Confession - 20 Swati द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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Confession - 20

20

 

यश  ने गाड़ी  पूरी  स्पीड  से  दौड़ा दी। अब  गाड़ी  पर ब्रेक  सुधीर  के  घर पहुँचने  पर ही लगे।  सबकी सांस में सांस आई। यह सुधीरजी  शहर  से इतनी दूर  कैसे  रहते होंगे । अतुल ने थकी  आवाज़  के साथ  कहा।  सुधीर  का  घर  पेड़-पौधों  से घिरा हुआ है। बाहर  लगी प्लेट पर   लिखा  था, 'सुधीर  सिद्धार्थ  पटेल', यहाँ  एक अजीब  सी शांति  है, शुभु  ने चारों  ओर  देखते  हुए  कहा । यश   भी चारों  और  देखते  हुए  बोला, "मुझे  तो लगता  है  कि  यहाँ   पर कोई  हादसा  होकर  गुज़रा  है।  पता  नहीं,  हमसे मिलने  तक सुधीर जी ज़िंदा भी  है  या  नहीं? अतुल  ने यश  की  बात को  मानो ख़त्म  किया।  नहीं वो  बिलकुल  ज़िंदा  है, मैं  हवाओ  में  महसूस  कर सकता  हूँ । एंड्रू  के  चेहरे  के हाव-भाव  बता  रहे  है  कि  वह  उस प्रेत  शैतान  की आहट को  पहचान  चुके  है।  सब धीरे -धीरे  कदमो  से उनके  घर  की तरफ़  बढ़ने  लगे।  तभी किसी  की आवाज़  सुनकर  वह  चौंक  पड़े। पीछे  मुड़कर  देखा  तो  एक  पेड़  पर  चील  और  बाज़  दोनों बैठे  हैं । इन  दोनों पक्षियो  को कभी साथ   नहीं देखा  जाता । बड़े -बड़े  गमलो  से ढका  यह  दरवाज़ा। दरवाज़ा  काफ़ी  पुराना  है। बाहर  की कुण्डी पर जंग लगा हुआ  है । उन्होंने  घंटी  बजाई पर किसी  ने दरवाज़ा  नहीं  खोला। बार-बार  घंटी  बजाई  पर अब भी  दरवाज़ा  बंद  है । 

एक काम  करते  है, हाथ  से  दरवाज़ा  खटखटाते  है। पता  नहीं, अंदर  कोई  है  भी या  नहीं । अतुल  ने  जवाब  जानने  के लिए सबको  देखा  तो  फादर एंड्रू ने  हाँ  में  सिर  हिला दिया । तीनों  यहीं  सोच  रहे  है  कि कहीं  इस बार  भी वह  निराश न हो  जाए ।  अतुल  ने ज़ोर  से दरवाज़ा खटखटाया, अब  जाकर  दरवाज़ा  खुला  तो  सामने  देखा कि  अधेड़ उम्र से  ज़्यादा  का आदमी  कुरता -पजामा  पहने  हुए  खड़ा  है।  चेहरे पर  सफ़ेद  दाढ़ी  है । आँखों  में  मोटी  लेंस  का चश्मा  है । शारीरिक संरचना  से दुबले-पतले  है ।

 "आप लोग  कौन ?"

"नमस्ते  अंकल! क्या हम  अंदर  आ सकते  हैं?"  शुभु  ने हाथ  जोड़कर  पूछा।

पहले  तो  वो  कुछ देर खामोश  रहे, मगर  फ़िर  उन्होंने सिर  हिला दिया ।

चारों  अंदर आ गए । अंदर से घर  साधारण  है । ज्यादा  चीज़े  नहीं है । उन्होंने  उन्हें  सोफे  पर बैठने  का ईशारा  किया । पानी  लाने  के लिए घर  के घेरलू  नौकर  को बोला और अब  उनकी  तरफ़  देखकर  बोले, "आप  लोग कौन  और  यहाँ  कैसे ? "

"अंकल  मेरा  नाम  शुभांगी  है । मैं  अल्का  और शांतनु  की बेटी  हूँ ।" शुभु  ने थोड़ा  धीरे  से कहा ।  

'अल्का  और  शांतनु'  का  नाम  सुनते  ही उनकी  आँखें  बड़ी  हो गई । उनके  चेहरे   के हाव-भाव  बदल  गए । वह  एकदम  उठ  खड़े  हुए । नौकर  पानी  रखकर  चला  गया । तभी  उन्होंने  गहरी  सांस  ली  और  सोचकर  बोले, "सोचा  नहीं था  कि  तुमसे  कभी  मुलाकात  होगी । मैं  तो यह  सोच रहा  था कि  खैर ! छोड़ो !" उन्होंने  बात  वहीं  ख़त्म  कर दी । "बताए  न  आप क्या  सोच  रहे  थें  ?" शुभु  ने  ज़ोर  देकर पूछा। 

"कुछ  नहीं, बस  यहीं कि  तुम  लोग यह  शहर  छोड़कर  जा  चुके  होंगे ।" 

"हम  कहाँ  जाते ? हमारा  तो  कोई ख़ास  रिश्तेदार  भी  नहीं है ।" शुभु ने  उनकी  बात का जवाब  दिया । 

क्यों  तुम्हारे  नाना -नानी  अब नहीं  है ? 

नाना-नानी ? मम्मी  ने कभी  उनका  ज़िक्र  नहीं  किया।  कहाँ  कि  जब  मैं  छोटी  थी, वो  लोग  तभी  मेरे  मामा  के साथ  दुबई चले  गए  थे और मैंने  कभी मम्मी  को उनसे  बात  करते  नहीं  देखा ।

सुधीर  ने  फ़िर  कुछ सोचा और  बोले,"यहाँ  क्या  करने  आई  हो ? और  ये  सब  लोग ?"

"जी, यह  यश, अतुल  और फादर  एंड्रू।"  शुभु  ने सबका  परिचय  कराया ।

सुधीर  ने एक  निगाह  सब पर  डाली, मगर  तुम यहाँ  क्या करने आई  हो । 

मुझे पता  चला  है  कि  मेरे  पापा  किसी  एक्सीडेंट  में  नहीं  मरे बल्कि  उन्हें   शायद,,,,,, वह  बोलते  हुए  चुप हो  गई ।

"ये सब  अपनी  माँ  से पूछो, उसके  लिए यहाँ  आने की  ज़रूरत  नहीं थीं ।" सुधीर सोफे से उठ  खड़े  हो गए । शुभु  ने  उनका  ऐसा  व्यवहार  देखा  तो बोल पड़ी, मेरी  माँ अब नहीं  रही।  मरने  के बाद  उनकी  डायरी देखी  और  आपकी  पॉल  एंडरसन  पर लिखी  किताब पढ़ी इसलिए  यहाँ  चले  आए ।"

पॉल  एंडरसन  का नाम  सुनते  ही  उन्हें इतना  धक्का  पहुँचा  कि  वह  फ़िर  सोफे  पर  बैठ गए।

"जिस  बात  को तुम्हारी  माँ  ने नहीं  बताया  तो उसे  मैं  कैसे  बता  सकता  हूँ । तुम  भी अब अपने  जीवन  के बारे  में  सोचो  और  आगे  बढ़ो । पीछे  जाने का कोई  फायदा  नहीं है।|" वह  मुँह  फेरकर  खिड़की  की तरफ  देखने  लगे । 

ज़िंदा  बचेंगे  तो आगे  बढ़ेंगे  न  यह  आवाज़  एंड्रू  की  है । ये  बच्चे  बहुत  मुसीबत  में  है और  कितने  लोग  अपनी  जान  गँवा  चुके  है और  यह  बच्ची  शुभु  बड़ी  उम्मीद  लेकर  आपके  पास  आई  है । इसका  पूरा  हक़  बनता  है  कि  वो  जाने  सच क्या  है ।

सुधीर  ने फादर  एंड्रू  की तरफ़  देखकर  पूछा, "आप  इन  लोगों  के साथ  क्यों  आये  हैं ?" 

यश  ने कहा, "मैं  बताता  हूँ ।" यह  कहकर यश  ने पूरी  बात  सुधीर  को बता  दी । सारी  बात  सुनकर  सुधीर  का  गला  सूखने  लगा, उन्होंने  टेबल  पर रखा पानी  का गिलास  उठाया  और  बिना  रुके  सारा  पानी  पी  गए।

"सच  बड़ा  कड़वा  होता  है, शुभांगी" सुधीर  ने  उसे  देखते  हुए  कहा । 

"इतने अपनों  को खोने  के बाद, अब  क्या  थूको  और क्या   निगलो ? सब  एक  सा है, अंकल ।   आप बिना  किसी  संकोच  के मुझे  सब बताए  । "

"ठीक  है, फ़िर  सुनो !"

"बात  बाइस-तेइस  साल  पुरानी  है । अब  तो  मैं साल  गिनना  भी भूल  गया हूँ ।" उन्होंने  लम्बी  सांस  लेते हुए कहा  । फ़िर  आगे बोलना  शुरू  किया ।'"तुम्हारे  पापा  शांतनु  और मैं  अच्छे  दोस्त हुआ  करते  थे । कॉलेज  के  दिनों  से साथ  थें । मुझे  लिखने  का शौक  था, मैंने  इसी को अपना  प्रोफेशन बना  लिया  और तुम्हारे  पापा  बिज़नेस  से अच्छा  कमा  रहे थें । दोनों  अपनी  ज़िन्दगी  में  ऐसे  व्यस्त  हुए कि  काफी  लम्बे समय  तक  तो हमारी  कोई  बात  या मुलाकात  नहीं  हुई । फ़िर  एक  दिन  शांतनु  की शादी  का कार्ड  मिला  और  मैं अपनी  बीवी को लेकर  उसकी  शादी  में  गया  । वहाँ  जाकर  पता  चला  कि  तुम्हारे  पापा की  लव मैरिज  हो रही  है । मुझे  आज भी वो दिन  याद  है  उसने  मुझे  देखकर  गले  लगा लिया था  और खुश  होते  हुए  अपनी  बीवी  से मिलवाया  था। ........ सुधीर  की आँखों  के सामने  बाइस-तेइस  साल  पुरानी  तस्वीरें  ज़िंदा  हो गई । मानो  वह  उसी गुज़रे  हुए वक़्त  में  चले  गए  हो । उनके  होठ  बोल रहे  है, मगर  उनके प्राण  शांतनु  की  शादी  में  पहुँच गए  है।

"आखिर  तू  आ ही गया  मेरी  शादी  में, अगर  न आता  तो अपनी  दोस्ती  खत्म थी, समझ  ।"  शांतनु  ने सुधीर  को गले लगाते  हुए  कहा ।

"कैसे  नहीं  आता  यार ! मेरी  शादी  तो दूसरे  शहर  में  अचानक  हो गई  ।"  मैं  तुझे  बुला  नहीं  पाया । सुधीर  ने सफ़ाई  दी। 

कोई  नहीं, तू  अपनी  मैडम  को साथ  लाया  न  ? 'नमस्ते  भाभी ' शांतनु  ने हँसते  हुए  कहा ।

सुधीर  की बीवी  ने मुस्कुराकर  नमस्ते  का  जवाब  दिया । चल, अपनी  वाली  से मिलवाता  हूँ । यह  कहकर  शान्तनु  उसे खींचकर  ले गए और  वह  थोड़ी  देर  में  एक  प्यारी  सी  लड़की  जो दुल्हन  के जोड़े  में  खड़ी   शर्मा  रही  है, हाथ  जोड़कर  बोली, 'नमस्ते' इन्होने  आपके बारे   में  बताया  था । 

"क्यों  यार ! मेरी  क्या चुगली  कर रहा   था ।"  सुधीर  ने  कोनी  मारते  हुए  पूछा । "कुछ  नहीं, मैं  तो  इसे    बता  रहा  था  कि   मेरी  ज़िन्दगी  में  एक पागल  सिरफिरा  राइटर भी है।"  शांतनु अब दुल्हन  की तरफ देखकर बोला, "सुधीर  इनसे  मिल  यह  है, मेरी  ज़िन्दगी, मेरा इकलौता  प्यार 'नूरा'। 

नूरा  सचमुच  बेहद  खूबसूरत  है  । गहरी  नीली  आँखें, गोल  चेहरा कोई  देखे  तो देखता  रह  जाए ।  "भाभी,  आपने  कहाँ  से  इस  लंगूर  को पकड़  लिया।" सुधीर  ने व्यंग्य  किया । नूरा  हँसते  हुए  बोली, "अब  दिल  आया  गधे पर  तो  परा  क्या  चीज़  है ।" सुनकर  तीनों  हँसने  लगे ।

सुधीर  अब भी  बोले  जा रहे है  और सब  उनकी बातें  ध्यान  से सुन रहे हैं, पर  शुभु को समझ नहीं  आ रहा  है कि  सुधीर  कहना  क्या चाह  रहे  हैं, वह तो यही  समझती  आई  है कि उसकी  माँ  ही शांतनु  की पत्नी  है । सुधीर  ने शुभु  के चेहरे  को पढ़   लिया और कहने  लगे, "सुनती  जाओ, शुभांगी  तुम्हे तुम्हारे हर सवाल  का जवाब मिल जायेगा ।"

  "दिन बीतते  गए, शांतनु  और नूरा  दोनों अपनी  शादीशुदा  ज़िन्दगी  में  खुश  थें। मैं  और मेरी  पत्नी  अंजू  हम दोनों  उन लोगों  से मिलते  रहते । कभी-कभार  एक दूसरे  के घर  जाना  भी हो जाता  था । मैंने  देखा  था, शांतनु  नूरा  पर जान छिड़कता था । नूरा भी  यही  चाहती  थी  कि  शांतनु   उसके  सिवाय  किसी  और को नहीं  देखे  । शादी  के कुछ महीने  बाद  शांतनु  ने बताया  कि  वो  पिता  बनने  वाला है । दोनों  इस नन्हे  मेहमान  के आने  का इंतज़ार  करने  लगे । नूरा  को डॉक्टर  ने  कम्पलीट  बेडरेस्ट  बोल दिया  था। उसकी  देखभाल  के लिए  शांतनु  की  माँ  ने गॉंव  से  एक लड़की  भेजी ताकि  ठीक-ठाक  से  बच्चे  की डिलीवरी  हो जाये । शुरू  में  सब कुछ  ठीक  रहा  था, पर  एक दिन शांतनु  मेरे पास आया  और वो बहुत ही परेशां था । 

थोड़ी  देर सुधीर  शांत  रहे और फिर  अतीत  का वो पन्ना  खोले  लगे । जिसके  बारे  में  शुभु  ने सोचा भी नहीं होगा । 

"क्या  बात  है, शांतनु  ? बताता  क्यों  नहीं ? चार  चाय  पी चुका  है । बता  न, यार! क्या  बात  है  ? नूरा  भाभी  तो ठीक है ?"

हाँ , वो ठीक  है, अब  तो बच्चे  का जन्म  भी नज़दीक  है"  कहते  हुए  शांतनु रुक गए ?

"जब सबकुछ  ठीक है ? फ़िर  क्या  परेशानी  है ?"

मेरे  बहुत  कहने पर  शांतनु  ने मुझे  बताना  शुरू  किया  ।       

"यार ! वो लड़की  जिसे माँ  ने भेजा  था ।" 

अच्छा  वो, जिसे  पढ़ने  का बड़ा  शौक है और तू उसे  शायद  पढ़ा  भी रहा  है  । 

"हाँ, वही  यार ! मुझे  पता ही  नहीं चला  कि  कब  वो मेरे  इतने  करीब  आ गई  कि  हम  अपनी  मर्यादा  भूल  बैठे और  अब तो कई  बार  एक दूसरे  के साथ सम्बन्ध  बना चुके  हैं ।"  कहते  हुए  शांतनु  रुक गया   ।  उसके  चेहरे पर पछतावा साफ़ नज़र आ रहा है  । यह  सुनते ही  सुधीर के चेहरे  का रंग फीका  पड़  गया । उसने अपने लफ्ज़ो को  ढूंढ़कर  कहना शुरू  किया । "यार ! यह  तो ठीक नहीं  हुआ । तू  नूरा  भाभी  से इतना प्यार  करता था  और  ये सब  क्या  है ?" सुधीर  की आवाज़  में  गुस्सा  है ।

"मैं  नूरा  से अब भी बहुत प्यार  करता हूँ  और हमेशा  करूँगा । बस  मेरे  कदम  बहक गए या  यूँ  कह ले मैं  कमज़ोर पड़  गया। नूरा बेड  से उठती  नहीं  है।  प्रेगनेंसी  के कारण  थोड़ी  चिड़चड़ी  भी हो गई  है । उसके  तुनक मिज़ाज़  रैवये  के कारण दूरी  आ गई  थी । तब उस  लड़की  ने मुझसे  थोड़ी  हमदर्दी  दिखाई  और  फ़िर".,,,,,,कहते  हुए वो रुक गया । |"यार ! यह  नार्मल  होता है,  इससे  दूरिया  नहीं आनी  चाहिए । हाँ, मुझे  पता है  अब क्या करो ?"

"करना  क्या है, उस लड़की  को वापिस  भेज दे । बात  यहीं ख़त्म  हो जायेगी । मैं  भी कुछ नहीं  कहूँगा ।" सुधीर  ने शांतनु  के कंधे  पर हाथ  रखते हुए  कहा।  

कुछ  दिन  बाद   मैं  शांतनु  से मिलने  गया  । मैंने  देखा  कि  नूरा  भाभी  और शांतनु  दोनों  खिलखिलाकर  हंस रहे  थें । मुझे  तसल्ली  हुई  कि  सबकुछ ठीक  है  । वैसे  नूरा  की  हँसी  सबसे  अलग  थी । वह  जब  हँसती  थी  तो पूरा  घर  हँसता  था । 

अतुल  को  रिया  और शुभु  की माँ  की हँसी  याद  आ गई । याद  करते  ही वह  काँप  गया ।

सुधीर  ने फिर बोलना शुरू  किया । "मुझे  शांतनु  ने बताया   कि  सब  ठीक  है, मैंने  उसे  वापिस गॉंव  भेज दिया  है  ।"  अब यह  राज़  तुम्हें कभी  भी नूरा  को नहीं बताना ।" मैंने  उससे  कह दिया कि  "मैं  कभी भी  नूरा  को कुछ नहीं कहूंगा ।" मैं होने  वाले  बच्चे  की बधाई  देकर  घर  लौट  आया ।

एक  दिन  मुझे  नूरा  का फ़ोन  आया ।  फ़ोन  पर वो रोये  जा रही  थी ।

"सुधीर  आप जानते  थे  कि  शांतनु  मुझसे  बेवफाई  कर रहे  हैं,. फ़िर  भी आपने मुझे कभी  नहीं बताया ।" मैं यह  सुनकर सकते  में  आ गया । मैंने  उसे बहुत समझाया पर वह  नहीं  मानी और  उसने फ़ोन  काट  दिया।  मैंने  शांतनु  को फ़ोन  किया तो  उसने बताया  कि  वो नूरा  को लेकर  हॉस्पिटल  जा रहा है क्योंकि  मुझसे बात करने  के  बाद   वो बेहोश  हो गई  थीं।

मैं  भी हॉस्पिटल  पहुँचा । "शांतनु!  क्या हुआ  यार ?

"नूरा  को सब  पता चल  गया । उस लड़की  के माँ-बाप घर  आये थे । उसे  हमारे  घर  छोड़कर चले  गए । उन्होंने  ही नूरा  को सब  बता  दिया ।" यह  कहते  हुए  वह रोया  जा रहा है । "तू  रो  मत,  सब  ठीक  हो जायेगा । उस  लड़की  की शादी  करवा  देंगे । नूरा  भाभी  से   मैं  बात  करूँगा ।" मैंने  उसे दिलासा  देते हुए  कहा । "वो  लड़की  माँ  बनने  वाली  है ।" शांतनु  ने मेरी आँखों  में  देखते हुए बताया ।

तब  मुझे  लगा कि  सचमुच शांतनु  की ज़िन्दगी  में  कोई  तूफान  आ गया  है ।"जानती  हो,  शुभांगी  वो लड़की  कौन थी ? सुधीर  ने  शुभु  को देखते हुए  कहा। "तुम्हारी  माँ  अल्का ।"