स्वर्ण मंदिर अमृतसर Gurpreet Singh HR02 द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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स्वर्ण मंदिर अमृतसर

अमृतसर का स्वर्ण मंदिर केवल भारत ही नहीं बल्कि दुनिया का मशहूर मंदिर है। ये सिख धर्म के मशहूर तीर्थ स्थलों में से एक है। इस मंदिर का ऊपरी माला 400 किलो सोने से निर्मित है, इसलिए इस मंदिर को स्वर्ण मंदिर नाम दिया गया। बहुत कम लोग जानते हैं लेकिन इस मंदिर को हरमंदिर साहिब के नाम से भी जाना जाता है। कहने को तो ये सिखों का गुरुद्वारा है, लेकिन मंदिर शब्द का जुडऩा इसी बात का प्रतीक है कि भारत में हर धर्म को एकसमान माना गया है। यही वजह है कि यहां सिखों के अलावा हर साल विभिन्न धर्मों के श्रद्धालु भी आते हैं, जो स्वर्ण मंदिर और सिख धर्म के प्रति अटूट आस्था रखते हैं।

इस मंदिर के चारों ओर बने दरवाजे सभी धर्म के लोगों को यहां आने के लिए आमंत्रित करते हैं। तो चलिए हम आपको आज इसी स्वर्ण मंदिर से जुड़ी कई दिलचस्प और रोचक बातें बताते हैं। खासतौर से अगर आप पहली बार स्वर्ण मंदिर जा रहे हैं, तो हमारा ये आर्टिकल आपके लिए बहुत फायदेमंद साबित होगा। यहां आपको स्वर्ण मंदिर का इतिहास, दर्शन करने का समय, यहां के मुख्य आकर्षण और मंदिर से जुड़ी कुछ रोचक बातें भी जानने को मिलेंगी।
अमृतसर का इतिहास करीब 400 साल पुराना है। यहां गुरूद्वारे की नींव 1577 में चौथे सिख गुरू रामदास ने 500 बीघा में रखी थी। अमृतसर का मतलब है अमृत का टैंक। पांचवे सिख गुरू गुरू अर्जन देव जी ने इस पवित्र सरोवर व टैंक के बीच में हरमंदिर साहिब यानि स्वर्ण मंदिर का निर्माण किया और यहां सिख धर्म के पवित्र ग्रंथ आदि ग्रंथ की स्थापना की। श्री हरमंदिर साहिब परिसर अकाल तख्त का भी घर माना जाता है। एक और संस्करण में बताया गया है कि सम्राट अखबर ने गुरू रामदास की पत्नी को भूमि दान की थी, फिर 1581 में गुरू अर्जुनदास ने इसका निर्माण शुरू कराया। निर्माण के दौरान ये सरोवर सूखा और खाली रखा गया था। हरमंदिर साहिब के पहले संस्करण को पूरा करने में पूरे 8 साल का समय लगा। ये मंदिर 1604 में पूरी तरह बनकर तैयार हुआ था। हालांकि कई बार स्वर्ण मंदिर को नष्ट किया गया, लेकिन 17वीं शताब्दी में महाराज सरदार जस्सा सिंह अहलुवालिया द्वारा इसे फिर से बनवाया गया था। मार्बल से बने इस मंदिर की दीवारों पर सोने की पत्तियों से नक्काशी की गई है, जो देखने में बहुत ही सुंदर लगती हैं।
स्वर्ण मंदिर के गुरूद्वारे में होने वाले लंगर में हर कोई शामिल हो सकता है। सुनकर भले ही आपको हैरत हो लेकिन स्वर्ण मंदिर की किचन में हर रोज 40 हजार लोगों को नि:शुल्क लंगर खिलाया जाता है। छुट्टी और वीकेंड्स में हर दिन 4 लाख लोग यहां लंगर खाते हैं। यहां ज्यादातर रोटी परोसी जाती है, जिसके लिए 12 हजार किलो आटा हर रोज लगाया जाता है। वैकेशंस में यहां की रोटी मशीन से ही रोटियां तैयार होती हैं, जिसमें एक बार में 25 हजार रोटियां बनकर निकलती हैं। यहां की एक खास बात है कि लंगर में खाने के लिए बैठने से पहले आपको अपने जूते उतारने होंगे और सिर को ढंकना होगा।

यहां दो हॉल हैं, जहां एक बार में 5 हजार लोग साथ में बैठकर लंगर खा सकते हैं। साफ सफाई का प्रमाण इसी बात से मिलता है कि हर बर्तन को पांच अलग-अलग बार धोया जाता है। बता दें कि सिख लंगर का चलन सिखों के पहले गुरू गुरूनानक ने शुरू किया था। इस गुरूद्वारे में किसी भी व्यक्ति के तीन दिन तक रहने की पूरी व्यवस्था है। यहां कई कमरे और हॉल बने हैं, जहां सोने के लिए तकिया, कंबल और चादर की सुविधा दी जाती है। अगर आप भी स्वर्ण मंदिर घूमने जाएं, तो आराम से यहां तीन दिन तक ठहर सकते हैं। अगर आप स्वर्ण मंदिर गए हैं, तो इसके आसपास आप बहुत सी खूबसूरत जगहें भी घूमने जा सकते हैं। यहां से मात्र एक घंटे की दूरी पर स्थित है वाघा बॉर्डर। यहां भारत और पाकिस्तान के बीच देशभक्ति और प्यार देखकर बहुत गर्व महसूस होता है। जबकि इसके पास आप माता देवी लाल मंदिर के भी दर्शन कर सकते हैं। स्वर्ण मंदिर से इस मंदिर की दूरी मात्र 17 मिनट की है। इसके अलावा आप अकाल तख्त देख सकते हैं। ये सिखों के पांच तख्तों में से एक है। कहा जाता है कि अमृतसर जाने वाले सिख धर्म के लोगों को अकाल तख्त जरूर जाना चाहिए। वहीं यहां का दुर्घियाना मंदिर भी देखने लायक है। इसकी पॉपुलैरिटी स्वर्ण मंदिर से कम नहीं है। इस मंदिर को लक्ष्मीनारायण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। ये मंदिर अमृतसर स्टेशन से मात्र 1.5 किमी की दूरी पर स्थित है। इसके अलावा आप एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित जलियांवाला बाग देख सकते हैं। यहां आप 30-40 मिनट आराम से बिता सकते हैं। यहां जाने के लिए कोई एंट्री फी नहीं हे