सपने - (भाग-2) सीमा बी. द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सपने - (भाग-2)

सपने.......(भाग-2)

हमेशा बाहर जींस, कुरते और घर में टी शर्ट और लोअर में बेफिक्र सी रहने वाली आस्था को पापा ने सीधा साड़ी पहनने को कह दिया था.....आस्था ने मना करना चाहा पर माँ ने मिन्नत करके थोड़ी देर के लिए साड़ी पहनने को मना ही लिया....
आस्था भी क्या करती ? मान ली सबकी बात.....हल्के फिरोजी रंग की प्लेन साड़ी और नेवी ब्लू रंग के बार्डर वाली साड़ी पहन कर तैयार हो गयी, बालों को खुला रख लिया और गले में भाभी ने एक छोटा सा सेट पहना दिया और हो गयी आस्था तैयार.....मेकअप के नाम पर हल्की सी लिपस्टिक और आँखो में काजल लगा लिया। उसकी सुंदरता में इसी से ही चार चाँद लग गए थे। लड़का सपरिवार बिल्कुल सही समय पर आ गया और बातों और नाश्ते का दौर शुरू हो गया। फिर आस्था को बुलाया गया तो निकिता उसको लेने कमरे में चली गयी.....आस्था को ले जा कर सब के सामने एक कुर्सी पर बिठा दिया गया। लड़के की मम्मी ने कुछ सवाल पूछे, जिनके जवाब आस्था ने दे दिए.....सब आपस में किसी टॉपिक पर बात करने लगे तो आस्था ने लड़के मतलब "सूरज कुमार" की तरफ आँख उठा कर देखा तो देखते ही रह गयी, बिल्कुल पतला दुबला लड़का, मूँछे ऐसी जैसे पेन से एक लाइन ही खींच थी हो किसी ने होंठों और नाक के बिल्कुल बीच में....आगे के दो दाँत खरगोश कहें या चूहे की तरह थोड़ा बाहर को निकले हुए, तभी उसने सुना कि लड़के की माँ कह रही थी, "बहन जी सूरज और आस्था को थोड़ी देर अकेले बात करने के लिए छोड़ देते हैं, जो कुछ पूछना होगा पूछ और जान लें"। मिसेज सक्सेना ने अपने पति की तरफ देखा तो उन्होंने आँखो से सहमति दे दी....."आस्था बेटा जाओ सूरज को घर दिखाओ", माँ ने कहा तो आस्था ने निखिल की तरफ देखा जो मंद मंद मुस्कुरा रहा था।सूरज उठ खड़ा हुआ और आस्था उसके आगे आगे चल दी छत पर जाने के लिए......छत पर दोनों कुछ देर चुप रहे, फिर सूरज ने बात शुरू की उसके कॉलेज, पसंद नापसंद और क्या क्या शौक हैं? सब पूछ कर बोला, "मैंने तो आपको पहली नजर में देखते ही पसंद कर लिया था, मेरी तरफ से तो हाँ है, आप को जो पूछना है आप भी पूछ लीजिए"? आस्था तो जैसे वहाँ हो कर भी वहाँ नहीं थी, वो तो मन ही मन उसे देख कर कल्पना कर रही थी कि ये भुट्टा खाते हुए कैसे लगेगा? चूहा लगेगा या खरगोश बस यही डिसाइड नहीं कर पा रही थी कि तभी सूरज ने दोबारा पूछ लिया, "आस्था जी किस सोच में हैं आप? मैं कह रहा था कि जो मन में है वो पूछ लीजिए ना"? आस्था अपनी कल्पना पर थोड़ी मुस्कुराते हुए बोली, "जी मुझे कुछ नहीं पूछना"......"चलिए फिर नीचे चलते हैं", कह कर सूरज नीचे जाने के लिए सीढियों की तरफ मुड़ गया और आस्था उसके पीछे पीछे चल दी........नीचे आ कर उसने अपनी माँ के कान में कुछ कहा तो वो मुस्कुरा कर बोली," भाई साहब हमारे बेटे को आपकी बेटी बहुत पसंद आयी है, अब आप भी अपनी बेटी से पूछ कर सलाह मशविरा करके बता दिजिए.....!! उनकी बात सुन कर आस्था का मन किया कि चिल्ला कर कह दे, आँटी मुझे आपका बेटा पसंद नहीं, पर ये कह न पायी। पापा ने आस्था की तरफ देखा, फिर कुछ सोच कर बोले," मैं आपको बच्चों से बात करके फोन करता हूँ"। आस्था ने एक लंबी साँस ली...जब पापा ने उसे अंदर जाने को कहा और खुद भी उन्हें विदा करके ड्राँइग रूम में ही बैठ गए। मिसेज सक्सेना और निकिता सब तामझाम समेटने लगी और निखिल कपडे बदल कर पापा के पास आ कर बैठ गया, "क्या हुआ पापा क्या सोच रहे हैं"? "तुम्हें कैसा लगा लड़का" ? विजय जी ने सवाल के बदले सवाल किया। "पापा मुझे तो ठीक नहीं लगा लड़का, आस्था के मुकाबले वो लड़का ठीक नहीं है, हमारी आस्था में कोई कमी नहीं है और लड़का बस सरकारी नौकरी करता है इस गुण के सिवा मुझे उसमें कुछ खास बात नजर नहीं आयी। बैंक में जिस पोस्ट पर है वो, उस तरह का रौब और पर्सनेल्टी नहीं लगी बाकी आप को ज्यादा अनुभव है, जैसा आप को ठीक लगे"....निखिल ने पहली बार खुल कर अपना मत दिया था, शायद इसलिए बेटे की बात सुन कर विजय जी भी सोच में पड़ गए और कुछ देर रूक कर बोले, तुम ठीक कहते हो निखिल, मुझे भी हमारी आस्था के लिए वो योग्य लड़का नहीं लगा और इस तरह से आस्था के लिए पहले उम्मीदवार का प्रस्ताव सीधा घर के प्रधानमंत्री ने खुद ही सिरे से खारिज कर दिया तो निखिल के साथ साथ सब खुश हो गए, क्योंकि अगर विजय जी जिद करते "हाँ" करने की तो पूरे परिवार को विद्रोह करना पड़ता.....पर भाई की बहादुरी का जब आस्था को पता चला तो ईनाम में रात को उसने अपने पैसों से आइसक्रीम की ट्रीट दे डाली.....इस ट्रीट में बाकी लोग भी शामिल हो गए और आस्था खुल कर अपने पापा के सामने सूरज कुमार को देख कर जो जो कल्पनाएँ की थी बताने लगी। जिन्हें सुनकर विजय जी ने प्यार से हल्की सी चपत उसके गाल पर लगा दी......! आस्था की दिन भर की जलन कुढन अपने पापा की प्यार भरी चपत से खत्म हो गयी......उस दिन उसको पापा पर कुछ ज्यादा ही प्यार आ रहा था। उधर दूसरी तरफ विजय जी अपनी धर्मपत्नी से अपने कमरे में आस्था के लिए अच्छा सा लडका ढूँढने पर डिस्कस कर रहे थे और कह रहे थे, "आगे से पहले मैं या निखिल लड़का देखेंगे,हमें पसंद आएगा तभी घर पर किसी को बुलाया जाएगा"। वहीं पत्नी जी आज का दिन शांति से बीत गया इसके लिए भगवान का शुक्रिया अदा कर रही थीं......।
क्रमश: