ममता की परीक्षा - 110 राज कुमार कांदु द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ममता की परीक्षा - 110



".....शायद ईश्वर को भी मुझपर दया आ गई होगी, तभी तो मेरे पाँव स्वतः ही इस परम पावन धाम की तरफ अंजाने में ही उठते गए...... और ये उस परमपिता परमात्मा की ही महिमा थी कि उन्होंने उसी समय आपको भी वहाँ भेज दिया। उसकी महिमा निराली है। उसकी सत्त्ता को मानती हूँ मैं। ये भी मानती हूँ कि उसकी मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता, और अगर ऐसा है तो मुझे उनसे शिकायत भी है .........!"

इससे आगे जूही से कुछ कहा नहीं गया। उसका गला भर आया था। कुछ पल खामोश रही वह और फिर कहना शुरू किया,

".....मुझे शिकायत है उस परमपिता परमेश्वर से ..मैं पूछती हूँ मेरा गुनाह क्या था जिसकी इतनी भयानक सजा मुझे मिली ? क्यों मुझे तिल तिल मरने को मजबूर किया ? क्यों मुझे दर दर की ठोकरें खाने पर मजबूर किया ? इतनी भयानक दरिंदगी झेलने के बाद भी मुझे क्यों जिंदा रखा ? ... क्या अपने दिल का कहा मानने की इतनी भयानक सजा मुकर्रर की है परमात्मा ने ? जाने अंजाने मुझसे यही तो गुनाह हुआ था न कि मैं आपके व पापा के मना करने के बावजुद बिलाल से प्यार कर बैठी थी ? ..लेकिन मैं भी क्या करती ? अपने दिल के हाथों मजबूर जो थी। मेरा दिल ही मेरे वश में नहीं था तो इसमें मेरी क्या गलती ? मैं कहती हूँ... क्या इसमें भगवान की कोई गलती नहीं ? ...ना वो दिल देता, न भावनाएं पैदा होतीं और न मुझसे ये गुनाह होता। न होता बाँस न बजती बाँसुरी .....!
..... लेकिन लगता है, अब मुझे ज्यादा इंतजार नहीं करना होगा अपने सभी सवालों का जवाब पाने के लिए। बहुत जल्द मेरी भगवान से मुलाकात होने वाली है और तब,......तब पूछूँगी मैं उस सर्वशक्तिमान से कि पूरी दुनिया पर रहमतों की बारिश करनेवाले उस परमात्मा के पास मेरे लिए प्यार के दो मीठे बोलों के रूप में चंद बूँदें क्यों नहीं थी ? ......."

बड़ी देर तक जूही यूँ ही बड़बड़ाती रही, सिसकती रही, बीच बीच में चिखती चिल्लाती भी रही और फिर थकहार कर उसी पलंग पर गिरकर निढाल सी हो गई।

थोड़ी देर तक शून्य में कुछ घूरती हुई देखती रही और फिर धीरे धीरे उसकी चेतना लुप्त होती गई। उसे गहरी नींद आ गई थी शायद !

इस बीच रमा बड़े प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए उसे दिलासा देती रही। आँखों ही आँखों में रमा से इजाजत लेकर साधना आश्रम परिसर में स्थित अपने विद्यालय की तरफ बढ़ गई।

इस घटना को दो दिन हो चुके थे। जूही अब धीरे धीरे सामान्य होने का प्रयास कर रही थी। उसकी सेहत को देखते हुए रमा भंडारी ने कल ही अस्पताल में उसका संपूर्ण मेडिकल चेकअप कराया था। रिपोर्ट में HIV पॉजिटिव होने के साथ ही उसका यूटेरस इन्फेक्शन की वजह से बहुत बुरी तरह क्षतिग्रस्त पाया गया। कैंसर की आशंका भी जताई थी डॉक्टरों ने जिसके लिए और परीक्षण किए गए थे और अभी उनकी रिपोर्ट आनी बाकी थी।
रिपोर्ट्स देखकर रमा भंडारी सिसक पड़ीं। इतने भयानक अत्याचार सहने की वजह से आई जूही की नकारात्मक रिपोर्ट्स देखकर वह बेहद आहत थीं और वह मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना कर रही थीं कि डॉक्टरों की कैंसर की आशंका निर्मूल साबित हो।
कुछ दिन और बीते। जूही तेजी से सामान्य होने का प्रयास कर रही थी। ये तो साधना को पता ही था कि उसे दवाइयों से कोई फायदा नहीं होनेवाला, लेकिन जूही के बेहतर स्वास्थ्य को देखकर उसके लिए ये अंदाजा लगाना मुश्किल था कि उसपर दवाइयों का असर हुआ था या रमा के प्यार का लेकिन ये तय था कि अब जूही पहले से काफी बेहतर नजर आ रही थी।

कैंसर की जाँच वाली रिपोर्ट अभी नहीं आई थी। रमा को बेसब्री से उस रिपोर्ट का इंतजार था जिससे उसे कैंसर न होने की पुष्टि होनी थी।

आज साधना और जूही के साथ रमा अपनी कार में शहर के बड़े अस्पताल जाने के लिए निकली थी। अस्पताल जाने से पहले जूही की मेडिकल रिपोर्ट जो उसे आज ही मिलनेवाली थी लेने के लिए उसने कार को हनुमंत पैथोलॉजी लेबोरेट्री की तरफ मोड़ दिया। लेबोरेट्री अभी थोड़ी दूर ही होगी कि रमा को अहसास हुआ जैसे ये गलियाँ उसकी जानी पहचानी हों। गली के मुहाने पर एक हरे रंग का उजाड़ बंगला देखकर रमा को सब याद आता चला गया।

नौ साल का एक बड़ा लम्हा गुजर चुका था जब वह अपनी बेटी जूही के बारे में पता लगाने के लिए अक्सर इन गलियों की खाक छानती फिरती थी और बड़ी मेहनत व प्रयास के बाद उसे इसी बंगले के दरबान से बड़ी महत्वपूर्ण जानकारी हासिल हुई थी। उसने थाने में रपट भी लिखाई थी और दरोगा का उसको सहारा भी मिला था लेकिन सब मिलकर भी कानून के आँखों पर बँधी पट्टी उतारने में सफल नहीं हुए थे और उस गुनहगार वकील को कोर्ट ने बाइज्जत बरी कर दिया था।

कानून का इससे बड़ा मजाक और क्या हो सकता है कि दरबान की गवाही के बाद थानेदार के सामने अपने सभी गुनाहों को स्वीकार करनेवाला वह घाघ वकील अदालत में अपने सभी गुनाहों से मुकर जाता है और उल्टे थानेदार पर उसे मारने पीटने का गलत इल्जाम लगा देता है। सबूतों की रोशनी में देखने की अभ्यस्त हमारे कानून की देवी इस रोशनी के अभाव में सच्चाई से आँखें मींचे रहती है और फिर नतीजा वही होता है जो नहीं होना चाहिए। बड़े बड़े अपराधी भी गुनाह कबूल करके अदालत में जज के समक्ष झूठ बोल कर गवाह व सबूतों में भ्रम पैदा कर संदेह का लाभ उठाते हुए बाइज्जत बरी हो जाते हैं। शक है कि इन सबके पीछे भी सबकी अपनी अपनी व्यावसायिक हिस्सेदारी तय होती होगी शायद। केस को कमजोर करने वाले कानून के रखवालों से शुरू होकर मुलजिम के पक्ष को रखनेवाले घाघ वकील जो गीता पर हाथ रखकर छाती तानकर झूठ बोलते हैं और अपने मुवक्किलों से भी झूठ बुलवाते हैं और फिर सब कुछ देखते और समझते हुए भी मुल्जिम को मुजरिम मानने से इंकार करनेवाले जजों तक यह संदेह की सुई घूमती है । लेकिन कहा जाता है कि यहाँ की अदालत में चाहे जितना भी देर हो जाय, अँधेर हो जाय, नाइंसाफी हो जाय लेकिन ऊपरवाले की अदालत से कोई मुजरिम आज तक नहीं बच पाया है और बँगले की हालत देखकर रमा को किसी ऐसे ही अनहोनी की आशंका महसूस हुई। ड्राइवर से कहकर उसने बँगले के ठीक सामने गाड़ी रुकवाई।

साधना कुछ समझ नहीं पा रही थी जबकि जूही उस बँगले को देखकर ही सहम सी गई थी। साधना की तरफ खिसककर उसने उसके कंधे पर अपना सिर रखकर आँखें बंद कर लिया। साधना ने कार की खिड़की से देखा।

यह एक उजाड़ और वीरान सा पड़ा हुआ खंडहर बनने की राह पर अग्रसर एक बँगला था। उसकी बनावट देखकर उसके कभी आलीशान होने व उसके रौनक का अंदाजा लगाया जा सकता था, लेकिन फिलहाल तो यह बाहर एक तरह से जंगली पौधों और वनस्पतियों से घिरा छोटे से जंगल के बीच सालों से किसी इंसान के कदम को तरसता एक आशियाना ही नजर आ रहा था।
साधना ने देखा, रमा कार से उतरकर बँगले के मुख्य दरवाजे के सामने बड़ी देर तक खड़ी रहीं। उन्होंने अंदर झाँककर देखने का प्रयास किया और फिर पड़ोस के बँगले की तरफ बढ़ गई।
उस बँगले का मुख्य दरवाजा बंद था लेकिन बगल के छोटे से गेट के पीछे उन्हें एक दरबान बैठा हुआ दिखा।

रमा ने उस दरबान से बगलवाले बँगले के बारे में पूछा, "इस बँगले में रहनेवाले लोग कहाँ गए होंगे जानते हो ?"

बाहर निकलते हुए उस नवयुवक दरबान ने जवाब दिया, "माँ जी ! मुझे ठीक ठीक तो नहीं मालूम क्योंकि अभी कुछ महीने पहले ही मैं गाँव से यहाँ आया हूँ और एक परिचित की मदद से ये काम मुझे मिल गया है, लेकिन आप कौन हैं और क्यों यह पूछ रही हैं ?" उस दरबान ने रमा को शक की निगाह से देखते हुए पूछा।

रमा ने साफ झूठ बोलते हुए बताया, "वकील साहब से मेरी पुरानी जान पहचान थी और इधर से गुजरी तो सोचा उनसे मिलती चलूँ। बँगला तो सुनसान दिख रहा है इसलिए तुमसे कोई जानकारी मिल जाय इसी उम्मीद में आई हूँ।"

एक पल शांत रहकर रमादेवी को परखने की कोशिश करते हुए वह दरबान कुछ देर बाद बोला, "ज्यादा तो इस बारे में मुझे नहीं मालूम लेकिन फिर भी सुना है ये बँगला शहर के मशहूर वकील कासिम आजमी साहब का है। उनके बेटे ने किसी दूसरे मजहब की लड़की को अपने प्रेमजाल में फँसाकर यहाँ लाया और उसे यहीं छोड़कर खुद विदेश भाग गया। उसके पीछे बेहिसाब जुल्म किये गए उस लड़की पर और फिर वह लड़की अचानक गायब भी हो गई। यहाँ आसपास रहनेवाले दबी जुबान से बताते हैं कि उस लडक़ी पर अत्याचार करने और उसे गायब करवाने में भी वकील साहब का ही हाथ था। साल भर बाद उस लड़की की माँ ने वकील साहब के खिलाफ रपट भी लिखवाई थी लेकिन ऊपर से नीचे तक भ्रष्ट तंत्र ने उन्हें बाइज्जत रिहा कर दिया। .. लेकिन कहते हैं उस लड़की की दिल से निकली आह की चिंगारी ने उस पूरे परिवार को जलाकर राख कर दिया। विदेश से यहाँ के लिए निकले वकील के परिवार के सभी सदस्य प्लेन क्रैश में खत्म हो गए। किसी की मिट्टी भी नहीं मिली। इस पवित्र धरती ने शायद उनकी मिट्टी को भी जगह देने से इंकार कर दिया होगा।" बताते हुए दरबान के चेहरे पर गुस्से और गम की मिलीजुली परछाईं स्पष्ट नजर आ रही थी।

क्रमशः