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लारा - 17 - (एक प्रेम कहानी )

(लारा भाग 17)

सोमा भी पूरे नौ दिन नवरात्र का व्रत रखती थी।लेकिन फिर काम तो करना ही था, जब घर में माँ के सिवा कोई और नहीं था करने वाला तो अकेली माँ ही कितना काम कर लेती। सोमा को काम तो बहुत रहता था लेकिन उन सब कामों के साथ साथ राम की यादें भी थी जो सोमा को अकेला नहीं छोड़ती थी। सोमा मन ही मन में राम से प्यार भी करती और गुस्सा भी, किसी और से भी लड़ाई हो जाती तो सोमा उसका गुस्सा राम पर ही निकाल देती थी। मन ही मन राम को सब बताती कि क्या और कैसे हुआ। राम से बातों ही बातों में सोमा का काम कब खतम हो जाता कुछ पता ही नहीं चलता था। सोमा सोचने लगी की अगर मै इसी प्रकार उनसे मन ही मन बात करती तो फिर मै कभी उन्हे अपने दिल से नहीं निकाल पाऊँगी।
और अब उन्हे भूलने का सिर्फ एक ही रास्ता है कि मै किसी और से बात करना शुरू कर दूं। नवरात्र के दूसरे दिन दोपहर दो बजे जब सोमा फुर्सत में हुई तो उसे अपने फोन का ख्याल आया की मेरा फोन कहा है। वैसे तो सोमा कभी भी अपना फोन नहीं छोड़ती थी, सुबह अपना काम शुरू करने से पहले सोमा अपना फोन बूफर पर कनेक्ट करके गाना बजा कर रख लेती थी, और जब तक वो काम करती तब तक उसका बूफर उसका साथ देता। क्युकी सोमा को संगीत बहुत प्रिये था। वो हमेशा यही कहती music is my life बिना संगीत के ज़िंदगी बेरंग है।
लेकिन राम से अलग होने के बाद ऐसा लगता था कि शायद अब सोमा संगीत से भी दूर हो जायेगी, उसकी दो वजह थी। एक तो ये की उसने हर संगीत को राम के साथ गा कर उसके हर एक शब्द को महसूस कर चूकी थी। संगीत के हर लब्ज राम के एहसासों से लिपटे थे। और दूसरा ये की उसका घर बन रहा था इसलिए उसके पिता जी घर पे ही रहते थे। क्युकी कामकाज देखने वाला और कोई नहीं था भाई है जो अभी 14 साल का था, उसकी नौवी क्लास की पढाई चल रही थी वो भी स्कूल चला जाता था, पिता जी बहुत कड़क बहुत शक्त स्वभाव के थे। हर 10 मिनट पर किसी ना किसी काम के लिए वही से बुलाने लगते थे जहाँ नया घर बन रहा था। और अगर कोई तुरंत न सुन ले उनकी बात कि क्या कह रहे है क्या काम है, और उन्हें वहाँ से उठ कर आना पड़ जाए तो समझ लो की सबकी सामत आ गयी, तुरंत डांटने, मारने, और तोड़ने पर उतर आते थे। इसलिए सोमा सोचती कि हम संगीत नही सुनेंगे घर में शांति बनी रहे बस। कौन संगीत का शोर शराबा करके बुफर भी तोड़वा दे और डांट भी खाये। इससे अच्छा फोन शांति से इधर उधर पड़ा ही रहे। सोमा के संगीत ना सुनने की यही सबसे बड़ी वजह थी।
दोपहर को जब सोमा अपना फोन लेकर लेटी तो उसे ख्याल आया कि क्यों ना आज मैं भी अपनी फोटो की स्टोरी लगा दूँ। लेकिन ऐसे करने से पहले उसे राम की बात याद आ गयी कि क्या कुछ करना पड़ा था उन्हें मनाने के लिए, इतना गुस्सा हो गए थे, नहीं मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए, ये गलत है, भले ही वो आज मेरे साथ नहीं है तो क्या हुआ प्यार तो हम आज भी उनसे ही करते हैं ना। तो उनके पसंद ना पसंद का खयाल रखना मेरा धर्म है। क्या करूँ लगा दूं यां रहने दूँ?
यही सब सोमा सोच ही रही थी कि राज का मैसेज आ गया।
हेलो, कैसे हो? हो गया आपका सारा काम लंच हो गया? सोमा ऑनलाइन आकर रिप्लाई देने लगी आज दोनों की बाते बहुत लंबी हुई क्योंकि दोनों एक दूसरे से अंजान थे। दोनों एक दूसरे के बारे में जानना थे।
राज के पिता जी अपनी फैमिली को लेकर मुंबई में रहते थे। उसकी फैमिली में उसकी माँ, पिता जी और दो छोटे भाई थे। बहन एक भी नहीं थी। भाईयो में सबसे बड़ा होने के नाते सारी जिम्मेदारी राज पर ही थी। उसकी माँ अक्सर बीमार रहती थी, घर में उनकी ना ही बहू थी और ना ही बेटी तो उनकी सेवा करता भी तो कौन ? इसलिए राज को ही बहू और बेटी दोनों का ही फर्ज निभाना पड़ता था। राज अपनी माँ से बहुत प्यार करता था, जिस दिन माँ बीमार पड़ जाती उस दिन राज अपनी माँ के पैरों में बैठे ही रात गुजार देता था। वो जब भी सोमा से बात करता तो बस अपनी माँ की ही बातें, आज माँ उठी नही, अभी कुछ खाई नहीं, आज बहुत दुखी है, आज उनको तकलीफ है। मतलब अगर देखा जाए तो राज की खुद की कोई ज़िंदगी थी ही नहीं, जो कुछ भी था वो बस उसकी माँ ही थी, खुद से भी जादा प्यार करता था अपनी माँ से। उसके खुद के ना कोई शौक और ना ही कोई ख्वाहिश। हाँ अगर किसी की ख्वाहश थी तो एक चाँद जैसी पत्नी की, और उसका स्वभाव तो ऐसा होना चाहिए कि हर किसी को एक पल में अपना बना ले। जिसे दौलत से नही अपनी फैमिली से प्यार हो। और शादी के बाद जब वो घर आये तो राज से ज्यादा उसकी माँ से प्यार करे। यहाँ तक की राज ने एक दोस्त तक नहीं बनाया था कि उनके साथ बाहर जाए घूमे टहले पार्टी करे, उसका मानना था कि जीतना वक्त इन फिजूल चीजों में बरबाद करेगा उतना वक्त अगर वो अपनी माँ के साथ बिता देगा तो उसकी माँ की तबियत बेहतर बनी रहेगी।

(आगे की कहानी जानने के लिए बने रहे हमारे साथ लारा भाग 18)

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