Rest of Life(Stories Part 24) books and stories free download online pdf in Hindi

शेष जीवन(कहानियां पार्ट24)

"तो यह भी बताना पड़ेगा,"छाया बोली,"मैं तुम्हारी पत्नी हूँ।"
छाया की बात सुनकर अनुपम चीखा,"कितनी बार कह चुका हूँ।तुम मेरी पत्नी नही हो।'
अनुपम का गुस्सा देखकर छाया सहम गयी।उसे लगा अगर वह अब एक शब्द भी बोली तो अनुपम न जाने क्या कर बैठे।उसे बात को और बढ़ाना उचित नही लगा।वह चुपचाप सो गयी।
चाहे जैसे भी हो अनुपम की उससे शादी हुई थी।उसकी जिंदगी में आने वाला अनुपम पहला मर्द था।छाया ने उसे मन से अपना पति स्वीकार भी कर लिया था।लेकिन अनुपम उसे पत्नी मानने के लिए तैयार नही था।जबरदस्ती की शादी को वह मानने के लिए तैयार नही था।
छाया अनुपम को मन से अपना पति स्वीकार कर चुकी थी।इसलिय ऐसा व्यवहार करती थी।जैसा एक पत्नी को अपने पति से करना चाहिए।
वह अनुपम के करीब आने का हर सम्भव प्रयास कर रही थी।जबकि अनुपम ज्यादा से ज्यादा समय उससे दूर रहने का प्रयास करता।इसलिए वह ज्यादा समय घर से बाहर जंगल मे रहता।
लोगो की नजरों में छाया, अनुपम की पत्नी थी।पर हकीकत में अनुपम ने उसे अभी तक पत्नी का दर्जा नही दिया था।
छाया तन और मन दोनों से अनुपम को अपना बनाना चाहती थी।अनुपम का मन वह अपनी सेवा और व्यवहार से जितना चाहती थी।तन से अपना बनाने के लिए वह उसे रिझाने का प्रयास करती।लेकिन अभी तक वह अपने मकसद में सफल नही हो सकी थी।
एक दिन अनुपम घर से जाने लगा तो वह उसका रास्ता रोककर बोली,"मौसम कितना सुहाना है।मंद मंद पुरवाई हवा चल रही है।ऐसे में तुम मुझे अकेली छोड़कर कहा जा रहे हो?"
अनुपम ने छाया की बात पर ध्यान नही दिया।तब वह अनुपम का हाथ पकड़कर आंखों में आंखे डालकर बोली,"बड़े निष्ठुर हो।मैं कुछ कह रही हूँ लेकिन तुम सुन ही नही रहे।"
"मुझे तुम्हारी बेकार की बाते सुनने की फुर्सत नही है,"अनुपम अपना हाथ छुड़ाते हुए बोला,"मुझे बहुत काम है।'
"हर समय काम ही काम,"छाया इतराते हुए बोली,"कभी मेरे लिए भी समय निकाल लिया करो।मैं भी तुम्हारी कुछ लगती हूँ।"
"मैं तुमसे कितनी बार कह चुका हूँ।मेरा तुमसे कोई सम्बन्ध नही है।"
"झूठ।बिल्कुल झूठ,"छाया बोली,"यह बात तुम किसी से कहकर देखो।वे उल्टा तुमसे ही प्रश्न करेंगे।अगर कोई रिश्ता नही है तो साथ क्यो रह रहे हो?"
"मैं किसी को भी कोई सफाई देना जरूरी नही समझता,"अनुपम बोला,"तुम कान खोल कर सुन लो।मेरा तुमसे कोई रिश्ता नही है।"
रिश्ता न सही हम दोस्त तो बन सकते है"
"तुमसे दोस्ती जोड़ना भी मुझे पसंद नही है"
"दोस्त न सही,दुश्मन ही सही,"छाया बोली,"कभी दुश्मन की बात भी मान लेनी चाहिये।""
"नही। कभी नही"अनुपम इतना कहकर तेजी से बाहर निकल गया।छाया भी उसके पीछे हो ली।छाया यहाँ आने के बाद पहली बार बंगले से बाहर निकली थी।
अनुपम जंगल का निरीक्षण करते हुए आगे बढ़ने लगा।अनुपम चारो तरफ पेड़ो और जंगल को देखता हुआ तेज गति से चल रहा था।छाया बीच बीच मे भागने के बावजूद अनुपम के साथ साथ चलने में सफल नही हो रही थी।जब अनुपम काफी आगे निकल गया तब छाया बोली,"सुनो।"
"क्या है?"अनुपम पीछे मुड़कर देखते हुए बोला।
"कुछ देर बैठ लेते है।"
"क्यो?"
"मैं थक गई हूं"
"तुम्हे बैठना है तो बैठो"
अनुपम चलता रहा।
"प्लीज रुक जाओ न"छाया एक पत्थर पर बैठते हुए बोली,"
लेकिन अनुपम नही रुका।तब उसे भी उठना पड़ा


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