उधर सुबह उठकर खुशबू ने देखा राधा और मुरली उनके कमरे में नहीं हैं। उसने राहुल को आवाज़ लगाई, “राहुल देखो तो तुम्हारे माँ बाप घर में नहीं हैं।”
“क्या …? ये क्या बोल रही हो खुशबू?”
“हाँ मैं सच कह रही हूँ तुम ख़ुद आकर देख लो?”
राहुल भी उठा और खाली कमरा देख सर पर हाथ रखकर निढाल होकर बैठ गया।
“कहाँ चले गए यह दोनों, अब उन्हें ढूँढना पड़ेगा। यहाँ क्या तकलीफ़ थी। इन बुड्ढ़े लोगों के साथ यही परेशानी है। ज़रा-ज़रा में मुँह चढ़ा लेते हैं, फिर उन्हें मनाओ,” वह धीरे से बुदबुदाया।
“हाँ तुम बिल्कुल ठीक कह रहे हो राहुल। वैसे भी बात-बात पर गुस्सा आता है उन्हें। चलो छोड़ो, अब हम शांति से रहेंगे।”
“परंतु खुशबू उन्हें ढूँढना तो पड़ेगा ना। पता तो लगाना पड़ेगा कि आख़िर वे हैं कहाँ?”
राहुल ने पुलिस में बताना ठीक नहीं समझा। वह जानता था कि पुलिस उनसे ही सवाल पूछेगी। अरे झड़ी लगा देगी सवालों की नहीं-नहीं । रिश्तेदारों को फ़ोन…? नहीं… बहुत ही स्वाभिमानी हैं वे दोनों। रिश्तेदारों के घर तो कभी नहीं जाएंगे। वैसे भी रिश्तेदारों से भी क्या पूछूं? सब उन्हें ही भला बुरा सुनाने लगेंगे। वृद्धाश्रम …? हाँ यही एक जगह है जहाँ वे जा सकते हैं। ऑफिस से लौटते समय जाऊंगा।
शाम को ऑफिस से लौटते समय सात बजे राहुल ने एक दो वृद्धाश्रम में पता लगाया, पर बात नहीं बनी। थक हार कर वह घर लौट आया। दूसरे दिन शाम को ढूँढते हुए वह 'स्वागत' वृद्धाश्रम में पहुँच गया, जहाँ राधा और मुरली का ठिकाना था।
रिसेप्शन पर जाकर उसने वहाँ बैठे युवक से पूछा, “यहाँ कोई राधा और मुरली नाम के दो वृद्ध आए हैं क्या?”
“हाँ आए हैं, आप कौन और क्यों पूछ रहे हो?”
“मैं उनका बेटा हूँ।”
यह सुनते ही उस युवक ने नफ़रत भरी नज़रों से उसकी ओर देखते हुए कहा, “अच्छा तो आप हैं?”
“उन्हें बुला दीजिए प्लीज़।”
युवक ने कहा, “ठीक है अभी बुला देता हूँ,” कहते हुए वह मुरली के कमरे में गया और कहा, “अंकल आपसे कोई मिलने आया है।”
मुरली और राधा दोनों ही बाहर आए देखा तो राहुल सामने खड़ा था।
उन्हें देखते ही नाराज़ होते हुए उसने कहा, “पापा यह क्या तरीक़ा है आपका? कुछ भी बताया नहीं, ऐसे ही चोरों की तरह रात को छिपकर घर से निकल गए। कम से कम बता तो देते।”
“अरे हाँ बेटा यह तो हमसे बहुत बड़ी ग़लती हो गई। हम तो सोच रहे थे बता देते तो तुम हमें जाने ही नहीं देते, हमें क्या पता था कि बता देते तो तुम यह जान जाते कि हम जा रहे हैं और कहाँ जा रहे हैं।”
“पापा आप मेरी बात का ग़लत मतलब निकाल रहे हैं।”
“हाँ क्या करें, बेटा ग़लती करने की आदत जो है हमारी। बहुत ग़लतियाँ की हैं हमने। उनका ही तो यह परिणाम है जो हम आज भुगत रहे हैं और इस तरह यहाँ वृद्धाश्रम में …”
राधा ने बात को संभालते हुए बीच में ही पूछ लिया, “राहुल खुशबू कैसी है?”
राहुल कुछ बोलता उससे पहले ही मुरली ने कहा, “अब तो बहुत ख़ुश होगी वह, उसकी मनोकामना जो पूरी हो गई। मैं तो पहले ही जानता था जो लड़की अपने माँ बाप की ना हुई वह हमारी क्या होगी। कभी-कभी सोचता हूँ जब अपना ही सिक्का खोटा है तो दूसरे को दोष देने का भी क्या फायदा।”
मुरली के मुँह से यह शब्द सुनते ही राहुल ने कहा, “माँ आप लोग अपना ख़्याल रखना मैं चलता हूँ,” कहते हुए राहुल वहाँ से निकल गया।
उसके मुँह से एक बार भी ना निकला कि पापा माँ वापस घर चलो। मुरली और राहुल दोनों ने यह महसूस तो किया किंतु एक दूसरे से कुछ भी ना कह पाए। उन्हें आज अपने ख़ुद के ही खून में धोखे और स्वार्थ की बदबू आ रही थी। उसके जाने के बाद उन्होंने राहत की गहरी साँस ली और वापस अपने कमरे में चले गए।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः