Tadap Ishq ki - 20 books and stories free download online pdf in Hindi

तड़प इश्क की - 20

वैदेही के चेहरे को देखकर वो उसकी आंखों की गहराई में खो जाता है ....

" कौन है आप...?.."

अब आगे............

वैदेही उसके आंखों में देखते हुए कहती हैं....." कौन है आप ...?..."

वो नौजवान मुस्कुराते हुए कहता है....." माणिक , हमारा नाम माणिक है और आप , और इस घने जंगल में क्या कर रही है...?..."

वैदेही अपना परिचय देती है....." हम वैदेही है , हम अपनी औषधि से सबकी पीड़ा को खत्म कर देते और हम वृषपूर जा रहे ..."

माणिक उसके चारों तरफ देखते हुए पूछता है...." आप अकेले ही जा रही है...?..."

" जी ! जबसे हमारे बाबा इस दुनिया से गए हैं जब से हम अकेले ही आते जाते हैं ,..."

माणिक वैदेही को देखकर पूछता है...." आप वृषपूर क्यूं जाना चाहती है , , ?..."

वैदेही अपनी औषिधि वाली टोकरी को दिखाकर कहत..." हमें वृषपूर के राजा ने बुलाया है ताकि हम उनकी राजकुमारी का उपचार कर सके...."

" अच्छा तो आप उपचारिका है... अच्छी बात है तो आप हमारे साथ ही चलिए हम भी वृषपूर ही जा रहे थे...."

वैदेही माणिक की बात सुनकर मुंह फेरते हुए कहती हैं...." हम अजनबी पर विश्वास नहीं करते और आपने अभी तक हमे अपना पूरा परिचय नहीं दिया है..."

माणिक हंसते हुए कहता है...." आपके लिए हम अजनबी है किंतु आप यहां के खूंखार जानवरो के लिए परिचित बन जाएंगी , तो इसलिए आप हम पर विश्वास करके हमारे साथ चल सकती हैऔर वैसे हम पंचमढ़ी राज्य के युवराज है...." इतना कहकर माणिक उसकी तरफ हाथ बढ़ाता है.....

वैदेही तिरछी नजर से देखकर उसकी तरफ अपने चेहरे को घुमाकर कहती हैं...." ठीक है , हम आपके साथ चलते हैं...." उसके हाथ को पकड़ने के लिए वैदेही जैसे ही अपना हाथ बढ़ाती है उसकी नज़र उसके कंधे पर सिंह के नाखूनों के निशान देखकर चिंतित हो जाती है और उसके हाथ को पकड़कर कहती हैं....." आपको तो बहुत घाव हुआ है , और आपने हमें बताया भी नहीं , आप ऐसे ही अपने हाथ को रखिए हम औषधि लगाते है..."

वैदेही अपने औषधि डलिया से कुछ जड़ी बूटी के पत्ते को निकालकर अपने हाथ से पिसकर , अपने दुपट्टे के किनारे को चीरकर उसपर औषधि रखकर माणिक के हाथ पर बांधती हुई पूछतीं है....." पंचमढ़ी किसी विशेष गुण से चर्चित है , , हमें ठीक है स्मरण नहीं ..."

माणिक वैदेही को देखते हुए कहता है....." पंचमढ़ी पांच विशेष मणियों की वजह से चर्चित है...."

वैदेही हैरानी से पूछतीं है....." पांच मणि , ऐसी कौनसी विशेषता है उन मणियों में....?..."

माणिक वैदेही की बात को सुन नहीं पाया क्योंकि वो तो बस वैदेही को देखें जा रहा है , , उसे वैदेही की अलकावली मोहित कर रही थी जोकि बार‌ बार हवा के झौंके के साथ उसके चेहरे पर आ रही थी , ,

माणिक उसे देखकर अपने आप से कहता है....." आपकी एक ने तो हमारे ह्रदय को छल्ली कर दिया है , , आपके इस रूप ने हमें केवल आपका बना दिया , वैदेही , ये पंचमढ़ी के राजकुमार की आज पहली बार है , ...."

वैदेही उसे खोया देखकर उससे पूछती है ....." माणिक जी...! कहां खो गए आप , , चले हमें जल्द ही वृषपूर पहुंचना है..."

वैदेही के इतना कहते ही माणिक अपने ख्यालों से बाहर आता है तो वहीं विक्रम का ध्यान भी उसके दोस्त के कंधे पर हाथ मारने से टूट जाता है.....

*****************

विक्रम अपने दोस्त नीरज को घूरते हुए कहता है...." क्या प्रोब्लम है तुझे...?..."

नीरज उसके गुस्से को देखकर अंजाने तरीके से कहता है..." क्या यार तू यहां ख्वाबों में खोया हुआ है और उधर काॅलेज की सारी लड़कियां चली गई , आज किसी को परेशान नहीं कर पाए .... खैर अब जल्दी से उस एकांक्षी को उठा ले, यार क्या खुबसूरत बला है वो , , तू अपना हाथ साफ करें तो हम ...." नीरज इतना ही बोला था कि विक्रम ने उसके मुंह पर एक जोरदार मुक्का जड़ दिया...और उसे खा जाने वाली निगाहों से देखते हुए कहता है......" खबरदार जो किसी ने भी एकांक्षी की तरफ बुरी नजर से देखा भी तो , , उसके शरीर की जान निकाल लूंगा , जैसे तेरे विक्रम की निकाल दी...."

इतना कहकर विक्रम वहां से चला जाता है और बाकी सब उसके अजीब नज़रों से देखते हुए कहते हैं...." इसे हुआ क्या है...?.. जबसे हाॅस्पिटल से आया बड़ा अजीब बिहेव कर रहा है लगता है चोट इसके सिर में लगी है..."

उधर आद्रिक , किरन और तान्या एकांक्षी को लेकर मेडिकल रूम में थे जहां एकांक्षी को होश आ चुका था , लेकिन होश में आने के बाद भी एकांक्षी गुमसुम सी किसी ख्यालों में खोई हुई थी , ,

" वो‌ विक्रम मुझे उपचारिका क्यूं कह रहा था , , आखिर क्यों मुझे अजीब अजीब से नामों से गुजरना पड़ रहा है , ये अधिराज , वैदेही और अब उपचारिका...." एकांक्षी अपने सिर को पकड़ लेती है , उसे परेशान देखकर तान्या उसको पकड़ते हुए धीरे से कहती हैं...." एकांक्षी , , ज्यादा मत सोच , , मुझे पता है तुझे कितनी परेशानी हो रही है...."

एकांक्षी उसकी तरफ देखते हुए कहती हैं...." तुझे नहीं पता तान्या , मेरे सामने हर रोज एक नई पहेली आ जाती है , एक का सोल्यूशन होता नहीं फिर दुसरी उलझन...."

" रिलेक्स एकांक्षी मुझे पता है तू हर रोज कैसे संभाल रही होगी.. .." इतना कहकर तान्या खुद से ही बातें करने लगती है..." किसी के नए जन्म के बाद उसकी यादें जरुर सामने आती हैं, , वो भी जब जब कोई अतीत अपने लक्ष्य तक न पहुंचे , , तो तुम्हारा प्यार तो बरसों से तुम्हारी राह देख रहा है अब समय आ चुका है जब तुम अपने अतीत को जानो , अधिराज के प्यार को पहचानो , उसने पच्चीस साल कैसे बिताए होंगे , , लेकिन अब नहीं अब माद्रीका ऐसा छल दोबारा नहीं होने देगी....."

" तान्या कहां खो गई...?..." एकांक्षी ने उसको ख्यालों से बाहर लाते हुए कहा.......

तान्या मुस्कुराते हुए कहती हैं...." एकांक्षी घर चलो , तुझे आराम की जरूरत है , , !

एकांक्षी हां में सिर हिलाती हुई खड़ी होती लेकिन उसका पैर स्लिप हो जाता है जिससे आद्रिक उसके सामने आकर उसे पकड़ लेता है लेकिन तभी उसे एकांक्षी को पकड़ते ही बैचेनी होने लगी ....

आद्रिक अपने आप से कहता है....." ये मुझे इतनी घबराहट क्यूं होने लगी...?....कहीं वो तो नहीं आ गया....?..."




................. to be continued...........

आद्रिक को किसके आने का शक है....?

जानने के लिए जुड़े रहिए....

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