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पुस्तकें - 9 - बसंतपंचमी

संदेशयुक्त

लघु-कथाएँ

बसंतपंचमी

16/2/21

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जीवन उतार-चढ़ाव का, तालमेल बैठाने का नाम है | ज़िंदगी के झरोखे मनुष्य के जीवन में कभी प्रसन्नता का प्रकाश बिखेरते हैं तो कभी अन्धकार से भरकर एक कोने में चुप्पी ओढ़ाकर बैठा देते हैं |

मेरे विचार में इन अँधेरे-उजालों, ऊबड़-खाबड़ सतहों पर चलना ही ज़िंदगी है | अपने चारों ओर देखने से पाएँगे हर मनुष्य के भीतर न जाने कितनी कहानियाँ, कहानियाँ भी क्या, उपन्यास छिपे हैं | ज़रुरत होती है इनके बाहर निकलने की | लेकिन प्रत्येक मनुष्य के पास वह भाषा व स्वयं को मुखरित करने की माँ शारदे द्वारा प्रदत्त अनुकंपा नहीं होती | जिनके पास होती है, वे इस संवेदन से अछूते नहीं रह पाते और अपने अनुभवों को व्यक्त करके समाज में संदेश प्रसरित करने के साथ ही स्वयं को भी ऊर्जावान बनाए रखते हैं |

मेरे समक्ष ऐसे ही एक ऊर्जावान साथी की लघु-कथाएँ हैं जिन्हें पढ़कर मुझे एक बात बड़ी शिद्द्त से स्पष्ट हुई कि संवेदनशीलता के साथ ही इन लघु-कथाओं में जागृति का एक संदेश छिपा है जो बहुत सरलता व सहजता के साथ प्रस्तुत कर दिया गया है |

लघु-कथाओं का यह संग्रह 'कलाई की शोभा' से प्रारंभ होता है और अपने भीतर अनन्य संवेदनाओं को समेटे विभिन्न संदेशों को वितरित करता हुआ पाठक-मन में एक सकारात्मकता का भाव प्रज्वलित करता है |

हम सब इस सत्य से परिचित हैं कि आज संबंधों में टूटन,  बिखराव काँच की तरह मन की दीवार पर चुभते हुए जीवन को कष्टपूर्ण बना रहे हैं | इस दुहतर जीवन में कोरे उपदेश की नहीं, ऎसी सकारात्मक ऊर्जा की आवश्यकता है जिससे आम आदमी अपने जीवन को जीने योग्य बना सके |

लेखक अपनी रचनाओं में कहीं न कहीं होता ही है, उसका प्रयास यह रहता है कि वह अपने अनुभवों से समाज में कुछ योगदान कर सके जिससे लोग कुछ सोचें, चिंतन करें व समाज में बदलाव हो सके | इसीलिए उसका अपनी रचनाओं में होना स्वाभाविक है |

लेखक श्री लक्ष्मण लड़ीवाला जी एक संवेदनशील साहित्यकार हैं | वे किसी भी विधा में लिखें परोक्ष /अपरोक्ष रूप से समाज को नींद से जगाना उनका अभिप्राय रहता है जो वास्तव में एक लेखक के लिए महत्वपूर्ण है |

इनकी लघु-कथाओं में मुझे हर उस विषय पर संवाद मिले जिनका रोज़मर्रा के जीवन में आम आदमी से सामना होता है | ये लघु-कथाएँ हमें हर आम-ख़ास आदमी से बतियाती मिलती हैं |  अब यह तय पाठक को करना होता है कि उसे किन रचनाओं ने अधिक प्रभावित किया है और किनसे वह कुछ लेना चाहता है |

लेखक लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला जी ने सभी क्षेत्र की समस्याओं से चुनकर विषयों पर संवाद करने का सफ़ल प्रयास किया है चाहे वे आम गरीब की समस्या हो, बच्चों के विकास की समस्या हो, आज की पीढ़ी की माता-पिता के प्रति मृत संवेदनाओं की समस्या हो अथवा राजनीति के क्षेत्र से जुड़ी समस्या हो |

लेखक ने लक्ष्मी-पूजन के माध्यम से कुछ संदेश दिए हैं तो 'नासपीटी'के माध्यम से विरोध भी दर्शाया है , 'कुत्ते की वफादारी' बिन कहे ही बहुत कुछ समझा देती है | पुस्तकों से लगाव होने के पश्चात जीवन में सेवा-निवृत्ति के बाद किस प्रकार खुशहाल रहा जा सकता है जो हौसले के पाठ से मन के आँगन में बात उतर जाती है जैसे पाठक नीम की छाँह तले एक स्वस्थ, सुखद परिवेश में साँसें लेने लगता है |

"सेवा निवृत्ति तो ज़िंदगी का एक पड़ाव मात्र है ---"यह वाक्य बहुत अर्थपूर्ण संदेश को प्रसारित करता है |

इन लघु-कथाओं के माध्यम से समाज में सार्थक संदेश वितरित करने वाले लाड़ीवाला जी को मैं अपनी सद्भावनाएँ , शुभकामनाएँ प्रेषित करती हूँ | आशा है, इन लघु-कथाओं के माध्यम से 'गागर में सागर' के समान पाठक इनसे बहुत कुछ लेंगे व समाज में व्यापक नकारात्मकता उन्हें बहुत कुछ सोचने के लिए विवश करेगी |

मैं श्री लाड़ीवाला जी को अपनी अशेष शुभकामनाएँ प्रेषित करती हूँ व प्रार्थना करती हूँ कि आप स्वस्थ्य रहकर सदा माँ शारदे की अनुकंपा प्राप्त करके लेखन में निमग्न रहें व समाज का मार्ग प्रशस्त करें |

अनेक मंगलकामनाओं सहित

डॉ. प्रणव भारती

(बसंत पंचमी, 2021)

अहमदाबाद

गुजरात

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