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लारा - 15 - (एक प्रेम कहानी)

(लारा भाग 15)

भाग 14 मे आपको बताया गया था कि किस तरह से एक बार फिर सोमा राम को अकेला छोड़ कर चली जाती है।
अब आगे........
कौन सहारा बनता उनका, उनके मुंह का निवाला छिन जाता ।
गांव में रहने वाले लोग अपने खुद के बनाए घर में रहते हैं, किसी किराए के मकान में नहीं रहते इसीलिए बेघर तो नहीं होते, सर पर छत तो रहती लेकिन खाने के लिए निवाला देने वाला कोई नहीं होता। और आज के जमाने में कोई घर में कमाने वाला ना हो तो परिवार एक गंदी नाली का कीड़ा माना जाने लगता है।
समाज में उस फैमिली की कोई इज्जत नहीं रह जाती है, कोई उनको पहचानता नहीं।
आजकल लोग सिर्फ पैसों से पहचाने जाते हैं, आज के इस हाई क्लास मॉडर्न युग में गरीब होना एक सबसे बड़ा अभिशाप है। बस यही सब सोचकर राम जी ने अपने दिमाग से आत्महत्या करने का ख्याल निकाल दिया। फिर राम जी ने सोचा कि प्यार मैंने किया था, गलती मैंने की, तो सजा भी तो मुझे ही मिलनी चाहिए?
जैसे भी हो मुझे अकेला ही सब कुछ भुगतना होगा। यही सोच कर रामजी ने खुद को संभाला और अपनी तरफ से अपना पूरा ध्यान अपने काम पर लगाने लगे। कोशिश करने लगे सोमा को अपने दिलों जान से निकाल फेकने की,लेकिन इंसान कुछ भी कर ले उस इंसान को नहीं भुला सकता जिसे अपनी पहली पसंद बना लिया हो, जो दिलों पर नहीं रूह पर राज करने लगा हो। और आप कितना भी कोशिश कर लो दुनिया से अपना दर्द नहीं छुपा सकते, आपके दिल का दर्द चेहरे पर झलकने ही लगता है।
लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी राम जी खुद को रोक नहीं पाए, सोमा की जुदाई ने उन्हें अंदर ही अंदर इतना तोड़ दिया की राम जी अपनी पिछली जिंदगी में प्रवेश करने लगे थे। जहां उन्हें सिर्फ उनकी जिम्मेदारीयां ही दिखती थी।
कुछ भी खाने को मिल गया तो ठीक, नहीं मिला तो भी ठीक। लेकिन ऑफिस तो हर हाल में जाना है। और अगर जाएंगे नहीं तो घर पैसे कैसे भेजेंगे अपनी नहीं लेकिन उनकी खुशी तो देखनी ही है। और अब राम की ज़िंदगी में बचा ही क्या था, उनका सब कुछ सोमा ही तो थी, जब वो ही नहीं रही तो अब फैमिली ही तो है।
खुद चाहे जैसे कपड़ों में ऑफिस चले जाएं लेकिन फैमिली को हर त्योहार पर नए कपड़े चाहिए तो चाहिए। अपने गमों की परवाह नहीं लेकिन परिवार की आंख नम नहीं होना चाहिए। सोमा ने राम जी की जिंदगी में कदम रख कर रामजी को खुद के लिए जीना सिखा दिया था।
लेकिन सोमा के द्वारा बार बार की जाने वाली इन घटिया हरकतों ने राम जी को एक बार फिर से सिर्फ परिवार के लिए जीना सिखा दिया।
राम जी तो अपने परिवार के साथ सोमा को पूरी जिंदगी अपने साथ लेकर चलना चाहते थे। फैमिली से कई गुना ज्यादा प्यार उस पर लुटाना चाहते थे। उसे अपनी जिम्मेदारी बनाना चाहते थे, लेकिन राम जी कर भी क्या सकते थे। जब सोमा उनके साथ रीलेसन मे ही नहीं रहना चाहती थी।
लाख कोशिशों के बाद भी राम सोमा को नहीं भूल पाए। धीरे धीरे उनकी आदतों में बदलाव आने लगा, ऐसा लग रहा था कि अब जल्द ही राम पागलों की श्रेणी में आ जायेंगे, क्योंकि उनकी हरकते अब अजीबो गरीब हो गयी है। हालांकि राम अपने स्तर से कह रहे थे, कि वो सोमा को जरूर भूल जायेंगे। अब सोमा को पहले जितना याद नहीं करते हैं। राम अपने जुबां से कुछ भी कह दे कि भूल गए, लेकिन पता नहीं क्यों उनको सोमा के बगैर अब जीवन का स्तित्व समझ में नहीं आ रहा था। काम में भी अब उनका मन नहीं लगता, आये दिन रूम में पड़े रहते थे आफिस तक नहीं जाते। और अब ऐसा लगता कि बहुत समय नहीं है कि कब ओ काम छोड़ कर वापस अपने गांव चले जाये। खाने पीने पर ध्यान न देने की वजह से अब स्वास्थ्य में भी गिरावट आने लगी थी।
ये सब उनकी हरकतें राम के दोस्त कई दिनों से नोटिस कर रहे थे। राम के मित्र होने के नाते उनसे राम की हालत देखी नहीं गयी। और एक दिन राम से पूँछ ही लिए कि क्या बात हो गयी। क्युकी उनको पता था कि राम किसी लड़की से बेपनाह मोहब्बत करते हैं।
वैसे तो राम जी कभी किसी से अपने दिल की बात शेयर नहीं करते थे लेकिन आज बहुत जादा परेसान थे इसलिए आज उनके दिल की बात जुबा पर आ ही गई। राम जी बोले की मैंने उससे सच्ची मोहब्बत की है। इसलिए मेरी सोंच उस आधुनिकता की भेंट नहीं चढ़ना चाहती थी जिसमें एक लड़की के बहुत से बॉयफ्रेंड हुआ करते हैं। और ओ जब जिससे चाहे उससे बात करे, जहां जिसके साथ चाहे घूमे टहले ,ओ आधी रात को आये या दोपहर को, मैं आशिक हूँ तो आशिक की तरह रहूं, उसे रोकने टोकने का मुझे कोई अधिकार न रहे। अगर इसे आधुनिकता और आधुनिकता में छुपी अय्यासी को ही आज़ादी कहते हैं तो मुझे सख़्त नफ़रत है उस आज़ादी से और उसका अनुसरण करने वाले आज़ाद पंछी से।
इतने दिन बाद भी कोई दिन नहीं बीतता जो उसकी यादों के बगैर गुजर जाये क्योंकि मैंने उसे चाहा है दिल की अटूट गहराई से, जिस्म की आंच से भी उसे बचा के रखा है। नफ़रतों के साये तक न पड़ने दिया है उस पर। जिंदगी की इक अनमोल धरोहर की तरह मैन उसे छुपा के रखा है अपने दिल के किसी कोने में, जहाँ सिर्फ और सिर्फ ओ रहती है उसके सिवा कोई नहीं। अपने रिस्ते के धागे और उसकी अदाओ की मोती की जो प्रेम रूपी माला बनाई है उसकी एकलौती वारिस तथा मालिकाना हक भी सिर्फ वही रखती है। निरंतर बहते नदी की धारा की तरह एक प्रेम का प्रवाह दूंगा उसे मैं। भले इसके लिए मुझे कितना भी कुंठित क्यों न होना पड़े। हां हां मैंने प्यार किया है उससे और ऐसे ही करता रहूंगा। मुझे यह करने से कोई रोक नहीं सकता न ही समाज और न ही ओ ख़ुदा उसके हाथ में सिर्फ इतना है कि ओ बात नही कर सकती मुझसे और इससे ज्यादा की ओ मुझसे मिलेगी नही कभी। लेकिन कोई बात नही हम इन दोनों के बगैर भी जिंदगी काट लेंगे। हम जियेंगे तो उसके लिए और मरेंगे भी तो सिर्फ उसके लिये। कोई दूसरा न आया है ना ही आयेगा। लेकिन मैं कभी नहीं चाहता कि ओ किसी और से बात करे या किसी और से मिले यहाँ तक कि उसकी फेसबुक फ्रेंड लिस्ट में भी सिर्फ़ फैमिली हो या फिर मैं। लेकिन प्रेम को इस प्रकाष्ठा तक पहुंचाने की शपथ इस कलयुगी दुनियाँ में ले भी तो कौन। राम के अंदर जो अन्तर्द्वन्द चल रहा था आज वो उनके जुबां पर आ ही गया।

( आगे की स्टोरी जानने के लिए बने रहें हमारे साथ अगले भाग 16 में)

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