा की चिंता न करते हुए पहले अपने यात्रियों की सुरक्षा के लिए चिंतित रहता है, उन्हें सुरक्षित स्थान पर पहुँचाकर ही वह अपने बारे में कुछ सोच पाता है |

सुखद परिणाम हो तो पीछे की सारी कठिनाइयाँ, सारी पीड़ाएं तिरोहित हो जाती हैं | यही इस पुस्तक के साथ भी हुआ | अनेकानेक कठिनाइयों के दावानल में से जूझता हुआ यह संग्रह अंतत:समक्ष आ ही गया जिसमें गुजरात की महक, चहक, लहक है, जिसमें है एक नई सुगंध जो पसरी है इसके भीतर सिमटी पैंतीस गुजरात की निवासी हाइकुकारों से | जिसमें मुख-पृष्ठ और पार्श्व पृष्ठ का आवरण नई सूझ-बूझ और इस धरती के प्रेम से सींचकर सुश्री श्रद्धा रावल और सुश्री नीता व्यास की रचनात्मकता को सहज ही दर्शा रहा है | नई दुल्हन के घूँघट उठाने और उससे हर्षित होने का समय था अब !इस संग्रह की सभी हाइकुकाराओं का उत्साह और प्रसन्नता का समय !|

इसका प्रमुख कारण यह भी था कि इस पुस्तक के अवगुंठन को उठाने का भार हाइकु -कोष के संपादक आ, जगदीश व्योम जी ने स्वीकार कर लिया था | आ, व्योम जी हाइकु -कोष के प्रणेता तो हैं ही, वे हाइकुकारों के लिए गुरुवर्य हैं जो मंजु महिमा जी को समयानुकूल पथ-प्रदर्शन  करते रहे और पुस्तक के डिजिटल 'अवगुंठन -उत्सव' में उनकी गरिमामयी उपस्थिति सभी हाइकुकारों के लिए संबल बनी रही |

यह पुस्तक इसलिए भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है कि यद्धपि गुजरात में हाइकु की परंपरा लंबे अर्से से चली आ रही है किन्तु यह गुजरात की सम्मिलित महिला हाइकुकारों का प्रथम ग्रंथ है | इसने न जाने कितने नए हाइकुकारों को जन्म दिया है |मुझे इस बात की संतुष्टि है कि 'मैं' इनमें सम्मिलित हूँ |

इस संग्रह में विभिन्न भाषा-भाषी हाइकुकारों ने विभिन्न विषयों पर अपना योगदान दिया है | संगठित, सुगठित रूप से तैयार किए गए इस संग्रह में प्रत्येक हाइकुकार के पल्लू को लगमग 18 हाइकुओं से सज्जित किया गया है| माँ शारदा की कृपा से अभिभूत हम सभी इस पुस्तक के आकर्षक कलेवर को देखकर अत्यंत आनंदित व संतुष्ट हुए हैं |

' ट्रू ड्रीमस्टर प्रैस' जयपुर ने इस ग्रंथ के प्रकाशन में बहुत सहयोग दिया है तथा काफ़ी व्यवधानों के पश्चात पुस्तक का समक्ष आ जाना, सबके लिए सुंदर अवसर बना है |

'गुर्जरी पल्लव ' साझा संकलन की कीमत केवल रु.300 रखी गई है जिसे अमेज़ोन तथा फ्लिप कार्ड से मँगवाया जा सकता है |

इस साझा प्रकाशित ग्रंथ के लिए सुश्री मंजु महिमा जी एवं सभी हाइकुकारों को सस्नेह बधाई प्रेषित करती हूँ | संकलन भविष्य में नए झरोखे खोलेगा, पूर्ण विश्वास है |

अनेकानेक बधाई एवं शुभकामनाएँ

सस्नेह

डॉ. प्रणव भारती