ममता की परीक्षा - 101 राज कुमार कांदु द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ममता की परीक्षा - 101



साधना से बात करते हुए रमा जी बहुत भावुक गई थीं। साधना ने अपनेपन से उनके कंधे पर हाथ रखकर उन्हें दिलासा देते हुए कहा, "आंटी ! क्या पता जूही बहन के अभी तक न मिल पाने में भी ईश्वर का कोई राज छिपा हुआ हो। उसकी महिमा वही जाने। फिर भी एक बात जरूर कहूँगी, मेरा दिल कह रहा है कि जूही बहन आपको जरूर मिलेंगी, ..किसी दिन अचानक ! शायद कुदरत ने आपके लिए कोई सरप्राइज तजवीज कर रखा हो, क्योंकि सभी जानते हैं कि उसके घर देर है अंधेर नहीं। आपके इतने अच्छे कर्मों का आपको फल अवश्य मिलेगा। इतने लोगों की दुआएँ कभी बेकार नहीं जाएंगी। आपको न्याय अवश्य मिलेगा। कहते हैं न जिसे कानून से न्याय नहीं मिलता उसका इंसाफ कुदरत स्वयं करती है और जब कुदरत इंसाफ करने पर आती है तो उसके सामने बड़े से बड़े पर्वत भी चुटकियों में धराशायी हो जाते हैं। आप हौसला रखें। आपको न्याय अवश्य मिलेगा।"
तभी रमा जी की नजर दीवार पर लगी घड़ी पर गई। आठ बजने में पाँच मिनट बाकी थे।
उनके मुँह से निकल पड़ा, "अरे बाप रे ! इतना समय हो गया ? कुछ पता ही नहीं चला। चलो साधना, तुम भी चलो ! प्रार्थना का समय हो गया है। रोज सुबह आठ बजे प्रार्थना के साथ ही इस आश्रम में सभी आश्रमवासियों के दिन की शुरुआत होती है।"
कहने के साथ ही रमा अपनी कुर्सी से उठ कर मुख्य दरवाजे की तरफ बढ़ गई। दरवाजे के सामने ही एक बड़ा सा पीतल का घंटा लटक रहा था। रमा जी ने तीन बार वह घंटा बजाया। घंटे की आवाज पूरे परिसर में गूँज उठी।

साधना उनके पीछे ही खड़ी थी। घंटे की आवाज के साथ ही यहाँ वहाँ खड़ी महिलाएं प्रांगण में जमा हो गईं। पाँच मिनट के अंदर सभी महिलाएँ कतारों में खड़ी थीं और पाँच महिलाओं का समूह उनके सामने माइक पर प्रार्थना गा रहा था

'वह शक्ति हमें दो दयानिधय ,
कर्तव्य मार्ग पर डट जाएं ......'

उनका अनुशासन देखते ही बनता था। प्रार्थना के बाद समूह में खड़ी महिलाओं ने सावधान किया और फिर माइक पर राष्ट्रगीत गूँज उठा।

' जन गण मन अधिनायक जय हे .....'

कहने की जरूरत नहीं कि राष्ट्रगीत शुरू होने से पहले ही रमा व साधना भी उसके सम्मान में सावधान की मुद्रा में खड़ी हो गई थीं। राष्ट्रगीत के समापन के पश्चात सभी महिलाएं कतार में अपने अपने कमरों की तरफ बढ़ गईं और अपने दिए हुए कामों में पुनः मशगूल हो गईं।

रमा ने साधना की तरफ देखा, मुस्कुराई और फिर बोली, देखो साधना, यही हमारी छोटी सी दुनिया है और अब तुम्हारी भी! ये सारे लोग जो यहाँ पर हैं हमारे अपने हैं। सभी लोग अपनी रुचि और अपनी क्षमता तथा काबिलियत के आधार पर अपने लिए काम का चुनाव करने के लिए स्वतंत्र हैं। तुम्हें भी अपने लिए यहाँ चलने वाली गतिविधियों में से अपनी पसंद के अनुसार किसी एक काम का चुनाव करना होगा। आज तुम पूरा परिसर घूम कर यहाँ चलने वाली सभी गतिविधियों का जायजा ले लो और फिर अपने लिए किसी कार्य का चुनाव कर लो। कोई जल्दबाजी नहीं है। सोचसमझकर फैसला लेना और वह काम चुनना जिसे तुम आसानी से कर सको।"
कहकर रमा पुनः अपने दफ्तर में समा गई।

नन्हा अमर कब का आकर साधना की उँगली पकड़े खड़ा हो गया था।

"जी आंटी जी ! मैँ जरा अपनी इस दुनिया की खोजखबर लेकर अभी आती हूँ। तबतक आप आराम कीजिए ।" कहकर साधना अमर का हाथ थामे सीढ़ियों की तरफ बढ़ गई जो पहली मंजिल के कमरों की तरफ जाती थी।

लगभग आधा घंटे बाद साधना रमा के दफ्तर में जब दाखिल हुई रमा फाइलों में सिर झुकाए हुए थी।
कुर्सी पर बैठते हुए साधना बोली, "आंटी ! मैंने सब देख लिया है और सोच भी लिया है अपने लिए काम।"

"अच्छा ! क्या करना चाहती हो ?" कहते हुए रमा ने फाइलों से नजर हटाकर साधना के चेहरे पर गड़ा दी।

"आंटी, वैसे तो मैं यहाँ चल रहे किसी भी कार्य को बहुत अच्छी तरह से कर सकती हूँ। मेरा अब तक का जीवन गाँव में बिता हुआ है सो ये सभी कुटीर उद्योग के काम मुझे बहुत अच्छी तरह करने आते हैं। गाँवों में लड़कियाँ पढ़ाई में भले ही पीछे रह जाएं लेकिन सिलाई, कढ़ाई, रसोई , खेती के काम के साथ ही टोकरे बनाने या सूत कातने का काम उन्हें बखूबी सिखाया जाता है, लेकिन मैं यहाँ जरा लीक से हटकर कुछ करना चाहती हूँ यदि आपकी अनुमति मिले तो ....!" कहते हुए साधना ने उम्मीद भरी निगाहों से रमा की तरफ देखा।

"तुम कहना क्या चाहती हो ? खुलकर कहो! अब मुझे आंटी कहा है तो उसे दिल से मानो भी। मैं तुम्हारे हर फैसले में तुम्हारे साथ हूँ, क्योंकि मुझे यकीन है कि तुमने जो भी सोचा होगा सबकी बेहतरी के लिए ही सोचा होगा। बेखौफ होकर कहो।" रमा ने उसे उत्साहित करते हुए कहा।

"बहुत बहुत धन्यवाद आंटी ! मैं आपका दिल से सम्मान करती हूँ। आपने मुझ पर जो स्नेह व विश्वास दिखाया है मेरी पूरी कोशिश रहेगी कि मैं इसे बनाये रखूँ और आपके भरोसे पर खरी उतरूँ।"
साधना ने दोनों हाथ रमा के सामने जोड़ लिए और आगे बोली, "आज से यह महिला आश्रम ही मेरी पूरी दुनिया है और मैं आपसे वादा करती हूँ कि इसकी बेहतरी के लिए मैं अपनी जान लड़ा दूँगी। मैं आपको यह बताना चाह रही थी कि यहाँ इतनी महिलाएं रहती हैं। सभी शिक्षित हों ऐसा लगता नहीं। मैं चाहती हूँ कि इन्हें शिक्षित किया जाय। किसी भी समाज के विकास के लिए उनका जागरूक होना जरूरी है और जागरूकता का सबसे सशक्त माध्यम शिक्षा ही है।"

"बहुत अच्छी सोच है तुम्हारी ! लेकिन यहाँ तो समस्या ये है कि इन्हें पढ़ायेगा कौन ? अध्यापक रखना हमारे बजट से बाहर की बात है।" रमा ने अपनी चिंता जाहिर की।

"आंटी, पढ़ाने के लिए मैं हूँ न ! यहाँ हम सब एक परिवार की तरह हैं और जीवन में सफलता के लिए सबका शिक्षित होना जरूरी है। बस आपकी मंजूरी मिल जाय तो आगे सब मैं कर लूँगी।" साधना बोली।

" ठीक है, आज शाम को छुट्टी की घोषणा के साथ ही मैं इसके लिए भी ऐलान कर दूँगी।" कहने के साथ ही रमा ने साधना को अपने पीछे आने का इशारा किया।

जहाँ से सीढियाँ ऊपर को जाती थीं उसके बगल में ही एक बंद कमरे का ताला खोलकर उसमें प्रवेश करते हुए रमा बोली ,"साधना, आज से ये तुम्हारा कमरा है।"

साधना ने कमरे में प्रवेश करते हुए रमा का धन्यवाद अदा किया।

रमा ने आगे कहा, "अभी तुम नहा धो लो और आराम कर लो। दोपहर एक बजे खाने की घंटी बजती है। सबके साथ जाकर भोजनालय में भोजन कर लेना। शाम को मुझसे मिलना। आगे कैसे क्या करना है निर्धारित करेंगे।"

रमा चली गई थी। नन्हा अमर कभी कमरे को तो कभी साधना के मुख की तरफ देखकर मानो कुछ विचार कर रहा था।

साधना ने एक सरसरी नजर कमरे में डाली। यह एक छोटा सा कमरा था जिसमें एक तरफ एक छोटा सा बाथरूम बना हुआ था। एक कोने में एक पलँग थी जिसपर करीने से बिस्तर लगा हुआ था। छत पर एक पँखा लटक रहा था। कुल मिलाकर साधना को कमरा बहुत पसंद आया।

शाम को रमा से मिलने के बाद साधना ने अपनी योजना को अमली जामा पहनाने के लिये गहन विचार विमर्श किया और अगले दिन से ही वह शाम को काम से छूटने के बाद सभी महिलाओं को पढ़ाने लगी।

सभी महिलाओं ने उत्साह से साधना के इस कार्य का स्वागत किया। महिलाओं के उत्साह को देखते हुए रमा को भी साधना के फैसले पर गर्व महसूस होने लगा।

साधना के कहने पर रमा ने आसपास के गाँवों में प्राथमिक शिक्षा केन्द्र खोलने की घोषणा करवा दी।
विद्यमान संस्था की वजह से उसे सभी जरूरी सरकारी इजाजत बिना झंझट मिल गए और शुरू हो गई ' स्व. मोहन भंडारी प्राथमिक पाठशाला '।

क्रमशः