Exploring East India and Bhutan-Chapter-27
सत्रहवां दिन
National Museum of Bhutan, Paro Bhutan
भूटान के राष्ट्रीय संग्रहालय को पारो शहर में 1649 में स्थापित किया गया था. यह Ta Dzong बिल्डिंग में रिनपुंग डीज़ोंग के ऊपर स्थित है. इसे वर्ष1968 में रेनोवेटे करके म्यूजियम के रूप में खोला गया था. Ta Dzong शंख के आकार की गोल इमारत है, जिसे सफेद रंग से रंगा गया है. प्रारंभ में Ta dzong एक वॉच टॉवर था, जिसे रिनपुंग डीज़ोंग की सुरक्षा के लिए बनाया गया था. अतीत में इसका उपयोग प्रतिद्वंद्वी सैनिकों को जेल में रखने के लिए भी किया गया था.
यह एक सांस्कृतिक संग्रहालय है, जिसमे भूटान की 1500 वर्षों की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की 3000 से अधिक भूटानी आर्ट की पेंटिंग्स, कांस्य मुतियाँ, कवच, हथियार, हाथी दांत की दस्तकारी को प्रदर्शित किया गया है.
खुलने का समय: मंगलवार से शनिवार तक सुबह 9:00 बजे से शाम 4:00 बजे तक और रविवार को सुबह11:00 बजे से शाम 4:00 बजे तक.
सोमवार व् राष्ट्रिय होलीडेज़ में य्ढ़ बंद रहता है, यहाँ फोटोग्राफी की अनुमति नहीं है.
Rinpung Dzong Paro Bhutansoe
यह भूटान के एकमात्र हवाई अड्डे पारो से लगभग 6 km की दूरी पर खड़ी पहाड़ी पर स्थित है, इसे पारो डीजोंग के नाम से भी जाना जाताहै,इसका शाब्दिक अर्थ है: गहनों का ढेर (heap of jewels).
यह एक बौद्ध मठ और किला है, यह भूटानी वास्तु कला और उत्कृष्ट लकड़ी के काम का नमूना है , मठ में लगभग 200 भिक्षु रहते हैं. तिब्बत द्वारा पारो घाटी की रक्षा के लिए किले का इस्तेमाल कई अवसरों पर किया जाता रहा है .
रिनपुंग डीजोंग को सफेद रंग से रंगा गया है, किले में प्रवेश के लिए पहले सीडीयों से नीचे उतरना होता है व् बाद में सीडीयों की खडी चडाई है और यह थकावट देने वाला काम है . यहाँ एक बात का ध्यान रखें , आप जेसे ही अपने व्हीकल से उतरते हैं तो टिकेट काउंटर नजर नहीं आता, और प्रवेश द्वार पर पहुँच कर टिकेट लेने के लिए वापिस आना हिम्मत का काम है.
15 वीं शताब्दी में पाजो ड्रगोम ज़िग्पो के वंशज लामा Drung Drung Gyal ने यहाँ एक छोटा सा मंदिर बनवाया था, जो की बाद में एक पाँच मंजिला किले (Dzong) में परवर्तित कर दिया गया, व् यह किला Hungrel Dzong के नाम से जाना जाने लगा. बाद में 17 वीं शताब्दी में उनके वंशजो ने इस किले का नाम the Zhabdrung Rinpoche रख दिया, और इसके बा आने वाले समय में डेज़ोंग को ध्वस्त कर दिया और एक नए डज़ोंग का निर्माण करवाया और इसका नाम रिनपंग डज़ोंग रखा गया. पारंपरिक भूटानी कैलेंडर के अनुसार दूसरे महीने यानी मार्च या अप्रैल में ग्यारह से पन्द्रहवें दिन वार्षिक उत्सव का आयोजन किया जाता है जिसे देखने के लिए पर्यटकों की भीड़ लगती है और इसमें भिक्षुओं द्वारा पारंपरिक मुखौटा पहन कर mask dances का प्रदर्शन किया जाता है.
खुलने का समय : सुबह 8 बजे से शाम 430 बजे तक
“बस अब वापिस चलते हैं” मानसी ने भारी आवाज में कहा. आज सुबह से ही वह उदास थी , ना ही चहक राही थी ना ही किसी भी मोनुमेंट देखने में दिलचस्पी दिखा रही थी .
“क्या बात है” विनीता ने प्यार से उसे अपनी तरफ खींचते हुए पूछा . और कोई भी जवाब ना दे कर मनासी की आँखों से आंसूं बहने शुरू हो गये .
“पगली “ मैंने कहा और रोबी को वापिस होटल चलने का इशारा किया.