हक है हमारा तुम पर Manisha Netwal द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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हक है हमारा तुम पर

कृष्णा... यार हमें बहुत अजीब लग रहा है पापा जी ने इतनी जल्दी क्यों बुलाया होगा...? 19- 20 वर्षीय लड़की अपनी ही हम उम्र लड़की से बोल रही थी उसके चेहरे पर उदासी की लकीरे साफ दिखाई दे रही थी,,,
दोनों कॉलेज के बाहर खड़ी बस का इंतजार कर रही थी कृष्णा= यार सूरभी मुझे ना तेरा भविष्य संकट में लग रहा है...
सुरभि हैरानी से उसकी तरफ देखकर= क्यों..?
कृष्णा= मुझे लगता है चाचा जी ने फिर तुम्हारे लिए कोई लड़का ढूंढ लिया है,,,
सुरभि आंखों में नमी लिए बोली= पापा जी क्यों नहीं समझते हमारी बात हम कितनी बार मना कर चुके हैं हमें इतनी जल्दी शादी नहीं करनी अभी कॉलेज खत्म होने में पूरा डेढ़ साल बाकी है और हमें पता है शादी के बाद हमें कोई नहीं पढने देगा...
कृष्णा उसे चुप कराती हैं "देख सुरभि मैं अभी बोल रही हूं एक बार आवाज उठा अपने लिए बोल दे उन्हे की तुम्हें नहीं करनी है अभी शादी अगर उन्होंने जबरदस्ती शादी कराई तो तू घर छोड़कर चली जाएगी...
कृष्णा... सुरभि थोड़े गुस्से और रूआसी आवाज में चिल्लाई,,, पापा जी है वो हमारे हक है उनका हमारे ऊपर हम उन्हें तकलीफ नहीं पहुंचा सकते और इसमें गलत ही क्या है वह अपनी बेटी की शादी ही तो कराना चाहते हैं हर मां बाप का सपना होता है कि अपने बच्चों का घर बसते देखें,,,,
कृष्णा सुरभि का हाथ पकड़कर उसकी आंखों से बहते आंसूओ को साफ करते हुए= और बच्चों का क्या.. क्या उन्हें एक बार भी पूछना जरूरी नहीं समझते कि उन्हें क्या चाहिए, सुरभि तुम्हारी ही तरह कोई बच्चा अपने मां-बाप के खिलाफ नहीं जाना चाहता लेकिन क्या हमारी जिंदगी पर केवल दूसरों का ही हक होता है हमारा कोई हक नहीं है... कृष्णा उसका चेहरा पकड़कर= क्या तुम खुश हो...?
सुरभि रोते हुए उसके गले से लिपट जाती है कृष्णा उसके बालों को सहलाते हुए= तू चिंता मत कर मैं अपने पापा से बात करूंगी कि वह चाचा जी को समझाएगै...
सुरभि= नहीं कृष्णा तुझे हमारी दोस्ती की कसम तू ऐसा कुछ नहीं करेगी पहले ही हमारी शादी को लेकर घर में रोज बहस होती है हम अब तंग आ चुके हैं अब और बहस नहीं चाहिए.. पापा जी का जो फैसला होगा हमें मंजूर है...
लेकिन सुरभि... कृष्णा अपनी बात खत्म कर पाती उससे पहले की बस आ गई और सुरभि चुपचाप बस में चढ़ गई कृष्णा भी उसके पीछे-पीछे बस में आती है बस पूरी तरह भरी हुई थी इसलिए दोनों 10 मिनट के रास्ते खड़ी थी,,,
बस गांव की कच्ची सड़क पर आकर रूकती है कृष्णा और सुरभि किराया देती है और नीचे उतर जाती है कच्ची सड़क से कुछ ही दूरी पर सुरभि का घर था और कृष्णा का दुसरी तरफ दोनों पगडंडियों से होकर अपने अपने घरों की ओर बढ़ जाती है,,,
सुरभि चौधरी परिवार की बेटी थी घर में कुल मिलाकर 10 लोग रहते थे बुजुर्ग दादा-दादी ताऊजी ताई जी मां पापा भाई भाभी (ताऊ जी का बेटा) सुरभि और एक उसका सगा भाई जो उससे 2 साल छोटा था ताऊजी के 3 लड़कियां थी जिनकी शादी 18 साल की होने से पहले करा दी गई 21 साल की होने से पहले तीनों के बच्चे हो चुके थे और कोई भी 12वीं के आगे नहीं बढ़ पाई थी सुरभि की जिद पर कि वह इतनी जल्दी शादी नहीं करेगी उसे 2 साल का वक्त और दिया गया था पर आसपास और खुद उसके परिवार के तानों से तंग आकर उसके पापा जितनी जल्दी हो सके उसकी शादी कराना चाहते थे सुरभि सेकंड ईयर में थी उसका भाई अभी स्कूल में पढ़ रहा था सुरभि के ताऊ जी का लड़का जो सुरभि से केवल एक ही साल बड़ा था पिछले साल उसकी भी शादी हो चुकी थी और उसकी पत्नी भी शादी के एक महीने बाद ही ससुराल आ गई थी उन्होंने भी कभी कॉलेज का मुंह नहीं देखा था और अब तो वह मां बनने वाली है उम्र सुरभि से भी छोटी है,,,,
वहीं कृष्णा उसी गांव में अपने छोटे से परिवार के साथ रहती है उसके पिता गांव की सरकारी स्कूल में छोटे बच्चों को पढ़ाते हैं और मां ग्रहणी है कृष्णा और सौम्या उनकी दो बेटियां और दादी बस इतना सा परिवार है उसका उसके पिता ने कभी उसकी शादी की बात नहीं की क्योंकि कृष्णा खुले विचारों वाली लड़की थी उसे गलत बात का विरोध करना आता था पर उसकी दादी और मा रोज उसके पापा से उसके रिश्ते की बात करते पर वह हर बार कुछ न कुछ कहकर बात टाल देते,,,

यह गांव है साहब यहां इंसान के रूप में आज भी कई बेजुबान जानवर रहते हैं जहां ने किसी के टूटते सपनों की चीखें सुनाई देती है और ना ही किसी का खुद पर खुद का हक है वह चाहे फिर लड़का हो या लड़की...

सुरभि घर पहुंचती है घर का माहौल देखकर उसे सब कुछ समझ आ गया था वह अंदर आती है हॉल में कुर्सियों पर बड़े ठाठ से उसके दादाजी मुछे ताने बैठे थे और उनके पास उसके ताऊजी और पापा जी, परिवार बेशक मध्यवर्गीय था पर जाटों का ठाठ तो अमीरों की अमीरी को भी रोंधने वाला होता है और उनके सामने तीन और आदमी बैठे थे वहीं बरामदे में सुरभि की दादी ताई जी मां और भाभी उसका ही इंतजार कर रही थी,,,
सुरभि बेटा आ गई तुम... जा जल्दी से तैयार हो जाओ... उसकी मां ने कहा और उसकी भाभी की तरफ देख कर= लता बहू सुरभि को तैयार कर दे,,,,
मां... सुरभि के मुंह से धीरे से आवाज निकली,,,
दादी= छोरी.. बहुत सुन ली है तेरी अब नहीं... जा कर तैयार हो जाओ...
लता सुरभि के पास आकर बोली= दीदी अब कोई फायदा नहीं है सगाई की पूरी रस्मे हो गई है वह तो जाने वाले थे पर आप आ रही है यह सुनकर रुक गए,,
सुरभि हैरानी से सबको देखती है फिर लता की तरफ देख कर भाभी= बिना हमसे पूछे सगाई कर दी हमने तो लड़के को देखा भी नहीं यहां तक कि उनकी फोटो भी नहीं देखी और ना ही उन्होंने हमारी...
यह सब हमारे यहां नहीं होता गुड्डू तेरी बहनों ने भी तो बिना फोटो देखे की शादी की थी ना आज बच्चे खेल रहे हैं उनकी गोद में.... सुरभि की ताई जी बोली,,,
सुरभि को अब समझ आ गया था कि अब उसके बोलने का कोई फायदा नहीं था वह लता के साथ चली जाती है कुछ देर में सलवार कमीज पहने सिर पर दुपट्टा डाल कर हाथ में चाय की ट्रे लेकर मेहमानों के सामने आती है उसके हाथ काप रहे थे वह खुद को संभालते हुए चाय उन्हें देती है और सबका आशीर्वाद लेती है,,,
सुरभि के दादा जी= यह है हमारी सुरभि... घर का पूरा काम करती है और साथ में थोड़ी पढ़ाई भी कर लेती हैं,,,
सामने बैठा आदमी जो लड़की का पिता था= चौधरी साहब हमें ज्यादा पढ़ी लिखी बहू नहीं चाहिए बस घर का काम आना चाहिए आप तो जानते ही हैं दिलीप की मां के पैरों में दर्द रहता है बहू आ जाएगी तो उन्हें भी सहारा मिल ही जाएगा और कमाने के लिए दिलीप है ना एक दो महीने में किसी कंपनी में नौकरी लग जाएगा,,,
उनकी बातें चालू थी सुरभि कुछ देर उनके सामने खड़ी रहती है फिर सामने वाला आदमी उसे नेक के तौर पर कुछ पैसे देता है कुछ देर में वह चले जाते हैं सुरभि के घरवालों उन्हे सुरभि की एक फोटो देते हैं और वह भी लड़के की फोटो सुरभि के घर वालों को दे जाते हैं उनके जाने के बाद और सुरभी अपने पिता के पास आकर बोली= पापा जी आपने हमसे एक बार भी पूछना जरूरी नहीं समझा क्यों...?
सुरभि के पिता उसके सिर पर हाथ रखकर= क्योंकि हक है हमारा तुम पर बाप है हम तुम्हारे... तुम्हारी जिंदगी का तुम्हारी शादी से पहले हर फैसला लेने का हक रखते हैं हम...
हमारी पढ़ाई... सुरभि ने सिर झुकाए कहां,,,
उसके पिता बोले= शादी से पहले हम तुम्हें पढा रहे हैं शादी के बाद तुम पर सिर्फ तुम्हारे पति का हक होगा और वह जो फैसला ले तुम्हें मानना पड़ेगा,,,
सुरभि अपने कमरे में आती है और चुपचाप बैठ जाती है एक सवाल जो उसके मन में चल रहा था शादी से पहले उस पर माता-पिता का हक था शादी के बाद पति का पर क्या पति का खुद पर हक होगा उस पर भी तो उसके माता-पिता का हक है ना अगर उसका खुद पर हक होता तो वह खुद ही अपनी होने वाली पत्नी को देखने आता ना,,,
उसके कानों में कृष्णा की बातें गूंज रही थी "क्या हमारी जिंदगी पर केवल दूसरों का ही हक होता है हमारा खुद पर कोई हक नहीं है"

खैर अब तो शादी होनी ही थी 15 दिन बाद का मुहूर्त था तो सुरभि ने कोलेज जाना छोड़ दिया था पूरा परिवार रिश्तेदारों से भर गया था सब खुश थे पर क्या सुरभि खुश थी यह शायद वही जानती थी,,,,
कृष्णा सुरभि के घर आती है सुरभि अपने कमरे में बैठी थी कृष्णा उसके पास बैठकर बोली= कर ली ना सबने अपनी मनमानी तू जानती क्या है उस लड़के के बारे में छ साल बड़ा है वह तुमसे... तुमने ना उससे बात की ना उसने तुमसे एक दूसरे की फोटो तक नहीं देखी अगर तू उससे बात करने में भी कंफर्टेबल नहीं है तो कैसे गुजारेगी एक अजनबी के साथ पूरी जिंदगी... सुरभि मैं यह नहीं कह रही की तू शादी मत कर बस इतना कहना चाहता हूं कि अपने पति को इतना हक मत देना कि चाचा जी की तरह वह भी हर बात पर तुम पर अपना हक जताने लगे..,,,
कृष्णा सब इतना आसान नहीं है और अब इन बातों का कोई मतलब ही नहीं है मां ने कसम दी है हमें कि उनके संस्कारों पर अंगुली ना उठने दे पापा जी के सम्मान पर कोई आंच ना आने दे हम दो घरों की लाज है कृष्णा... हमारी एक गलती से दो घरों की बदनामी होगी और पति का शादी के बाद अपनी पत्नी पर पूरा हक बनता है ये मां ने सिखाया है... सुरभि को शायद जिंदगी की हकीकत समझ आ चुकी थी पर कृष्णा अपने विचारों को कैद नहीं कर सकती थी कृष्णा सुरभि के पास घुटनों के बल बैठकर= सात फेरे लेने से और मांग में सिंदूर लगाने से हम किसी को अपनी जिंदगी की कमाल कैसे सोच सकते हैं सुरभि, अगर कोई हम पर गंदी निगाहे डाले या हमें छुए तो हम अपवित्र हो जाते हैं और अगर शादी के बाद पति हम पर हक जताए तो वह पवित्रता है चाहे हम मन से उन्हें अपनाए या नहीं अपनाए...
कृष्णा... पीछे से एक औरत की आवाज आई सुरभि की मा पीछे ही खड़ी थी,,, हमारी बेटी के कान भरने की कोई जरूरत नहीं है हम से बेहतर हमारी बेटी को कोई नहीं जानता... उन्होंने तेज आवाज में कहा,,,
कृष्णा उनके पास आकर= क्या जानती है आप अपनी बेटी के बारे में चाची जी.. क्या वह शादी से खुश हैं..? क्या वह अपने होने वाले पति के नाम के अलावा उसके बारे में और कुछ जानती हैं जिस तरह चार महीने पहले बड़े जीजा जी ने दीदी को मारा था वह रोते हुए यहां आई थी और आपने वापस उन्हें उनके पास भेज दिया अगर कल सुरभि के साथ ऐसा ही हुआ तो वैसा ही करेगी आप... खुद को संभालने की उम्र में आपकी बेटी बच्चों को संभालेगी क्या यही चाहती है आप, जिस तरह आपके बोलने से पहले ही चाचा जी गुस्से से डांट कर आप को चुप करा देते हैं और आप कमरे में एक कोने में बैठ कर रोती है क्या आपकी बेटी भी वैसा ही करें यही चाहती है आप चाचीजी...
सुरभि की मां के पास भी इन बातों का जवाब नहीं था उनके पास क्या शायद किसी भी औरत के पास इन सवालों का जवाब नहीं था,,,
कृष्णा प्लीज... सुरभि उसके सामने हाथ जोड़कर बोली कृष्णा भी आंखों में नमी लिए वहां से चली जाती है,,,
सारी रस्मों के बाद आज सुरभि की बरात दरवाजे पर खड़ी थी सुरभि की बहने उसकी सहेलियां उसे तैयार करके वरमाला के लिए लाती है कृष्णा सब के पीछे खड़ी थी क्योंकि शायद सुरभी को उससे बेहतर कोई नहीं जानता था दोनों बचपन से साथ पढ़ती आ रही है सुरभि कॉलेज खत्म करके आगे की पढ़ाई करना चाहती थी ताकि ज्यादा नहीं वह एक टीचर बन सके खुद का खर्चा चला सके, छोटी छोटी जरूरतों के लिए उसे किसी के भी सामने हाथ नही फैलाने पड़े, उसके तो सपने भी ज्यादा बड़े नहीं थे लेकिन शायद उन्हें पूरा करने का भी हक उसे नहीं था,,
दिलीप सुरभि का पति दिखने में 26- 27 साल का था दोनों ने माला पहनाते वक्त एक दूसरे पर एक नजर डाली थी फिर फेरो के लिए बैठाया जाता है हर एक फेरे के साथ सुरभि के अरमान जलते जा रहे थे और पिता से हक अब पति का होता जा रहा था मांग में सिंदूर और मंगलसूत्र के पहनते ही एक अजनबी उसका पति परमेश्वर बन गया था जिसे वह जानती भी नहीं थी,,, विदाई की रसम होती है सबकी आंखों में आंसू थे आखिर उनकी वह बेटी जो पराई हो रही थी जिसे पैदा होते ही कह दिया गया था "इस आंगन में बसेरा कर बैठी एक चिड़िया हो एक दिन अपना घोंसला बना ही लोगी"
मायका सिर्फ एक बसेरा ही तो है जहां वह रहती है तब तक के लिए जब तक उसका घोंसला यानी ससुराल ना बन जाए,,
सुरभी के माता-पिता की आंखों में दर्द और खुशी के आंसू थे कि उनकी बच्ची जिसे 19 साल पाल पोस कर बड़ा किया वह उनसे दूर जा रही है और खुशी भी की उन्होंने माता-पिता होने का फर्ज निभाया अपनी जिम्मेदारी पूरी की और अपनी बेटी की जिम्मेदारी उसके आगे की हमसफर के हाथों में सौंप दी,,
सुरभि की आंखे नम थी की उसके पिता ने उसे जिम्मेदारी समझकर पाला और आज अपनी जिम्मेदारी खत्म कर दी एक बार भी उसे नहीं पूछा कि उसे क्या चाहिए और कृष्णा की आंखों में आंसू थे कि क्या एक दिन उसे भी इसी तरह किसी और के हाथों में थोप दिया जाएगा अपनी दोस्त के टूटते अरमान कृष्णा की आंखों से बह रहे थे,,,

सुरभि अपने नए घर में पहुंचती है कुछ रस्म के बाद उसे एक कमरे में ले जाया जाता है कुछ देर में दिलीप कमरे में पहुंचता है
"बेटा एक पतिव्रता नारी वही कहलाती है जो अपने पति को पूर्ण समर्पित होती है तुम्हें तन मन से अपने पति को खुद को सोफना होगा"
मां दादी ताईजी दीदी भाभी सब ने यही कहा था ना,,,
सुरभि एक नजर दिलीप को देखती है जो उसकी तरफ बढ़ रहा था,,
"सुरभी तुम्हारे जिस्म पर तो तुम्हारा हक है ना" कृष्णा की आवाज उसके कानों में गूंज रही थी,,,,
सुरभि इसी कशमकश में थी कि दिलीप उसके पास आकर बैठ जाता है और उसके चेहरे पर हाथ रख देता है सुरभि नजरें झुका लेती है,,,
दिलीप उसका चेहरा ऊपर करके= सात फेरे लिए हैं आपने हमारे साथ.. हमारे नाम का मंगलसूत्र और सिंदूर है आपकी मांग में पूरे हक़ से आपको छू रहे हैं.. अब पूरा हक है हमारा आप पर.. आप पत्नी जो है हमारी....
सुरभि अपनी आंखें बंद कर लेती हैं आज तक सिर्फ उसकी जिंदगी के फैसले लेने का हक उसके पिता का था पर आज से उसके जिस्म पर भी किसी और का हक हो गया था,,,

दो दिन बाद सुरभि किसी रस्म के लिए अपने मायके आती है उसके पिता उसका पूरा परिवार सब बहुत खुश थे कृष्णा भी अपनी दोस्त के पास आती है वह सुरभी की तरफ देखती है जो अपने परिवार के बीच बैठी थी चेहरे पर एक मामूली सी मुस्कुराहट पर आंखों में एक गलानी थी चेहरे की खुशी शायद उसकी आंखों में नहीं थी,, मां पापा और परिवार को अपनी जिम्मेदारियों के बोझ से मुक्त कर दिया था आज उसने और अब हक अपने पति को सौंप दिया था और जिंदगी के इस कड़वे सच को शायद सुरभि अपना चुकी थी,,,,
सुरभि कृष्णा के पास आती है जो एक कोने में खड़ी थी सुरभि की आंखों से बेहताशा आंसू गिरने लगते हैं वह कृष्णा से लिपट जाती है कृष्णा भी उसे बाहों में भर लेती है,,,
हमने सौंप दिया खुद को उन्हें कृष्णा.. दे दिया पूरा हक नहीं रोक पाए उन्हें.. नहीं कह सके कि हम सम्मान नहीं जीता जागता इंसान हैं जिस पर सब अपना हक जताये... अब हम अपने सपने अपनी खुशियां सब कुछ अपने पति के नाम कर देंगे हमें इस रिश्ते की हकीकत को मानना होगा हमारे पापा जी मां दादा-दादी सब खुश है हमें भी यह नया रिश्ता निभाकर इनका कर्ज चुकाना है...सुरभि अपने आंसुओं के जरिए अपने दर्द को बाहर निकाल रही थी,,,
बस कर सुरभि.. मैं कुछ नहीं कहूंगी.. नहीं कहूंगी तुम्हें कि क्यों उन्हें हक दिया क्योंकि इस जिंदगी की हकीकत अब मुझे भी समझ आ गई है समझ आ गया है कि हमारी मां का हम पर हक है क्योंकि 9 महीने उन्होंने हमें अपनी कोख में रखा अपना दूध पिलाया हमें खड़ा होना सिखाया... पापा ने हमें पाल पोस कर बड़ा किया हमारी हर जरूरत पूरी की, परिवार ने हमें इस समाज में खड़ा होने के लिए अपना नाम दिया, भाई हमारी रक्षा करता है पति जिंदगी भर हमारे दर्द में हमारी खुशियों में हमारे साथ रहेगा और उसके बाद हमारे बच्चों का हक जो बुढ़ापे में हमे सहारा देंगे इन सब का हक है हमारे ऊपर चाहे वह कैसे भी हो हमें यह स्वीकार करना ही होगा.. लेकिन जिंदगी भर एक सवाल जो हमारे मन में रहेगा कि क्यों हमारा खुद पर हक नहीं है..? क्यों किसी के सहारे के बिना हम जिंदगी की नौका पार नहीं कर सकते.. क्यों हमें भी उसी तरह आजाद नहीं किया जाता जैसे पंछी अपने बच्चों के पंख निकलते ही उन्हें खुले आसमान में अकेले उड़ने को छोड़ देते हैं काश हमारे मां-बाप भी हमें थोड़ा मजबूत बनाते और कह देते कि तुम्हारी जिंदगी का हक अब तुम्हारे ऊपर है जो तुम चाहो वह करो अगर ऐसा होता तो ना हम उनके लिए बोझ बनते ना उनकी जिम्मेदारी और ना हमें उनसे कोई शिकायत होती.....
सुरभि और कृष्णा का परिवार जो उनके पास खड़ा यह बातें सुन रहा था उनकी आंखों में भी आंसू थे क्योंकि बच्चों के मन में उनके फैसलों को लेकर कितना दर्द रहता है यह सुरभि और कृष्णा की बातों से उन्हें समझ आ गया था पर किसी के पास कहने को कुछ नहीं था और कहते भी तो क्या वही जो कहते आए हैं हक है हमारा तुम पर.....

Note: इस कहानी के जरिए मै किसी भी रिश्ते का अपमान नहीं कर रही बस एक हकीकत आपके सामने रखना चाहती हूं जो मैने अपने आस पास देखी है,, शायद वर्तमान समय में यही कारण है रिश्तों के बीच कड़वाहट का,, कभी हम अपनों को नहीं समझ पाते तो कभी अपने हमें नहीं समझ पाते,,,,


Manisha Netwal