तड़प इश्क की - 27 Miss Thinker द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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तड़प इश्क की - 27

इतना कहते ही तान्या आंखें बंद करके कुछ बोलकर अपने असली रूप में आती है......

पूरी तरह अपने असली रूप में आ चुकी थी , ,

तान्या एक रौबदार आवाज में कहती हैं...." शिवि , सबको सूचना पहुंचाओ , हम सतरपूर आ रहे हैं और वैद्य भ्रमर को महल में पहुंचने के लिए कहो ...."

" जी महारानी जी..." शिवि वहां से चली जाती हैं और तान्या वहां से सीधा पंचमढ़ी पहुंचती है.....

तान्या चारों तरफ देखते हुए खुद से कहती हैं...." आज ये पंचमढ़ी कितना विरान हो चुका है , कभी यहां रौनक हुआ करती थी , , पांचों मणियों के चले जाने से यहां सबकुछ तहसनहस हो चुका है , ..."

तान्या सुखी हुई झाड़ियों को हटाते हुए , पंचमढ़ी के विरान हो चुके महल से होते हुए उसकी वाटिका में पहुंचकर चिल्लाती है...." बाबा भृंगदेव .... कहां है आप...?...."

उसकी आवाज पूरे सुनसान माहौल को चीरती हुई सब जगह गुंज जाती है , कुछ ही देर में ठक ठक की आवाज के साथ एक लड़खड़ाती हुई आवाज सुनाई पड़ती है......" कौन हो तुम...?... यहां क्यूं आई हो...?..."

तान्या पीछे मुड़ती है तो और बौने कद के डिलडोल वाले बुजुर्ग को अपने सामने देखकर उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है....

वो बौने कद वाला बुजुर्ग तान्या को शकी नजरों से देखते हुए पूछता है...." क्या काम है तुम्हें ...?...अब तुम यहां क्या लेने आई हो , यहां अब बचा ही क्या लूटने के लिए..."

भृंगदेव के चेहरे पर गुस्से के भाव झलकने लगते हैं , इसलिए तान्या उन्हें समझाती हुई कहती हैं..." देखिए भृंगदेव जी , हमने आपका अहित नहीं किया है , न‌ ही हम यहां से कुछ लेने आए हैं , हमें आप बस कुछ औषधि के बारे में बता दीजिए....."

भृंगदेव गुस्से में घूरते हुए कहता है...." कौन हो तुम...?...और किस औषधि को लेने आई हो..?..."

तान्या अपना इंट्रो देते हुए कहती हैं..." हम सतरपूर की महारानी स्वांगधारिणि माद्रिका है , जिसने आपके राज्य को बचाया था , और साथ ही पक्षीराज की सहायता भी की थी..."

भृंगदेव याद करते हुए कहता है..." हां हमें स्मरण है , महाराज मंधाना ने आपकी सहायता ली थी , किंतु जहां तक हमे स्मरण है , आप पक्षीराज के अंतिम युद्ध में मारी गई थी ,..."

" नहीं भृंगदेव नहीं , हम कोषस्थ कीट इतनी सरलता से नहीं मर सकते , आप हमारी शक्तियों से परिचित नहीं हैं , हमने केवल नये देह में स्वयं को स्थापित किया है ताकि हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सके , , वैसे राजकुमार मणिक का क्या हुआ..?..."

भृंगदेव उदासी से कहता है..." युवराज कहां है किसी को नहीं पता...?...जब प्रक्षीरोक्ष ने पंचमढ़ी पर आक्रमण किया है तबसे ही उन्हें किसी ने नहीं देखा ...आप बताइए आपको कौन सी औषधि चाहिए..?.."

" हमें घांवनिरोधक औषधि चाहिए , , आप उन्हें हमें सौंप दीजिए..."

भृंगदेव हैरानी से पूछता है..." आपको तो कोई घावं नहीं है फिर आप ये औषधि किसके लिए मांग रही है , कहीं आप किसी इंसान को तो ये औषधि नहीं देंगी , , स्मरण रखियेगा ये औषधि इंसानों के शरीर को हानि पहुंचा सकती है....."

" हमें ज्ञात है , , हमें ये औषधि पक्षीराज के लिए चाहिए , सुना है वो काफी घायल हैं...."

भृंगदेव सहमति जताते हुए वहां से जाकर कुछ औषधि लेकर उन्हें तान्या को देते हुए कहता है...." स्मरण रखियेगा , इस औषधि को केवल आपके पराग रस में मिलाकर ही घावं पर लगाई जा सकती है..."

" जी.." तान्या इतना कहकर वहां से उड़कर सतरपूर पहुंचती है जहां सभी उसका बेसब्री से इंतजार कर रहे थे...

तान्या के वहां पहुंचते ही एक खुशी का म्यूजिक बज उठता है , पूरे महल में महारानी माद्रिका की जयकार होने लगती है लेकिन तान्या इन सबको इग्नोर करते हुए सीधा अपनी सभागार में पहुंचती है , जहां उसने वैद्य भ्रमर को आने के लिए कहा था , ....

तान्या पूरी शान के साथ जाकर अपने सिंहासन पर बैठते हुए कहती हैं..." वैद्य , तुम्हें पता है तुम्हें यहां क्यूं बुलाया है.."

" नहीं रानी जी..."

तान्या उसी जोशीले अंदाज में कहती हैं...." तो सुनो , जाओ जाकर परागकण इकट्ठा करो और इन औषधि को उसमें मिलाकर हमें दो , ये काम अति शीघ्र होना चाहिए..."

वैद्य भ्रमर डरते हुए उस औषधि को लेकर वहां से फूलों की वाटिका चला जाता है .....

दूसरी तरफ एकांक्षी को होश में लाने के लिए डाॅक्टर की एक एक्सपर्ट टीम वहां पहुंचती है लेकिन उनकी भी मेहनत बेकार हो जाती है आखिर में किसी के हाथ एकांक्षी के अचानक बेहोश होने का कोई खास रीजन नहीं मिल पा रहा था लेकिन राघव के डर की वजह से कोई उसके सामने जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था.......

रात का समय लगभग खत्म होने लगा था , सूरज की लालिमा अंधेरे को चीरती हुई सब जगह फैलने लगी थी लेकिन न तो अभी तक अधिराज की तबीयत में सुधार था न ही एकांक्षी की......

**********

उधर वैद्य भ्रमर औषधि तैयार करके राजमहल पहुंचकर औषधि तान्या को सौंपते हुए कहते हैं...." महारानी जी , ये औषधि अब किसी भी घावों को भरने के लिए बिल्कुल तैयार हो चुकी है..."

तान्या मुस्कुराते हुए बिना देर किए उस औषधि को लेकर वहां से कुंदनवन पहुंचकर उसे नदी किनारे बने छोटे से महल में पहुंचती है......

सभी पैहरी उसे देखकर अपना सिर झुकाकर उसे बिना रोके अंदर जाने देते हैं , तान्या सभागार में पहुंचकर शिवि के जरिए संदेश पहुंचाती है....

शिवि तुरंत अधिराज के कमरे के बाहर पहुंचकर देखती है की पैहरी काफी उदास लग रहे हैं और उनके मुंह पर एक ही बात थी...." पता नहीं हमारे पक्षीराज ठीक भी हो पाएंगे या नहीं..." आपस में बातें करते हुए पैहरी की नजर शिवि पर जाती है , जिसे देखकर वो गुस्से में कहते हैं..." तुम प्रक्षीरोध की गुप्तचर हो...?.."

शिवि तुरंत उस पैहरी से कहती हैं..." नहीं नहीं , मुझे महारानी माद्रिका ने भेजा है , वो बाहर सभागार में प्रतिक्षा कर रही है , उनका ये संदेश हमें अंदर पहुंचाना है...."

पैहरी उसकी बात सुनकर अधिराज के कमरे में जाकर कहते हैं...." हमें क्षमा करना राजमाता , किंतु पक्षीराज से मिलने सतरपूर की रानी आई है...."

सतरपूर की रानी का नाम सुनते ही , रत्नावली और शशांक के चेहरे पर हैरानी छा जाती है....

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इधर एकांक्षी की तबीयत में सुधार न होने के कारण डाक्टर हिम्मत करते हुए राघव के पास जाकर कहते हैं.... " एम सॉरी सर , लेकिन आपकी बहन कोमा में जा चुकी है..."







.............to be continued..........

क्या तान्या अधिराज को बचा पाएगी...?

एकांक्षी अचानक कोमा में कैसे चली गई...?

जानने के लिए जुड़े रहिए........