"हां। क्या? वैडिंग गिफ्ट?" इशान शक भरी निगाहों से देखते हुए बोला। "अब यह मत कहना की आपने कुछ नहीं खरीदा भाभी के लिए क्योंकि मैंने आपको कई बार याद दिलाया था और जब मैं खुद इशिता के लिए गिफ्ट लेने जा रहा था तब भी याद दिलाया था।" और फिर इशिता की तरफ देख कर आगे बोला, "बाय द वे इशिता, अपनी रिंग दिखाओ जो मैं तुम्हारे लिए लाया हूं।"
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*"तोह फिर क्यों बोल रही थी? मुझे गिल्टी फील कराने के लिए?"*
*"नही। बस ऐसे ही बात कर रही थी, जिससे आपको कल मदद मिलेगी।"*
*"क्या?"*
*"कुछ नही।"*
*ओह तोह इसी लिए कल रात को तुम वोह सब कह रही थी। क्या तुम सीधे सीधे नही बोल सकती थी ताकि मैं अभी के लिए प्रिपेयर रहता?* कबीर कल रात की बात याद करके अपने मन ही मन बोल रहा था।
*"अब मुझे ब्लेम करने की कोशिश बिलकुल भी मत करना की मैने आपको हिंट नही दिया। यह मेरी गलती नही है की आप बुद्धू हो और मेरी बात समझ नही पाए, जबकि मैने क्लियरली कहा था की यह कल आपको हेल्प करेगा।"* अमायरा अपने मन में ही सोच कर कबीर को जवाब दे रही थी। उसे शक हो गया था की पक्का कबीर उसे मन में कोस रहा होगा।
"तुम भूल गए क्या गिफ्ट लाना अपनी वैडिंग नाइट के लिए, कबीर? तुम इतनी बड़ी कंपनी कैसे चलाते हो अगर इतनी छोटी छोटी बातें याद नही रख सकते?" सुमित्रा जी ने अपने बेटे कबीर को डांटते हुए कहा।
"उह्ह्ह... मॉम... मैं.."
"वोह लाए हैं, आंटी। वोह मेरे लिए बहुत ही चमकीला और हैवी सा नेकलेस लाए हैं मेरे लिए। ऐसा जो मैने अपनी लाइफ में आज तक नही पहना। तोह मैने इन्हे कहा की इसे वापिस कर देना और कुछ सोफेस्टिकेटेड और सिंपल सा सुंदर सा हार ले आएं," अमायरा ने बात संभालते हुए कहा।
*"सोफेस्टिकेटेड और सिंपल। माय फूट। एटलीस्ट तुम तोह यह बिल्कुल नही हो।"* कबीर फिर अपने आप से बात करने लगा था, उसके ब्राइट पिंक पजामा को याद करके।
*"खबरदार अगर मेरे पिंक पजामा के बारे में कुछ बोला तोह,"* अमायरा ने भी वापिस मन में कहा।
"भईया तोह हमेशा जो भी करते है बड़े स्केल पर करते हैं। हैवी नेकलेस अंह हां!" इशान ने कबीर को चिढ़ाते हुए कहा। उसे यह बात हजम नही हो रही थी की कबीर अमायरा के लिए कुछ ला सकता है।
"यह क्या कबीर? तुमने खरीदने से पहले उसकी चॉइस भी नही पूछी? तुमने उसका वैडिंग नाइट का सर्प्राइज खराब कर दिया।" सुमित्रा जी अपने बेटे को घूरते हुए कहा।
कबीर अभी भी बैठा यह सोच रहा था की यह क्या हो रहा है। उसकी अपनी मॉम उसे डांट रही हैं की उसने अमायरा की चॉइस नही पूछी।
*"तोह तुमने मेरी मॉम को मेरे अगेंस्ट कर दिया, वोह भी एक ही दिन में। वाउ!"*
*"हुंह। अभी तोह शुरुवात है। देखो कैसे मैं धीरे धीरे आपका यह फालतू का जिद्दीपाना और अहंकार को चूर चूर करती हूं।"* अमायरा ने मन ही मन कहा और बाहर से वोह मुस्कुरा रही थी।
"मैं आगे से ध्यान रखूंगा, मॉम। अभी के लिए मैने इससे कहा है की अपने लिए खुद कुछ खरीद ले। आप ही क्यों नही ले जाती उसे शॉपिंग पर? आप, अमायरा और इशिता। प्लीज आप सब अपने लिए कुछ ना कुछ खरीद लें। मेरी तरफ से आप तीनो के लिए। घर की सभी लेडीज के लिए। क्या कहते हो आप?" कबीर ने जल्दी से बात पलटते हुए कहा।
"यह तोह बहुत अच्छी बात कही तुमने। पर यह अमायरा का वैडिंग गिफ्ट है जिसकी बात हम कर रहें हैं।" सुमित्रा जी को अभी भी बुरा लग रहा था।
"हां यह तोह था। तोह आप ऐसा कीजिए की अमायरा के लिए दो गिफ्ट ले लेना और अपने लिए और इशिता के लिए सिर्फ एक ही गिफ्ट लेना। आफ्टर ऑल, वोह क्या कहते हैं, वाइफ कम्स फर्स्ट।" कबीर ने शैतानी मुस्कुराहट से कहा और अमायरा तोह अंदर ही अंदर जल रही थी।
"हम्मम। यह सही है। तोह हम लोग आज ही शॉपिंग पर जायेंगे," सुमित्रा जी खुश हो गई थी। अचानक ही उन्हे अपने बेटे पर गर्व होने लगा था।
"ग्रेट। तोह अब आप लोग बातें कीजिए, मैं निकलता हूं ऑफिस। मुझे जल्द से जल्द पहुंचना है," कबीर ने चेयर से उठते हुए कहा।
"व्हाट इस दिस कबीर? तुम्हारी कल ही शादी हुई है। तुमने कहा था की तुम शादी के दौरान काम नही करोगे।"
"हां मैंने कहा था मॉम। और अपने वादे के मुताबिक पूरी शादी के दौरान मैं अपने ऑफिस से दूर रहा। पर सच्चाई यह कहती है की मैं अब और ज्यादा दूर नही रह सकता। आखिर कार मुझे आपकी शॉपिंग से होने वाले हैवी बिल भी तोह चुकाने हैं जो आज शाम को आप मेरे हाथ में थमाने वालों हैं।" कबीर ने एक चार्मिंग सी स्माइल के साथ कहा और उसकी मॉम भी लगभग पिघलने लगी उसकी मनोहर मुस्कुराहट पर। "और तोह और किसी और को भी मुझे उसके एक महीने तक लंबे चलने वाले हनीमून के लिए भी तोह पे करना है।" कबीर ने अपने भाई इशान पर कमेंट करते हुए कहा जिसे इशान ने पूरी तरह से इग्नोर कर दिया।
"ओह! डोंट बी सो जेलेस। जब मैं वापिस आऊंगा तोह आपको कुछ टिप्स जरूर दूंगा की हनीमून कैसे और कब प्लान करना है।" इशान ने यूहीं नाश्ते करते हुए कहा।
"डेट्स सो स्वीट ऑफ यू," कबीर ने इशान की तरफ देखते हुए कहा। "तोह अब मैं चलता हूं," उसने अब सबकी तरफ देखते हुए कहा। "और अपने लिए कुछ अमेजिंग सा स्पेशल गिफ्ट खरीद लेना, अमायरा। ऐसा कुछ जो इशान के गिफ्ट के टक्कर का हो।" कबीर ने अपनी वाइफ अमायरा की तरफ देखते हुए कहा और फिर इशान की तरफ आंख मार दी। कबीर फिर मुस्कुराते हुए उठ कर घर से निकल गया।
****
एक शाम
"मैं नही जाऊंगा वहां," कबीर गरजते हुए बोला।
"क्यों?" अमायरा भी वापिस उसी टोन में बोली।
"मैं बस नही चाहता। क्या यह काफी नही है।"
"मुझे वजह जननी है।"
"मैने तुम्हे पहले दिन ही कह दिया था की मुझसे ये हसबैंडली वाली जेस्चर की उम्मीद मत रखना। तुमने मुझसे शादी सब कुछ जानने समझने के बाद की है। तोह अब ऐसे बरताव मत करो जैसे तुम मेरी वाइफ हो क्योंकि यह रिश्ता सिर्फ फैमिली के लिए मैने तुमसे जोड़ा था।"
"हां। मुझे सब अच्छे से पता है और याद भी है। और आपने मुझे सब अच्छे से समझाया था। और मैं जानती हूं की हमारे बीच सिर्फ समझौता है वोह भी फैमिली के लिए। पर क्या इस समझौते में मेरी मॉम से मिलना नही आता? क्या सिर्फ आपकी फैमिली के सामने ही मुझे नाटक करना है? मेरी फैमिली के सामने आप का कोई कर्तव्य नही? उनके सामने भी तोह आप झूठा ड्रामा कर सकते हैं?" अमायरा ने अपना हक जताते हुए कहा।
"मुझे अपने बातों के जाल में फसाने की कोशिश मत करो।"
अमायरा और कबीर की शादी को अब पूरे दो हफ्ते हो चुके थे। इन दो हफ्ते में शुरू के दो तीन दिन दोनो में काफी चीजों को लेकर बहस हुई थी जैसे कौन किस साइड सोएगा, कौन पहले वाशरूम यूज करेगा, वगेरह वगेरह। अमायरा को अंधेरे में सोने की आदत नही थी इसलिए वोह नाइट बल्ब जला कर सोती थी और कबीर को बिलकुल अंधेरा पसंद था, इसके लिए भी वोह दोनो लड़ते थे। फिर दो तीन दिन बाद कबीर ने सरेंडर कर दिया क्योंकि वोह दोनो के बीच पति पत्नी जैसा कुछ नही चाहता था, प्यार तोह बहुत दूर की बात पति पत्नी जैसा लड़ाई भी नही चाहता था। इसलिए उसने उसके साथ बहस करना बंद कर दिया और चुप चाप अपने ही रूम में एडजस्ट करना शुरू कर दिया। वोह बस उस दिन को कोसता रहता था जिस दिन उसकी मोहब्बत उसे छोड़ गई थी। उसे याद करके वोह अक्सर अमायरा के सोने के बाद बालकनी में खड़ा हो कर रोता रहता था। उसकी मोहब्बत, उसकी मंगेतर 'महिमा चौधरी' को याद करके।
आज कुछ रिचुअल्स के चलते अमायरा और इशिता को उनकी मॉम ने घर बुलाया था। इसी वजह से अमायरा कबीर से इंसिस्ट कर रही थी की वोह उसके साथ चले उसकी मॉम के घर फॉर्मेलिटी के लिए ही सही। लेकिन कबीर ने साफ मना कर दिया था क्योंकि वोह अब इस रिश्ते से जुड़े कोई काम नही करना चाहता था। और वैसे भी हमारे अक्खड़ कबीर को कोई भी इतनी आसानी से नही मना सकता था। वोह वोही करता था जो उसका मन चाहे। हां यह बात भी है की वोह अपने परिवार से भी बहुत प्यार करता था।
तभी उनके रूम के दरवाज़ा के बाहर से हल्का सी खटपट की आवाज़ आई। जैसे किसी ने हल्का सा गेट को टच कर दिया हो। शायद कोई उनकी बातें सुन रहा था। या फिर गलती से कोई वाहन से गुजरा है जो दरवाज़े से टकरा गया। कबीर ने तुरंत अमायरा से नज़रे हटा कर दरवाज़े की तरफ करली। वोह दरवाज़े की तरफ बढ़ने लगा। उसने दरवाज़ा खोला सामने ब्रूनो था। ब्रूनो कबीर को देखते ही उस पर चढ़ गया और भौंकना शुरू कर दिया। महेश सामने से भागते हुए आया।
"साहब, मैं इसे बाहर वॉक पर ले जा रहा था और यह है की वापिस आपके कमरे की तरफ दौड़ पड़ा," महेश ने हाफ्ते हुए कहा।
वोह गार्डन से भागते हुए कबीर के रूम की तरफ आया था, ब्रूनो के पीछे पीछे उसे पकड़ने। ब्रूनो को कबीर से बहुत लगाव था। जब कबीर छोटा था तब वोह नन्हा ब्रूनो को अपने घर लेकर आया था। वोह अपने दोस्त के घर से ब्रूनो को लाया था जब ब्रूनो मात्र एक दिन का भी नही हुआ था। वैसे तोह घर में सभी को ब्रूनो से लगाव था और ब्रूनो को भी सब से था। और तोह और इशिता और अमायरा की भी ब्रूनो के साथ दोस्ती थी। लेकिन पिछले पांच साल से कबीर ही उसका जिगरी दोस्त बन चुका था।
"ठीक है तुम जाओ," कबीर ने महेश से कहा।
कबीर उसे लेकर कमरे में आ गया। वोह उसके साथ खेलने लगा और बातें करने लगा। और उससे कहा, "मेरा इंतजार कर यहां मैं अभी आया पांच मिनट में, फिर हम बाहर घूमने चलेंगे।"
ब्रूनो ने भी भौंक कर अपनी स्वीकृति दे दी।
कबीर बाथरूम में चला गया। अमायरा समझ चुकी थी की और बहस करने का कोई फायदा नही है कबीर के साथ। वोह तोह उसे पूरी तरह से इग्नोर करके ब्रूनो के साथ खेलने लगा है। वोह उसके साथ नही जाने वाला। ब्रूनो अमायरा के पास आया जो कब से यूहीं खड़ी अपनी सोच में गुम थी। अमायर ने प्यार से ब्रूनो के सिर पर हाथ फेरा। ब्रूनो ने अपनी पूंछ हिला दी। अमायरा ने अपना फोन उठाया और निराशा से तुरंत कमरे से बाहर निकल गई। वोह जानती थी अपने रिश्ते की सच्चाई। लेकिन वोह उम्मीद कर रही थी की जैसे वोह कबीर के परिवार के सामने अपने रिश्ते को मैनेज कर रही है वैसे ही कबीर भी उसके परिवार के साथ वैसे ही बरताव करे। आखिर एक दिन की ही तोह बात थी? एक दिन वोह चल लेटा तोह क्या हो जाता? वोह खुद भी तोह यहां रह रही है और सबके सामने झूठी हसी हस रही है। उसे अब लगने लगा था की क्यों ही उसने कबीर से ऐसी उम्मीद रखी? अपने परिवार के लिए कुछ भी करने वाला कबीर उसके परिवार के लिए क्यों कुछ करेगा?
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