शेष जीवन(कहानियां पार्ट22) Kishanlal Sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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शेष जीवन(कहानियां पार्ट22)

अनुपम बिहार का रहने वाला था।उसने सुना ही नही पढ़ा भी था कि बिहार में ऐसे गिरोह सक्रिय है,जो योग्य व अच्छे पद पर कार्यरत युवाओं का अपहरण करके उनकी जबरदस्ती शादी करा देते है।जो मा बाप दहेज के अभाव में अपनी बेटी की शादी नही कर पाते वे ऐसे गिरोह की मदद लेते है।
पहले अनुपम ऐसी बात सुनता या पढ़ता तो उसे अविशनिय लगती थी।पर उसके साथ ऐसा हुआ तो उसे विश्वास हो गया जो सुनता या पढ़ता था।वो सब सच था।अनुपम अपने साथ हुए इस हादसे से विचलित था।उसकी समझ मे नही आ रहा था कि वह करे तो क्या करे?
उसकी शादी गुंडों की मदद लेकर कर जरूर गयी थी पर वह इस शादी को मानने के लिए तैयार नही था।इसलिए वह उस युवती से कैसे पीछा छुड़ाया जाए यह ही सोच रहा था।
सुबह तीन बजे वह खाट से उठ बैठा।उसने युवती पर नजर डाली।वह दूसरी खाट पर गहरी नींद में सो रही थी।उसे गहरी नींद में दखकर अनुपम को खुशी हुई थी।इससे बढ़िया मौका उससे पीछा छुड़ाने का उसे नही मिल सकता था।उसने अपना बेग उठाया और दबे कदमो से कमरे से बाहर निकल आया।
बाहर घुप्प अंधेरा था।गांव से पटना जाने के लिए पहली बस सुबह पांच बजे गुजरती थी।बस आने में अभी पूरे दो घण्टे की देरी थी।अनुपम ने सोचा अगर वह गांव के बस स्टॉप पर बस के इन्तजार में खड़ा रहा तो वह युवती जगने पर उसे ढूंढते हुए वहां आ सकती है।इसलिए उसने अपने गांव से आगे के गांव से बस पकड़ने की सोची।ताकि अगर वह युवती गांव के बस स्टॉप पर आए तो उसे न पाकर वापस लौट जाए।
और वह पैदल ही अंधेरे में आगे के गांव के लिए चल पड़ा।उस बस स्टॉप पर वह अकेला आदमी था।बस स्टॉप पर बस सही समय पर आ गयी थी।बस में चढ़ते समय अनुपम खुश था।उसे उम्मीद नही थी कि उस युवती से उसका पीछा इतनी आसानी से छूट जाएगा।उसके बस में चढ़ते ही बस चल पड़ी थी।बस में वह बैठ गया।कुछ दूर चलकर बस फिर रुकी थी।एक आदमी बस से उतरा लेकिन कोई यात्री बस में नही चढ़ा।
अनुपम आंखे बंद करके सोच विचार में मग्न था।तभी बस एक झटके के साथ रुकी थी।
"क्या हुआ?क्यो रोक दी बस"कंडक्टर अपनी सीट पर बैठे बैठे ही बोला था।
"सवारी है।"ड्राइवर की आवाज सुनकर कंडक्टर ने हाथ बढ़ाकर दरवाजा खोला था।दरवाजा खुलते ही सवारी बस में आ गयी।आनेवाली सवारी पर नजर पड़ते ही अनुपम चोंक गया।जिस युवती से पीछा छूट जाने की बात सुनकर वह खुश हो रहा था।वही युवती फिर उसके सामने आ खड़ी हुई थी।
बस में चढ़ते ही उस युवती की नजर अनुपम पर पड़ी।वह अनुपम के पास खाली सीट पर बैठते हुए बोली,"यहाँ पहुचने में जरा सी देर हो जाती तो बस निकल जाती।"
अनुपम ने उसकी बात का कोई जवाब नही दिया।
"मुझे क्यो नही जगाया।मुझे सोता हुआ छोड़कर क्यो चले आये?"अनुपम को चुप देखकर वह फिर बोली,"मुझसे पीछा छुड़ाने की सोच रहे हो तो गलत सोच रहे हो।मेरा नाम छाया है।छाया हमेशा आदमी के साथ साथ चलती है।मेरी तुमसे शादी हो चुकी है।अब छाया तुम्हारी है"