एक चिट्ठी प्यार भरी - 4 Shwet Kumar Sinha द्वारा पत्र में हिंदी पीडीएफ

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एक चिट्ठी प्यार भरी - 4

प्रिय प्रियतमा,
आज एकबार फिर तुम्हारी नगरी में हूं। पर सबकुछ कितना बदल गया है यहां! या फिर शायद ये मेरी नजरों को धोखा भी हो सकता है क्योंकि तुम जो साथ नहीं हो अब।
याद है, पहले हम और तुम साथ–साथ कितना घुमा करते थे! तुम जब मुझसे मिलने आती थी, तो तुम्हे देखकर ही मेरी मीलों लंबी सफर की थकान छूमंतर हो जाया करती थी। फिर हमलोग कभी शहर में, तो कभी शहर से बाहर कितना घूमा करते थे! तुम्हारे बगैर बड़ी हिम्मत करके मैं पहली बार तुम्हारे शहर में आया और उन हरेक गली–कूची से होकर गुजरा, जिनपर तुम्हारे पैरों के छाप आज भी मुझे हर जगह महसूस हुए। हाथो में हाथ बांधे हमदोनों हंसी ठिठोली करते हुए मदमस्तों के जैसे फिरा करते थे। तुम्हारा स्कूल, कॉलेज, पुराना घर..उन हरेक रास्तों से गुजरती हुई तुम जब मुझे सारी बातें बताती थी, तो जैसे मैं तुम्हारी आंखों से उस क्षण तुम्हारा पूरा बचपन जी जाता था।

याद है तुम्हे, तुम्हारा वो favourite butterscotch icecream, जिसे देखकर तुम कहती थी "आइए आइसक्रीम खाते है।" और मेरा हाथ पकड़े बर्फ वाले के स्टॉल पर खड़े होकर फिर हम दोनों आइसक्रीम का लुत्फ उठाते थे। वैसे तो मैं बर्फ वैगरह बहुत ही कम खाता हूं क्यूंकि थोड़ा synus का भी problem रहता है, पर तुम्हारे साथ रहकर न जाने कब बटरस्कॉच फ्लेवर वाला वो आइसक्रीम मेरा पसंदीदा बन गया था। पर तुम क्या गई, अब बर्फ खाने की बात तो छोड़ो उसकी तरफ देखने की भी हिम्मत नहीं होती।

याद है हमलोग बस में बैठकर घूमने जाते थे। पर सबसे अंत में पहुंचने के वजह से हमें हमेशा एकदम पिछली वाली सीट ही मिला करती थी। पर एक दूसरे के साथ वो पिछली सीट भी हमदोनो के लिए कितना हंसाने वाला पल साबित होता था, जब बस के किसी speedbraker से होकर गुजरने पर bus उछलती तो हमदोनों भी अपनी seat से उछल जाया करते और फिर तुम खिलखिलाकर हंस पड़ती थी। किसी bus stop पर जब बस में वो परचून वाला चढ़ता तो हमदोनों के ही जीभ लपलपा उठते थे और हमदोनों जी भरकर फिर अपना बचपन जीते। अबकी भी अभी उसी बस पर बैठा हूं, पर अकेला। तुम नहीं हो साथ मेरे। पिछली सीट पर ही हूं,और बस की उछल कूद जारी है। पर इसबार बचपन नहीं, तुम्हारे साथ बिताए वो सारे पल जी रहा हूं। देखो, वो परचून वाला फिर बस में चढ़ा और मेरे सामने आकर खड़ा हो गया। मेरी तरफ ऐसे देख रहा है जैसे तुम्हारे बारे में पूछ रहा हो।
पता है मुझे तुम अब मेरे साथ तो नहीं हो और शायद कभी भी वो बीते पल लौटकर न आएं। पर तुम्हारे शहर के हरेक गली, नुक्कड़, चौराहे और वो हरेक रास्ते जिनपे हम कभी साथ हुआ करते थे, ऐसा लगता है जैसे तुम अभी सामने से निकलकर चली आओगी।

जानता हूं वो सब मेरा भ्रम है। शायद तुम्हारा प्यार भी मेरा भ्रम ही तो था, जो तब जाकर टूटा जब तुमने मुझसे कह दिया कि मैं तुम्हारे लायक नहीं हूं। खैर....कोई बात नहीं। भारी से भारी चीज टूटने की आवाज होती है, पर दिल टूटने की आवाज नहीं होती। फिर हर चीजें मुकम्मल थोड़े ही न हो पाती हैं! चाहे प्यार कह लो या इश्क जो खुद ही ढाई अक्षर से बने हैं, वो भी तो अपने में ही अधूरे हैं हमदोंनो के जैसे!

तुम जहां भी रहो, अपना ख़्याल रखना।
तुम्हारा और हमेशा तुम्हारा,

Disclaimer : पूर्णतः काल्पनिक।
पाठक इसे मेरी आपबीती समझने की गलती बिल्कल न करें। वैसे ये पढ़कर अगर उन्हें अपनी आपबीती याद आए तो यह महज संयोग हो ही है और कुछ नहीं।

धन्यवाद, फिर मिलेंगे एक नई चिट्ठी के साथ।