मेरे घर आना ज़िंदगी - 38 Ashish Kumar Trivedi द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मेरे घर आना ज़िंदगी - 38



(38)

फ्लैट की रजिस्ट्री हो चुकी थी। पज़ेशन मिल चुका था।‌ मकरंद बहुत खुश था। वह मम्मी पापा को फ्लैट दिखाने के लिए लाया था।‌ वह उन्हें बड़े उत्साह के साथ फ्लैट दिखा रहा था।‌ बता रहा था कि वह फ्लैट में क्या क्या काम करवाना चाहता है। मम्मी पापा भी उसे सलाह दे रहे थे कि उसे क्या करवाना चाहिए।
फ्लैट दिखाने के बाद मकरंद बालकनी में खड़ा आसपास का नज़ारा ले रहा था। वह बहुत भावुक था। इस समय उसे लग रहा था कि जैसे उसने जीवन की बहुत बड़ी उपलब्धि पा ली हो। उसका बचपन अपने मौसा मौसी के घर बीता था। हमेशा उसे ऐसा लगता था कि वह समय कब आएगा जब उसका अपना एक घर होगा। फ्लैट खरीद कर उसने अपना वह सपना पूरा किया था।
बालकनी में खड़े हुए वह आने वाले दिनों की कल्पना करने लगा। वह कल्पना कर रहा था कि वह और नंदिता काशवी को लेकर फ्लैट में रहने के लिए आ गए हैं। काशवी की किलकारियां घर में गूंज रही हैं। वह और नंदिता अपने घर में आकर बहुत खुश हैं। वह अलग अलग तरह की कल्पनाएं कर रहा था तभी पापा ने उसके कंधे पर हाथ रखा। वह अपने खयालों से बाहर आया। पापा ने कहा,
"अब चला जाए। नंदिता काशवी के साथ अकेली है।"
मकरंद की इच्छा कुछ और देर ठहरने की थी। लेकिन वह कुछ कह नहीं सका। उन लोगों के साथ वापस लौट गया।

काशवी तीन महीने की हो गई थी। दिन भर वह अपने नाना नानी के पास ही रहती थी। नंदिता तो उसे सिर्फ दूध पिलाते समय गोद में ले पाती थी। जैसे जैसे काशवी बड़ी हो रही थी नाना नानी का उसके प्रति लगाव बढ़ता जा रहा था।‌ यह बात नंदिता को परेशान कर रही थी। वह जानती थी कि मकरंद कुछ कह नहीं रहा है पर है लेकिन उसकी बहुत इच्छा है कि जल्दी ही दोनों काशवी के साथ अपने फ्लैट में रहने चले जाएं। फ्लैट का रिनोवेशन लगभग पूरा हो गया था। मकरंद हर दूसरे दिन फ्लैट का चक्कर लगाकर आता था। घर आकर नंदिता को सारी बातें बताता था कि कैसा काम हुआ है। उसके उत्साह का अंदाज़ा इसी बात से लग जाता था कि वह कई बार पहले की बताई हुई बातों को भी दोहराता था।
मकरंद कुछ समय पहले ही फ्लैट से लौटकर आया था। काशवी उसकी गोद में थी। वह उससे बातें कर रहा था,
"पापा ने तुम्हारे लिए नया फ्लैट लिया है। वहाँ एक कमरा तुम्हारा भी है। जब तुम बड़ी हो जाओगी तो उसमें रहना। तब जैसा कहोगी वैसा सजवा दूँगा।"
मकरंद काशवी के साथ ऐसी ही बहुत सी बातें कर रहा था। वह कभी कभी मुस्कुरा देती थी। नंदिता उन दोनों को देखकर खुश हो रही थी। तभी उसकी नज़र कमरे के दरवाज़े पर खड़ी अपनी मम्मी पर पड़ी। उसने कहा,
"मम्मी बाहर क्यों खड़ी हैं ? अंदर आइए।"
मम्मी ने अंदर आते हुए कहा,
"मैं तो बस मकरंद से पूछने आई थी कि चाय ले आऊँ या सीधे खाना खाएगा।"
मकरंद ने कहा,
"मम्मी अब तो खाने का समय हो रहा है। खाना ही खाऊँगा। पापा कहाँ हैं ?"
"टीवी देख रहे हैं।"
"ठीक है आप खाना लगवाइए। मैं जाकर उनके पास बैठता हूँ।"
मकरंद काशवी से बोला,
"चलो अब नाना के पास चलते हैं।"
वह काशवी को लेकर चला गया। नंदिता अपनी मम्मी की मदद करने के लिए चली गई।

मम्मी ने मकरंद को काशवी से बात करते सुना था। तबसे ही उनके दिमाग में वह बातें घूम रही थीं। उनके मन में आ रहा था कि बेटी दामाद अपने फ्लैट में जाने की योजना बना रहे हैं।‌ उन्होंने पास बैठे पापा से कहा,
"मुझे लगता है कि फ्लैट का काम पूरा होने के बाद मकरंद अपने फ्लैट में जाने की सोच रहा है।"
मकरंद जब काशवी को लेकर पापा के पास आया था तो वह उन्हें फ्लैट के बारे में बता रहा था। उसने सीधे सीधे कुछ नहीं कहा था पर उन्हें भी ऐसा महसूस हुआ था कि शायद वह अपने फ्लैट में शिफ्ट होने की इच्छा रखता है। अपनी पत्नी की बात सुनकर उन्होंने कहा,
"लगता तो मुझे भी ऐसा ही है। पर हम कर भी क्या ‌सकते हैं। वैसे तो यहाँ कोई दिक्कत है नहीं फिर भी अगर उनकी इच्छा जाने की है तो हम जबरदस्ती तो रोक नहीं सकते हैं।"
कुछ देर तक दोनों अपने अपने विचारों में खोए रहे। कुछ देर बाद मम्मी ने कहा,
"अब इन लोगों की आदत पड़ गई है।‌ पूरा दिन काशवी को खिलाते ही बीत जाता है। इन लोगों के जाने के बाद घर सूना हो जाएगा। तब समय काटना मुश्किल हो जाएगा।"
कुछ सोचने के बाद पापा ने कहा,
"बात तो ठीक है। काशवी से बहुत लगाव हो गया है। उसका जाना खलेगा तो। इस उम्र में तो वैसे भी अकेले रहना मुश्किल होता है। फिर अगर घर भरा हो और अचानक खाली हो जाए तो बहुत खलेगा।"
एक बार फिर दोनों पति पत्नी चुप हो गए। दोनों ही उस समय के बारे में सोचकर उदास थे जब उन्हें फिर से अकेला रहना पड़ेगा। कुछ देर की खामोशी के बाद पापा ने कहा,
"देखा जाए तो यहाँ रहने से मकरंद और नंदिता को भी फायदा है। अभी काशवी छोटी है। हम दोनों मिलकर उसे संभाल लेते हैं। कल अगर नंदिता नौकरी करेगी तो भी उसे काशवी की चिंता नहीं करनी पड़ेगी। पर उन लोगों का शायद कुछ और ही सोचना हो।"
मम्मी ने कहा,
"वह दोनों जैसा भी सोचते हों पर हम उन्हें सही तरह से समझाएंगे।"
कुछ सोचकर पापा ने कहा,
"मुझे लगता है कि हमें ऐसा नहीं करना चाहिए।"
"क्यों ?"
"क्योंकी उनकी अपनी ज़िंदगी है। उसमें अधिक दखल देना ठीक नहीं है। उन्हें जो सही लगे करें।"
मम्मी चुप हो गईं। उन्हें यह बात कुछ खास पसंद नहीं आई। उन्होंने सोचा कि जब वक्त आएगा तब वह उन दोनों को समझाएंगी।

काशवी और नंदिता सो रही थीं। मकरंद सोच में था। उसके दिमाग में चल रहा था कि ऐसा कौन सा तरीका हो सकता है जिससे मम्मी पापा को दुख भी ना हो और वह नंदिता और काशवी के साथ फ्लैट में जाकर रहे। वह अपने फ्लैट में जाने की इच्छा पूरी करना चाहता था पर मम्मी पापा को दुखी नहीं करना चाहता था। वह असमंजस में था कि क्या करे ?
उसका दिमाग परेशान था। उसे शांत करने के लिए वह काशवी के पालने के पास गया। उसने सोती हुई काशवी को चूमा। उसके मन में आया कि वक्त भी कितनी तेज़ी से बीतता है। एक समय था जब वह काशवी के आने की राह देख रहा था। अब काशवी तीन महीने की हो गई है। धीरे धीरे वह इसी तरह बड़ी होती जाएगी। स्कूल जाने लगेगी फिर कॉलेज। एक दिन अपने पैरों पर खड़ी हो जाएगी। उसके बाद अपने जीवनसाथी के साथ चली जाएगी। यह बात मन में आते ही उसके दिल में दर्द सा उठा। उसकी निगाह पास में बिस्तर पर सोती हुई नंदिता पर गई। वह अपने दिल के दर्द को अपने सास ससुर के दर्द से जोड़ पा रहा था। उसका मन और अधिक भारी हो गया।

फ्लैट का काम पूरा हो गया था। मकरंद की इच्छा थी कि भले ही फ्लैट में रहने ना जाए पर गृह प्रवेश की पूजा करवा ले। वह इस विषय में बात करने के लिए पापा मम्मी के पास बैठा था। नंदिता भी वहीं थी। वह कुछ बोलता उसके पहले ही मम्मी ने कहा,
"काशवी छह महीने की हो गई है। अब उसका अन्नप्राशन संस्कार करना चाहिए।"
पापा ने कहा,
"इसके जन्म पर तो कोई फंक्शन किया नहीं था। अब अच्छा मौका है। तय कर लो कब करना है।"
फिर उन्होंने मकरंद की तरफ देखकर कहा,
"बेटा तुम और नंदिता सोच लो कि काशवी का अन्नप्राशन कब करना है। फिर उसी दिन दावत का इंतज़ाम कर लेंगे।"
इन सब बातों को सुनकर मकरंद के दिमाग में एक विचार आया था। वह समझ नहीं पा रहा था कि कैसे कहे। नंदिता समझ गई कि उसके मन में कुछ है। उसने कहा,
"तुम कुछ कहना चाहते हो मकरंद ?"
मकरंद ने मम्मी पापा की तरफ देखकर कहा,
"काशवी का अन्नप्राशन तो करना ही है। मेरी इच्छा थी कि फ्लैट में एक पूजा भी हो जाती। इसलिए मेरे मन में एक विचार आया था।"
पापा ने कहा,
"बताओ क्या विचार आया था ?"
"पापा मैं सोच रहा था कि दिन में फ्लैट में पूजा रख लेते हैं। वहीं काशवी का अन्नप्राशन कर लेंगे। शाम को पार्टी रख लेते हैं।"
कुछ सोचकर पापा ने कहा,
"बात तो ठीक लग रही है। तय कर लो किस दिन करना है। दावत कहाँ रखनी है। उस हिसाब से इंतज़ाम करते हैं।"
यह कहकर उन्होंने मम्मी की तरफ देखा। मम्मी ने नंदिता की राय पूछी। नंदिता ने कहा,
"मुझे भी आइडिया अच्छा लगा। बाकी कब करना है इसका फैसला आप बड़े लोग करके बता दीजिए।"
मकरंद ने सहमति जताते हुए कहा,
"बिल्कुल ठीक....कौन सा दिन अच्छा रहेगा यह आप लोग अच्छी तरह सोच सकते हैं। आप लोग दिन तय कर लीजिए। बाकी पार्टी के लिए सही वेन्यू चुनकर सारे इंतज़ाम मैं कर लूँगा।"
सब लोग सोच विचार करने लगे। तय हुआ कि दस दिन बाद अच्छा दिन है। उस दिन पूजा और दावत रख लेते हैं।
मकरंद ने पार्टी के लिए अच्छी सी जगह चुन ली थी। लोगों को पार्टी का ई कार्ड उनके नंबर पर भेज दिया गया था। कुछ खास लोगों को पूजा के लिए भी बुलाया गया था।