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सभी ने फादर एंड्रू के घर की घंटी बजाई, दो-चार बार दरवाज़ा खटखटाने पर उन्होंने दरवाज़ा खोला । फादर एंड्रू 55-60 के आसपास है । उनकी सफ़ेद दाढ़ी और काले भूरे बाल है । आँखों का रंग भी भूरा है । सफ़ेद पोशाक पहने हुए फादर के गले में चर्च का लॉकेट है । तुम लोग कौन ? और इतनी रात को क्या कर रहे हो ? उन्होंने सवाल किया । फादर हम बहुत मुसीबत में है । प्लीज हमारी मदद कीजिये । शुभु ने विनय करते हुए कहा । फादर ने चारों को देखा और फ़िर उन सबको अंदर बुला लिया । बताओ बच्चो ? क्या बात है ? यहाँ बैठ जाओ। चारों सोफ़े पर बैठ गए । उनको ऐसा डरा और घबराया हुआ देखकर उन्होंने पानी मंगवाया । सबने उनकी ओर उम्मीद भरी नज़रों से देखा और फ़िर पानी पिया । जब उन्हें लगा कि वो बात करने की हालत में है तो शुभु ने बोलना शुरू किया । फादर कोई प्रेत या डरावनी रूह हमारे पीछे पड़ गई है । मैं कुछ समझा नहीं । खुलकर बताओ कि हुआ क्या है । अब अतुल भी बोल पड़ा और उसने शुरू से लेकर अब तक की सारी कहानी सुना दी ।
फादर एंड्रू ने चारों को गौर से देखा और सोच में पड़ गए । समझ नहीं आ रहा कि तुम लोगों से क्या कहो, तुमने पॉल एंडरसन की मदद की । उसके लिए तुम्हारी तारीफ़ करो या तुम्हारी बेवकूफी की वजह से इतने लोगों की जान चली गई उसके लिए तुम्हे डाट लगाओ । यह बोलते हुए फादर उनके सामने वाले सोफे पर बैठ गए । हमें पता है कि हमसे कोई न कोई गलती हो गई है, मगर क्या वो समझ नहीं आ रहा है। शुभु ने झिझकते हुए कहा । तुम्हें पॉल एंडरसन के यहाँ जाने से पहले मुझसे बात करनी चाहिए थी । शायद तब मैं तुम्हारी मदद कर पाता, मगर अब तो बहुत मुश्किल है । उन्होंने साफ जवाब दिया । सबका मुँह उतर गया । सब एक दूसरे की शक्ल देखने लग गए । तो क्या आप हमारे लिए कुछ नहीं कर सकते ? यश का सवाल है । देखो, जो तुम्हारे पीछे पड़ा है, वह कौन है । यह जानना जरुरी है । तभी कुछ किया जा सकता है । एंड्रू ने यह कहते हुए कोई किताब उठाई और कुछ बोलना शुरू कर दिया । उन्हें इस तरह ध्यान करते देखकर सब खामोश हो गए । मगर विशाल को प्यास लग रही है । वह किचन में पानी की तलाश में चला गया ।
थोड़ी देर बाद फादर एंड्रू ने आँखें खोली और कहा कि उसका कोई तुमसे सम्बन्ध है, जिसके चलते वह तुम्हारे पीछे है । तो इसका मतलब की सागर, अनन्या ये लोग हमारे पीछे नहीं है । अतुल ने शुभु को देखते हुए सवाल किया । नही, वो लोग तुम्हारे पीछे नहीं है। यह कोई और ही है । जो शुरू से लेकर अब तक तुम्हारे पीछे है, और तबसे है, जबसे तुम लोग इस प्रोजेक्ट से जुड़े हो । आप कहना चाहते है कि पॉल एंडरसन ने हमे कभी भी परेशान नहीं किया । हाँ, नहीं किया, एंडरसन और तुम्हारे दोस्त तो उसके हाथो की कठपुतली थें । एंडरसन तो तुम्हारे ज़रिए खुद उस से छुटकारा पाना चाहते थें। तुम्हारे साथ जों कुछ हुआ या हो रहा है । वह सब वही कर रहा है । मगर वह कौन है और हमारे पीछे क्यों है ? शुभु एंड्रू की बात सुनकर बेचैन हो गई । मैं उसे बुलाने की कोशिश करता हूँ, अगर वो आया तो खुद ही बता देगा । कहकर एंड्रू ने कमरे की लाइट डिम की और अपनी किताब से देखकर कुछ पढ़ने लगे । यार ! यह विशाल कहाँ रह गया । कुआँ खोदने गया है क्या । अतुल ने इधर -उधर देखते हुए कहा । मैं देखकर आओ उसे ? यश जाने के लिए खड़ा हो गया । मगर फादर ने उसे बैठने का ईशारा किया और वो तीनों वही बैठ एकसाथ गए। वे ध्यान से फादर को देख रहे हैं । वे बड़े ध्यान से उस किताब से कुछ बोलते हुए अपने गले के क्रॉस के लॉकेट पर हाथ रखे हुए हैं ।
पता नहीं क्या होने वाला है, अगर फ़िर कोई अनहोनी घटित हो गई तो हम लोग गए काम से । अतुल की आवाज़ में डर है। तभी फादर एंड्रू ने आंखें खोली और शुभांगी की ओर देखते हुए बोले, तुम्हारे घर में जो किताब है उसमे इस प्रेत का सच है । जाओ और जाकर वो किताब ले आओ। उसी से कोई रास्ता निकल सकेगा । सबने एंड्रू की बात सुनी और एक दूसरे का मुँह देखने लगे । ठीक है. फादर मैं लेकर आती हूँ । कहकर वो उठ खड़ी हुई । क्या हम कॉलेज की लाइब्रेरी से वो किताब नहीं ला सकते । यश ने पूछा । कहीं से भी किताब ले आओ, खतरा तो दोनों तरफ है। बस वक़्त का ध्यान रखना । कल दोपहर बारह बजे से पहले किताब ले आना । सब जाने के लिए खड़े हुए तो उन्हें विशाल की याद आई । उसे पूरे घर में खोजा पर वह कहीं नहीं मिला । फादर एंड्रू ने बस इतना ही कहा कि "तुम्हें हर किसी से सावधान रहने की ज़रूरत है और यह रख लो। यह गोल कॉइन तुम्हारी रक्षा करेगा। सबने वो कॉइन रख लिया ।
एंड्रू के घर से निकल वह सोचने लगे कि अब क्या किया जाए । सुबह के छह बज रहे है । यह अचानक से विशाल कहाँ गायब हो गया । अतुल ने इधर-उधर देखते हुए कहा । कहीं उसे कुछ हो तो नहीं गया । यश ने घबराकर कहा । मुझे उसकी चिंता हो रही है और डर भी लग रहा है । अतुल ठीक कह रहा है, पर अभी हमें वो किताब लानी होगी। तभी हम उसे बचा पाएंगे । शुभु ने अपनी बात कहीं । मैं घर जाकर किताब ले आती हूँ । नहीं शुभु, तुम अकेले नहीं जाऊँगी । जहॉ भी जाना है हम सब साथ चलेंगे । मेरी माँ मुझे कोई नुकसान नहीं पहुँचाएगी । शुभु, अभी आंटी को खुद नहीं पता कि वो क्या कर रही है । इसलिए रिस्क लेना ठीक नहीं है । यश ने उसे रोकते हुए कहा । एक काम करते है, लाइब्रेरी से ले आते है । कॉलेज की लाइब्रेरी सुबह आठ बजे खुल जाती है । वहाँ ढूँढ़नी पड़ेगी और अब पता नहीं, वहाँ वो किताब है भी या नहीं। मैं तो पहले ही वहाँ जाकर मरते-मरते बचा हूँ । अतुल गंभीर होते हुए बोला । घर ही चलते है, शुभु ने अतुल की बात सुनकर कहा। तीनों घर का सोचकर गाड़ी की तरफ़ बढ़ने लगे । गाड़ी में विशाल को बैठा देखकर वे हैरान हो गए । "तू यहाँ क्या कर रहा है?अंदर से कहाँ चला गया था ।" पता नहीं यार ! बहुत प्यास लग रही थी और अंदर कुछ अच्छा नहीं लगा रहा था इसलिए बाहर आ गया । अब चले ? सबने उसकी बात सुनी और सब गाड़ी में बैठ गये । "शुभु के घर चलना है ।" गाड़ी शुभु के घर के पास आकर रुकी । तीनों अंदर जाने को तैयार हो गए । क्यों विशाल, तू नहीं चलेगा । नहीं, मैं नहीं जा रहा । मैं गाड़ी में बैठकर तुम लोगों का इंतज़ार करता हूँ। कोई बाहर भी तुम लोगों को भगाने के लिए तैयार रहना चाहिए । ठीक है , तू यही रुक । कहकर शुभु , यश और अतुल तीनों घर के अंदर चले गए।
दरवाज़ा खुला है । शुभु की माँ खाना बनाने में लगी हुई है । "अरे ! शुभू तुम लोग आ गए । मुझे तो लगा कि तुम अभी और अपने दोस्तों के साथ घूमूंगी । अल्का ने खाने का सामान टेबल पर रखते हुए कहा । माँ आप ठीक तो है न ? हाँ, मुझे क्या हुआ है ? मैं तो बिलकुल ठीक हूँ । तुम अपने दोस्तों के साथ खाना खाने के लिए बैठो । सबने एक दूसरे का मुँह देखा पर कोई कुछ नहीं बोला । शुभु ने दोनों को ईशारा किया और वो दोनों कमरे में जाने के लिए उसके पीछे हो लिए । माँ, हम लोग मेरे रूम में जा रहे हैं । तीनों शुभु के कमरे में पहुँच गए और शुभु ने अलमारी के ऊपर से बैग निकाला । बैग के अंदर पॉल एंडरसन की किताब, वीडियो कैसेट और बाबा का एंट्री रजिस्टर है । शुभु ने पूरा बैग ही उठा लिया । बैग उठाते हुए वे नीचे आ गए । मम्मी आप खाना शुरू करो। हम सब अभी थोड़ी देर में आते हैं । कहते हुए शुभु और उसके दोस्त जाने को हुए तो एक आवाज़ सुनकर चौक गए । "ज़िंदा बचोगे तो आओंगे न" पीछे मुड़कर देखा तो अलका के चेहरे का रंग बदल गया, उसकी आंखें गहरी नीली हो चुकी है । वो इतनी डरावनी लग रही है कि उसे ऐसा देखकर तीनों के होश उड़ गए हैं । वे भागने को हुए, मगर दरवाज़े पर अल्का पहुँच गई । वे जहाँ -जहाँ भाग रहे है, वहाँ पर अल्का पहुँचती जा रही है । उसकी हँसी उन्हें और डरा रही है ।
उसने अतुल और यश को मारने के लिए हाथ लम्बे किये पर वे पीछे हो गए । मगर उसके हाथ और लम्बे होते गए । एक हाथ से उसने अतुल को पकड़ा और ज़मीन पर दे पटका । उसकी चीख निकल गई। अब उसने यश के साथ भी ऐसा किया । तभी शुभु के हाथ से बैग छीन लिया गया । बैग किचन में जलती आग पर फ़ेंक दिया गया । शुभु भागकर वहाँ पहुँची और बैग को जलने से बचाने लगी । मगर आधे से ज़्यादा बैग जल चुका है । उसने गैस की फ्लेम बंद की और बैग उठा लिया । तभी उसके हाथों ने अतुल और यश की गर्दन को पकड़ लिया । शुभु ज़ोर से चिल्लाई । "माँ इन्हें छोड़ दो ।" मगर उसकी इस आवाज़ का उस पर कोई असर नहीं हुआ । उन दोनों की आवाज़ गले में अटक गई । एक मिनट की देरी और उनकी जान जा सकती है । एकदम से उसे याद आया कि अतुल और यश की जेब में कॉइन है । उसने पीछे के पॉकेट से कॉइन निकाला और अपनी प्रेत बनी माँ के सामने ला दिया । गर्दन की पकड़ ढीली हो गई । उसने उन दोनों को छोड़ दिया पर यह क्या! अब वह बहुत गुस्से में है । वे ज़ोर से गुर्राई और उसने खुद के मुँह पर चाटे मारने शुरू कर दिए । इतने चाटे मारे कि मुँह में से खून निकलने लगा । किसी की समझ में नहीं आ रहा है कि आख़िर हो क्या रहा है । "मुझे मत मारो, "अब यह आवाज़ अल्का की है । " मेरी माँ को क्यों मार रहे हो ? उसने क्या बिगाड़ा है, तुम्हारा ।" अब अपनी माँ को खुद से पिटता देखकर शुभु आगे बढ़ी ।
"छोड़ दो, मेरी माँ को " । तभी शुभु को ज़ोर का झटका लगा, वह दीवार पर जा गिरी । यश उसकी ओर लपका । पर वो प्रेत अलका को खींचते हुए ऊपर ले गया । शुभु उठी और उसके पीछे भागी । अतुल और यश भी पीछे हो लिए । प्रेत अल्का को छत पर ले गया । माँ ! माँ ! शुभु भाग जा यहाँ से । भाग शुभु । माँ ! नहीं मैं तुम्हे छोड़कर कही नहीं जाऊँगी । तभी अल्का के गले में रस्सी बंध गई। वह दर्द से चिल्ला रही है । "मेरी बेटी!मेरी बेटी! शुभु भाग यहाँ से " वह बोले जा रही है पर रस्सी बहुत बुरी तरह उसके गले में कसती जा रही है । फिर उस प्रेत ने जो उन्हें अभी तक नज़र नहीं आ रहा है । मगर उसके होने का एहसास उन्हें हो गया है। उसने अल्का को हवा में ऊपर की ओर खींचा और फ़िर नीचे गिरा दिया । माँ !!! शुभु ज़ोर से बोली । अब उसकी माँ लहूलुहान हो चुकी है । माँ ! माँ ! शुभु माँ के पास गई । मगर उसने कोई जवाब नहीं दिया। उसकी आंखें खुली है। गले में रस्सी है । मगर उसकी सांसें रुक चुकी है और चारों तरफ के सन्नाटे को देखते हुए लग रहा है कि वह प्रेत अपना काम करके जा चुका है। शुभु पागलों की तरह रो रही है । यश उसे सँभालने में लगा हुआ है । अतुल की आँखों में भी आँसू आ गए । शुभु अपनी माँ के मरे हुए शरीर से लिपटते हुए बार -बार बोले जा रही है । "ये सब मेरी वजह से हुआ है । आखिर सब मेरा कसूर है । मैंने ही अपनी माँ को मार डाला है। " अतुल से यह देखा नहीं जा रहा है, वह टहलता हुआ वहाँ से हटने लगा । काश ! हम यह प्रोजेक्ट न करते तो शायद आज आंटी ज़िंदा होती । यही सब सोचते और डरते हुए उसने छत से नीचे झाँककर देखा तो विशाल अब भी गाड़ी के अंदर ही बैठा हुआ है और उसे देखकर ऐसा लग रहा है कि उसके गले में बहुत दर्द हो रहा है । उसने अपना गला पकड़ा हुआ है ।