ममता की परीक्षा - 88 राज कुमार कांदु द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ममता की परीक्षा - 88



रामलाल उस बुजुर्ग से अभी बात कर ही रहा था कि तभी भीड़ में से किसी ने जोर से चिल्लाकर कहा, "हटो हटो, डॉक्टर साहब आ गए। मास्टर साहब अभी ठीक हो जाएंगे।"

रामलाल ने उत्सुकता से खटिये पर लेटे मास्टर रामकिशुन की तरफ देखा जिनकी तड़प अब अपेक्षाकृत कम हो गई थी, लेकिन वह अभी भी खटिये पर निढाल से पड़े हुए थे।

रामलाल ने मुड़कर चौराहे से आनेवाली पगडंडी की तरफ देखा जहाँ से डॉक्टर बलराम सिंह अपने सहयोगी कम्पाउंडर भोला राम के साथ चले आ रहे थे। इतनी देर में रामलाल के पिताजी चौधरी श्यामलाल भी वहाँ आ पहुँचे थे।

मास्टर रामकिशुन के खटिये के नजदीक पहुँचकर डॉक्टर बलराम ने लगभग अचेत पड़े हुए मास्टर की कलाई पकड़कर उनकी नब्ज देखी। कलाई हाथ में थामे हुए उनके चेहरे पर कई रंग आ और जा रहे थे। कलाई हाथ में थामे हुए ही डॉक्टर साहब ने रामलाल की तरफ देखा, मानो पूछना चाह रहे हों कि क्या हुआ है मास्टर को ?'
उनका इशारा समझकर रामलाल ने अभी कुछ देर पहले उनके बारे में जो सुना था, सब बता दिया।

श्यामलाल खटिये के सिरहाने बैठ गए और मास्टर के बालों में हाथ घुमाते हुए उन्हें अधीरता से पुकारने लगे लेकिन मास्टर तो जैसे अचेत हो गए थे। चेहरा भावशून्य हो गया था। पलकों में कभी कभी कंपन हो रही थी मानो जबरदस्ती पलकें खोलने का प्रयास किया जा रहा हो लेकिन सफल न हो पा रहे हों। अब कलाई छोड़कर डॉक्टर ने अपनी पेटी में से आला लेकर उनका परीक्षण शुरू कर दिया और कुछ देर की परीक्षण के बाद उन्होंने श्यामलाल की तरफ निराशा भरी निगाहों से देखा। वो अच्छी तरह जानते थे मास्टर और चौधरी साहब की मित्रता के बारे में।

श्यामलाल से मुखातिब होते हुए वह बोले, "चौधरी साहब ! जैसा कि मुझे बताया गया है मास्टर साहब शहर से वापस आये तब बहुत परेशान से थे और उनका सिर भारी हुआ जा रहा था। तेज सरदर्द महसूस कर रहे थे लेकिन उस समय किसी ने ध्यान नहीं दिया। ध्यान रहे, यदि सिर भारी लगे और सिर दर्द भी महसूस हो तो इसे हल्के में ना लें। यह उच्च रक्तचाप की प्रारंभिक निशानी है। यह चेतावनी होती है कि आपके शरीर में सब कुछ सामान्य नहीं है। तुरंत डॉक्टर को दिखाएं और यदि यह संभव न हो तो जहाँ हैं जैसे हैं तुरंत ही बैठकर शरीर को अधिकतम आराम देने व सामान्य होने की कोशिश करनी चाहिए। मास्टर साहब के साथ यही गलती हुई है। इनका रक्तचाप अभी भी बेहद असामान्य स्तर पर है और स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। किसी तरह जल्द से जल्द यदि शहर के जिला अस्पताल तक इन्हें पहुँचाया जाय तो कुछ बात बन सकती है। अभी सिर्फ वहीं नई आधुनिक मशीनें आई हैं जिनसे इनके मस्तिष्क का सीधे परीक्षण किया जा सकता है। सिटी स्कैन करना होगा मास्टर साहब के दिमाग का, तभी सही स्थिति पता चलेगी। फिर भी मैं तत्काल राहत के लिए एक सुई दे देता हूँ। थोड़ी राहत अवश्य मिलेगी लेकिन शीघ्र इलाज शुरू करना अति आवश्यक है।"

डॉक्टर की यह बात सुनते ही समीप खड़ी ग्रामीण महिलाओं का समवेत रुदन शुरू हो गया। ग्रामीणों के चेहरे भी निराशा से लटक गए। शाम का समय था और शहर तक जाने का अब कोई साधन उपलब्ध नहीं था। शहर लगभग बीस किलोमीटर दूर था जहाँ पैदल लेकर जाना भी आसान नहीं था।
रामलाल ने डॉक्टर साहब की तरफ देखते हुए पूछा, " डॉक्टर साहब ! क्या इन्हें खटिये पर लेकर जा सकते हैं ?"

डॉक्टर ने रामलाल की तरफ देखा और बोला, "अगर जल्द से जल्द वहाँ पहुँच पाओ तो....नहीं तो मुश्किल ही है।"

"नहीं नहीं डॉक्टर साहब, ऐसा न कहिए। आप पर्ची लिख दीजिये बड़े अस्पताल के लिए। अभी हम लड़कों की दो टीम बनाते हैं। ज्यादा से ज्यादा दो घंटे में हम अस्पताल में होंगे। आपकी पर्ची रहेगी तो वहाँ इलाज शुरू कराने में हमको आसानी हो जाएगी।" कहकर उनके जवाब की प्रतीक्षा किये बिना वह वहाँ से निकल गया और अपने साथियों की तलाश करने लगा। शीघ्र उसके साथी मिल गए जो सहर्ष इसके लिए तैयार हो गए। छः युवाओं की एक टीम बन भी गई। इस बीच डॉक्टर ने मास्टर साहब को एक सुई दे दी थी।

सुई लगते ही मास्टर साहब थोड़ा सा कसमसाये और तब लगा कि उनके अंदर जान अभी बाकी है जबकि ऊपर से देखनेपर वह अब भी अचेत लग रहे थे।

उन्हें सुई देने के बाद डॉक्टर बलराम सिंह कंपाउंडर भोला और एक ग्रामीण युवक के साथ अपनी डिस्पेंसरी की तरफ बढ़ गए।

वहाँ से कुछ दूर आने के बाद भोला ने पूछ लिया, "डॉक्टर साहब ! मास्टर जी को सीने में दर्द हो रहा था और आप कह रहे हैं कि उनका रक्तचाप बढ़ा हुआ है इसीलिए खतरा बढ़ गया है। क्या रक्तचाप बढ़ने से सीने में भी दर्द होता है?"

उसके साथ धीरे धीरे क़दम बढ़ाते हुए डॉक्टर बलराम सधे हुए स्वर में बोले, "भोला, तुम नहीं समझोगे। बिल्कुल भोले ही हो तुम। ये जो सीने का दर्द है न वह भी इसी उच्च रक्तचाप की देन हो सकती है। होता क्या है कि अनावश्यक अतिरिक्त शारीरिक श्रम, या किसी दिमागी उलझन या तनाव की वजह से दिल की धड़कनें तेज हो जाती हैं, अर्थात शरीर में रक्त का प्रवाह बहुत तेज हो जाता है, यह हम जानते भी हैं और महसूस भी करते हैं, लेकिन दिल की धड़कनों के तेज होने के पीछे और भी वजहें होती हैं।
जब कोई तनाव या दिमागी परेशानी हो जाती है तो धमनियों में रक्त संचार की गति सामान्य से बहुत अधिक बढ़ जाती है। धमनियों में स्वच्छ रक्त की आपूर्ति बनाये रखने के लिए हृदय को तेज गति से काम करना पड़ता है। जैसे जैसे तनाव बढ़ता है,धमनियों में रक्त संचार की गति बढ़ती है और उसी अनुपात में हृदय के धड़कने की गति भी बढ़ती है। जब यह स्थिति अधिकतम सीमा तक पहुँच जाती है तब दिमाग को रक्त की आपूर्ति करने वाली नस के यह तनाव ना झेल पाने की स्थिति में फट जाने की आशंका प्रबल हो जाती है और यदि ऐसा हुआ तो मरीज का बचना लगभग नामुमकिन हो जाता है। इसी अवस्था को ब्रेन हेमरेज कहते हैं। यह इस बीमारी की चरम स्थिति होती है। इस स्थिति से पहले बहुत तनाव की वजह से कभी कभी दिमाग आंशिक क्षतिग्रस्त हो जाते हैं जिसका नतीजा होता है लकवा मार जाना या पैरालाइसिस। अब तुम समझ सकते हो कि मास्टर जी के सीने में दर्द क्यों हो रहा था।"

भोला मानो जैसे सब समझ गया हो, स्वीकृति में सिर हिलाते हुए बोला, "..लेकिन डॉक्टर साहब, अभी आपने देखा कि उनका रक्तचाप अभी भी बढ़ा हुआ है लेकिन सीने में या कहीं भी उनको पहले जैसा दर्द नहीं लग रहा था। ऐसा क्यों ?"

डॉक्टर साहब ने पीछे मुड़कर देखा, पीछे कोई नहीं था। साथ में चल रहा वह ग्रामीण युवक भी काफी आगे चल रहा था सो डॉक्टर साहब ने बहुत महीन आवाज में बताया, "भोला, जैसा कि मैंने बताया कि तनाव अधिकतम सीमा तक पहुँचने के बाद दिमाग की नसों के फटने का खतरा बढ़ जाता है। मास्टर जी को देखकर एक डॉक्टर के नाते मुझे पूरा यकीन है कि यही हुआ है, यानी ब्रेन हैमरेज हो चुका है और अब उनके बचने की कोई गुँजाइश शेष नहीं है, लेकिन एक मित्र के नाते चाहूँगा कि काश, मेरा डॉक्टरी का अनुभव गलत साबित हो जाय। सही साबित करने के लिए भी ct scan करना ही होगा मस्तिष्क का तभी स्थिति स्पष्ट हो पाएगी, इसीलिये मैं उन्हें बड़े अस्पताल भेज रहा हूँ।"
अचानक भोला की आँखें डबडबा आई थीं। अपने आपको सँभाल कर चलता हुआ वह बोला, "डॉक्टर साहब ! जब आपको पता है कि ऐसी स्थिति है तो फिर उन्हें शहर के अस्पताल में क्यों भेज रहे हो ? बेचारे गाँववाले इतने परेशान होंगे।"

डॉक्टर साहब बोले, "वो इसलिए भोला, कि मैं भी दिल से चाहता हूँ कि मास्टर जी स्वस्थ हो जाएं। हो सकता है मेरा आकलन गलत साबित हो जाय, या फिर कोई चमत्कार हो जाय। एक डॉक्टर के नाते मरीज का हरसंभव तरीके से आखिर तक उम्मीद के साथ इलाज करना मेरा धर्म है औऱ यही मेरा कर्म है जो मैं कर रहा हूँ। आगे ईश्वर की मर्जी !"

क्रमशः