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सपने - (भाग-10)

सपने......(भाग -10)
 
आस्था अपने हॉस्टल पहुँच कर भी पूरे दिन के बारे में सोच रही थी, कितनी जल्दी बीत गया पता ही नहीं चला.....उसने फ्रेश हो कर पहले घर पर बात की उसके बाद स्नेहा को फोन किया। आस्था का रोज का नियम था दिन में एक बार घर और स्नेहा से बात जरूर कर लेती थी.....! स्नेहा से पूरे दिन की बातें करके उसकी सारी थकान उतर गयी। आस्था खुश हो रही थी कि एक ही दिन में दो नए दोस्त बन गए.....श्रीकांत काफी सिंपल सा लड़का लगा और आदित्य की ब्रैंडेड कपड़े, जूते और मंहगा फोन और लंबी कार देख कर पता चल ही रहा था कि किसी रईस परिवार से है। फोन रखते हुए स्नेहा ने उसे सावधान भी किया, "आस्थू हमेशा अपने सपनों की तरफ ही अपना ध्यान रखना और अपने नए अमीर दोस्त की अमीरी में खो मत जाना और सिर्फ दोस्ती ही रखना"! आस्था ने उसकी बात पर हँसते हुए कह तो दिया," सारा दिन दादी के साथ रह रह कर तू भी उनकी तरह ही बात करने लगी है"! पर जब सोचने लगी तो उसे अपनी सहेली की बात गलत भी नहीं लगी। यही सब सोचते हुए आस्था सो गयी।आस्था का पूरा ध्यान अपने कोर्स पर था। फिर चाहे वर्कशॉप्स हों या लेक्चर्स.....जब हम जो काम करना चाहते हैं और वो करने को भी मिल जाता है तो हम सब अपना बेस्ट करने की कोशिश करता है। आस्था और बाकी सब भी पूरी ईमानदारी से मेहनत कर रहे थे। आदित्य और श्रीकांत से मिलना उसके अगले संडे भी हुआ।इन तीनों ने आपस में कभी अपने स्टेटस की बात कभी नहीं की....आदित्य को उन लोगो के साथ टाइम बिताना अच्छा लगा.....तीनो ने एक रूल बना लिया था दोस्ती में खर्चा बराबर हिस्सों में बाँटा जाएगा .....आदित्य को इसकी आदत नहीं थी क्योंकि उसी ने हमेशा दोस्तों के बीच बिल पे किया था....पर उसे उनकी बात माननी पड़ी। सोनिका दिल्ली से बाहर गयी हुई थी तो वो उस संडे नहीं आयी।
"अगली बार कब मिलेंगे"? श्रीकांत ने पूछा तो आदित्य ने कहा, "जब तुम दोनो फ्री हों बता देना"। "अगले संडे मिले क्या"? श्रीकांत ने पूछा तो आस्था ने मना कर दिया। "हमारी सेटरडे छुट्टी है तो मैं फ्राइडे इवनिंग में घर जा रही हूँ । मंडे को सुबह वापिस आ कर सीधा क्लासेज.....उसके बाद के वीकेंड पर मिलेंगे"। श्रीकांत और आदित्य ने कहा," ठीक है,कहाँ मिलना है वो तभी डिसाइड करेंगे"। इस बार आदित्य ने दोनो को छोड़ना चाहा पर दोनो ने ही मना कर दिया," यार आदित्य ये ठीक नहीं है, तुम हम दोनो को छोडो़गे फिर ट्रैफिक में खुद जाओगे....हम जैसे आए थे वैसे चले जाएँगे, क्यों आस्था"!! "हाँ बिल्कुल ठीक कह रहे हो तुम "श्री", हम चले जाएँगे" आस्था ने कहा तो आदित्य को उनकी बात माननी ही पड़ी। सब कुछ बहुत परफेक्ट चल रहा था। आस्था जब घर गयी ते उसके पापा अपनी बेटी को खुश देख कर काफी खुश थे......2 दिन कब निकल जाते पता ही नहीं चलता। हॉस्टल में जो जो लड़कियाँ घर गयी, सब के पैरेंटस ने कुछ न कुछ बना कर दिया था। कोई मठरी तो कोई लड्डू , स्नैक्स सब मिल कर खाते .....!! एक पुरानी कहावत है न, "खरबूजा खरबूजे को देख कर रंग बदलता है", ठीक वैसे ही आदित्य अपने नए दोस्तों ले बहुत कुछ सीख रहा था...... आस्था ने अपने हर सेमेस्टर में बेस्ट किया जिससे उसको स्कॉलरशिप भी मिली। आस्था की अपने साथ पढने वालों से भी दोस्ती हो ही गयी थी। आदित्य और श्री से मिलना होता रहा आस्था का......जैसे जैसे दोस्ती पुरानी होती जा रही थी,ये तीनों दोस्त एक दूसरे को जानने लग गए थे। आस्था काफी बिजी होती जा रही थी.....अपने थियेटर और उससे जुड़ी Activities में। 2-3 बार आस्था और श्रीकांत को आदित्य ने अपने फ्लैट में बुलाया तो आस्था भी अपनी दो सहेलियों को ले कर गयी....सब ने वहाँ खूब एंजाय किया। आदित्य ने जब देखा कि सब का कोई न कोई सपना है, जिसे पूरा करने के लिए वो मेहनत कर रहे हैं, पर वो अपना टाइम वेस्ट कर रहा है, कभी कभार इवेंटस Oragnize करने से क्या हो पाएगा। ये सब सोच कर उसने आगे पढने के बारे में सोच ही लिया। उसके डैड भी चाहते थे कि वो MBA कर ले......पर अपने मॉम डैड की कोई बात न मानने की जैसे कसम ही खा ली थी। जब उसने घर जाकर डैड को बताया कि वो MBA करना चाहता है तो वो खुश हो गए। हालंकि उसके डैड चाहते थे कि वो विदेश जा कर MBA करे, पर उसने मना कर दिया ये कह कर कि मैं India से ही करूँगा। आदित्य का एक फ्रैंड मुंबई से ही कर रहा था, सबसे फेमस और अच्छा कॉलेज से तो आदित्य ने भी वहीं एडमिशन ले लिया। जब आस्था और श्रीकांत को पता चला तो वो बहुत खुश हो गए, साथ उदास भी।"श्री, आस्था तो अपना कोर्स खत्म करके मुंबई आएगी ही, तुम तो वैसे ही यहाँ फिजूल में रह रहे हो, ये बात तो मुझे पता है तो क्यों न तुम भी चलो, वहीं कुछ कर लेना"!!
"आदित्य क्या मतलब फिजूल में"? आस्था ने उसकी बात सुन कर पूछा तो आदित्य श्रीकांत की तरफ देख कर मुस्कुरा दिया और बोला, "ये जितना सिंपल दिखता है न, उतना है नहीं। इसके बाप दादा के पास बहुत पैसा है, इसके पैरेंटस ने इसे अपने से दूर रखा हुआ है कुछ फैमिली के झगडो़ं के वजह से, पढाई खत्म हो चुकी इसकी बस टाइम पास करने को थोड़ा बहुत काम कर रहा है, यही काम वहाँ कर लेगा। मुझे भी कंपनी मिल जाएगी"। श्रीकांत बोला ठीक है," ब्रदर चलो मैं भी चलता हूँ"। "तुम दोनो ही जा रहे हो! मुझे अकेल छोड़ कर"! आस्था ने थोड़ा फिल्मी स्टाइल में कहा तो श्रीकांत ने हँसते हुए कहा, " हाँ ड्रामा क्वीन, तुम्हारा कंपलीट हो जाएगा तो हिरोइन बनने को मुंबई तो जाना ही पडे़गा ,सो हमारे पीछे पीछे आ जाना तुम भी, फिर वहाँ भी मजे करेंगे"!!
"हाँ ठीक है, पर जब यहाँ परफार्म करूँगी तो तुम लोग देखने को नहीं होंगे"! आस्था ने कहा को आदित्य ने बोला," तुम हमें बता देना हम जरूर आएँगे" ! आदित्य की बात सुन कर बोली, "पक्का प्रॉमिस न"? हाँ यार, हम जरूर आएँगें....दोनो एक साथ बोले तो तीनो ही हँस दिए। "आदित्य सोनिका तुम्हें बहुत मिस करेगी"? आस्था कि बात सुन कर आदित्य बोला, " यार, वो वैसी गर्लफ्रैंड नहीं है, कोई कमिटमेंट नहीं बस हम दोनो ही टाइम पास कर रहे हैं"! आस्था को ये सुन कर अच्छा तो नहीं लगा था, पर दिल्ली में इतने दिनों से हॉस्टल में सबके बीच रह कर ये बात तो जान गयी थी कि यहाँ खुलापन बहुत है, रिश्ते सहूलियत के साथ बनते बिगड़ते रहते हैं तो वो चुप ही रही.......आखिर वो दिन भी आ गया, जब आदित्य और श्रीकांत के जाने का टाइम आ गया। 2 दिन पहले तीनों ने खूब पार्टी की थी........जाते जाते भी दोनों ने फोन पर बात करते रहेंगे का वादा भी किया था।
क्रमश:
 

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