इरफ़ान ऋषि का अड्डा - 1 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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इरफ़ान ऋषि का अड्डा - 1

- यार सुन, आज आज रुक जा।
- पर क्यों..?
- मैं कह रहा हूं न कल तेरा काम आधा रह जायेगा।
- वो तो वैसे भी आधा ही रह जायेगा, अगर आज आधा निपटा लेंगे।
- अरे यार, मेरी बात समझ। आज करेंगे तो आज और कल, दो दिन में पूरा होगा। पर आज रहने दे, आराम कर ले, फ़िर भी कल पूरा हो जायेगा।
- यार तू भी जाने क्या तमाशा करवा रहा है, अब चाहे करो या मत करो, वो साला देवा तो पूरा दो दिन का किराया ही लेगा।
- लेने दे। दे देंगे। एक दिन का तेल तो बचेगा। ... और तेल ही क्यों, पसीना भी तो बचेगा।
आर्यन हंसा। फ़िर लापरवाही से बोला - जवानी में पसीना बचाएगा तो क्या बुढ़ापे में बहायेगा? ले, छोड़ दिया। अब क्या करेंगे बैठे- बैठे?
कह कर करण ने स्टार्ट खड़ा ट्रैक्टर बंद कर दिया और झटके से कूद कर नीचे उतर गया।
आर्यन उसी तरह मिट्टी में उकडूं बैठा अंगुली से ज़मीन पर कुछ लिख रहा था।
वह भी उठ खड़ा हुआ और दोनों पास ही बह रही नहर के समीप लगे हैंडपंप पर नहाने चल दिए।
गमछे को अंगुली में लपेट कर उससे कान खुजाता हुआ आर्यन करण को धीरे - धीरे बोल कर समझाने लगा कि उसने आज काम क्यों रुकवा दिया।
करण उसकी बात सुनते हुए आंखों को ऐसे मिचमिचा रहा था जैसे नशे में हो।
असल में नज़दीक की बस्ती में उन दोनों के दोस्त शाहरुख ने एक बड़ा सा प्लॉट खरीदा था। प्लॉट बरसों से खाली पड़ा होने के कारण पूरी बस्ती के लोग वहां कचरा डालते आ रहे थे, जिससे वहां गंदगी का अंबार सा लगा हुआ था।
शाहरुख ने उन्हें अपने किसी मिलने वाले से दो दिन के लिए एक ट्रैक्टर दिलवा दिया था ताकि वो जगह को साफ़ भी करदें और समतल भी।
वो उसी के लिए आए थे। आते - आते गली के एक दो लड़कों को और भी कहते आए थे कि वो मदद करने के लिए आ जाएं, दिहाड़ी मजदूरी दिलवा देंगे।
लेकिन काम शुरू करने से पहले ही आर्यन ने देखा कि प्लॉट पर पड़े कचरे में आधे से ज्यादा तो बोतलें हैं। तरह- तरह की छोटी - बड़ी बोतलें। इन पर ट्रैक्टर फिरेगा तो टूट- फूट कर कांचों का ढेर लग जायेगा। काम दूना फैलेगा। और आते- जातों के चोट लगने का जोखिम ऊपर से। इससे तो बेहतर है कि पहले किसी कबाड़ी को बुलाकर बोतलें उठवा लें, फिर बाकी बचे कचरे को घंटे भर में समेट देंगे। और ज़्यादा कुछ था ही क्या?
कबाड़ी भी कुछ न कुछ दे ही जायेगा। रुपए- पैसे नहीं तो दुआएं ही सही। और रुपए पैसे भी क्यों नहीं? लंबा चौड़ा अंबार लगा पड़ा है।
बात करण के दिमाग़ में भी बैठ गई। ट्रैक्टर रगड़ना ज़रूरी थोड़े ही है। नहा धो कर उसकी ट्रॉली में बैठ कर और कुछ नहीं तो ताश ही खेलेंगे! पत्ती का ज़माना न रहा तो क्या, रम्मी तो सबकी जेब के मोबाइल में थी। और मोबाइल... नाक सुड़कते बच्चों तक की जेब में रुमाल न सही, मोबाइल तो होता ही था।
हैंडपंप पर नहा कर दोनों बाल झटकारते हुए लौटे तब तक तीन- चार लड़के ट्रैक्टर को घेरे खड़े थे। एक - दो तो छुटभैये तमाशबीन थे और दो दिहाड़ी के लालच में आए हुए।
शाहरुख को सब जानते थे। रुपए देने में न कभी आनाकानी करता था और न कंजूसी। इसलिए उसके नाम पर एक बुलाओ तो दो चले आते थे।
दोनों मजदूर लड़के मुंह बाए देखते रह गए जब आर्यन और करण ट्रॉली में तौलिया बिछा कर खेलने बैठ गए। खेलने वालों से ज्यादा मुस्तैद देखने वाले। ट्रॉली आबाद हो गई। सब घेरा बना कर वहीं जम गए।
एक छोटू तो ट्रैक्टर के टायर पर लटक रहा था। आर्यन ने कुत्ते की तरह दुत्कारा। लेकिन लड़के पर उसकी बात का कोई असर नहीं हुआ क्योंकि एक बार हड़का कर वो तो फिर से खेल में व्यस्त हो गया था और छोटू बेखौफ।
देखते हुए थोड़ी देर के खेल से छोटू का जी उचाट हो गया और वह टायर पर से फिसलता हुआ नीचे कूद कर कचरे के ढेर में रमड़ने लगा। वह ढेर में नीचे झुक कर कुछ उठाने की कोशिश करता फिर फेंक देता। चारों ओर एक चक्कर लगा कर देख आया। एक बड़ी सुंदर सी बोतल उसके हाथ लगी। ज़्यादा पुरानी भी नहीं थी। अभी हाल ही में फेंकी गई होगी क्योंकि उसका चमचमाता हुआ रैपर तक अभी तक हटा नहीं था। किसी कीमती शराब की दिखाई देती थी।
छोटू उसे हाथ में उठा कर घर की ओर भाग गया।
मुश्किल से पंद्रह - बीस मिनट गुज़रे होंगे कि दो औरतें वहां चली आईं। एक तो शायद छोटू की मां ही रही होगी, और दूसरी उसकी पड़ोसन।
दोनों ने युद्ध - स्तर पर कचरे का मुआयना शुरू कर दिया और देखते - देखते एक टाट की बोरी में तरह- तरह की चीज़ें बीन - बटोर कर समेटी जाने लगीं। ढेर सारी तो छोटी- बड़ी पॉलिथिन की थैलियां निकलीं।
महिलाओं को देख कर एक- दो छोटे छोटे लड़के भी चले आए और कचरे की अच्छी- खासी खोजबीन शुरू हो गई।
क्या न था उस कचरे के ढेर में। वहां पड़ा सड़ रहा था तब तक सड़ रहा था, किसी का ध्यान न था मगर जब पता चला कि ये हटाया ही जाना है तो एकाएक सबके लिए कीमती हो गया। लूट लो जो मिले सो।
आते - आते पैरों से मची उथल- पुथल से कूढ़ा ऊपर नीचे हुआ तो दुर्गंध सी भी उठने लगी। अभी कुछ समय पहले तक तो छोटे बच्चे शौच- पेशाब के लिए भी वहां आकर बैठते ही थे। और बच्चे ही क्यों, मुंह - अंधेरे तो हाथ में बोतल या डिब्बा पकड़े कई बड़े- बूढ़े भी वहीं निपट जाते थे।
बीच में एक अभियान सा चला। टीवी, अखबार और रिक्शा- चालकों ने गली- गली सरकारी भाषा में आकर गुहार सी लगाई तब जाकर सड़क किनारे और खेत खलियानों में लोगों का बैठना जरा कम हुआ। कुछ एक घरों में तेजी से शौचालय बनते भी देखे गए।
खेल में मशगूल आर्यन और करण बीच- बीच में उचटती सी नज़र प्लॉट पर भी डाल लेते और दमादम कचरा बीनते लोगों को देख मन ही मन खुश ही होते कि उनका काम हो रहा है।
उनका ध्यान गया तब, जब चटाक की ज़ोरदार आवाज़ आई। जिसके थप्पड़ पड़ा बेचारा तिलमिला कर रह गया।
( ... जारी)