ममता की परीक्षा - 69 राज कुमार कांदु द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ममता की परीक्षा - 69



रजनी की जब नींद खुली, सुबह के सात बज रहे थे। बाहर से आती हलचल की आवाजें सुनकर ऐसा लग रहा था कि अस्पताल में लोगों की आवाजाही बढ़ गई है, गहमागहमी शुरू हो गई है।

कुछ देर तक वह बेड पर निश्चेष्ट पड़ी रही और शून्य में घूरती रही। वह छत पर लगे पंखे को लगातार घूरे जा रही थी जो ऐसा लग रहा था मानो थककर आराम फरमा रहा हो, ये और बात है कि कमरा पूरी तरह वातानुकूलित था सो पंखे की आवश्यकता ही नहीं थी, उसे आराम तो करना ही था।

आँखें शून्य में घूर रही थी और उसके कानों में उनींदी अवस्था में सुने गए जमनादास के स्वर स्पष्ट गूँज रहे थे। उस समय उसने जमनादास की बातें सुनकर भी अनसुना करने का ही निश्चय किया था क्योंकि उसकी चेतना लुप्त हो रही थी और आँखें बंद ! वही शब्द पुनः उसके कानों में गूँज उठे 'तू चिंता न कर मेरी बच्ची, मैं अपने पापों का प्रायश्चित करूँगा ' हालाँकि उसने उस अवस्था में भी अपने पापा से इस कथन के बारे में जानना चाहा था लेकिन बड़ी सफाई से वह उस समय टाल गए थे। कानों में गूँजने वाले शब्दों का अब उसका दिमाग भी विश्लेषण करने लगा था। 'मैं अपने पापों का प्रायश्चित करूँगा ' क्या मायने हो सकते हैं इसके ? उसने सोचने का बहुत प्रयास किया लेकिन उसका दिमाग किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सका। उसकी समझ में यह तो आ रहा था कि पापा प्रायश्चित करना चाहते हैं, लेकिन किस बात का ? इसका मतलब उनके हाथों जाने अनजाने कोई ऐसा गुनाह हुआ है जिसका सीधा संबंध मुझसे या फिर अमर से रहा है, नहीं तो उनके इस स्वीकारोक्ति की और कोई वजह नहीं हो सकती।

काफी माथापच्ची के बाद भी उसकी समझ में यह नहीं आ रहा था कि आखिर क्या गुनाह हुआ होगा उसके पापा के हाथों जिसके प्रायश्चित के लिए वो इतने उत्सुक हो रहे हैं। कहीं उनके गुनाह का ताल्लुक अमर की माँ साधना की जिंदगी से तो नहीं ? अमर के कमरे में तस्वीर देखकर जिस तरह पापा चौंके थे और बाद में बताया भी कि अमर की माँ उनके किसी दोस्त की प्रेमिका थी। इसका मतलब यह स्पष्ट है कि वह अमर की माँ यानी साधना को जानते हैं और यदि उनकी बात सही है तो अमर कोई और नहीं पापा के उसी दोस्त का बेटा है जिसे पापा अच्छी तरह जानते हैं, लेकिन फिर अमर की माँ के किसी दूर गाँव में रहने की क्या वजह होगी ? कौन होगा वह पापा का दोस्त और इन दोनों के बीच पापा से क्या गलती हो गई जिसका अब वो प्रायश्चित करने की बात कर रहे हैं ?' समस्त कड़ियों के बिखरे सिरे जोड़ने का पूरा प्रयास किया था उसने लेकिन कुछ समझ में नहीं आ रहा था उसके।

विचारों के भँवर में फँसी वह पता नहीं कब तक गोते लगाती रहती कि तभी कमरे का दरवाजा खुलने की आहट सुनकर उसकी तंद्रा भंग हुई। दरवाजा खोलकर अंदर आती हुई अधेड़ उम्र की नर्स ने मुस्कुरा कर हल्के से सिर झुकाकर उसका अभिवादन किया ,"गुड मॉर्निंग बेबी ! हाउ आर यू ?"

रजनी ने हल्की सी मुस्कुराहट के साथ ही उसके अभिवादन का जवाब दिया।

आते ही उसने रजनी के हाथ में लगी सुई को बाहर निकाला। रजनी उसका मंतव्य समझकर कमरे में ही एक तरफ बने प्रसाधन कक्ष में चली गई।

जब वह वापस आई नर्स जा चुकी थी और बेड पर की चादर बदली जा चुकी थी। मेज पर पड़े चाय और बिस्किट पर उचटती नजर डालते हुए वह पुनः बेड पर जाकर बैठ गई।

उसके विचारों में एक बार पुनः अमर ने दस्तक दे दी थी और सभी घटनाक्रम पर विचार करते हुए उसे वह क्षण याद आ गया जब अमर की एक तस्वीर दिखाते हुए उसके पापा सेठ जमनादास ने उसे बताया था, ' देखो ! तुम्हारा अमर पैसे का कितना लालची निकला।'

उनकी बात पर उसे तब भी यकीन नहीं हुआ था और अब भी यकीन नहीं हो रहा था लेकिन अमर गायब कहाँ हो गया और क्यों ? उसे इसी बात की चिंता खाये जा रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था वह किस पर यकीन करे, अपने पापा पर ? लेकिन उसे कभी यकीन नहीं रहा उनपर। फिर ? ...तभी अचानक उसके जेहन में कौंधा 'ड्राइवर श्याम,.. हाँ, श्याम अंकल को जरूर पता होगा उस दिन की हकीकत। पापा के साथ वह भी तो गए थे अमर से मिलने। उन्होंने दोनों की बातचीत अवश्य सुनी होगी। तस्वीरें झूठ भी बोल सकती हैं लेकिन एक गरीब मुलाजिम कभी झूठ बोलने का प्रयास नहीं करेगा। एक बार पूछने में क्या हर्ज है भला ? क्या पता कोई नई बात पता ही चल जाये ?'

सोचने की देर थी कि उसका हाथ बेड के पास लगे स्विच पर पहुँच गया। दौड़ती हुई एक दूसरी नर्स ने कमरे में प्रवेश किया।
"क्या हुआ मैम ? कुछ चाहिए आपको ?" यह कोई किशोरी थी नर्स की वर्दी में।

"बाहर हमारे ड्राइवर अंकल बैठे होंगे। श्याम नाम है उनका। जरा उनको अंदर भेज दो प्लीज।" रजनी ने उसे पूरी इज्जत बख़्सते हुए कहा।

"जी मैम !" कहकर वह कक्ष से बाहर चली गई।

कुछ देर के बाद श्याम ने दरवाजे पर दस्तक दी।
रजनी ने मुस्कुराते हुए उसे अंदर आने और सामने रखी कुर्सी पर बैठने का इशारा किया।

दोनों हाथ जोड़े कुर्सी पर बैठते हुए श्याम ने पूछा, "अब कैसी तबियत है बेबी आपकी ?"

"ठीक हूँ अंकल ! मुझे आपसे एक बात पूछनी थी।" रजनी जल्दी से मुद्दे पर आते हुए बोली।

"जी पूछिये बेबी, हम आपसे कभी झूठ नहीं बोले हैं और न बोलेंगे।" कहते हुए श्याम ने पुनः दोनों हाथ जोड़ लिए।
"मुझे आप पर पूरा भरोसा है अंकल जी, तभी तो आपसे पूछ रही हूँ। उस दिन जब आप पापा के साथ अमर से मिलने गए थे तब क्या क्या हुआ था, मुझे सिलसिलेवार बताइए।" रजनी ने आग्रह किया।

"ओ के बेबी, मैं आपको सब कुछ सही सही बताऊँगा। उस पूरे समय मुझे सेठजी की कुछ बातें नागवार गुजरी थीं लेकिन मैं क्या कर सकता था ? मैं तो हुक्म का गुलाम हूँ न। इस पापी पेट का सवाल है, लेकिन अब नहीं बेटा ! मैं तुम्हें सब सच सच बताऊँगा। सच बताकर थोड़ा मेरा भी जी हल्का हो जाएगा।"
कहने के बाद श्याम ने उस दिन का पूरा घटनाक्रम उसे ज्यों का त्यों सुना दिया। इसी क्रम में उसने रजनी को सेठजी की योजना के बारे में भी बता दिया जो उन्होंने अमर से मिलने से पहले उसे समझाया था। सेठजी ने कड़े शब्दों में उससे कहा था, "जैसे ही मैं अटैची उसके हाथों में थमाऊँगा तुम इस तरह से तस्वीर लेना जिससे ऐसा लगे कि उसने अटैची अपने हाथों में सँभाल रखी हो। वही तस्वीर दिखाकर हम रजनी के सामने अमर को पैसे का लालची साबित करेंगे" और इस पापी पेट की खातिर मैंने उनके लिए इस गलत काम में भी उनका साथ दिया। मैं आपको बताना चाहता था यह सब लेकिन फिर मेरी हिम्मत नहीं हुई।" कहते हुए उसकी आँखों से आँसू छलक पड़े थे।
"कोई बात नहीं अंकल, आपकी जगह कोई और भी होता तो वही करता जो पापा ने कहा था। इसमें आपकी कोई गलती नहीं, लेकिन मुझे चिंता है कि अमर अब कहाँ गया होगा और फिर अचानक गायब हुआ भी क्यों ?" रजनी ने चिंता जाहिर करते हुए कहा।

" तो क्या करता बेबी ? सेठजी ने उसे दो दिन के अंदर यह शहर छोड़ देने की धमकी दी थी। उसने तो वह अटैची सेठजी को वापस कर दिया था और उसे आपकी ही चिंता थी लेकिन वह मजबूर था।" फिर जेब से अपना मोबाइल निकालकर उसमें कुछ देखने के बाद एक वीडियो चालू करके उसने रजनी के सामने कर दिया। रजनी ने मोबाइल के स्क्रीन पर देखा ' अटैची हाथों में थामे अमर सेठ जमनादास से मुखातिब था। ( नए पाठक इस घटना को विस्तृत रूप से जानने के लिये कृपया इस कहानी का भाग - 3 पढ़ें। )
वीडियो देखकर रजनी के सामने सेठजी के चेहरे पर का नकाब उतर गया था। उनकी अमर को दी गई धमकी सुनकर उसकी नजरों में सेठ के लिए नफरत की ज्वाला धधक उठी। अमर की बेबसी भरी बात सुनते हुए और अपने प्रति उसका प्यार महसूस कर उसका गला भर आया था।

मोबाइल श्याम को वापस करते हुए उसके दिमाग में एक ही बात गूँज रही थी 'आखिर अमर कहाँ गया होगा ? '
तभी रजनी का मोबाइल घनघना उठा।

क्रमशः