"यह सिंघम क्या है? आप किस बारे में बात कर रहीं हैं?" अनिका का दिल जोरों से धड़क रहा था और उसे बेचैनी महसूस होने लगी। उसके अंदर सवालों का तहलका मच गया था। उसकी बुआ ने फिर से उसके सवाल को नजरंदाज कर दिया और भीड़ की तरफ ही अपना रुख रखा।
"मेरा प्रायश्चित आज पूरी हुआ, अब तीस साल मैं पहली बार मैं यहां से बाहर कदम रखूंगी। और मेरी पहली जगह होगी बाहर जाने की....सिंघम टैंपल।"
चारों तरफ भीड़ का शोर गूंज उठा। अनिका ने अपनी कजिन सबिता को भी भीड़ में खड़े देखा। भिड़ में खड़ी सबिता अपनी खाली आंखों से अनिका को रहस्यमई नज़रों से देख रही थी।
फाइनली नीलांबरी ने भीड़ से अपना रुख अनिक की तरफ मोड़ लिया और कहा, "आओ।"
अनिका नीलांबरी के पीछे चलने लगी इसलिए नही क्योंकि उन्होंने उसे ऑर्डर दिया था बल्कि इसलिए क्योंकि वोह जानना चाहती थी की यह सब क्या हो रहा है और वोह क्यों इन सब में इंवॉल्व है जिसमे इतने सारे लोग जुड़े हुए हैं।
उसकी बुआ अपने कमरे के दरवाज़े के पास आई और जैसे ही उन्होंने अपना पहला कदम बाहर रखने के लिए अपना पैर उठाया वोह एक पल रुक गई। उन्होंने एक लंबी सांस ली और फिर पैर बाहर रख दिया।
अनिका उनके पीछे पीछे ही चलती रही जब तक की वोह एक व्हीलचेयर के सामने नही पहुंची जहां इसके दादाजी बैठे अपनी बेटी को अपनी डबडबाई आंखों से देख रहे थे।
नीलांबरी ने झुक कर अपने पिता के पैर छुए। "मैने अपनी तपस्या तोड़ दी है पापा। अब मैं फिर से अपने परिवार को सवारूंगी। जल्दी ही प्रजापति घर में सिंघम का वारिस होगा।"
उन्होंने पलट कर अनिका की तरफ देखा। "और यह काम आपकी पोती कर दिखाएगी।"
अनिका अब तक बहुत सुन चुकी थी। "यह सब क्या हो रहा है? वोह सब कौन लोग हैं? और यह सिंघम क्या है?"
"क्या? कौन? नहीं।" नीलांबरी ने कहा और अपने बेशकीमती सोफे पर जा कर बैठ गई। उसने अपनी दोनो बाहों को फैला कर सोफे की बांह पर रख दिए। वोह अत्यधिक संतुष्टि से अनिका को सके रही थी।
"द सिंगम्स थे.... और हैं....... यहां के सबसे ताकतवर, प्रभावशाली, और समृद्ध परिवार।
"ओके। पर मैं क्या करूं उनका या उनमें से किसी का?" अनिका ने पूछा। उसकी गट फीलिंग की वजह से वोह अधीर हो गई थी। उसकी गट फीलिंग उसे कई वार्निंग दे चुकी थी।
उसकी बुआ की में मुस्कुराहट और बड़ी हो गई। "सबकुछ, मेरी जान। अभी जो सिंघम्स का वारिस है, अभय सिंघम वोह दो दिन में तुम्हे अपनी पत्नी बनाएगा।"
"क्या?" अनिका को लग रहा था की यह कोई मज़ाक चल रहा है या उसने कुछ गलत सुना।
"तुमने सही सुना। वोह निडर और निर्दय अभय सिंघम जल्द ही तुम्हारा पति होगा। यह तोह तुम्हारी जिंदगी के लिए सम्मान की बात है की उन्होंने तुम्हे अपनी पत्नी स्वीकारने और सिंघम वंश चलाने के लिए सेहमती दे दी।"
"आप असल में किस बारे में बात कर रहें हैं?" अनिका ने अपनी भौंहे सिकोड़ कर पूछा। घबराहट हावी होने लगी थी।
"यह धरती पिछले तीस साल से श्रापित थी सूखे से। यहां लोग हर रोज़ मर रहे थे। और सिर्फ एक ही रास्ता था इस श्राप से मुक्ति पाने का......अगर प्रजापति या सेनानी परिवारों की एक महिला सिंघम के उत्तराधिकारी को जन्म देती है।"
यह सब एक सपने जैसा था। कौन आज भी श्राप जैसी बात करता है और उनपर विश्वास करता है।
अनिका ने एक गहरी सांस ली अपनी घबराहट को काबू में करने के लिए और उसे अभी जरूरत थी की वोह बुरा बरताव कर सब पर चीख पड़े। "मैं आपकी सराहना करती हूं की आपने यह सोचा की मैं किसी तरह सूखे से बचने में मदद कर सकती हूं। पर मैं यहां सिर्फ इसलिए आई थी क्योंकि दादाजी बीमार थे। दुर्भाग्य से मुझे अपनी ट्रिप को......."
उसकी बुआ ज़ोर से हस पड़ी। "कितनी विनम्र हो तुम, मेरी बच्ची। मुझे तो लगा था की तुम गुस्सा करोगी, चिल्लाओगी। तुम कितनी स्वीट हो जो यह सोचती हो की हम तुम्हे तुम्हारी मर्जी का कोई ऑफर देंगे।"
अनिका के यह प्यार की चाशनी में घोल कर धमकी सुनते ही पैर जम गए। "मैं आपकी धमकी से डरती नही। मैं अभी के अभी यहां से जा रही हूं। आपको मुझे कहीं छोड़ने की जरूरत नहीं है। मैं खुद टैक्सी बुला लूंगी।"
अनिका कुछ कदम आगे बड़ी ही थी की अपनी बुआ के शब्द सुन कर उसके कदम रुक गए।
"अगर तुम अपना फोन ढूंढने की कोशिश कर रही है तोह तुम्हे नही मिलेगा। तुम दुनिया में किसी ने ना ही मिल सकती हो और ना उन तक पहुंच सकती हो जब तक मैं न चाहूं।"
अनिका के पैर डगमागने लगे जैसे जान ही न बची हो। पर फिर भी वोह सीधी खड़ी रही और अपनी बुआ की तरफ पलट कर देखा। "मैं छब्बीस साल की हूं। आप मुझे नही रोक सकती अगर मैं यहां से जाना चाहूं। कोई भी नही रोक सकता।"
उसकी बुआ मुस्कुराई। "आह! इसके पास जबान भी है।" उन्होंने अब सबिता की तरफ देखा जिसने अभी थोड़ी देर पहले ही उन्हे ज्वाइन कर लिया था। "देखा, मैने कहा था ना, साबी। तुमने मुझसे कहा था की तुम क्वीन बनना चाहती हो क्योंकि तुम्हारी कजिन के पास ना ही गट्स हैं और ना ही ज़बान, अभय सिंघम पर राज़ करने के लिए। देखो अब इसे। यह जरूर ही उस राक्षस को अपने काबू में कर सकती है।" नीलांबरी के चेहरे पर गर्व के भाव थे।
सबिता ने कोई जवाब नही दिया।
अनिका ने अपना सिर झटका। "मुझे कोई फर्क नही पड़ता की आप सब मेरे बारे में क्या सोचते हैं। यहां आना मेरी सबसे बड़ी भूल थी और अब मैं यहां से जा रहीं हूं।" अनिका सीढ़ियों की तरफ जाने लगी।
"मायरा बहुत ही प्यारी है। कैसा होगा अगर बीस साल की उम्र में ही उसकी जिंदगी....."
अनिका एक दम जड़ सी गई।
"क्योंकि मैं तीस साल तक अपने कमरे से बाहर नहीं निकली इसका मतलब यह नहीं की मैं कुछ जानती नही या मेरी ताकत कम हो गई है। मैं बेवकूफ नही हूं।" उसकी बुआ ने कहा तोह शांत भाव से लेकिन उसमे धमकी छुपी हुई थी जिससे अनिका के रोंगटे खड़े हो गए थे।
"अगर तुम ज़रा सा भी अपनी मां की सुरक्षा की परवाह करती हो, उनके पति की परवाह करती हो, अपनी सौतेली बहन की परवाह करती हो, तोह तुम वोही करोगी जो मैं करने के लिए कहूंगी।"
अनिका ने पलट कर नीलांबरी की तरफ देखा। "आप झूठ बोल रहीं है ना। आप उन्हे नुकसान नहीं पहुंचा सकती। मैं उन्हे सतर्क कर दूंगी। वोह सेफ रहेंगे....."
"सुरक्षित हैं पर अभी। पर कब तक.... यह सब तुम पर डिपेंड करता है।"
अनिका ने उनकी धमकी को अनदेखा कर फिर जाने के लिए बड़ गई। पर इस बार सीढ़ियों की तरफ नही बल्कि मुख्य दरवाज़े की तरफ। उसे पहले इस घर से बाहर निकलना था। वोह बाद में आकर अपना समान ले लेगी या किसी और को भेज देगी समान लेने।
"इसे हम पर यकीन नही है, साबी। उसे बताओ की की उसकी प्यारी छोटी सी बहन मायरा इस वक्त क्या कर रही है।" नीलांबरी ने शैतानी मुस्कुराहट से कहा।
"मायरा इस वक्त अपने फ्रेंड्स के साथ अपने यूनिवर्सिटी कैंपस में एक पार्टी में है।"
"और मिस्टर और मिसिस पटेल?"
"उनका क्रूज शिप इस वक्त स्पेन में रुका हुआ है।" सबिता किसी रोबोट की तरह सब बता रही थी लेकिन उसकी आवाज़ काफी थी अनिका के कदम रोकने के लिए।
"आह, इसे यकीन हो गया है अब, साबी। शायद अगर नही भी हुआ हो, तोह हम इसकी बहन मायरा को यहां ले आयेंगे इसका साथ देने के लिए।"
अनिका नीलांबरी की तरफ घूम गई। "अगर मेरी छोटी बहन को कोई नुकसान भी पहुंचाया, तोह मैं....."
इससे पहले की वोह अपनी धमकी पूरी करती नीलांबरी ने उसकी बात काट दी।
"चुप हो जाओ! यह पहले और आखरी बार है जो तुम मुझसे इस लहज़े में बात कर रही हो। मैने अपनी जिंदगी के तीस साल यूहीं नही अकेलेपन में गुजारे हैं।"
अनिका ऐसे ही खड़ी थी। उसके दिल और दिमाग में हजारों बातें चल रही थी। उसे कुछ समझ नही आ रहा था। उसकी बुआ का इस तरह से झूठ बोल कर बुलाना, उसे धमकाना, शादी करने के लिए जबरदस्ती करना, किसी भी बात का कोई लॉजिक समझ नही आ रहा था।
"और अगर मैं यह सब ना करना चाहूं तोह?" अनिका ने शांत आवाज़ में पूछा।
"ओह, तुम करोगी। तुम्हे करना ही होगा।"
"मैं उस आदमी से कहूंगी..... वोह अभय सिंघम की मुझसे जबरदस्ती यह शादी कराई जा रही है। फिर वोह मुझसे शादी करने के लिए मना कर देंगे......"
अनिका की बात पूरी होती की नीलांबरी खिलखिला कर हस पड़ी। उसकी बुआ ने हस्ते हस्ते अपना सिर पीछे खुला लिया फिर अचंभित सी सिर उठा कर अनिका की तरफ देखा।
"मेरी प्यारी भतीजी। अभय सिंघम एक राक्षस है। वोह बिना पलके झपकाए एक ही वार में बिना हथ्यार उठाए इंसान को मार सकता है। वोह उसके लोगों के लिए कुछ भी कर सकता है। और उसके लोग चाहते हैं......तुम्हे।"
डर से अनिका कांप उठी। नीलांबरी के धमकाने से भी और अभय के बारे में जानने से भी।
"तीन घंटे और....फिर तुम अपने होने वाले पति से मिलोगी सिंघम टैंपल में।"
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कहानी अभी जारी है..
❣️❣️❣️