खाली कमरा - भाग १० Ratna Pandey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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खाली कमरा - भाग १०

घर पहुँच कर राहुल ने खुशबू से कहा, “खुशबू वे तो 'स्वागत' वृद्धाश्रम में रहने चले गए यार।”

“चलो ये तो अच्छी बात है। वहाँ वे भी ख़ुश और यहाँ हम भी।”

“नहीं खुशबू यह ग़लत हुआ है।”

“अरे क्या ग़लत है राहुल? यदि आपस में ना बनती हो तो अलग रहना, सबसे अच्छा निर्णय होता है।”

“लेकिन खुशबू …?” 

“लेकिन-वेकिन कुछ नहीं राहुल, रोज-रोज की किट-किट से पीछा छूटा। घर में जब देखो माँ के पास कोई ना कोई आता ही रहता था। कितनी भीड़ रहती थी घर में।” 

खुशबू की बातें सुनकर राहुल आगे कुछ भी ना बोल सका।

अब तक खुशबू के माता-पिता तक भी यह ख़बर पहुँच चुकी थी कि खुशबू के सास-ससुर वृद्धाश्रम में हैं। यह सुनकर उनका परिवार बहुत दुखी हुआ। उनका गुस्सा खुशबू के ऊपर कई गुना और बढ़ गया।

उसके पापा ने अपनी पत्नी से कहा, “देखा मैं जानता था यह लड़की उन सीधे-सादे सास-ससुर को चैन से रहने नहीं देगी और वह राहुल …? वह तो बेटा है उनका, उसका दिल नहीं रोया अपने माँ-बाप को वृद्धाश्रम में देख कर।”

“तुम ठीक कह रहे हो इन दोनों ने तो वह ग़लती की है जो माफ़ी के लायक नहीं है। करने दो मनमानी देखती हूँ मैं, अकेले कैसे सब कुछ कर पाएंगे?”

देखते-देखते 4 माह गुजर गए।

एक दिन खुशबू की तबीयत थोड़ी खराब थी। तब राहुल उसे डॉक्टर के पास ले गया।

वहाँ डॉक्टर ने उसे चेक करने के बाद कहा, “बधाई हो खुशबू तुम माँ बनने वाली हो।” 

खुशबू की ख़ुशी का ठिकाना ना रहा। उसने बाहर आकर राहुल को बताते हुए कहा, “राहुल ख़ुशी का समय है। यह बताने में मुझे बहुत ही आनंद की अनुभूति हो रही है कि तुम पापा बनने वाले हो।”

राहुल ख़ुशी से उठ कर खड़ा हो गया और खुशबू को चूमते हुए कहा, “थैंक यू खुशबू तुमने मुझे इतनी बड़ी ख़ुशी दी है।”

तभी डॉक्टर ने नर्स को भेज कर राहुल को अंदर बुलाया। नर्स ने कहा, “राहुल सर आपको मैडम अंदर बुला रही हैं।” 

राहुल तुरंत ही उठकर डॉक्टर के पास गया।

“जी कहिए डॉक्टर साहब आपने मुझे क्यों बुलाया?”

“मिस्टर राहुल आपकी पत्नी को पूरे नौ माह बेड रेस्ट करना होगा। उनका शरीर अंदर से बहुत ही कमज़ोर है। आपकी मम्मी होंगी ना घर पर? उन्हें कहना खुशबू का बहुत ख़्याल रखें। मैं दवाइयाँ लिख देती हूँ। इसके अलावा उसे घर का खाना और घर में निकाला फलों का ताज़ा रस देना।”

यह सुनते ही खुशबू और राहुल के तो होश ही उड़ गए। इतनी देख रेख माँ के अलावा और कोई कर ही नहीं सकता। वह दोनों एक दूसरे की तरफ़ देखे जा रहे थे। वहाँ से उठकर वह घर जाने के लिए निकल गए। रास्ते भर दोनों चुपचाप थे। इसी कश्मकश में कि अब क्या करें वह घर पहुँच गए। 

खुशबू को बिस्तर पर लिटा कर राहुल उसके पास बैठ गया। 

“खुशबू अब क्या करें? मेरी नई-नई नौकरी है, लंबी छुट्टी नहीं ले पाऊंगा। काम वाली तो काम वाली ही होती है वह अपनों जैसा ख़्याल कहाँ रखती है। क्या करें? कुछ समझ नहीं आ रहा, काश …!”

“चिंता मत करो राहुल, तुम देखना मेरी प्रेगनेंसी का सुनकर मेरी मम्मी और पापा का पूरा गुस्सा छू हो जाएगा । देखो मैं अभी उन्हें फ़ोन करती हूँ, तुम भी सुनना मैंने फ़ोन स्पीकर पर रखा है।”

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः