Bhuli Bisri Khatti Meethi Yaade - 28 books and stories free download online pdf in Hindi

भूली बिसरी खट्टी मीठी यादे - 28

उन दिनों सिनेमा हॉल हर जगह नही होते थे।खान भांकरी छोटा स्टेशन था।कोई दुकान नही थी।रेल्वे स्टाफ को सामान लेने के लिए बांदीकुई या दौसा जाना पड़ता था।सिनेमा हॉल जयपुर में ही था।और हम लोग यानी मैं और पत्नी और तीन साले सुबह सवारी गाड़ी से जयपुर पिक्चर देखने के लिए गए थे।
हमने दोपहर को बारह बजे से तीन बजे का शो देखा था।मैंने अपनी पत्नी के साथ पहली पिक्चर देखी।वो थी जंजीर।अभिताभ और जया की जंजीर।आज भी जब टी वी पर यह पिक्चर आती है तो मैं देखने लगता हूँ।इस पिक्चर को देखकर मुझे पत्नी के यौवन की याद आ जाती है।
फिर हमने रिक्शा किया और दूसरी पिक्चर देखने गए।यह पिक्चर थी धरेमन्द्र और मुमताज की लोफर।और पिक्चर छूटने के बाद हम स्टेशन आ गए थे।सवारी ट्रेन रात 8 बजे थी।हमने जयपुर स्टेशन पर आर आर में खाना खाया था।और फिर हम ट्रेन से खान भांकरी लौट आये थे।फिर हम गांव आ गए और पत्नी गांव में रह गयी और मै अपनी ड्यूटी पर आगरा आ गया था।
उन दिनों पत्र ही साधन थे।पत्नी मुझे और मै उसे पत्र लिखते।उन दिनों डाक सेवा बेहतर थी।साधारण डाक भी जल्दी पहुंचती थी।कोरोना काल मे डाक सेवा इतनी बुरी हो गयी कि साधारण डाक छोड़े रजिस्ट्री तक गायब हो जाती है।जाती कहाँ है।
शादी के बाद मन नही लगता था।वैसे मै रेस्ट में गांव जाता रहता था।और फिर पहली करवा चौथ के बाद मैने पत्नी को आगरा बुलवा लिया।
पहली बार जब वह नाराज हुई।
हम दोनों तब आगरा में अकेले रहते थे।मेरी शिफ्ट ड्यूटी रहती थी।सुबह छ से दो बजे,दो बजे से दस बजे और रात को दस बजे से सुबह छः बजे तक।
शादी से पहले एक किस्सा और
मै दो से दस बजे की ड्यूटी में था।उन दिनों जोधपुर आगरा ट्रेन रात को करीब 7बजकर 30 मिनट पर आती थी।उस दिन ट्रेन आने के बाद एक आदमी मेरे पास आया।उसने मुझे एक पत्र दिया।वह पत्र मेरे ताऊजी कन्हैया लाल ने लिखा था।पत्र में लिखा था वह इन्द्र का रिश्ते में साला है।इन्द्र मेरा कजिन है।मैने पत्र पढ़कर बैठने के लिए कहा तो वह बोला,"अभी नही कल आऊंगा।'
अगले दिन मै ड्यूटी पर पहुंचा तब वह आया।आते ही बोला,"मै अपने भाई के चक्कर मे आया था।भाई पर केश हो गया है।उसे बचाने के लिए रिश्वत देनी पड़ी।अब मेरे पास पैसे नही बचे।
और उसने मुझ से पैसे मांगे थे।मेरे पास 50 रु थे जो मैने उसे दे दिए।आप सोचेंगे 50 रु क्या मायने रखते है।यह बात 1972 की है।तब मेरी तनख्वाह212 रु थी।उन दिनों यही तनख्वाह हुआ करती थी।उस आदमी ने अपने आप को देहरादून में फारेस्ट अफसर बताया था।उसने कहा था।वह पैसे भेज देगा।
लेकिन जब उसका कोई जवाब नही आया तो मुझे दल मोहर सिंह की याद आयी।
दल मोहर सिंह मेरठ के रहने वाले थे।वह यू पी पुलिस में दरोगा थे।और मेरे पास वाले कमरे में किराए पर रहते थे।वह ट्रांसफर होकर देहरादून चले गए थे।मैने उन्हें पत्र लिखा।उस आदमी ने अपना नाम अरुण बताया था।कुछ दिनों बाद उनका पत्र आया कि इस नाम का कोई फारेस्ट अफसर नही है।वह आदमी फ्रॉड था जो बांदीकुई में इसी तरह बहुत को बेवकूफ बनाकर आया था

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