सपने - (भाग-48) सीमा बी. द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सपने - (भाग-48)

सपने.......(भाग-48)

आस्था अपने कमरे में जा कर बहुत देर तक रोती रही, क्योंकि वो भी कहाँ आदित्य के बिना रहने का सोच सकती थी, पर उसका फैसला अडिग था। आदित्य भी अपने कमरे में परेशान होता रहा, ये तो नहीं था कि उसे आस्था से प्यार नहीं था या उसकी फिक्र नहीं थी। फिर वो भी अपनी जिद पर अड़ा ही रहा। दोनों एक दूसरे को समझते हुए भी नासमझ बने बैठे थे। आस्था उस दिन को कोस नहीं रही थी क्योंकि जो भी हुआ दोनो की मर्जी से हुआ, पर आगे क्या होगा ये चिंता होना भी वाजिब था, उसके दिल के किसी कोने में आदित्य के मानने की ये हल्की सी उम्मीद अभी बाकी थी। अगली सुबह रोज की तरह आस्था तैयार हो गयी और आदित्य भी उसे छोड़ने के लिए चल दिया। आस्था को चुपचाप देख कर सविता ताई ने तबियत के बारे में आस्था से पूछा तो उसने कह दिया," मैं ठीक हूँ ताई"! लंच और फ्रूटस साथ खाने के लिए रख लिया। रिहर्सल आखिरी पड़ाव पर है तो आस्था को वापिस आने में लेट हो ही जाएगा, फिर डॉ. ने भी कल उसे बताया था, अपना ध्यान रखने को और टाइम पर खाना खाने को....। जब कार में आदित्य ने फिर आस्था को समझाना चाहा तो आस्था ने उसे बता दिया कि, "वो अपना फैसला नहीं बदलेगी"। "आदित्य भी जैसी तुम्हारी मर्जी", बोल कर चुप हो गया। आदित्य को आस्था की जिद बचकानी लग रही थी, वो सोच रहा था कि बच्चे के पीछे क्यों पड़ी है ये, जब हम बच्चा संभालने लायक होंगे तब कभी भी बच्चा पैदा कर सकते हैं, इसमें इतना क्यों बहस कर रही है? आस्था ने उसे बताया कि "टाइम ज्यादा लगेगा तुम घर चले जाना, मैं आ जाऊँगी"! आदित्य बोला, " जितना मर्जी लेट हो जाना, मैं वेट कर लूँगा"। आस्था चुपचाप चली गयी और चलते चलते सोच रही थी कि, "यहाँ से अकेला जाने के लिए वो छोड़ना नहीं चाहता, पर अपनी जिद में मुझे हमेशा के लिए खोने को तैयार है, वो क्यों नहीं समझ रहा कि आगे जा कर कितने परेशानियाँ होती हैं देर से बच्चा पैदा करने में"। शाम को देर से ही आस्था फ्री हुई थी, वो जब बाहर आयी तो आदित्य गेट से आगे कुछ दूरी पर गाड़ी में बैठा इंतजार कर रहा था। घर वापिस आए तो देखा सविता ताई खाना बना कर चली गयी थी। चपातियाँ भी बनी रखी थी। दोनो ने फ्रेश हो कर खाना खाया और सोने को चले गए। बात करने में न आदित्य ने कोई पहल की न आस्था ने। अगले कुछ दिन तक यूँ ही मौन व्रत बना रहा। साथ जाते और साथ आते पर बात सिर्फ कुछ पूछने के लिए ही कर रहे थे! "एक दूसरे के गले लगना", "किस करना" या "आई लव यू कहना" बिल्कुल बंद हो गया था। दूसरे आसान शब्दों में कहूँ तो प्यार का उफान थम सा गया था। शायद हम इंसानों की एक फितरत होती है न जो हमें चाहिए या कहो जो पाने की तमन्ना हो वो मिल जाए तो कुछ टाइम बाद उस का मोल कम हो जाता है हमारी नजर में, या फिर हम उसको take it for granted लेने की गलती कर बैठते हैं। कई दिनों से छायी उन दोनो के बीच पसरी खामोशी को सविता ताई ने एहसास दिला दिया कि कुछ तो ऐसा हुआ है, जो आदित्य भैया और आस्था दीदी को खामोश कर गया है वर्ना हर वक्त चहकती रहती थी आस्था, अब कुछ पूछो तो काम की टैंशन बता कर आस्था बहाना बना निकल जाती। उधर आदित्य भी उखड़ा सा था। नवीन वापिस आया तो उसे भी उन दोनो में कुछ ठीक नहीं लगा पर उसने कुछ कहा नहीं। आस्था की तरफ से आदित्य को कोई जवाब नहीं मिला तो उसने अपने डैड को ऑस्ट्रेलिया जाने का कंफर्म कर दिया, जिससे वहाँ उसके रहने का और बाकी अरैंजमेंटस हो जाएँ। आदित्य की मॉम चाहती थी कि वो पहले दिल्ली आए,फिर वहाँ जाए तो आदित्य ने अपनी दिल्ली की टिकट बुक करवा ली। आस्था के प्ले की तैयारियाँ भी हो चुकी थी। कुछ दिन के बाद उसका प्ले था इसलिए वैसे तो उसका पूरा ध्यान प्ले पर ही था,पर जब भी फ्री होती उसे चिंता घेर लेती। नवीन से आखिर रहा नहीं गया को उसने आदित्य से पूछ ही लिया," क्या बात है आदित्य भाई, तुम दोनो में किसी बात को लेकर लड़ाई हुई है ? जब से आया हूँ देख रहा हूँ कुछ तो नार्मल नही है"! आदित्य ने उसे सब कुछ बता दिया, उसे तो आदित्य भी गलत नहीं लग रहा था और न ही आस्था को गलत कह सकता था, उसने आदित्य की पूरी बात सुन कर बस यही कहा," मैं तुम दोनो को जज नहीं कर सकता और न ही कोई राय दूँगा क्योंकि ये तुम दोनो की लाइफ है और इसको अपने ढंग से ही जीना चाहिए, पर तुम दोनो को ये सिचुएशन को आने से रोकना चाहिए था या खुद को हर सिचुएशन को फेस करने के लिए तैयार रखना चाहिए था"। "हाँ यार मैं आस्था को बोल रहा हूँ कि हम बाहर सैटल हो जाते हैं शादी करके पर वो यहीं रहना चाहती है, अब मुझे नेकस्ट वीक दिल्ली जाना है और वहाँ से ऑस्ट्रेलिया"!आदित्य की बात सुन कर नवीन बोला, "जाने से पहले आस्था से एक बार और बात करके देख लो, शायद मान जाए"? आदित्य ने कहा, " हाँ आज करता हूँ उससे बात"! आस्था का प्ले दो दिन बाद था तभी आदित्य ने अपनी दिल्ली की टिकिट उसके बाद की करवायी थी। रात को डिनर पर आदित्य ने आस्था से बात की और उसे एक बार फिर मनाने की कोशिश की पर आस्था अपना डिसीजन चेंज करने को तैयार नहीं थी। वो बच्चे को दुनिया में जरूर लाएगी,यही उसका आखिरी फैसला था और आदित्य भी बच्चा अभी नहीं चाहिए पर अटका था और बस दोनो ने बिना एक दूसरे को कुछ कहे अपनी राहें अलग कर लीं। उसके बाद दोनो ने न कोई झगड़ा किया न ही कोई इमोशनल हंगामा बस दोनों ने एक दूसरे को फ्यूचर के लिए बेस्ट ऑफ लक कहा और हमेशा के लिए अलग हो गए। आस्था को प्ले के दौरान 3 -4 दिन अपनी टीम के साथ रहना था तो वो उस दिन के बाद वापिस नहीं पहुँची। नवीन और आदित्य ने प्ले देखा और आदित्य दिल्ली चला गया, जाने से पहले आदित्य ने आस्था के लिए एक लैटर छोड़ दिया था जो इलने नवीन को दे दिया था उसे देने के लिए। आस्था का ये प्ले भी सुपरहिट रहा था, वो जब वापिस फ्लैट में आयी तो नवीन ने उसे आदित्य का लैटर दे दिया जिसमे लिखा था," आस्था मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ, पर शायद मैं तुम्हें अपनी बात नहीं समझा सका अगर तुम अपना इरादा बदलो तो मुझे कॉल कर देना"। आस्था ने वो लैटर पढ कर अपने पास रख लिया। नवीन को आस्था से कुछ पूछना और कहना अजीब लग रहा था, वो आस्था के लिए परेशान था पर उसे बता नहीं पाया। आदित्य दिल्ली से ऑस्ट्रेलिया पहुँच गया आस्था के फोन का इंतजार करते करते पर न तो आस्था ने अपना फैसला बदला और न ही फोन किया।
राजशेखर, रश्मि, सोफिया, श्रीकांत और सोफिया सब को धीरे धीरे दोनो के बारे में पता चला तो दोनो को समझाना चाहा पर वो नहीं समझा पाए। सबने के अपने सपने और ख्वाहिशें थी जिंदगी को जीने का सबका अपना तरीका था। फिर दोस्ती एक ऐसी चीज है जिसे निभाने के लिए अपने दोस्तों का हर हाल में साथ देना ही चाहिए, एक बार सही गलत बताना हर दोस्त का फर्ज होता ही है.......।
क्रमश: