ममता की परीक्षा - 80 राज कुमार कांदु द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ममता की परीक्षा - 80



कुछ ही देर में अपने वादे के मुताबिक बंसीलाल सुशीलादेवी की कार के पास आया। उसके चेहरे पर खिली हुई विजयी मुस्कान देखकर सुशीलादेवी ने राहत की साँस ली। और कुछ पूछना बेमानी था अतः उसके अगली सीट पर कार में बैठते ही उन्होंने ड्राइवर को कार सीधे सुजानपुर पुलिस चौकी की तरफ बढ़ाने का आदेश दे दिया।
कुछ ही मिनटों बाद सुशीलादेवी व बंसीलाल दरोगा विजय के सामने बैठे हुए थे। कागजी कार्रवाई पूरी होने के बाद दरोगा ने सामने खड़े सिपाही को उन तीनों लड़कों को हवालात से रिहा कर देने का आदेश दिया।

आदेश का पालन किया गया। तीनों लड़के हवालात से बाहर निकले और दम्भ भरा मुस्कान बिखेरते हुए उन्होंने दरोगा विजय की तरफ देखा। राजू लगभग अकड़ते हुए बोला, "देखा, हमने बोला था न ! हमें ज्यादा देर यहाँ नहीं रख पाओगे।"

बंसीलाल ने इधर उधर देखते हुए एक सफेद लिफाफा दरोगा विजय की तरफ बढ़ा दिया और बोला, "तुमने हमारी बात नहीं मानी थी, लेकिन कोई बात नहीं। हम ईमानदार लोग हैं और इसलिए इस लिफाफे में तुम्हारा हिस्सा रखा हुआ है जो तुम्हारा हक है। घर जाकर देख लेना। मैडम किसी का एहसान बाकी नहीं रखती।"

ये देखकर रॉकी ने एक जोर का कहकहा लगाया और फिर सुशीलादेवी से लिपट कर दरोगा विजय की तरफ देखते हुए बोला, " वाह, मम्मा ! यु आर ग्रेट ! कुत्तों को बोटी देकर उन्हें साधना तुम्हें खूब आता है।"

क्रोध से दरोगा विजय की कनपटी सुर्ख हो गई। उन उद्दंड लड़कों को अभी वह अपना पुलिसिया रूप दिखाने ही वाला था कि तभी उसके कानों में कमिश्नर श्रीवास्तव के शब्द गूँजने लगे, "इंस्पेक्टर विजय ! तुम्हारे थाने में बंद वो तीनों लड़के हमारे लिए बेहद खास हैं। तुम्हें उन्हें बच निकलने के लिए आवश्यक हर संभव प्रयास करना है और उनको शिकायत का कोई मौका नहीं देना है। ध्यान रहे उनकी कोई शिकायत नहीं आनी चाहिए तुम्हारे बारे में मुझ तक। ओके !"
और कानों में गूँजते इन्हीं शब्दों के साथ विजय का सिर भी स्वीकारोक्ति की मुद्रा में हिलने लगा ,"ओके सर ! थैंक यू !" हाथ पहले ही उस लिफाफे तक पहुँच चुके थे।
और यही वह क्षण था जब तीनों लड़को ने समवेत स्वर में कहकहा लगाना शुरू कर दिया। कानून के हथियार से ही कानून का शिकार करने की खुशी में उनका समवेत अठ्ठाहस चौकी के उस छोटे से हिस्से में गूँज उठा।

दरोगा विजय ने अपनी मेज की दराज से एक कार की चाबी निकाली और बंसीलाल की तरफ सरका दिया जो अभी बस अपनी जगह से उठने ही जा रहा था। चाबी की तरफ हाथ बढ़ाते हुए बंसीलाल के मुख पर असमंजस के भाव देखकर दरोगा विजय मुस्कुराया ,"घबराओ मत ! हम किसी को बोटी नहीं डालते। तुम्हारी ही कार है जो हमने जब्त कर ली थी इन आरोपियों के साथ। कागजी कार्यवाही में कार सही सलामत तुम्हें सौंप देने के कागजातों पर भी हमने हस्ताक्षर करवा लिए और आपको पता ही नहीं चला। इसे देखते हुए अब मुझे यकीन हो गया है कि चापलूसी और जुगाड़ के दम पर नाकाबिल इंसान भी सफलता की बुलंदियों तक पहुँच सकता है, लेकिन माफ करना वकील साहब ! ये तुम्हारे गुर्गों का और तुम्हारा दम्भ अधिक देर तक कायम नहीं रहनेवाला क्योंकि उसके यहाँ देर भले है लेकिन नाइंसाफी नहीं। यहाँ तुम भले सबको खरीद लो लेकिन तुम्हारी सारी दौलत उसके आगे काम नहीं आएगी। धरी की धरी रह जायेगी तुम्हारी सारी दौलत, जानपहचान, रसूख और पहुँच।"

अब तक तीनों लड़के थाने से बाहर निकल चुके थे। अकेला बंसीलाल ही थाने में अंदर रह गया था जबकि सुशीलादेवी पहले ही उठकर अपनी कार में जाकर बैठ गई थीं। बाहर की गर्मी और उमस से परेशान सुशीलादेवी को वातानुकलित कार में बैठकर राहत मिली।

दो तीन दिनों से एक ही जगह खड़ी रॉकी की कार धूल मिट्टी से सनी हुई थी। वकील के हाथों से चाबी लेकर राजू ने सुशीलादेवी की कार के ड्राइवर से रॉकी के कार को थोड़ा साफ कर देने के लिए कहा। ड्राइवर भला कैसे मना कर पाता ?

पाँच मिनट बाद ही थाने से दोनों कारें आगे पीछे निकलीं और फिर शहर की तरफ जानेवाले रास्ते पर मुड़कर तेज गति से गंतव्य की तरफ बढ़ने लगीं।
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अपने साथियों के साथ बिरजू गाँव में घुसा ही था कि उसे गाँव का माहौल कुछ असामान्य सा लगा।
गाँव के उस नुक्कड़ से जहाँ तक बस आती है अपने घर की तरफ बढ़ते हुए बिरजू को आज लोगों का व्यवहार कुछ रहस्यमय लग रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे उसे देखनेवाला हर आदमी कुछ बात करना चाह रहा हो लेकिन फिर जैसे उसने अपना इरादा बदल लिया हो और एकदम से खामोश रहकर उससे कन्नी काट लेता है। लेकिन उनकी तरफ ज्यादा ध्यान न देकर वह बसंती और उसके गुनहगारों के बारे में ही सोच रहा था। उसके कानों में वकील बंसीलाल की आवाज गूँज रही थी, "आगे चलने वाली इस केस की सुनवाई में मैं सबूत और गवाह पेश करते हुए साबित कर दूँगा कि लड़की सहवास की अभ्यस्त थी।"
'सबूत और गवाह..?" उसने कई बार इन शब्दों को दुहराया।
सबूत तो गढ़े जा सकते हैं लेकिन ये वकील साहब गवाह किसको बनाएँगे ? शहरी गवाह तो माने नहीं जाएँगे और गाँववाला कौन है ऐसा जो झूठी गवाही देने के लिए तैयार हो जाएगा, वो भी हमारे खिलाफ ? लेकिन कुछ तो गड़बड़ है और जिसकी वजह से वकील का आत्मविश्वास इतना बढ़ा हुआ है। क्या करें हम जिससे मेरी गुड़िया को इंसाफ मिले ? मुझे ही कुछ करना होगा। अगर अभी से उस गद्दार का पता चल जाय तो उस वकील को उसके ही दावे पर घेरा जा सकता है।'

विचारों के इसी उधेड़बुन में खोया बिरजू जब अपने घर के सामने पहुँचा, घर के सामने चौधरी रामलाल के साथ ही गाँव के अन्य कई वरिष्ठ नागरिक बैठे हुए उसे नजर आए। उन्हें देखने मात्र से उसने अंदाजा लगा लिया कि अवश्य बसंती प्रकरण को लेकर ही उनके बीच कोई गहन मंत्रणा चल रही है।

उन सभी का अभिवादन करते हूए बिरजू चौधरी रामलाल जी से कुछ कहने ही वाला था कि अपना हाथ उठाते हुए उसे खामोश रहने का इशारा करते हुए उन्होंने कहा, " वो तीनों दरिंदे रिहा हो गए, यही बताना चाहते हो न ? लेकिन हमें पता है कि उनकी जमानत मंजूर कर ली गई है। हम ये जानना चाहते हैं कि उनकी जमानत मंजूर हुई कैसे ? क्या कहा जज साहब ने ?" उनके चेहरे पर क्रोध के भाव स्पष्ट नजर आ रहे थे।

संक्षेप में अदालत की पूरी कार्रवाई बयान करते हुए बिरजू ने कहा ,"जब मेडिकल रिपोर्ट का हवाला देते हुए उनके वकील ने गुड़िया को चरित्रहीन करार दिया तो मेरा सिर शर्म से झुक गया। मैं जानता हूँ मेरी गुड़िया गंगाजल की तरह पवित्र व बेदाग है लेकिन उसके इस झूठ से हमारे बारे में अंजान लोग क्या सोचेंगे ? मेडिकल के अलावा अब वह सबूत और गवाह लाने की भी बात कर रहा है ....... !"
एक पल की खामोशी के बाद उसने आगे कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही था कि अचानक चीख पड़ा ,"नही...$$ गुड़िया ...नहीं ....रुक जा बसंती ...." और फिर इससे पहले कि कोई कुछ समझता सबने देखा बसंती जो कि अब तक दरवाजे की ओट से बिरजू की पूरी बात सुन रही थी अचानक दौड़ पड़ी थी कुएँ की ओर और बिरजू उसके पीछे दौड़ रहा था उसे पकड़ने की असफल कोशिश करते हुए। तेजी से दौड़ते हुए बिरजू लगातार चीखते हुए उसे समझाने का प्रयास भी कर रहा था। चीख पुकार सुनकर चौधरी सहित वहाँ बैठे हुए सभी लोग कुएँ की तरफ दौड़ पड़े। इससे पहले कि बिरजू बसंती तक पहुँच पाता, बसंती कुएँ में छलाँग लगा चुकी थी। एक धम्म की आवाज सबके कानों को भेदती जिगर में उतर गई।

क्रमशः