सुलोचना। डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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सुलोचना।

अरे राजेश आज बहुत खुश लग रहे हो, राजेश को जल्दी-जल्दी स्कूल का काम ख़त्म करते देख उनके परम मित्र औऱ स्कूल में उनके साथी गोविन्द शर्मा जी बोले.
हाँ यार गोविंद आज खुशी अन्दर से बाहर निकलने को बेताब हो रही है.
कितना कुछ प्लान कर रखा है मैंने कि रिटायर होने के बाद सुलोचना के साथ क्या-क्या करेंगे. कहाँ-कहाँ जायेंगे. राजेश ने अपना बचा हुआ काम ख़त्म करते हुए कहा.
जीवन की आपाधापी औऱ व्यस्तता के चलते कभी अपना जीवन तो जिया ही नहीं. अब पूरी तरह से फ्री होकर जीवन को आनंद से सुलोचना के साथ बिताऊंगा, राजेश ने एक मधुर मुस्कान के साथ कहा.
मैंने अपने जीवन में ये पहला आदमी देखा है जो कि कल रिटायर होने वाला है औऱ आज ऐसे खुश हो रहा है जेसे कि नई नौकरी ज्वाइन करने जा रहा हो ! गोविन्द ने मजाकिया अंदाज़ में राजेश को छेड़ा.
हाँ भाई अब तुम कुछ भी कहो, कुछ भी समझो पर मेरे लिए तो ये जीवन कि नई शुरुआत है, राजेश ने लम्बी साँस खींची.
जब मेरी औऱ सुलोचना की शादी हुई थी, उस वक़्त सुलोचना बीस वर्ष कि एक चंचल सी लड़की थी, कई सपने लेकर आई थी वो मेरी जिंदगी में, पर मेरे औऱ मेरे परिवार के सपनों औऱ मेरी जिम्मेदारियों के आगे खुद के सारे सपने सारी ख्वाहिशें जैसे कहीं दफ़न कर दी उसने, पर चेहरे पर कभी शिकन नहीं लाई. अब मैं चाहता हूँ सुलोचना के वो सारे सपने सारी इच्छा जो अधूरी रह गई वो अब पूरी करूँ.

शुरुवात में माँ पिताजी की जिम्मेदारी, फिर हमारे बच्चे. जब तक बच्चे बड़े हुए, मैं स्कूल का प्रिंसिपल बन गया तो व्यस्तता बढ़ती ही गई, कभी सुबह की सैर हो या शाम की शॉपिंग, वक़्त ही नहीं निकाल पाया उसके लिए, जिसने अपने जीवन का एक एक पल मेरे औऱ हमारे परिवार के लिए समर्पित कर दिया. जबकि मैं अच्छी तरह से जानता था कि ये छोटी-छोटी बातें उसे बहुत ख़ुशी देती हैं, फिर भी में ये ख़ुशी के छोटे-छोटे पल भी ना निकाल पाया सुलोचना के लिए. कहते-कहते राजेश बहुत ही गंभीर हो गये.
कोई बात नहीं मित्र जो बीत गई सो बीत गई, पर अब तो तुम्हारा सारा वक़्त भाभी के लिए ही हैं ना, अब सारी शिकायतें दूर कर देना, औऱ मेरी राय से तो कहीं घूमने का प्रोग्राम बना लो, अच्छा लगेगा आप लोगों को ;कहकर गोविन्द उठकर चले गए औऱ राजेश पुनः अपने काम निपटाने में लग गए.
आज सुबह से ही राजेश को अजीब सी बेचैनी महसूस हो रही थी, रात को भी ठीक से नींद नहीं आई. सुबह सुबह पत्नी सुलोचना ने चाय का कप देते हुए पूछ ही लिया !क्या बात है इतना क्यों परेशान हो, रिटायर तो एक ना एक दिन होना ही था औऱ वो चाय देकर चल दी.
कहाँ चली सुलोचना को जाते देख राजेश ने उसका हाथ पकड़ लिया. सुलोचना सकपका गई, वो खाने की तैयारी कर लूँ, फिर आपको अभी जाने में देर हो जाएगी.
कोई देर नहीं होगी, बैठो ना कुछ देर मेरे पास राजेश ने मनुहार करके कहाँ तो सुलोचना बैठ गई. कुछ देर कि चुप्पी के बाद राजेश ने सुलोचना का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा, मुझे माफ कर देना सुलोचना मैं कभी तुम्हे ठीक से समय नहीं दे पाया. तुम घर की जिम्मेदारियों को अकेले उठाती रही औऱ मैं अपनी व्यस्तता के चलते कभी तुम्हारा सहयोग नहीं कर पाया.

आप ऐसा क्यों कह रहे हैं,मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं है, घर मेरा है तो जिम्मेदारियां भी मेरी ही हुई ना, इसमें मैंने कोई महान काम नहीं किया, सुलोचना ने मोहक मुस्कान बिखेरी, परन्तु आज उसकी मुस्कान के साथ कुछ दर्द सा उभर आया था, जो राजेश से छिप ना सका.
तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है सुलोचना? राजेश ने प्रश्न किया.
नहीं कुछ खास नहीं बस ऐसे ही थकान है, जिस कारण शरीर में दर्द है, औऱ सुलोचना ने आज़ फिर अपनी तकलीफ छिपा ली. आप कहिये ना क्या कह रहे थे, आज आपके पास बैठकर आपसे बात करके बहुत अच्छा लग रहा है, सुलोचना पुनः मुस्कराई.
डाक्टर के पास चलें? राजेश बोले,
क्या बात है आज अचानक इतनी फिक्र, अब आदत हो गई है दर्द की आप परेशान ना हों. सुलोचना बोली. पर उसकी कहीं सामान्य बात राजेश के दिल पर चोट कर गई.
अब तक जो हुआ सो हुआ पर आज शाम से मेरा पूरा समय सिर्फ तुम्हारा. तुम्हारे दिल में जो हो सब कहना, मैं सब सुनूंगा, जहाँ तुम कहोगी हम घूमने जायेंगे, सुबह कि सैर पर साथ चलेंगे. औऱ भी जो तुम चाहो, राजेश ने सुलोचना का माथा चूमकर कहा.
आपने इतना कह दिया मेरे लिए यही काफी है, अब आप तैयार हो जाइये, स्कूल का समय हो गया है, सुलोचना ने चाय के खाली कप उठाते हुए कहा.
पर पता नहीं क्यों आज तुन्हे छोडक़र जाने का मन नहीं कर रहा.......... राजेश मन ही मन बोला
शाम को तैयार रहना हम कहीं घूमने चलेंगे.....राजेश ने कार स्टार्ट करते हुए कहा..
जी ठीक है कहकर सुलोचना अन्दर में चली गई.

पूरा दिन राजेश विदाई समारोह में व्यस्त रहे. अरे शाम के सात बज गए सुलोचना इंतजार कर रही होंगी, सोचकर राजेश ने कार स्टार्ट की, रास्ते में दीनू हलवाई के यहाँ से समोसे औऱ जलेबी पैक करवाई औऱ मन ही मन सोचा कितना पसंद है सुलोचना को जलेबी, पर कभी गर्म नहीं खाई, हमेशा सब को खिलाकर ही खाती है, आज नहीं सुनूंगा उसकी बात, अपने हाथ से खिलाऊंगा.
तभी सामने फूलवाले को देखा.
अरे भाई ये गजरा कितने का है ?
पचास का बाबूजी.
एक देना तो, ये ले पचास रूपए. राजेश ने गजरा बगल वाली सीट पर रख दिया.
कितना बोलती थी सुलोचना जब नई नई आई थी, मेरे घर ब्याह करके! अकसर ही टोक देता था उसे, थोड़ा क़म बोला करो !थक नहीं जाती तुम इतना बोलकर, तो खिलखिलाकर हंस देती थी.
मैं अकसर ही माँ-बाबूजी का हवाला देकर उसको चुप करा देता, कि शांत रहो, माँ बाबूजी क्या सोचेंगे? धीरे हंसा करो, बच्चों जैसी खिलखिलाती हो.
धीरे धीरे वो चुप होती गई, आखिरी बार कब खिलखिलाई थी याद नहीं. राजेश की आँखों के कोने गीले हो गए. बोलना भूल गई क्योंकि कोई उसकी सुनने के लिए फ्री नहीं था, पर अब नहीं, अब मैं फ्री हूँ रिटायर हो गया हूँ, उसकी हर सही गलत बात सुनूंगा, उसे खूब हंसाऊँगा. औऱ राजेश पुनः मुस्कराने लगे.
घर के बाहर आकर राजेश ने हॉर्न बजाया, पर सुलोचना बाहर नहीं आई, हमेशा तो हॉर्न की आवाज़ सुनकर बाहर आती है, आज क्यों नहीं? शायद तैयार हो रही होंगी. राजेश ने सोचा. घर के अन्दर दाखिल होकर फिर से आवाज़ लगाई.

सुलोचना सुलोचना कहाँ हो भाई, तैयार हुई या नहीं.
कहाँ चली गई ऐसे घर खुला छोड़कर ! राजेश ने बेडरूम की तरफ जाते हुए बड़बड़ाया,
अरे तुम यहाँ सो रही हो औऱ मैंने पूरा घर छान मारा तुम्हे ढूंढने में, राजेश ने गजरा ड्रेसिंग टेबल पर रखते हुए कहा.
अरे तुम तो तैयार हो मैं भी फ्रेश होकर आता हूँ, कहकर राजेश बाथरूम में चले गए, लौटकर देखा सुलोचना यथावत लेटी हुई थी, वैसे तुम पर ये गुलाबी रंग बहुत जँचता है सुलोचना राजेश ने सुलोचना के सिराहने बैठते हुए कहा, तुम्हारी तबियत तो ठीक है ना, कहकर जैसे ही राजेश ने सुलोचना के सिर पर हाथ रखा, हे भगवान सुलोचना का बदन तो ठंडा है.
राजेश का दिल बैठ गया. फ़ौरन एम्बुलेंस बुलाई औऱ सुलोचना को लेकर हॉस्पिटल भागे.
आई एम सॉरी शी इज नो मोर. डॉक्टर ने राजेश के कंधे पर हाथ रखा.
क्या पर कैसे क्या हुआ मेरी सुलोचना को? राजेश ने रोते हुए पूछा.
साइलेंट हार्ट अटैक. डॉक्टर ने बोला औऱ चला गया.
बहुत देर हो चुकी थी. राजेश ने बहुत देर कर दी सुलोचना के लिए वक़्त निकालने में, काश के ये एहसास राजेश को पहले हुआ होता, काश कि सुलोचना के अकेलेपन को राजेश ने पहले समझा होता, काश कि सुलोचना के लिए वक़्त निकालने में राजेश ने इतना वक़्त ना लगाया होता. काश, काश, काश के बीच रुक गई थी राजेश और सुलोचना की कहानी.
सभी रिश्तेदार, राजेश के बच्चे सभी आ चुके थे, अंतिम संस्कार की तैयारी चल रही थी, तभी गोविंद ने राजेश के कंधे पर हाथ रखा !
मैंने बहुत देर कर दी गोविन्द, जब तक में रिटायरमेंट लेकर उसके पास आता, वो तो इस दुनिया से ही रिटायरमेंट लेकर चली गई, औऱ मुझे छोड़ गई अपनी आत्मग्लानि के साथ, औऱ राजेश फूट-फूट कर रो पड़ा.

सुलोचना निकल चुकी थी अनंत सफर पर, सारी दुनियादारी छोड़कर.
अचानक राजेश को ऐसा लगा मानो सुलोचना दूर आसमान में कहीं खिलखिला रही है, जोर-जोर से, अनवरत.............


धन्यवाद

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव