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पुस्तकें - 8 - गवाक्ष - जैसा मैंने जाना

समीक्षा

“गवाक्ष”

जैसा मैंने जाना ;

“Reality exists only through experience and it must be personal experience “

नोबल प्राइज़ winner Gao Xing ने अपनी कालजयी पुस्तक soul mountain में उपरोक्त कथन है वे चीन के ling shiam नामक legend की खोज दूर दराज दुरूह इलाको का भ्रमण करते हैं, उसी का विविध वर्णन करते हुये उनके ज्ञान चक्षु खुलते है ठीक वैसे ही ‘ गवाक्ष’ पृथ्वी पर बसते सांसारिक प्राणियों के अनुभवों का पुलिंदा है |

“ सार सार गही रहे थोथा दिया उड़ाय---- ”

सोचा,कुछ ऐसा ही करूँ पर,थोथा खोजन मैं चली थोथा मिला न कोय |

गवाक्ष में डूबकी लगा कर सीपियों को बटोरने की ठानी, गोताखोर ने गहरे समुद्र रूपी उपन्यास में छलांग लगाई, देखा तो वहाँ रतनजडित कितनी सीपियाँ थी, एक, दो, होती तो बटोर लाती पर अथाह संपदा को सहेजना मेरे बस की बात नहीं थी । कल्पना का अथाह सागर हिलोरें मार रहा था और उन उद्वेलित लहरों के बीच दिखा, अन्तरिक्ष से उतरा एक नन्हा सा यान, जिसे पेड़ पर ठहरा कर निकला यमदूत यानि ‘कौसमौस ‘। यमदूत का ऐसा विचित्र नाम हमने आज तक नहीं सुना था,यमदूत की छवि सींग लगाये, भैंसे पर बैठ कर लाल- लाल जीभ और तरेरती आँखों वाली होती है . जिसको हमने मस्तिष्क में बड़ा ख़ौफ़नाक बना रखा है, पर यहॉ तो यह घबराया सा, सु- संस्कृत ऐसा रूप में दिखता है जो किसी को दुख दे नहीं सकता। उसके स्वामी ने उसे दण्ड स्वरूप दूसरी बार पृथ्वी पर भेजा था। पिछली बार वो असफल रहा था. क्या विरोधाभास है जान लेने आने वाला बड़ी शालीनता से कहता है, ‘ मुझे ‘सत्य’ नामक व्यक्ति को ले जाना है.’ बड़ा मासूम बडा शिष्टाचारी है. उसके हाथ में है एक काँच का समय- यंत्र है, वक्त मापने का, जिसे वो उल्टा रखता है और उपर से रेत धीरे- धीरे नीचे आ जाता है, उतना ही समय होता है उसके पास. एक -एक कर वो आठ सत्य नामक स्त्री -पुरुषों को अपना लक्ष्य बनाता है |

यान से उतरते ही उसे पहला बंगला दिखता है जिसपर ‘ सत्यव्रत ‘के नाम की पट्टी लगी होती है यमदूत बनाम कॉसमॉस बड़ा प्रसन्न हो उनके बंगले में दाखिल हो जाता है, मंत्री सत्यव्रत की विद्वता से प्रभावित हो कर तन्यता से उनकी बातों में लिप्त अपना लक्ष्य भूल जाता है, मंत्री जी कहते है ;

“ राजनीति की कड़ी परीक्षा से न कृष्ण बच सके न बुद्ध “

और रिश्तों के बारे में वे कहते है,

“ कागज़ के रिश्तो में कागज़ी फूल जैसा लुभवानापन तो होता है, पर सच्चे रिश्तो की सौंधी सुगंध नही .”

उनकी पत्नी स्वाति एक सीप की भांति उन में समाई है । मंत्री जी की जीवन यात्रा से अभिभूत अपना लक्ष्य भूल जाता है और उसमें मानवीय संबवेदनाएँ अंकुरित होने लगती है ।

“ जीवन के सत्य को सब पहचानते हैं पर फिर भी मनुष्य सत्य से आँख मिचौली खेलता है ।” अनंतोगत्वा वे कॉसमॉस के साथ चलने को राजी हो जाते है पर एक शर्त रखते है, उनकी शर्त थी कि वे अपना दाह- संस्कार देखें. उनके प्राण जाने के बाद,लोग, समाज व परिवार उनके बारे में क्या कहते है,परंतु तब तक समय- यंत्र की अवधि समाप्त हो जाती है और वह मंत्री जी से विदा लेता है.

भोर की प्रथम किरण और घूंघरू की छनकती झंकार उसे, सत्यनिधि नर्तकी तक ले जाती है, जहां वे अथक दो घंटे तक नृत्य साधना करती है | उनकी कला साधना देख मंत्र मुग्ध हो जाता है । वे उसे बताती हैं कि,” शास्त्रीय संगीत केवल मनोरंजन की कला नही, यह नैतिकता व आध्यात्मिकता का समन्वय है,” सत्यनिधि से पता चलता है कि, कला का प्रचार प्रसार विद्वान विवकी नारद जी को सौपा गया गया था,ऋषि नारद संगीत के देवता है, जान कर आश्चर्यचकित हो जाता है. अपने अनुभव नृत्यकी से सांझा करता है कि,कैसे वो मासूम बच्चे के प्राण नहीं हर पाया था.

ईश्वर को क्या किसी नें देखा है,उसका रूप किसने बनाया,कॉसमॉस के द्वारा अनेक बार प्रश्न करवाया जाता है.पृथ्वी के सभी प्राणी उससे यह जानना चाहते है कि,क्या उसने ईश्वर को देखा है ? कॉसमॉस बताता हैं कि वो नहीं जानता,स्वर्ग क्या है, नरक और ईश्वर का क्या रूप है. पाठक को अपनी भाव गंगा में लपेट लेने की कला प्रणव जी में है, ईश्वर के रूप की चर्चा पाठक को राजा रवि वर्मा तक ले जाती है, आज जो चित्र हम देखते है जिस रूप में हम माँ शारदा, दुर्गा, ब्रह्मा, विष्णु, महेश, अष्ट भुजाएँ और उनके हाथों में शंख, चक्र और कमल का फूल और उनके विविध वाहन, मोर, मूषक या हंस आदि देखते है वे वास्तव में चित्रकार रवि वर्मा जी कि कल्पना शक्ति के परिणाम है.आज तक किसी ने भगवान को नही देखा तमाम चित्र मूर्तियाँ वास्तव में मनुष्य की कल्पना से बनाई गईं हैं.

नृतकी सत्यनिधि से वार्तालाप करते वो न केवल अपने को भूल जाता है,अपना लक्ष्य भी भूल जाता है और उसका समय समाप्त हो जाने के बाद उसकी तलाश उसे ढोंगी महंत के पास लंदन ले जाती है, वे कॉसमॉस से कहते हैं कि वो उनकी पत्नी को ले जाये उसका नाम भी ‘सत्या’ है, परंतु एक बार फिर समय अवधि समाप्त हो जाती है, कि अचानक एंबुलेंस दिखती है उत्सुकता वश कॉसमॉस एंबुलेंस के पीछे अस्पताल पहुँच जाता है जहां सामूहिक बलात्कार की पीड़ित अक्षरा (सत्याक्षरा ), प्रसव पीड़ा में छटपटा रही है और अपने बच्चे को जन्म देने से पहले मरना नहीं चाहती, कॉसमॉस में ममत्व वात्सल्य के भाव अंकुरित होने लगते है. फिर मिलता है प्रोफसर सत्यविद श्रेष्ठी से जिनकी पुस्तक ‘ अनवरत ‘ की पहली पंक्तियाँ उसका मन मोह लेती है ;

“ सत्य एवं असत्य, हाँ या न के मध्य वृताकार अनगिनित वर्षों से घूमता टकराता मन आज भी अनदेखी अनजानी दहलीज पर मस्तिष्क रगड़ता दृष्टिगोचर होता है ।“

कॉसमॉस भी रमते जोगी सा भटकने लगता है । लेखिका ने एक कुशल कहानीकार है वें कहानी को किस प्रकार घुमाकर कर मंत्री जी के घर ले आती है, प्रोफ़सर सत्यविष्ठ मंत्री सत्यव्रत के घनिष्ठ मित्र है,और खबर आती है कि मंत्री जी को दिल का दौरा पड़ा है, कॉसमॉस घबरा जाता है वो ही तो यमदूत है उसके बिना मंत्री जी के प्राण लेने कौन आ गया ? कही कोई दूसरे कॉसमॉस को तो स्वामी ने नहीं भेज दिया ? कहानी को गति प्रदान करते हुये ये दोनों मंत्री जी के घर पहुँच जाते है,और कॉसमॉस अपना वायदा पूरा करता है. मंत्री जी देह त्यागने के बाद अपना दाह संस्कार देखते है, वे देखते है कि बेटे संपति की चिंता कर रहे है, परंतु बिटिया में अपनी माँ स्वाति के गुण है. वहाँ उन्हें अक्षरा के बारे में पता चलता है कि उसने एक ऐसे बच्चे को जन्म दिया है जो सामूहिक बलात्कार उपरांत हुया था. अक्षरा प्रोफसर साहब की शिष्या निकलती है और मंत्री जी की बेटी भक्ति की परम सखी,उस से मिलने वे तीनों तुरंत अस्पताल जाते है, बच्चे को गोद में ले कर प्रोफसर “अनवरत” कह कर उसे नाम देते है इधर कॉसमॉस एक बार फिर अपना टरगेट पूरा नहीं कर पाता उसका यान उसे छोड़ अन्तरिक्ष चला जाता है | उसे अब मनुष्यों की तरह पूरा एक जीवन काल धरती पर बिताना होगा, यहाँ पर लेखिका कि कलम ने बड़ा कमाल का मास्टर स्ट्रोक, चमत्कारी, प्रयोग किया है । कॉसमॉस को मनुष्य रूप में परिवर्तित करती है और नामकरण करती हैं “ गवाक्ष “ |

वास्तव में” सत्य “ एवं “गवाक्ष” को अलंकार की भांति प्रयोग किया है | शाब्दिक रूप में गवाक्ष झरोखा है वेंटिलेटर है परंतु साहित्यिक रूप में देखें तो संसार में जो घट रहा है दुनिया के विभिन्न पहलूयों को लेखिका नें अपने आठ चरित्रों के द्वारा जीवन में झाँका हैं, राजनीति से लेकर कला संगीत साधना, जीवन मरण, दुख सुख, सच झूठ, प्रेम घृणा, आसक्ति भक्ति, मानवता और पिशाचता के एनेकों अनुभवों को झरोखे से झाँकता मृत्यदूत बनाम कॉसमॉस देखता हैं,सत्य की खोज करते करते जैसी सिद्धार्थ बुद्ध हुये वैसे ही कॉसमॉस बना गवाक्ष ।

गवाक्ष का प्रतिनिधि चरित्र मृत्यु दूत का हाल अंत में ऐसा हो जाता है

;लाली मेरे लाल की जित देखूँ तित लाल, लाली देखन मैं गई मैं भी हो गई लाल ।

अंत-तह में यह बताना भी नितांत आवश्यक है, कि ;

ड़ा आई. एस. माथुर की प्रेरणा गवाक्ष के गर्भ में है. माथुर साहब,एन. आई. डी. अहमदाबाद में -------- ------------- पद पर आसीन थे उनके पिता बहुत साल तक किसी दिव्यात्मा से साक्षात्कार करते थे और उन्होंने कहा कि वे अपने पिता के अनुभव पर एक फ़िल्म बनाना चाहते है, जिसका स्क्रिप्ट ड़ा. प्रणव भारती लिखें । पर होनी बड़ी बलवान उनका सपना पूरा न हो पाया और वे देह त्याग गये. प्रणव जी ने भरसक प्रयत्न किया कि वे माथुर साहब का दिया चरित्र निर्माण करें पर तुम ऐसी अनहोनी हुई कि उनकी कलम पर माँ शारदा लिखवाती रहीं और वे छह महीने तक बिना किसी को बताये लिखती रहीं लिखती रहीं और जब साँस ली तो गवाक्ष —— पन्ने का दस्तावेज बन कर तैयार हो उनके समक्ष था, जिसे उत्तर- प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्य नाथ ने 20 ‘प्रेमचन्द नामित ‘पुरुसकार देकर सम्मानित किया गया था ।

डा. प्रणव भारती जी के गवाक्ष उपन्यास का दूसरा संस्करण आज आया है, कल तीसरा आएगा और फिर चौथा,पांचवा, इन्हीं शुभकामनाओं के साथ इति करती हूँ.

मधु सोसि

साहित्यकार

अहमदाबाद

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