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विद्या की एम.ए. (प्रथम वर्ष) की परीक्षा आरम्भ होने वाली थी कि हरियाणा पब्लिक सर्विस कमीशन ने एच.सी.एस. एण्ड अलाइड सर्विसेज़ के लिए विज्ञापन निकाला। विज्ञापन में परीक्षा जून-जुलाई में होने की सम्भावना दर्शायी गई थी। विद्या ने सोचा, एम.ए. (प्रथम वर्ष) की परीक्षा तो दस मई को समाप्त हो जाएगी, उसके बाद भी तैयारी करने के लिए पर्याप्त समय मिल जाएगा। यही सोचकर उसने फ़ॉर्म भर दिया।
एम.ए. की परीक्षा देकर आने के बाद उसने अपने आपको अपने स्टडी-कम-बेडरूम तक सीमित कर लिया। जून के अंतिम सप्ताह में एच.सी.एस. की परीक्षा के लिए उसे चण्डीगढ़ जाना पड़ा। प्रभुदास ने सुशीला को उसके साथ भेजा। वहाँ दस दिन तक वे एक होटल में ठहरीं। प्रथम अवसर और बिना किसी के मार्गदर्शन के भी विद्या अपने प्रयास से सन्तुष्ट थी।
इस परीक्षा का परिणाम जनवरी में घोषित हुआ। विद्या लिखित परीक्षा में सफल रही। इंटरव्यू फ़रवरी में शुरू हुए। विद्या इंटरव्यू के बाद जब घर आई तो वह अधिक उत्साहित नहीं थी। यह देखकर प्रभुदास ने हौसला देते हुए कहा - ‘बेटे, तूने अपना कर्त्तव्य पूरी निष्ठा से निभाया है। पहले प्रयास में तुझे निराश होने की ज़रूरत नहीं। मुझे विश्वास है कि इस बार नहीं तो अगली बार तेरी सिलेक्शन अवश्य होगी। वैसे कोई बड़ी बात नहीं कि इस बार भी तेरा नम्बर पड़ जाए।’
द्वितीय वर्ष की परीक्षा आरम्भ होने से कुछ दिन पूर्व एच.एस.सी. का परिणाम घोषित हुआ। चयनित उम्मीदवारों में अपना नाम न पाकर विद्या को निराशा हुई। इसका असर उसकी एम.ए. की परीक्षा पर भी पड़ा। जहाँ वह प्रथम वर्ष में प्रथम रही थी, वहीं फ़ाइनल में द्वितीय स्थान पर फिसल गई।
एम.ए. का रिज़ल्ट आने के बाद घर में उसके विवाह की बातें होने लगीं। एक दिन उसने प्रभुदास से कहा - ‘पापा, एच.सी.एस.. की पोस्टें तो हर साल निकलती नहीं। मेरा ख़्वाब तो अफ़सर बनने का है। इस बार मैं आई.ए.एस. का एग्ज़ाम देना चाहती हूँ। अभी आप विवाह की बात एक साल तक स्थगित कर दो।’
‘बेटे, प्रिंसिपल कह रही थी कि विद्या इंटेलीजेंट है, यूनिवर्सिटी में भी सैकिंड आई है, कॉलेज में रेगुलर नहीं तो एक-आध पीरियड ले लिया करे।’
‘हाँ, यह मैं कर सकती हूँ। इससे मुझे कंपीटिशन की तैयारी करने में कॉलेज की लाइब्रेरी से सहायता मिल जाएगी। …. मैं प्रिंसिपल से मिल लूँगी।’
रात को सुशीला ने प्रभुदास को कहा - ‘आपने विद्या की बात मानकर ठीक नहीं किया। बाईस साल की हो गई है। रिश्ता कौन-सा जब चाहा, तभी हो जाता है। देखते-भालते भी तो साल-छह महीने लग जाते हैं। ….. जब मैं इसकी उम्र की थी, तब तक पवन और दीपक हो चुके थे।’
‘भागवान, तब बात और थी। समय बहुत तेज़ी से बदल रहा है। बच्चों के सपने बड़े हैं। विद्या ने अफ़सर बनने की ठान ली है तो मुझे यक़ीन है, वह अफ़सर अवश्य बनेगी।’
विद्या को पता था कि पापा ने कह दिया तो उसकी राह में और कोई बाधा नहीं आएगी। उसने कॉलेज ज्वाइन कर लिया। दो पीरियड का उसका टाइम टेबल बन गया, लेकिन वह सुबह नौ बजे तैयार होकर कॉलेज जाती और डेढ़-दो बजे घर आती। दो पीरियड लगाने के बाद स्टाफ़-रूम में बैठने की बजाय वह लाइब्रेरी में बाकी समय लगाती। लाइब्रेरियन ने उसकी सुविधा के लिए एक कोने में कुर्सी-मेज़ लगवा दिया था ताकि वह किसी भी प्रकार के व्यवधान के बिना अपनी पढ़ाई कर सके।
…….
‘देहदान महादान संस्था’ की राज्य-स्तरीय मीटिंग के बाद प्रभुदास यमुनानगर ज़िले के मुख्य सचिव विमल प्रसाद के घर रात्रि-विश्राम के लिए रुका। पारिवारिक बातों के बीच विद्या के बारे में भी विमल प्रसाद ने पूछा कि वह क्या कर रही है। प्रभुदास ने विद्या के एम.ए. करने, एच.सी.एस. का एग्ज़ाम देने किन्तु सफल न हो पाने तथा इस बार आई.ए.एस. के लिए तैयारी करने के बारे में बताया। विमल प्रसाद ने उसे कहा कि उसे विद्या के विवाह के बारे में सोचना चाहिए। लड़की की ज़्यादा उम्र होने पर अच्छा रिश्ता मिलना मुश्किल हो जाता है। उसने बताया कि उसके साले हरि मोहन के लड़के ने इस बार आई.ए.एस. का एग्ज़ाम दिया था और उसकी सिलेक्शन इनकम टैक्स ऑफ़िसर के रूप में हुई है। लड़का चाहता है कि लड़की पढ़ी-लिखी और सुन्दर हो। विद्या पढ़ी-लिखी भी है और सुन्दर भी है। लड़का मेरी बात टाल नहीं सकता।’
प्रभुदास - ‘विमल जी, आपकी सारी बातें ठीक हैं, किन्तु मैंने विद्या से वादा किया है कि जब तक वह आई.ए.एस. की परीक्षा नहीं दे लेती तब तक मैं उसके विवाह के सम्बन्ध में कोई बात नहीं करूँगा।’
‘प्रभुदास, विद्या विवाह के बाद भी परीक्षा दे सकती है। प्रफुल्ल, हरि मोहन के लड़के, को तो इससे ख़ुशी ही होगी।’
‘विमल जी, आपने बात चलाई है तो शायद परमात्मा को यही मंज़ूर होगा। मैं घर जाकर बात करता हूँ और आपको इत्तला करता हूँ।’
वापसी पर प्रभुदास सारे रास्ते विमल प्रसाद के प्रस्ताव पर विचार करता रहा। उसे लगा कि ऐसा रिश्ता तो नसीब वालों को मिलता है। इनकम टैक्स ऑफ़िसर बहुत बड़ा पद है। जैसा विमल ने कहा है कि विवाह के बाद भी विद्या आई.ए.एस. के पेपर देती है तो भी लड़के वालों को कोई एतराज़ नहीं होगा, ऐसे में तो विद्या को किसी भी तरीक़े से मनाना ही होगा। यदि विद्या मान जाती है तो मैं तो गंगा नहा लूँगा।
जब प्रभुदास घर पहुँचा तो रात का खाना बन रहा था। सुशीला ने उससे चाय के लिए पूछा, लेकिन उसने इनकार कर दिया। हाथ-मुँह धोकर उसने सुशीला को खाने की थाली लगाने के लिए कहा। थाली रखकर सुशीला जाने लगी तो प्रभुदास ने उसे रोक लिया और खाना खाते-खाते विमल प्रसाद के साथ हुई सारी बातें बताईं।
‘मैं तो पहले ही कहती थी कि अब हमें विद्या के विवाह की सोचनी चाहिए, लेकिन आप ही अपनी लाड़ली की बात नहीं टाल सके। आप ही विद्या को समझा सकते हो, मेरी तो वह सुनती नहीं। मेरे हिसाब से इससे बढ़िया रिश्ता ढूँढे से भी नहीं मिलेगा।’
दूसरे दिन सुबह जब विद्या तैयार होकर कॉलेज जाने लगी तो प्रभुदास ने पूछा - ‘विद्या, आज तेरा पहला पीरियड है क्या?’
‘नहीं पापा, क्यों?’
‘फिर थोड़ा रुक जा। तेरे साथ कुछ बात करनी है।’
विद्या रुक गई। प्रभुदास ने प्रफुल्ल के पहली बार में इनकम टैक्स ऑफ़िसर बनने तथा विमल प्रसाद की कही हुई सारी बातें बड़े धैर्य के साथ बताईं। विद्या ने सारी बातें सुनने के बाद कहा - ‘पापा, मुझे सोचने के लिए समय चाहिए।’
‘ठीक है। तू जो भी फ़ैसला लेगी, मुझे उम्मीद है, वह परिवार के लिए ही नहीं, तेरे भविष्य के लिए सुखद होगा।’
…….
लाइब्रेरी में पढ़ते हुए विद्या के मन में पापा की कही बातें ही घूमती रहीं। पढ़ने में उसका बिल्कुल भी मन नहीं लगा। अन्यमनस्कता में ही उसने एक पीरियड पढ़ाया। दोपहर में खाना खाकर अपने कमरे में आकर किताब उठाई तो वही हाल। वह सोचने लगी कि पापा ने बताया था कि विवाह के बाद भी यदि मैं कंपीटिशन में बैठना चाहूँगी तो उन्हें कोई एतराज़ नहीं होगा। हो सकता है कि प्रफुल्ल स्वयं भी आई.ए.एस. के लिए दुबारा चांस लेता हो! अगर ऐसा हुआ तो मुझे उसकी गाइडेंस तो मिलेगी, क्योंकि वह एक सफल प्रयास कर चुका है। मान लूँ कि मैं सफल नहीं भी होती तो भी एक सीनियर अफ़सर की पत्नी होने से भविष्य तो उज्ज्वल रहेगा, सन्तान को भी बेहतर सुविधाएँ मिल सकेंगी। यही सब कुछ तो मैं पाना चाहती हूँ अफसर बनकर। यहाँ आकर उसने पापा की बात मान लेने का मन बना लिया।
विद्या के फ़ैसले से घर भर में ख़ुशी की लहर दौड़ गई। सुशीला माँ होने के नाते सबसे अधिक खुश थी। हर माँ कीं तमन्ना होती है कि बेटी विवाह योग्य होते ही ब्याह दी जाए और सुयोग से पति अच्छा कमाने वाला हो तो उसकी ख़ुशी का पारावार नहीं रहता। सुशीला को उम्मीद थी कि जैसा उसके पति ने बताया है, उसके अनुसार तो यह माँग कर रिश्ता लेने वाली बात होगी।
विद्या की सहमति के बाद प्रभुदास ने विमल प्रसाद को सूचित करने में तनिक भी देरी नहीं की।
रविवार को विमल प्रसाद हरि मोहन, प्रफुल्ल तथा हरि मोहन की बेटी और दामाद को लेकर दौलतपुर पहुँच गया। इधर प्रभुदास ने दीपक और प्रीति को बुला लिया था, क्योंकि कृष्णा का प्रसव नज़दीक होने के कारण अतिथियों का अतिरिक्त बोझ उसपर नहीं डाला जा सकता था।
ऐसे अवसरों पर आमतौर पर लड़की जिसका रिश्ता होना होता है, चाय-नाश्ते की ट्रे के साथ अतिथियों के समक्ष आती है, किन्तु प्रभुदास ने विद्या के साथ सुशीला और प्रीति को बैठने के लिए पहले से बोल रखा था और चाय-नाश्ता लाने का काम दुकान के नौकर के सुपुर्द किया हुआ था। रसोई का काम जमना और कृष्णा ने सँभाला हुआ था।
जैसे ही विद्या को लेकर सुशीला और प्रीति ने प्रवेश किया, नमस्ते का आदान-प्रदान हुआ। प्रफुल्ल को लगा कि उसने विद्या को पहले देखा हुआ है! थोड़ा सोचने पर ही सब कुछ याद आ गया। उसने उपस्थित अन्य सदस्यों की परवाह किए बिना कहा - ‘विद्या जी, मैंने तो आपको पहले भी देखा है।’
इस अचानक उद्घाटन से विद्या सहित सभी उपस्थित जनों को आश्चर्य हुआ।
विद्या ने नि:संकोच कहा - ‘मैं तो नहीं समझती कि मैंने कभी आपको देखा हो!’
प्रफुल्ल ने हँसते हुए कहा - ‘आप मुझे कैसे देख सकती थी? मैं तो दर्शकों की भीड़ में एक दर्शक था जो आपको देख रहा था।’
विद्या को अचम्भा हुआ। उसने पूछ लिया - ‘आप कहाँ की बात कर रहे हैं?’
‘डेढ़ वर्ष पहले यूनिवर्सिटी ऑडिटोरियम में ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम्’ नाटक में आपने शकुंतला का अभिनय किया था। शकुंतला के रूप में आप बहुत ही आकर्षक लग रही थी। सभी दर्शक आपके अभिनय को देखकर मन्त्रमुग्ध हो उठे थे।’
‘आप कौन-से डिपार्टमेंट में थे?’
‘तब मैं इकोनॉमिक्स सैकिंड ईयर में था।’
विमल प्रसाद ने ठहाका लगाते हुए कहा - ‘अरे वाह! प्रफुल्ल, इसका तो मतलब यह हुआ कि तुझे विद्या पहले से ही पसन्द है?’
प्रफुल्ल झेंप गया और बोला - ‘नहीं फूफा जी, यह बात नहीं।’
‘तो क्या बात है?’
प्रफुल्ल को असमंजस से उबरने का मौक़ा देते हुए प्रभुदास ने कहा - ‘विमल जी, इतनी जल्दी ना कीजिए। बच्चों को खुलकर एक-दूसरे से बातें करने दो, इतने में हम कुछ और बातें कर लेते हैं।’
प्रभुदास का संकेत समझ कर प्रीति प्रफुल्ल, उसके बहन-बहनोई तथा विद्या को ऊपर चौबारे में ले गई। उनके जाने के बाद सुशीला ने हरि मोहन से पूछा - ‘भाई साहब, बहन जी नहीं आईं?’
जवाब हरि मोहन की बजाय विमल प्रसाद ने दिया - ‘भाभी जी, मैं शायद प्रभुदास को बताना भूल गया। हरि मोहन की पत्नी तो दो साल पहले शरीर छोड़ गई।’
प्रभुदास और सुशीला दोनों के मुँह से एक साथ निकला - ‘ओह!’
प्रभुदास ने पूछा - ‘क्या हुआ था उनको?’
हरि मोहन - ‘ब्रेन ट्यूमर का पता देरी से लगा, वही उनका काल बन गया।’
कुछ देर के लिए माहौल गमगीन हो गया, चुप्पी छाई रही।
प्रभुदास - ‘फिर तो विद्या को सासु माँ का प्यार नहीं मिल पाएगा!’
हरि मोहन ने मज़ाक़िया लहजे में उत्तर दिया - ‘भाई साहब, लोग तो चाहते हैं कि उनकी बेटी को सास का सामना न करना पड़े, आपकी सोच तो बिल्कुल अलग है।’
‘भाई साहब, सासु माँ का वरदहस्त सिर पर होता है तो बहू को कोई चिंता नहीं होती। … मेरी माँ के रहते मेरी पत्नी ने कभी कोई चिंता नहीं की थी। अब हमारी बहुएँ निश्चिंत होकर जीवन बसर कर रही हैं।’
‘आप जैसी सोच हर परिवार की हो जाए तो पारिवारिक कलह के मसले ही ख़त्म हो जाएँ। …. यदि अपना यह रिश्ता सिरे चढ़ जाता है तो मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि विद्या को सास और ससुर दोनों का प्यार मैं देने की कोशिश करूँगा।’
ये बातें चल रही थीं कि हरि मोहन की बेटी ने बैठक में आकर हरि मोहन को कहा - ‘पापा, बधाई हो। भइया की हाँ है।’
यह सुनते ही विमल प्रसाद ने उठकर प्रभुदास को झप्पी में लेते हुए उसे बधाई दी और हरि मोहन को कहा - ‘हरि, प्रभुदास से तो मैं बिचौलिये का नेग ले नहीं सकता, उसकी भरपाई तुम्हें ही करनी पड़ेगी।’
हरि मोहन - ‘जीजा जी, यह भी कोई कहने की बात है। सब कुछ आपके आशीर्वाद से हो रहा है, आगे भी आपने ही करना-धरना है।’
प्रभुदास - ‘दीपक, जा प्लेट में मिठाई रख ला। सबका मुँह मीठा करवा और रामरतन भाई साहब को भी फ़ोन कर दे।’
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