खाली कमरा - भाग १२  Ratna Pandey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

खाली कमरा - भाग १२ 

राहुल ने कहा, “खुशबू आज तुम्हारे गर्भ में हमारा बच्चा है, शायद अभी तो उसमें जान भी नहीं आई होगी; फिर भी हम दोनों उसे बचाने के लिए कितने बेचैन हो रहे हैं, कितनी कोशिश कर रहे हैं। हमारी भी तो हमारे माता-पिता को इतनी ही, ऐसे ही चिंता होती होगी ना। हमारी ख़ुशी के लिए हमारे माता-पिता ने भी उनका खून पसीना बहाया है। उनके त्याग का, उनके प्यार का, क्या सिला दिया है हमने।”

“तुम ठीक कह रहे हो राहुल। हम दोनों सिर्फ़ मेरा-मेरा ही सोच रहे थे। अपना शब्द तो शायद हमारे शब्दकोश में था ही नहीं। हम दोनों बिल्कुल एक जैसे निकले स्वार्थी।”

“जो बिगड़ चुका है उसे सुधारना तो होगा।” 

“क्या वे मानेंगे,” खुशबू ने पूछा।

“मैं वृद्धाश्रम जाने के लिए हिम्मत जुटाने की कोशिश करता हूँ । मैं अपना मुँह उन्हें कैसे दिखाऊँगा, यह सोच कर ही रूह कांप रही है। हो सकता है वे हमें कभी माफ़ ना करें।”

“नहीं राहुल वे मान जाएंगे, तुम देख लेना।” 

“ठीक है खुशबू तुम भी साथ चलो, तुम्हें देखकर शायद वे मान जाएं। तुम कार के पीछे की सीट पर आराम से सो जाना।”

बड़े ही भारी मन से राहुल वृद्धाश्रम के लिए निकला। वृद्धाश्रम जाते समय उसके मन में कई तरह के प्रश्न उठ रहे थे। आज याद आ रही है माँ-बाप की जब काम पड़ा है तब। तू सोच तूने कभी भी उनके लिए क्या किया? हमेशा वही तो करते रहे तेरी हर इच्छा पूरी, तेरी हर ज़िद पूरी। अब जब लेने का समय ख़त्म हुआ और देने का समय आया तो तूने उन्हें पीठ दिखा दी। घर में होता हुआ उनका अपमान चुपचाप देखता रहा। क्या तू खुशबू को रोक-टोक नहीं सकता था? आज फिर उन्हें कुछ देने नहीं, उनसे मांगने, उनसे लेने ही जा रहा है, सोचते हुए वृद्धाश्रम आ गया।

अंदर जाने के समय राहुल के क़दम इतने भारी हो रहे थे कि उनका वज़न उससे उठाया नहीं जा रहा था। जब इंसान ग़लती करता है और करता ही चला जाता है लेकिन निःस्वार्थ भाव से यदि माफ़ी मांगे तो कई बार माफ़ी भी उसे मिल जाती है; लेकिन यहाँ तो ग़लती का एहसास भी केवल अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए ही हुआ था।

रिसेप्शन पर उसने कहा, “मेरे माता-पिता राधा और मुरली इस वृद्धाश्रम में हैं प्लीज़ उन्हें बुला दीजिए।” 

रिसेप्शन पर श्याम बैठा था, वह हड़बड़ाया और तुरंत ही अंदर ऑफिस में जाकर मोहिनी मैडम से कहा, “मैडम मुरली जी और राधा जी का बेटा आया है, उन्हें बुला रहा है।”

“ठीक है तुम चलो, मैं आती हूँ।”

कुछ ही पलों में पूरे वृद्धाश्रम में यह बात फैल गई कि मुरली और राधा जी का बेटा आया है।

मोहिनी मैडम का व्यक्तित्व बड़ा ही शानदार था। वह बाहर आईं और पूछा, “कौन हैं आप?”

“मैं राधा और मुरली जी का बेटा हूँ और उन्हें घर ले जाने के लिए यहाँ आया हूँ,” कहते हुए राहुल ने सावधानी पूर्वक खुशबू का हाथ पकड़कर उसे कुर्सी पर आराम से बिठा दिया।

खुशबू को इस तरह देखकर मोहिनी ने पूछा, “क्या हो गया है इन्हें? क्या इनकी तबीयत ठीक नहीं है?”

राहुल ने कहा,” जी हाँ यह मेरी पत्नी खुशबू है और इस समय प्रेगनेंट है।”

राहुल के आसपास अब तक काफ़ी बुजुर्ग एकत्रित हो गए थे परंतु जिन्हें उसकी नज़रें ढूँढ रही थीं वे कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे।

राहुल ने मोहिनी से कहा, "मैडम मेरे माँ पापा को बुला दीजिए।"

"सॉरी राहुल जी माफ़ कीजिए, हम उन्हें नहीं बुला सकते।"

"नहीं बुला सकते मतलब? मतलब क्या है आपका?"

"राहुल जी आप नाराज़ मत होइए, पहले हमारी पूरी बात तो सुन लीजिए। मुरली अंकल और राधा आंटी अब यहाँ नहीं रहते।"

"यहाँ नहीं रहते, यह क्या बोल रही हैं आप?"

"मैं सच ही बोल रही हूँ।"

"तो फिर कहाँ है मेरे माँ-पापा?"

“वह तो दो हफ़्ते पहले ही यहाँ से चले गए। जाते-जाते उन्होंने कहा था …”

“क्या कहा था …”

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः