- 25 -
अभी तक ‘देहदान महादान संस्था (रजि.), दिल्ली’ की ओर से पत्र आया था, जिसमें सूचना दी गई थी कि संस्था द्वारा स्वर्गीय प्रभुदास का नाम मरणोपरान्त पद्मश्री पुरस्कार के लिए अनुशंसित किया गया था, जिसे सरकार द्वारा गठित चयन समिति ने स्वीकार करते हुए प्रभुदास को मरणोपरान्त पद्मश्री से सम्मानित करने का प्रस्ताव सरकार के समक्ष रखा है। अब सरकारी सूचना के अनुसार श्रीमती सुशीला धर्मपत्नी स्व. प्रभुदास को पुरस्कार ग्रहण करने के लिए गणतन्त्र दिवस के एक दिन पूर्व दिल्ली में उपस्थित होना था। सुशीला के साथ दीपक, प्रीति और प्रवीण दिल्ली गए।
उनके ठहरने की व्यवस्था सरकार की ओर से की गई थी। समारोह के निर्धारित समय से एक घंटा पूर्व ये लोग राष्ट्रपति भवन पहुँच गए। राष्ट्रपति भवन इन लोगों ने इससे पहले केवल तस्वीरों या टी.वी. पर ही देखा था। यह पहला मौक़ा था कि ये लोग राष्ट्रपति भवन में आमन्त्रित थे, सरकार के अतिथि थे। सुशीला जिसने अपने जीवन में अब तक पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के क़स्बे और शहर ही देखे थे, देश की राजधानी दिल्ली की गगनचुंबी इमारतों तथा राष्ट्रपति भवन की विशालता और भव्यता देखकर विस्मित और मन्त्रमुग्ध हो उठी। उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि इस भव्य भवन में प्रवेश करने तथा देश के राष्ट्रपति से सम्मान प्राप्त करने हेतु सरकार ने उन्हें आमन्त्रित किया है। वह दिवास्वप्नों में खोई हुई थी कि प्रवीण ने कहा - ‘दादी, कहाँ खो गई? अभी तो आपने इसे बाहर से देखा है और आपका यह हाल है, अन्दर की शानों-शौक़त देखकर न जाने क्या हाल होगा!’
इतने में एक कर्मचारी ने उन्हें एक डेस्क की ओर संकेत करते हुए कहा - ‘आप लोग वहाँ अपना परिचय लिखवाकर तथा सिक्योरिटी चैक करवाकर सभागार में प्रवेश करें।’
सभागार में बड़ी-बड़ी हस्तियाँ विद्यमान थीं, जिनमें से कुछ को समाचार पत्रों या दूसरे संचार के माध्यमों से इन लोगों ने देखा हुआ था। प्रधानमंत्री एवं अन्य कुछ मन्त्री भी प्रथम पंक्तियों में विराजमान थे। सम्मान / पुरस्कार पाने वालों को वरीयता-क्रम में बिठाया गया था।
पद्म-विभूषण, पद्म-भूषण सम्मान दिए जाने के बाद जब पद्म-श्री सम्मान के लिए नाम पुकारे जाने लगे तो पाँचवें नम्बर पर उद्घोषक ने प्रभुदास का नाम पुकारा और प्रभुदास की समाज-सेवाओं का संक्षिप्त उल्लेख इस प्रकार किया - ‘आज से पैंतीस-चालीस वर्ष पूर्व पंजाब के एक छोटे-से क़स्बे में रहने वाले जवानी की दहलीज़ पर कदम रखते हुए प्रभुदास जी ने जो संकल्प लिया था, उसे हिन्दी के प्रख्यात कवि सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की कविता की पंक्तियाँ बड़े सुन्दर ढंग से बयान करती हैं -
‘लीक पर वे चलें जिनके चरण दुर्बल और हारे हैं,
हमें तो जो हमारी यात्रा से बने, ऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे हैं।’
प्रभुदास जी अपने संकल्प से ऐसी यात्रा पर निकले जिसकी मंज़िल दुर्गम थी, किन्तु उन्होंने अपनी लगन से अपने साथ लोगों को जोड़ने में सफलता हासिल की और देहदान को जन-आन्दोलन बनाने में अहम भूमिका निभाई, अस्पतालों तथा मेडिकल कॉलेजों को चिकित्सीय पढ़ाई तथा प्रयोगों के लिए अति आवश्यक मृत-शरीरों की आपूर्ति हेतु समाज में जागरूकता फैलाई। परम्परावादी सोच के कारण लोगों में मृत-देह का अंतिम संस्कार न करना मृत व्यक्ति को मोक्ष से वंचित करना माना जाता था। इस सोच को बदलकर उन्हें देहदान के लिए प्रेरित करने के लिए बहुत धैर्य एवं निरन्तर प्रयास की ज़रूरत थी। प्रभुदास जी में ये दोनों गुण विद्यमान थे, इसीलिए वे अपने संकल्प को अमली जामा पहनाने में कामयाब हुए।
‘प्रभुदास ने ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’ पर न चलते हुए सर्वप्रथम अपनी देह दान का संकल्प लिया और अपनी माताजी के देहान्त पर उनके मृत-शरीर का दान किया। इनके परिवार ने इनकी मृत्यु पर इनके संकल्प पर फूल चढाए।
‘प्रभुदास जी के लीक से हटकर किए गए उल्लेखनीय कार्यों के लिए आज महामहिम महोदय उनकी धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला जी को पद्मश्री पुरस्कार प्रदान करेंगे। मैं श्रीमती सुशीला जी से निवेदन करता हूँ कि वे मंच पर आएँ और अपने स्वर्गीय पति की उल्लेखनीय सेवाओं के लिए यह पुरस्कार स्वीकार करें। श्रीमती सुशीला जी….’
जब राष्ट्रपति महोदय ने सुशीला की साड़ी पर सम्मान-चिन्ह पिन किया और प्रशस्ति-पत्र प्रदान करने के बाद उसे बधाई दी और फ़ोटो खिंचवाने के लिए सही पोज़ के लिए संकेत किया तो उसकी आँखें नम हो गईं। राष्ट्रपति महोदय ने उसका कंधा थपथपाया।
पुरस्कार लेकर वापस अपनी सीट की ओर जाने के लिए जैसे ही सुशीला मुड़ी तो केन्द्रीय स्वास्थ्य मन्त्री ने उठकर उन्हें बधाई दी।
समारोह की समाप्ति पर चाय-नाश्ते के दौरान भी बहुत-से लोगों ने प्रभुदास की सेवाओं के लिए उनके परिवार के सदस्यों को बधाई दी तथा इच्छा जताई कि परिवार भविष्य में भी इसी तरह समाज-सेवा के कार्य करता रहेगा।
समारोह की गतिविधियों की समाप्ति सभी आमन्त्रित अतिथियों को मुग़ल-गार्डन का एक चक्कर लगवाकर हुई।
वापसी पर सुशीला तो सारे रास्ते मुग़ल गार्डन की सुन्दरता की ही चर्चा करती रही। जब इनकी ट्रेन दौलतपुर स्टेशन पर रुकी तो परिवारजनों के साथ प्रभुदास द्वारा स्थापित ‘देहदान संस्था’ के पदाधिकारियों तथा मण्डी के बहुत से गणमान्य व्यक्तियों को बहुत बड़े समूह में देखकर तथा उनके द्वारा ‘प्रभुदास, हमारा गौरव’, ‘प्रभुदास अमर रहे’ के उद्घोष सुनकर सुशीला भाव-विह्वल हो उठी। सुशीला को लोगों ने फूल-मालाओं से लाद दिया। रामरतन और जमना ने आगे बढ़कर बधाई दी। कान्हा जब सुशीला के चरणस्पर्श के लिए झुका तो सुशीला ने बीच में ही उसे पकड़कर अपने सीने से लगाकर उसका माथा चूम लिया।
स्टेशन से बाहर आए तो फूलों से सजी खुली छत की जीप उनकी प्रतीक्षा में तैनात थी। उन्हें जीप में चढ़ाकर पूरी मण्डी का चक्कर लगाते हुए घर पहुँचाया गया। इतना मान-सम्मान पाकर सुशीला की आँखें बार-बार नम हो उठती थीं।
******
समाप्त