हीर रांझा की एक अधूरी प्रेम कहानी - 5 Akash Gupta द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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हीर रांझा की एक अधूरी प्रेम कहानी - 5


"हीर जितनी खूबसूरत थी, उसकी सखियां उतनी ही हसीन थीं। दुनिया में शायद ही कोई नस्ल होगी जो खूबसूरती में सियालों के कुनबे की इन हसीनाओं का मुकाबला कर सकती थी।

हीर को अपने हुस्न पर बड़ा नाज़ था। उसके कानों में मोतियों से बनी झुमके चमक रहे थे। हीर का हुस्न अपने आप में कयामत की तरह था। उसको देखते ही लोग जमीं और जन्नत को भूल जाते थे।

ओ कवि, तुम कैसे हीर के हुस्न का बखान करोगे? मुहब्बत से भरी उसकी आंखें जूही के फूल सी नर्म दिखती थी। उसके गाल गुलाब की पंखुरियों से कोमल थे। उसके होठों की लाली देखकर लोग खुदा, खुदा करके रोने लगते थे।

हीर और सखियां नदी में नहाने आईं। वे सब उस नाव के पास आईं तो सबने देखा कि हीर की गद्दी पर कोई मासूम सा युवक लाल शॉल ओढ़े सोया है। हीर की नजर जैसे ही रांझे पर गई वह गुस्से से लाल हो गई।
उसने क्रोध में आकर लुड्डन स कहा, ‘लुड्डन, बदमाश! मेरी गद्दी का अपमान करने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? तुमने किसको उस पर सुलाया है? क्या तुम मेरी इज्जत नहीं करते या खुदा के डर से तुमने ऐसा किया है?’

लुड्डन हाथ जोड़कर कहने लगा,’मुझे माफ करो, मैं बेकसूर हूं। मैंने इस लड़के को यहां सोने के लिए नहीं कहा। यह बिन बुलाए मेहमान की तरह यहां आया। इसके बांसुरी की धुन ने हम सब के दिल पर जादू कर दिया। अपने हुस्न पर इतना गुमां न करो, शहजादी। अपने सेवकों पर जुल्म तो न करो। तानाशाह भी खुदा से डरते हैं।’

हीर का गुस्सा कम नहीं हुआ। उसने जवाब दिया,’इस लड़के को कोई परवाह नहीं कि इसने कितना बड़ा गुनाह किया है। क्या यह नहीं जानता यह फिलहाल वहां है जहां मेरे पिता चूचक का साम्राज्य है? मैं किसी की परवाह नहीं करती चाहे वह शेर हो या हाथी या फिर किसी सामंत का बेटा। यह है कौन? मेरे पास तो इसके जैसे हजारों गुलाम हैं और ऐसे लोगों की मैं कोई परवाह नहीं करती।’"

"लुड्डन को खरी-खोटी सुनाने के बाद हीर रांझा की तरफ मुड़ी।

वह गुस्से में जोर से बोली, ‘ऐ सोनेवाले, मेरे बिस्तर से उठ जाओ। कौन हो तुम और सोने के लिए तुमको मेरा ही बिस्तर मिला? मैं दिनभर सखियों के साथ यहां खड़ी देख रही हूं। मुझे बताओ कि तुम घोड़े बेचकर क्यों सो रहे हो? क्या तुम्हारे बुरे दिन आ गए हैं जो तुम चाबुक खाने के लिए यह खतरा उठा रहे हो? क्या तुमको रातभर नींद नहीं आई जो तुम खर्राटे मार रहे हो? या तुम ये सोचकर बेपरवाह होकर इस बिस्तर पर सो गए जैसे कि दुनिया में इसका कोई मालिक ही न हो?

हीर के इतना चिल्लाने के बावजूद जब रांझा की नींद नहीं खुली तो उसने अपनी सेविकाओं को उसे जबर्दस्ती उठाने को कहा। हुस्न की शहजादी हीर का गुस्सा बेकाबू हो चुका था।

तभी रांझा ने अपनी आंखे खोली और उठकर कहने लगा, ‘मेरे साथ नजाकत से पेश आओ, ऐ खूबसूरत शहजादी’

रांझा के बोल सुन हीर का गुस्सा उसी तरह पिघल गया मानो कश्मीर के बर्फ पर जेठ की जलती धूप पड़ गई हो।

रांझा की एक बांह में बांसुरी लटकी थी और कानों में उसने कुंडल पहन रखे थे। रांझा का सौंदर्य उस वक्त पूनम के चांद की तरह चमक रहा था।

हीर और रांझा की आंखें चार हुईं और मुहब्बत के मैदान में एक दूसरे से टकराने लगीं। हीर का दिल खुशियों के सागर में गोते खाने लगा।

हीर रांझा से सटकर उसी तरह जा बैठी जैसे कि तरकश में तीर पनाह लेती है। दोनों एक दूसरे से प्यार से बातें करने लगे। मुहब्बत वहां मैदान मार ले गई।

हीर को अपने दिल पर वश न रहा जैसे वह अपने होशोहवास खो बैठी थी। वह अपने हुस्न पर नाज करना भूलकर रांझा पे अपना सब कुछ वारने को तैयार हो गई।"