"आप किसी भी लड़की से शादी करने को तैयार थे जो भी आप में इंटरेस्टेड हो, यह जानते हुए भी की आप उसे अपनी पत्नी का दर्ज़ा कभी नही देंगे। की वोह बस फैमिली और सोसाइटी के लिए ही होगी और कुछ नही। क्या उस वक्त आप ऐसा नही सोचते की आप अपने अच्छे दोस्त के साथ ऐसी नाइंसाफी नहीं कर सकते? आपको मेरे लिए भी बुरा लगा था, लेकिन अपने भाई को वोह देने के बाद जो वोह चाहता था। आपने मुझसे पहले अहमियत अपने भाई को दी क्योंकि उस वक्त मैं आपके लिए इतनी इंपोर्टेंट नही थी। मैने आपसे शादी के लिए इसलिए हां की क्योंकि मैं आपसे गुस्सा थी यह सब जानने के बाद भी। मैने आपको सालों से नही देखा था और मैं नही जानती थी की अब आप किस तरह के इंसान बन गए हैं। मैं अपनी दी के भविष्य के लिए आप पर भरोसा नही कर सकती थी और इसलिए आपसे शादी करने के लिए हां करदी। मेरे लिए यह प्योर गुस्सा था जो की मुझे उस दिन बढ़ावा दिया। और आपके लिए मैं कोई मायने नहीं रखती थी इसलिए आपने मुझसे शादी की। अगर आप मुझे अपने दोस्त की तरह पहचानते, तब आप इस शादी के बारे में एक बार जरूर सोचते, आप जरूर शादी के लिए हां नही करते। और ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ। अगर मुझे यह यकीन होता की आप अभी भी एक अच्छे इंसान हैं, और किसी को मेरी दी और जीजू की जिंदगी खराब नही करने देंगे, मैं आप के साथ कोई और रास्ता ढूंढने में सहयोग देती ना की शादी करती। बस सिंपल। याद कीजिए क्या हुआ था, जो हुआ था उसके पीछे कारण था। मुझे अब अपनी जिंदगी से कोई पछतावा कोई शिकायत नहीं है। अब आप हैं मेरी जिंदगी में, मुझे कोई फर्क नही पड़ता पास्ट में क्या हुआ था। मैने जो निर्णय लिया वोह सही क्या बल्कि सबसे अच्छा साबित हुआ और आप मेरे साथ हैं, मुझे तोह खुशी है की उस दिन मैं गुस्सा थी नही तोह मैं आपको खो देती।" अमायरा ने समझाया और कबीर ने बस सिर हिला दिया। उसे भी जो अमायरा समझा रही थी वोह सेंसिबल लग रहा था। क्या वोह हमेशा से ही इतनी सेंसिबल और अच्छे दिल की थी? कैसे कबीर ने कभी उसे नोटिस ही नही किया?
"और अगर आप अभी भी उसी सवाल पर अटके हुए हैं, तोह जाइए खुद इसका जवाब ढूंढिए।" अमायरा ने प्यार से धीरे से कहा और कबीर ने ऑलमोस्ट उसकी कही बात मिस कर दी। लगभग, ना की पूरी बात।
"इसका मतलब कोई तो कारण है। तोह तुम मुझे बता क्यों नही देती?"
"शायद कोई कारण ना भी हो। शायद मुझे नही बताना हो। एक औरत कुछ सीक्रेट्स रख सकती है।" अमायरा तिरछा मुस्कुरा गई।
"मुझे चैलेंज मत करो अमायरा। मुझे अच्छे से पता है की मुझे अब जवाब कैसे पता करना है।"
"तोह फिर कीजिए शुरुवात। शायद कोई कारण हो, अब यह आप पर है की आप कैसे पता लगाते है। कैसे करोगे, यह आप जानो। गुड लक।" अमायरा ने शैतानी हँसी हँसते हुए कहा और कबीर को पता था की यह इतना आसान नहीं होने वाला।
"मैं जल्द ही पता लगा लूंगा। और तुम देखना।"
"इतनी जल्दी क्या है मिस्टर मैहरा? हमे पूरी जिंदगी एक साथ रहना है। और किसी ने मुझसे कहा था की अपने हसबैंड को किसी न किसी काम में व्यस्त रखना अच्छा होता है, ताकि वोह आवारा या भटक ना जाए। शायद यह मेरा षड्यंत्र हो आप को किसी चीज़ में बांधे रखना।"
"तुम्हे मुझे बांधे रखने के लिए कोई षड्यंत्र करने की जरूरत नहीं है। मैं पहले से ही तुम पर फिदा हूं, जिंदगी भर के लिए। और वैसे भी क्या तुम्हे किसी ने यह नहीं बताया है कि अगर तुम्हें षड्यंत्र करना भी है तो अपने पति के सामने यह नहीं जाहिर नहीं करना चाहिए, सवाल के रूप में? इससे तुम्हारा रचा हुआ सारा षड्यंत्र बेकार हो जाएगा।"
"अच्छा ऐसा है क्या? वैसे, मैं यह फ्यूचर के लिए याद रखूंगी।" अमायरा कबीर को देख कर मुस्कुराने लगी। और कबीर जानता था कि अमायरा कोई भी ट्रिक आजमा ले या ना करें कबीर उसके सामने हमेशा एक कठपुतली की तरह ही रहेगा जिससे वह जैसे चाहे नचा सकती है।
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अगले दिन पूरा मैहरा परिवार अब फ्लाइट से मुंबई पहुंच चुका था। अब सब एयरपोर्ट से घर जाने के लिए अलग गाड़ी में बैठ रहें थे अपनी नई नवेली बहु के साथ। कबीर अपनी गाड़ी की तरफ जाने लगा और अमायरा को भी इशारा किया आने का। कबीर ने तुरंत ड्राइवर से गाड़ी की चाबी ली और उससे कुछ बात की और फिर गाड़ी की तरफ चला गया। कबीर ने ड्राइविंग सीट पर बैठने से पहले अमायरा को पैसेंजर सीट पर बैठने का इशारा किया। उसने बिना किसी का इंतजार किए और उन्हे कुछ बताए अमायरा को अकेले लिए गाड़ी आगे बढ़ा दी और अमायरा को चौका दिया।
"क्या? क्या कर रहें हैं आप? आपने किसी के बिना गाड़ी क्यों आगे बढ़ा दी? और धर्मेश का क्या होगा? वोह कैसे आएगा अब?"
"तुम्हे मेरे साथ अकेले होने के लिए खुश होना चाहिए ना की ड्राइवर की चिंता।"
"इसका क्या मतलब है? मैं तो बस आपसे यह पूछ रही हूं की हम घर अकेले क्यों जा रहे हैं। हमारी गाड़ी में जगह थी और कोई और भी आ सकता था।"
"हम घर नही जा रहें हैं।" कबीर ने एक छोटा सा जवाब दे दिया, वोह डिटेल ने नही बताना चाहता था।
"घर नही जा रहें हैं? लेकिन क्यूं?" अमायरा ने पूछा, वोह कन्फ्यूज्ड थी।
"क्योंकि इस वक्त हम कहीं और जा रहें हैं।"
"पर....क्या घर में सबको पता है?"
"नही।"
"तोह हम अकेले क्यों जा रहें हैं? और कहां जा रहे हैं? आपको पता है ना की हमे घर पहुँचना था सुहाना की घृहप्रवेश की रस्म के लिए।"
"मॉम हैं, नमिता मॉम हैं, इशिता है, सब मिलकर संभाल लेंगे। यह जरूरी नही है की तुम हर जगह हर वक्त रहो।"
"आप यह क्या कह रहें हैं? और आपको पता है की अब हमारी फैमिली क्या सोचेगी हमें इस तरह से गायब देख कर? वोह सोचेंगे की हम भाग गए और हमे किसी की परवाह नही है। ओह गॉड। आप को यह सब क्या और क्यों करने की जरूरत थी कबीर? अब मैं सब से क्या कहूंगी?" अमायरा घबराने लगी थी।
"अगर मैं इस वक्त ड्राइविंग नही कर रहा होता, तोह मुझे तुम्हारा मुंह बंद करने का सबसे अच्छा तरीका आता है।" कबीर ने बेपरवाही से कहा और अमायरा शर्मा गई। उसे वोह सारे किसीस याद आ गए जो उन दोनो के बीच हुए थे उसे चुप कराने के लिए।
"मैं बस यह जानना चाहती हूं की हम कहां जा रहे हैं।"
"तुम्हे पता चल जाएगा। अब अगर तुम नही चाहती की मैं तुम्हे अभी इसी वक्त किस करूं, बीच ट्रैफिक में, तोह कुछ देर चुप बैठो।" कबीर ने जबरदस्ती कहा और अमायरा एक समझदार इंसान की तरह चुपचाप बैठ गई। जबकि अमायरा के मन में सिर्फ यही सवाल चल रहा था की वह लोग जा कहां रहे हैं और क्यों जा रहे हैं। उसकी सोच को विराम तब लगा जब कबीर ने एक जगह पर आकर गाड़ी रोक दी।
"हम पहुंच गए हैं।" कबीर ने कहा।
"तोह? जब तक मुझे पता ही नहीं चलेगा कि हम कहां हैं और क्यों है, तब तक मैं क्या करूं जानकर कि हम पहुंच गए हैं।" अमायरा का यूं मुंह फुलाना कबीर को बहुत क्यूट लग रहा था। वोह वह गाड़ी से उतरा और दूसरी साइड आकर अमायरा को भी गाड़ी से नीचे उतारा। वह उसे बड़ी-बड़ी सीढ़ियों की तरफ ले जाने लगा।
"हम यहां मंदिर क्यों आए हैं?" अमायरा ने पूछा जब वह सीढ़ियों से होते हुए सबसे ऊपर की तरफ पहुंच गई।
"आज कौन सा दिन है अमायरा?"
"फ्राइडे।"
"नही। ऐसे नही। आज ही के दिन पास्ट में क्या हुआ था, क्या तुम्हें याद है?" कबीर ने पूछा लेकिन अमायरा अभी भी कंफ्यूजन में ही थी। उसे बिल्कुल भी याद नहीं आ रहा था कि आज के दिन पहले क्या हुआ था।
"क्या हुआ था? ना आप का बर्थडे है और ना ही मेरा बर्थडे है। हमारी वेडिंग एनिवर्सरी भी अगले महीने है। आज कौन सा स्पेशल डे है फिर? अमायरा ने सोचते हुए पूछा।
"हम मिले थे एक साल पहले शादी के बाद डिस्कस करने के लिए। वोह दिन जब मैंने बहुत ही बेरुखी से बर्ताव किया था और तुम बहुत गुस्से में थी।" कबीर ने याद दिलाया और अमायरा बहुत सरप्राईज हो गई उस दिन को याद कर के की यह सब कबीर को याद था।
"सच में? आज ही का दिन था? और आपको याद भी है।"
"हम्मम। एक साल हो गया उस दिन को जिस दिन तुमने मुझसे शादी करने को हां कहा था, एक साल हो गया उस दिन को जब तुमने मेरी बनने के लिए हां कहा था, एक साल हो गया उस दिन को जब मेरी किस्मत फिर एक बार मुझ पर मुस्कुराई थी।"
"मैं....मुझे समझ नही आ रहा क्या कहूं। आई एम सॉरी मुझे तोह याद ही नहीं था।"
"तुम्हे सॉरी कहने की कोई जरूरत नही है। मैं बताता हूं की तुम्हे क्या कहना चाहिए।"
"क्या?" अमायरा ने उत्सुकता से पूछा।
"हां कह दो।" कबीर ने जवाब दिया।
"क्या? हां, किस लिए?"
"मुझसे शादी करने के लिए।" कबीर ने कहा।
"आप यह क्या बात कर रहें हैं? आपसे शादी? क्या हम पहले से शादी शुदा नही हैं?"
"हम हैं। एक साल पहले हम दोनो अपने परिवार की वजह से शादी करने के लिए तैयार हुए थे। हमने उनके लिए शादी की थी, बिना इसमें हमारी खुशी के। उस दिन तोह तुम्हारे दिमाग बस यही चल रहा होगा की तुम्हारी खुशियां हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो चुकी हैं। आज मैं सब कुछ बदलना चाहता हूं। आज मैं तुमसे पूछना चाहता हूं की क्या तुम मुझसे शादी करोगी? फिर के बार। आज अभी यहीं। कोई गवाह कोई साक्षी नही होगा, बस तुम और मैं?"
"पर क्यूं?" अमायरा भावुक होने लगी थी।
"क्योंकि हमने साहिल की शादी में सारी रस्में ऐसे निभाई हैं जैसे की वोह हमारी शादी हो। तोह उसमे सबसे जरूरी रस्म हम कैसे छोड़ दें? हम अग्नि के सात फेरों क्यों ना ले? हम एक दूसरे को वोह सात वचन क्यों ना दे जो की फेरे लेते वक्त दी जाती है जिसमे अग्नि उन वचनों को गवाह होती है? मैं कैसे तुम्हारी मांग में सिंदूर भरना मिस कर दूं, जबकि इस बार सारी रस्में में अपने दिल से निभा रहा हूं?" कबीर ने उसकी आंखों में देखते हुए कहा और देखा की अमायरा की आंखों में आंसू भर आए हैं।
"और इसलिए भी क्योंकि मैने तुम्हारे चेहरे पर वोह खुशी कभी नही देखी जो की एक दुल्हन के चेहरे पर होती है। जिस दिन हमने शादी की उस दिन हमारा पूरा परिवार हमारे पास था, यह दुनिया उसकी साक्षी थी, पर हम दोनो ही खुश नही थे इस शादी से। आज मैं तुम्हारा हाथ पकड़ कर अग्नि के चारों ओर फेरे लेना चाहता हूं, तुम्हारी आंखों में देख कर, तुम्हारे चेहरे की वोह खुशी देखना चाहता हूं जो की हर दुल्हन को अलग बनाती है। बस तुम और मैं। तुम सही थी इब तुमने मुझसे यह कहा था की मैने अपने भाई खुशियों को तुम से ऊपर रखा तुमसे शादी करने से पहले। मैं अपने आप में ही इतना खोया हुआ था की मैने वोह मुस्कुराहट की परवाह ही नही की। पर आज के दिन मेरे लिए तुम्हारी मुस्कुराहट से बढ़ कर कुछ भी नही है। तुम्हारी खुशी और तुम।"
"क्या इसी वजह से आपने मुझे जबरदस्ती यह हैवी लाल साड़ी पहनने की जिद्द की थी, यहां तक की एयरपोर्ट पर और एयरक्राफ्ट में भी सब मुझे ही आंखें बड़ी बड़ी कर देखे जा रहे थे?" अमायरा ने पूछा और कबीर हँसने लगा।
"उह्ह्ह.....मैने हमारी शादी पर तुम्हारे कपड़े सिलेक्ट नही किए थे की तुम क्या पहनोगी। पर इस बार तो कर सकता था। तोह, क्या तुम मुझसे शादी करोगी?"
"हां, मैं आपसे शादी करूंगी।" अमायरा ने आंखों में आंसू लिए जवाब दिया। वोह दोनो ही जानते थे की यह आंसू सिर्फ और सिर्फ खुशी के थे जो वोह इस वक्त महसूस कर रहे थे। कबीर ने अमायरा का हाथ पकड़ा और उसे मंदिर के अंदर ले जाने लगा।
हाथों में हाथ लिए दोनो इस वक्त हवन कुंड में जलती अग्नि के सामने बैठे हुए थे। पुजारी जी मंत्रों का उच्चारण कर रहे थे और साथ ही साथ उन्हे शादी की मेहतवता बता रहे थे। उन्हे हर विधि हर रस्म की महत्व बता रहे थे। अमायरा और कबीर पंडित जी बातों को बड़े ध्यान से सुन रहे थे और अपने जेहन में बसा रहे थे। इस वक्त उन्हे अपने रिश्ते की बड़ी परवाह थी और वोह सभी रस्में दिल से निभा रहे थे। पुजारी जी ने उन्हे फेरों के लिए खड़े होने के लिए कहा और दोनो ने हाथों में हाथ डाल कर अग्नि के सात फेरे लिए। कबीर की नज़रे बस अमायरा पर ही टिकी हुई थी, उसके चेहरे के हर आते जाते भाव वोह मिस नही करना चाहता था। वोह उसकी शर्म को जो उसी के लिए थी वोह मिस नही करना चाहता था। और अमायरा आंखों में शर्म और आंसू लिए हुई थी। कबीर ने जब अमायरा की मांग में सिंदूर भरा तब पुजारी जी ने उन्हे पति पत्नी करार कर आश्रीवाद दे कर उन्हे अकेला छोड़ कर चले गए। कबीर और अमायरा दोनो ऐसे ही अकेले कुछ देर तक खड़े रहे, उन्हे पता ही नही चला की किसने पहला कदम उठाया लेकिन दोनो ने आगे बड़ कर एक दूसरे को कस कर बाहों में भर लिया। अमायरा के आंख में आंसू अब आखिर कार आंखों से बह गए और कबीर ने उसे शांति से रोने दिया। क्योंकि वोह जनता था की यह आखरी बार है जो अमायरा अपनी पुरानी यादों को याद कर रो रही है। जो भविष्य उसने दोनो के लिए प्लान किया था उसमे अब रोने धोने और दर्द की कोई जगह नही है।
"मुझे लगता है की मैं इतना भी बुरा नही हूं की मुझसे शादी करने के बाद तुम इतना रोओगी।" कबीर ने थोड़ी देर बाद उसे चिढ़ाते हुए कहा और अमायरा ने गहरी सांस ली।
"नही। इतना बुरा नही। बल्कि बहुत ज्यादा बुरा की आप मेरे लिए इतना ज्यादा करते हैं की मुझे दर लगता है की मैं क्या करूंगी अगर जब एक दिन मैं उठूं और मुझे पता लगे की यह सब सपना था।" अमायरा ने रोते हुए ही कहा।
"यह कोई सपना नही है स्वीटहार्ट। यह हकीकत है। मेरी और तुम्हारी। और अब से कोई आंसू नहीं।" कबीर ने प्यार से अमायरा का सिर सहलाया।
"हां, अब कोई आंसू नहीं होंगे। इस सब के लिए थैंक यू।" अमायरा मुस्कुराई, और आंसू पोंछ लिए।
"यू आर वैलकम मिसीस मैहरा।" कबीर ने उसका माथा चूम लिया। "अब हम चलें क्या यहां से? फैमिली अब जरूर यह सोचने लगेगी की हम दोनो किसी को बिना बताए भाग गए।"
"हां। वोह सोच रहें होंगे, पर इस बात के लिए मैं आपको ब्लेम बिलकुल नही करूंगी।" अमायरा ने मुस्कुराते हुए कहा।
"अरे अच्छा? ऐसा क्यों?" कबीर ने अपनी एक आईब्रो को उठा कर पूछा।
"क्योंकि मैं आपसे बहुत प्यार करती हूं। और मुझे लगता है की मैं हमेशा से ही करती थी, पर अब जा कर इसका एहसास हुआ है।"
"मैं भी तुमसे बहुत प्यार करता हूं अमायरा। मेरी जिंदगी में आने के लिए तुम्हारा बहुत बहुत शुक्रिया।" कबीर ने कहा और एक बार फिर उसे सीने से लगा लिया, जबकि अमायरा के चेहरे पर शैतानी मुस्कुराहट आ गई।
क्या ये सच में इतने बेवकूफ हैं? फिर मेरी बात पर ध्यान नही दिया जो मैने अभी कहा। पर कोई बात नही हमारे पास हमारी पूरी जिंदगी है। इनके लिए पता लगाने के लिए, और मेरे लिए इन्हे बताने के लिए की यह हमेशा से मेरे लिए क्या रहे थे। "तुम्हे पता है? मैं भी तुमसे प्यार करने लगा था हमारी शादी के तुरंत बाद ही। पर जनता नही था की यह प्यार है जो मैं तुम्हारे लिए महसूस करता था। हम दोनो के ही साथ एक जैसा ही हुआ ना?" कबीर ने कहा और अमायरा मुस्कुरा पड़ी। कबीर जरूर ही बुद्धू है।
"पर आप ने यह सब क्यों किया? आप ने यह सब कैसे सोच लिया? यह शादी और यह सब?" अमायरा ने पूछा जब वोह दोनो अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ रहे थे।
"हमारी जब ऑफिशियल शादी हुई थी तब शादी की रात को तुमने मुझसे कहा था की तुम थक गई हो यह सब रस्मे निभाते निभाते और ट्रेडिशनल वेडिंग में कितना कुछ होता है, अगली बार मैं भाग जाऊंगी और मंदिर में जा कर शादी कर लूंगी। तोह अब मैं नही चाहता की मेरी वाइफ किसी और के साथ भाग जाए इसलिए मैने ही तुम्हारी यह इच्छा पूरी कर दी।" कबीर ने अपनी एक आंख दबाते हुए कहा और अमायरा तोह हैरान ही रह गई। यह कैसे हो सकता है की कबीर को उसके बारे में हर एक बात इतनी बारीकी से याद है और उस बात को इतनी इंपोर्टेंस भी दी जो उसने कभी कबीर से यूहीं कही थी? अमायरा मुस्कुराते हुए गाड़ी में बैठ गई और कबीर अपनी साइड आ कर बैठ गया।
मैन। टिपिकल मैन। एक्चुअली टिपिकल हसबैंड। इन्हे कोई फर्क नहीं पड़ता जो इनसे डायरेक्टली कहा जाए, पर उसके अलावा हर एक छोटी बात पर ध्यान देते हैं। "वैसे, अगर तुम मुझसे थोड़ी सी भी इंप्रेस हो गई हो तो, तुम मुझे इसका एहसान वापिस कर सकती हो मुझे यह बता कर की तुमने मुझे इग्नोर क्यों किया था?" कबीर ने गाड़ी स्टार्ट करते हुए पूछा। जबकि अमायरा खिलखिला कर हँस पड़ी। बेचारी अपनी हँसी कंट्रोल ही नही कर पा रही थी। बहुत मुश्किल से उसने अपनी हँसी कंट्रोल को और कबीर को देखने लगी।
"खुद से पता लगाइए मिस्टर मैहरा।" अमायरा ने किसी तरह अपनी मुस्कुराहट रोकते हुए कहा और खिड़की से बाहर देखने लगी। उसकी मुस्कुराहट उसका सारा सीक्रेट बयान कर रही थी।
कबीर ही उसका सीक्रेट एडमायरर था हमेशा से। "मैं जरूर पता लगा लूंगा मीसिस मैहरा। और बहुत जल्द ही।" कबीर ने वादा करते हुए कहा और गाड़ी अपने भविष्य की ओर बढ़ा दी।
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कहानी समाप्त।
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टू माय लवली एंड पेशेंस रीडर्स,
इस कहानी का सफर आज समाप्त हो गया है। आप लोगों ने मेरा यहां तक जो साथ दिया उसका मैं तहे दिल से शुक्र गुजार हूं। ऐसे ही अपना साथ हर कहानी पर बनाए रखें। आपके कॉमेंट्स और रेटिंग्स ही मेरा रिवार्ड रहा है, हमेशा से। और मुझे यह रिवार्ड बहुत पसंद है। रीडर्स से ही एक राइटर की नीव है। ऐसे ही पढ़ते रहिए और प्रोत्साहन देते रहिए। धन्यवाद 🙏
—पूनम शर्मा