Khaali Kamra - Part 7 books and stories free download online pdf in Hindi

खाली कमरा - भाग ७   

खुशबू की कड़वी ज़ुबान से इतने तीखे शब्द सुनते ही राधा ने राहुल की तरफ़ देखा तो राहुल ने नज़रें फेर ली और खुशबू से कहा, “चिंता मत करो कुछ ही दिनों की बात है।”

खुशबू ने चिल्लाते हुए कहा, “कुछ दिनों में क्या कर लोगे राहुल तुम? मुझे केवल तुम्हारा साथ चाहिए था घर में भीड़ नहीं।”

राधा रोते हुए वहाँ से चली गई। मुरली ने भी सब कुछ सुन लिया था। वह गुस्से में तमतमाता चेहरा लेकर कमरे में आया। लेकिन वह कुछ बोले उससे पहले ही राधा ने आँखों ही आँखों में उसे इशारा कर दिया और हाथ पकड़ कर अपने कमरे में ले कर चली गई।

आज रात जब सब नींद की गिरफ़्त में थे राधा और मुरली अपना थोड़ा-सा ज़रूरत का सामान एक पेटी में लेकर निकल गए। रात के लगभग दो बज रहे थे।

राधा ने कहा, “मुरली इतनी रात में अब हम कहाँ जाएंगे?”

“राधा अब तक मैं माँ के कारण कुछ ना कर सका। तुम्हारा दिन-रात होता हुआ अपमान भी सहता रहा पर अब और नहीं। वैसे भी माँ को लेकर कहाँ जाते? क्या करते? मैं उनके जीवन के अंतिम दिनों में उन्हें और तकलीफ़ नहीं देना चाहता था। उनके जाने के बाद मैंने एक वृद्धाश्रम में बात कर ली है।”  

“क्या …?”

“हाँ राधा यह समय आएगा मैं जानता था। अब वही एक जगह है जहाँ हम बिना किसी पर बोझ बने रह सकते हैं। मैंने तुम्हें कहा था ना, भाग्य और भविष्य ना जाने क्या करेगा और हमसे क्या करवाएगा। खैर चलो, वैसे हम चाहते तो आराम से अपने घर में रह सकते थे। जाना तो उन्हें चाहिए था पर तुम्हारा ममत्व, तुम्हारी ममता, हमारे सामने दीवार बनकर खड़ी हो गई। उस दीवार को मैं तोड़ ना पाया वरना आराम से उस घर में रहते, जहाँ हमारा खून पसीना मिला हुआ है। राधा तुम्हें याद है हमने कैसे एक-एक पैसा जोड़कर, काट कसर करके वह छोटा-सा आशियाना बनाया था। सोचा था हम दो और राहुल का परिवार प्यार से रहेंगे। अगर भाग्य साथ देगा तो बड़ा घर भी बन जाएगा। परंतु जो बनाया था, वह भी अपना ना रहा।”

राधा ने मुरली के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, “मुरली तुम मेरे साथ हो तो हर ग़म बर्दाश्त कर लूंगी मैं।”

तब तक उन्हें एक रिक्शा दिखाई दिया। रिक्शा वाला अंदर सो रहा था। मुरली ने उसे आवाज़ देकर कहा, “भैया …” 

रिक्शा वाला बेसुध सो रहा था। तब मुरली ने उसे हिलाते हुए पुकारा, “भैया, ओ भैया उठो …” 

रिक्शे वाला जागा और आँख मसलते हुए उसने पूछा, “क्या है? इतनी रात को क्यों …?”

“अरे भैया मजबूरी है, हमें वृद्धाश्रम छोड़ दोगे।” 

वृद्धाश्रम का नाम सुनते ही रिक्शा वाला चौंक कर पूरी तरह जाग गया।

“क्या …? वृद्धाश्रम इतनी रात को?  बाबूजी क्या रात को ही बाहर निकाल दिया आपके बच्चों ने? सुबह तो हो जाने दी होती। क्या जमाना आ गया है, भगवान रक्षा करना। बाबू जी चलिए कहाँ जाना है, कौन से वृद्धाश्रम में?”

“यहाँ से लगभग दस किलोमीटर दूर है ‘स्वागत वृद्धाश्रम’, वहीं ले चलो।”

“आइए बैठ जाइए,” कहते हुए रिक्शे वाले ने रिक्शा स्टार्ट किया।

मुरली और राधा पीछे बैठ गए।

रिक्शे वाले ने फिर पूछा, “बाबूजी सुबह तक रुक जाते घर पर, फिर निकलते।”

मुरली ने कोई जवाब नहीं दिया।

रिक्शा वाला बार-बार उनसे प्रश्न करता, “बाबूजी मकान किसके नाम पर है? या आपने पुत्र मोह में आकर अपने जीवन में ही उसके नाम कर दिया।”

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः

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