अपनी माँ के मना करने पर खुशबू ने कहा, “पर मम्मा मैं प्यार करती हूँ राहुल से।”
खुशबू के बड़े भाई और भाभी ने भी उसे बहुत समझाया कि वह ग़लत कर रही है। किंतु प्यार की राह पर कदम बढ़ा चुकी खुशबू अब किसी की बात मानने के लिए तैयार नहीं थी।
इसी बीच राहुल की ज़िद के कारण एक दिन मुरली और राधा खुशबू के माता-पिता से मिलने उनके घर पहुँचे। खुशबू के पापा अमित ने बड़े ही मान सम्मान के साथ उन्हें बुलाया और बिठाया।
तब मुरली ने बात को शुरू करते हुए कहा, “अमित जी बच्चे तो नहीं मान रहे हैं। आप जो कह रहे हैं वह ग़लत नहीं है हम समझते हैं लेकिन बच्चों की ख़ुशी के लिए हमें ही अपने क़दम आगे बढ़ाना पड़ेगा।”
“देखिए मुरली जी तकलीफ़ तो आपके परिवार को ही होने वाली है। हमारे घर से तो खुशबू चली जाएगी। आपके साथ तालमेल बिठाना उसके लिए बहुत मुश्किल होगा। वह बचपन से ही बहुत जिद्दी है। हम नहीं चाहते कि दो परिवारों की ख़ुशियाँ, सुख और चैन ख़त्म हो जाए, इसीलिये मना कर रहे हैं।”
निराश होते हुए मुरली ने कहा, “अमित जी आप लोगों का आशीर्वाद लिए बिना उसका गृह प्रवेश भी सुखदायी कहाँ होगा, ख़ैर जैसी भगवान की मर्ज़ी, अच्छा चलते हैं।”
उनके खड़े होते ही शीला ने कहा, “राधा प्लीज तुम बुरा मत मानना, इसी में दोनों परिवारों की भलाई है।”
मुरली और राधा के चले जाने के बाद अमित ने अपनी पत्नी शीला से कहा, “शीला, यह लोग काफ़ी सीधे-सादे, सुलझे हुए लग रहे हैं। राहुल उनका इकलौता बेटा है। मुझे डर है कि बेचारों को कहीं उनके बुढ़ापे में तकलीफ़ ना हो। हमें और कोशिश करके खुशबू को रोकना चाहिए। प्यार के कारण हो सकता है वह राहुल के साथ एडजस्ट कर भी ले लेकिन उसके माता-पिता के साथ वह तालमेल कभी नहीं बिठा पाएगी।”
खुशबू ने अपने पूरे परिवार की ख़ुशी को ताक पर रखकर राहुल से विवाह करने का पक्का इरादा कर लिया। खुशबू का पूरा परिवार इस विवाह के खिलाफ़ था परंतु खुशबू वयस्क थी उस पर जोर जबरदस्ती नहीं हो सकती थी।
आखिरकार अपने पूरे परिवार की मर्ज़ी के खिलाफ़ खुशबू और राहुल ने कोर्ट मैरिज कर ही ली। राहुल और खुशबू के अलावा इस विवाह से और कोई भी ख़ुश नहीं था। मुरली और राधा इसलिए ख़ुश नहीं थे कि खुशबू के माता-पिता इस विवाह का हिस्सा नहीं थे। उन्हें यह टीस खाये जा रही थी कि जो लड़की अपने माता-पिता की नहीं हुई, वह लड़की हमारी क्या होगी। इतने बड़े घर की लड़की क्या हमारे साथ ख़ुश रह पाएगी।
मुरली ने राधा से कहा, “भाग्य ना जाने हमें कौन से दिन दिखाने वाला है। यह सब ठीक नहीं हो रहा है राधा। अपने माता-पिता को दुःखी करके भला कौन ख़ुश रह पाया है।”
“हाँ तुम ठीक कह रहे हो मुरली इससे तो फिर माँ बाप ही मान जाते। जब लड़की कह रही थी कि वह सब एडजस्ट कर लेगी।”
“नहीं राधा तुम ग़लत सोच रही हो। माँ-बाप का निर्णय संतान के लिए कभी ग़लत नहीं हो सकता। वह अपनी बेटी को जानते हैं, वह जानते होंगे कि वह एडजस्ट नहीं कर पाएगी।”
“खैर छोड़ो, अब तो विवाह हो ही गया है। देखें भाग्य और भविष्य क्या-क्या करता है और हम से क्या करवाता है।”
विवाह के बाद खुशबू अपने पति के साथ अपनी ससुराल आ गई। बड़ा-सा बंगला छोड़कर छोटे से दो बेडरूम के घर में। जहाँ उसके घर में बड़े से बगीचे के सामने बड़ी-बड़ी कार खड़ी रहती थीं, वहाँ इस घर में फ़्लैट की पार्किंग में एक बाइक रखी दिखाई देती। खैर यह सब तो खुशबू जानती ही थी। यह सब कुछ तो वह भी कभी ना कभी प्राप्त कर ही लेगी; लेकिन खुशबू को यदि सबसे ज़्यादा तकलीफ़ थी, वह थी मुरली, राधा और दादी माँ की उपस्थिति। दादाजी तो पहले ही दुनिया छोड़ चुके थे। माता-पिता को नाराज़ करके खुशबू ने यह रिश्ता जोड़ा था इसलिए वहाँ से उसे कुछ भी नहीं मिला। वह थी भी बड़ी ही स्वाभिमानी इसलिए उसने कुछ मांगा भी नहीं।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः