The Author Yashoda Yashoda फॉलो Current Read विचित्र मोहब्बत अरुंधति कि...! - 4 By Yashoda Yashoda हिंदी डरावनी कहानी Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books राजा और दो पुत्रियाँ 1. बाल कहानी - अनोखा सिक्काएक राजा के दो पुत्रियाँ थीं । दोन... डेविल सीईओ की स्वीटहार्ट भाग - 76 अब आगे,राजवीर ने अपनी बात कही ही थी कि अब राजवीर के पी ए दीप... उजाले की ओर –संस्मरण नमस्कार स्नेही मित्रो आशा है दीपावली का त्योहार सबके लिए रोश... नफ़रत-ए-इश्क - 6 अग्निहोत्री इंडस्ट्रीजआसमान को छू ती हुई एक बड़ी सी इमारत के... My Wife is Student ? - 23 स्वाति क्लास में आकर जल्दी से हिमांशु सर के नोट्स लिखने लगती... श्रेणी लघुकथा आध्यात्मिक कथा फिक्शन कहानी प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान कुछ भी क्राइम कहानी उपन्यास Yashoda Yashoda द्वारा हिंदी डरावनी कहानी कुल प्रकरण : 4 शेयर करे विचित्र मोहब्बत अरुंधति कि...! - 4 (2) 2.1k 4.8k और उस खुशबू के पीछे पीछे चल पड़ती है!चलते चलते उसी अनोखे वृक्ष के पास पहुंच जाती है और बड़े ही गौर से उस वृक्ष को देखने लगती है उस वृक्ष के पीछे से ही फिर से वहीं एक जोड़ी आँखें देख रही थी, अरुंधति को जैसे ही एहसास होता है की कोई उसे देख रहा है पेड़ के पीछे से तो वो उस वृक्ष के इर्द गिर्द घूम के देखती है तो कोई नही होता है वहाँ पर उस वृक्ष से आती खुशबू से जैसे सम्मोहित सी हुई जा रही थी!अरुंधति धीरे धीरे उस पेड़ के और करीब जाके अपने बाहों में उसे भर लेती है, के तभी दो तीन लोग हाथ में कुल्हाड़ी लिए आते है और अरुंधति को उस पेड़ से अलग करने लगते है, और दूसरा आदमी अपने साथ वाले से कहता है चले जल्दी से काट इस वृक्ष को जैसे ही उस पेड़.... जैसे ही उस पेड़ पर कुल्हाड़ी पड़ती है वैसे ही पेड़ बढ़ी तेज़ी से दहाड़ता है और ऐसी भयानक सी आवाज़ से अरुंधति की आँख खुल जाती है! जब घड़ी की तरफ़ उसकी निगाहें जाती है तो घड़ी शाम के पांच बजने का इशारा कर रही थी अरुंधति सोचती है में इतनी देर तक कैसे सोती रह गई किसी ने मुझे जगाया क्यों नही वो तुरंत उठती है और नीचे आती है तो देखती है वैजयंती जी बाहर चार पाई पे बैठी रात्रि के भोजन की तैयारी कर रही थी! जैसे ही मां के पास आ के बैठती है वैसे ही सुहानी बोलती है हो गई नींद पूरी कब से तुम्हारे उठने का इंतजार कर रहें थें अब उठी हो जब हम सब सोने जा रहे है, अरु कहती है खाना बन गया क्या सब खा लिए और हमको कोई जगाया भी नही वैजयंती जी हँसते हुए ही बोली अरे नही पागल वो तो तुम्हारी टांग खिंचाई कर रही है जब अरुंधति की मां बोली के टांग खिंचाई कर रही है इतने में अरुंधति सुहानी के पीछे भागने लगती है उसे मारने के लिए, मार से बचने के लिए सुहानी कमरे में छिप जाती है जब अरुंधति कमरे में आती है वैसे ही दरवाज़े के पास छिपी सुहानी हु ऊ ऊ... करके डरा देती है!बाहर से एक शोर सुनाई देता है, जिसे सुन दोनों बाहर की ओर आती है, देखती है कुछ पड़ोसी इक्कठे कही जा रहे है तभी वैजयंती जी पूछती है अरे भई कहा जा रहे हो सबके सब, अरुंधति देखती है एक आदमी के हाथ में वहीं कुल्हाड़ी है जो उसने सपने में देखी थी, उसी भीड़ में से एक आदमी बोला अरे वो जो पेड़ नही कब्रिस्तान के पास उसे काटने को कहा गया है, वैजयंती जी पूछती है कौन बोला है तभी उनके घर के नज़दीक जो पड़ोसी रहते है लाखन वो बोले अरे भाभी मुखिया जी बोले है काटने के लिए, ससुरा उस पेड़ के चक्कर में पूरा का पूरा कब्रिस्तान ही ढक जा रहा है!अरुंधति बहुत देर से खड़ी सबकी बातें सुन रही थी, और बोली चाचा उस पेड़ को शेष,,,,, ‹ पिछला प्रकरणविचित्र मोहब्बत अरुंधति कि...! - 3 Download Our App